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कान्हा बजाये बंसरी और ग्वाले बजाएं मंजीरे

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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कान्हा बजाए बंसरी
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कान्हा बजाये बंसरी और ग्वाले बजाएं मंजीरे
हो गोपियाँ नाचें छुमक छुम

गोरे -गोरे हाथों में कंगना खनके
चंचल पावों में देखो पैंजनिया छनके
ढोलक धमाक बोले झांझ भी झमाक बोले
धूम मची है जमुना तीरे
हो गोपियाँ नाचें छुमक छुम
कान्हा बजाये बंसरी …
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ना तन का ध्यान रहा ना मन का ध्यान रे
आज सभी सुंदरियां भूली हैं भान रे
सखियों के संग संग
ठनक रही है मृदंग
पुलकित है अंग अंग
मन में उछले तरंग
झूम झूम कामिनिया ऐसी हुई बावली
बालों की लट उलझी रे
हो गोपियाँ नाचें छुमक छुम
कान्हा बजाये बंसरी ..
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छाया ब्रिन्दाबन में आज अजब रंग है
धरती चकरा रही है आसमान दंग है
कैसा है ये कमाल
दसों दिशाएं निहाल
जमुना देती है ताल
उड़ने लगी वैजमाल
झुकने लगी डाल डाल
थम गई पवन की चाल
बारह घोड़ों वाला सूरज का रथ भी
चलने लगा रे धीरे धीरे
हो गोपियाँ नाचें छुमक छुम
कान्हा बजाये बंसरी ..

(फिल्म-नास्तिक,गीतकार-प्रदीप,गायिका-लता)

आप सभी को श्री कृष्ण-जन्माष्टमी पर्व की बहुत बहुत शुभकामनायें.

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