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ईश्वर कहाँ रहतें हैं और क्या करतें हैं?

श्रीमदभगवदगीता के अध्याय १८ श्लोक ६१ में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहतें हैं-ईश्वर: सर्वभूतानाम हृद्देशेअर्जुन तिष्ठति,भ्रामयन्सर्वभुतानी यंत्रारुढ़ानि मायया.इस एक श्लोक में भगवान ने आध्यात्म का सारा रहस्य उजागर कर दिया है.भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहतें हैं कि हे अर्जुन ईश्वर का अस्तित्व है,इसमें कोई संदेह नहीं.ईश्वर का अस्तित्व अकाट्य व् परम सत्य है.ईश्वर हैं कहाँ पर?इस सवाल के जबाब में भगवान अर्जुन को समझातें हैं कि अर्जुन ईश्वर सभी प्राणियों के भीतर उनके ह्रदय देश में स्थित हैं.यहाँ पर भगवान समझाना चाहतें हैं कि एक ही ईश्वर है जो हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई सबके ह्रदय देश में निवास करतें हैं.मनुष्य ही नहीं बल्कि वो संसार में जितने भी प्राणी हैं,सबके ह्रदय देश में निवास करतें हैं.ह्रदय यानि मन ये भी एक देश है.शरीर में ह्रदय(हार्ट) मन का पहला केंद्र है.दोनों भवों के बीच स्थित आज्ञा चक्र मन का दूसरा केंद्र है और सर के ऊपर तालू में मन का तीसरा केंद्र है जिसे सहस्रार चक्र भी कहतें है.इन तीनो स्थानों में साधक अपनी आध्यात्मिक पहुँच के अनुसार ध्यान करतें हैं.