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अल्पसंख्यकों की रक्षा हो वो चाहे हिन्दू हों या मुस्लिम

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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अभी कुछ दिनों पहले जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ क्षेत्र में और बिहार के नेवादा जिले में सांप्रदायिक दंगे हुए जिसमे वहां के अल्पसंख्यक समुदाय के निवासियों के घरों और दुकानों को बहुसंख्यक समुदाय की हिंसक भीड़ ने जला दिया और लूटपाट.हत्याएं,महिलाओं के संग दुर्व्यवहार आदि वो सब पाशविक कृत्य किये गए जो दंगों के दौरान होतें हैं.देश के विभिन्न क्षेत्रों में वहां के अल्पसंख्यक चाहे हिन्दू हों या मुसलमान अथवा सिक्ख या ईसाई,आज कोई भी अपने को सुरक्षित महसूस नहीं करता है.सबसे दुखद बात यह है की दंगों के समय वहां पर शासन कर रहे नेता अपने वोट बैंक के लालच में दंगों को शांत करने के लिए तुरंत कार्यवाही नहीं करतें हैं और सत्तारूढ़ पक्ष व् विपक्ष के नेता अपने मतलब की राजनीती के लिए एक दूसरे पर दोषारोपण करतें हैं.दंगों का मकसद धर्म प्रचार नहीं होता है.धर्म का प्रचार तो ज्ञान से और अपने अच्छे आचरण से होता है.दंगो का मकसद अपने स्वार्थपूर्ति(लूटपाट.हत्या.रेप) के लिए,हिंसक भीड़ से घिरा मजबूर व् बेबश व्यक्ति को पीड़ित कर अपने अहम् को संतुष्ट करने के लिए और अल्पसंख्यकों का वजूद(अस्तित्व)मिटाने के लिए होता है.ऐसा करने वाले वास्तव में धर्मिक व्यक्ति तो क्या मनुष्य कहलाने के लायक भी नहीं हैं.ये असामाजिक तत्व होतें हैं और इनसे शासन को उसी भांति निपटना चाहिए जैसे सीमा पर हमला करने वाले दुश्मनों से निपटा जाता है.वास्तव में यदि कोई धार्मिक व्यक्ति है तो वो दंगे जैसा घृणित कार्य करने से डरता है की भगवान को या खुदा को क्या मुंह दिखाएंगें.दंगों के दौरान हुई हिंसा की ख़बरों को सुनकर और दंगा पीड़ितों की विभत्स तस्वीरों को देखकर हर सभ्य व्यक्ति यही सोचता है कि क्या ये दुनियां रहने लायक है?आम आदमी अपने को बेबस पाता है की वो पीड़ितों की क्या मदद करे और अपराधियों को क्या दंड दे,क्योंकि ये शासन व् अदालत का कार्य है.पीड़ितों और दुखियों की आह राजा को भी लगती है.मानस में संत तुलसीदास जी ने कहा है कि-जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी,सो नृप अवसि नरक अधिकारी.अर्थात जिस शासक के शासनकाल में प्रजा दुखी और पीड़ित रहती है उस शासक की मृत्यु उपरांत सद्गति नहीं होती.मनुष्य के जीवन की बागडोर अदृश्य हाथों में है.कोई अदृश्य सत्ता हम सब के जीवन का संचालन करती है,जिसे कोई भगवान कहता है तो कोई खुदा.हम अगला जन्म किस धर्म,जाति,कुल या खानदान में लेंगें क्या यह हमारे वश में है?संतजन कहतें हैं कि आदमी पूरी जिन्दगी जिनसे नफ़रत करता है कुदरत अगले जन्म में उन्ही के बीच ले जाकर बिठा देती है.आइये हम सब मिलकर इस पूरी दुनिया को इतना सुंदर व् खुशहाल बनायें कि हम कहीं भी जन्म लें अपने आसपास नफरत व् हिंसा नहीं बल्कि प्यार और भाईचारे वाला माहौल पायें.दुनियां की सभी सरकारों से मेरा आग्रह है की वो अपने यहाँ अल्पसंख्यकों को पूरी सुरक्षा प्रदान करें और उन्हें निर्भय ढंग से सुखपूर्वक जीने के सभी संसाधन उपलब्ध कराएँ.(सद्गुरु राजेंद्र ऋषिजी प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम ग्राम-घमहापुर पोस्ट-कन्द्वा जिला-वाराणसी पिन-२२११०६)

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