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” हिन्दी बाजार की भाषा है, गर्व की नहीं” “Contest”

‘हिन्दी दिवस’ के उपलक्ष्य में जागरण परिवार ने हिंदी से सम्बंधित विभिन्न विषयों पर एक प्रतियोगिता का आयोजन किया है,जिसके लिए वो बधाई की पात्र है.प्रतियोगिता में लेखन का एक विषय है-‘हिन्दी बाजार की भाषा है, गर्व की नहीं’ जब पहली बार इसको मैंने पढ़ा तो मुझे बहुत दुःख हुआ.मुझे विश्वास नहीं हुआ कि पूरे विश्व का सर्वाधिक पढ़ा जाने वाला हिंदी का अख़बार हिंदी को बाज़ार की भाषा कह रहा है.आप लोगों से अपने मन की बात कहता हूँ कि मुझे कई दिनों तक ये बात चुभती रही और पीड़ा देती रही.मुझे ऐसा लगा जैसे हिंदी को बाज़ार की भाषा कहकर गाली दी जा रही हो.यदि कोई अंग्रेजी का अख़बार ये बात कहता तो इतना दुःख नहीं होता.कई दिनों के चिंतन के पश्चात ” हिन्दी बाजार की भाषा है, गर्व की नहीं” इसका वास्तविक अर्थ मुझे समझ में आया.भारत में लगभग ५० करोड़ से ज्यादा लोग हिंदी बोलतें हैं.हिंदी भाषी क्षेत्रों व् हिंदी भाषी जनता के जरिये बहुत सारे

“Contest” ‘हिन्दी बाजार की भाषा है, गर्व की नहीं’
“Contest” ‘हिन्दी बाजार की भाषा है, गर्व की नहीं’
अख़बार,पत्रिकाएं,टीवी चैनल,दूर संचार कम्पनियां,वेबसाईट और फिल्म इंडस्ट्री न सिर्फ दौड़ रहीं हैं बल्कि अरबों-खरबों का व्यापार भी कर रहीं हैं.ये समर्थ लोग हिंदी के विकास के लिए कुछ नहीं करते,ये लोग हिंदी का खातें हैं.अंग्रेजी का गुण गातें हैं और हिंदी को मात्र बाज़ार की भाषा समझतें हैं.सबसे ज्यादा एहसान फरामोश हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के लोग हैं,जो हिंदी के जरिये कमाते खातें हैं,लेकिन टीवी चैनलों पर और पुरस्कार समारोहों में अंग्रेजी में बोलना अपनी शान समझतें हैं.क्या फिल्म इंडस्ट्री के किसी भी व्यक्ति ने पुरस्कार समारोहों में आज तक कभी हिंदी को धन्यवाद दिया है या हिंदी के प्रति आभार या कृतज्ञता प्रगट की है.आई विल लाइक टू थैंक फलां- फलां व्यक्ति,वो बहुत सारे लोगों का नाम लेंगें,लेकिन अपनी मातृभाषा में नम आँखों से क्या कभी किसी ने हिंदी को धन्यवाद दिया है,नहीं क्योंकि आज के युग का दस्तूर है कि तरक्की करके बेटा माँ को भूला देता है.ये बड़े-बड़े फिल्म स्टार अगर हिंदी में बोलते और हिंदी भाषा को प्रोत्साहन देते तो पूरे देश भर में फैले उनके चाहने वालों के मन में भी हिंदी के प्रति सम्मान बढ़ता,खासकर गैर हिंदी भाषी राज्यों में,जहा पर लोग हिंदी से नफ़रत करतें हैं.कितने शर्म की बात है की हिंदी फिल्मों के नाम अब अंग्रेजी में रखें जा रहें हैं,ऐसी फिल्मों को हिंदी प्रेमियों को नहीं देखना चाहिए और उन कलाकारों की फिल्मों को भी नहीं देखना चाहिए जो हिंदी भाषा को तुच्छ दृष्टी से देखतें हैं और हिंदी भाषा में बोलना पसंद नहीं करतें.हिंदी बाज़ार की नहीं बल्कि गर्व की भाषा है.हिंदी मेरी मातृभाषा तो है ही वो मेरे सोचने व् बोलने की आदत भी है.वो मुझे माता-पिता,भाई-बहन,गुरुजनों और मित्रों से भावनात्मक रूप से जोडती है.हिंदी जमीन से जोडती है और अंग्रेजी स्वार्थी बना सारे रिश्ते-नाते तोडती है.आज़ादी के बाद हमारे नेताओं ने प्रशासनिक कार्यों में अंग्रेजों के समय वाली अंग्रेजी भाषा की व्यवस्था को नहीं बदला,सारा सरकारी कामकाज पहले की ही तरह अंग्रेजी भाषा में ही रक्खा और हिंदी को मात्र सरकारी कामकाज के अनुवाद की भाषा भर बना दिया.यही कारण है कि आज़ादी के बाद अंग्रेजी की अनिवार्यता घटने की बजाय बढती ही चली गई.आज तो संसद व् कोर्ट से लेकर पूरे सरकारी सिस्टम पर अंग्रेजी भाषा हावी है.पूरे देश भर में सरकारी-प्राइवेट हर विभाग में अंग्रेजी का ही बोलबाला है.अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान रखने वाला व्यक्ति ज्यादा आसानी से सरकारी या प्राइवेट जगहों पर अच्छी नौकरी पा लेता है,उसे ज्यादा पैसा और ज्यादा सम्मान भी मिलता है,इसीलिए बच्चों को बचपन से ही लोग अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ा रहें हैं.आज के वक़्त की जरुरत और मजबूरी देखिये कि हिंदी भाषा के जो हिमायती हैं,उनके भी बच्चे अंग्रेजी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ रहें हैं.एक गरीब मजदूर भी आज ये सोचता है कि पेट काट कर भी बच्चों को अंग्रेजी स्कूल में पढाओ,ताकि वो बड़े होकर कुछ बन सकें यानि की गरीब आदमी भी अब ये सोचता है कि हिंदी माध्यम से पढ़ाने पर बच्चों का कोई उज्जवल भविष्य नहीं है.यह अंग्रेजी को महत्व देने वाली हमारी सरकारी व्यवस्था से उपजा दोष है,जिसका अब ठीक होना असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है.अंग्रेजी आज के बच्चों,नौजवानों और यहाँ तक की आम जनता की भी जरुरत और मजबूरी बना दी गई है,इसके लिए हमारे संविधान निर्माता,हमारे नेता,हमारी संसद ,केंद्र सरकार और प्रांतीय सरकारें पूरी तरह से दोषी हैं,जिन्होंने सरकारी तंत्र में हमेशा अंग्रेजी भाषा को ही बढ़ावा दिया.यही सब कारण है की आज हिंदी राष्ट्रभाषा की जगह मात्र सरकारी अनुवाद की राजभाषा बनके रह गई है.चाहे भारत का बाज़ार हो या विश्व बाज़ार व्यावसायिक हित के लिए हिंदी भाषा और हिंदी भाषियों का दोहन ही हो रहा है.(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषिजी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)