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नगरवधुओं के देहरी की धूल पर चढ़ेंगे कुलवधुओं के श्रद्धा के फूल (जागरण जंक्शन फोरम)

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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शारदीय नवरात्र निकट आ रहा है.मूर्तिकार इस समय मां दुर्गा की एक से एक सुंदर व् भव्य मूर्तियाँ बनाने में लगें हैं.मां जगदम्बा की प्रतिमा को आकार देने के लिए जो मिटटी गूंथी जाती है,उसमे नगरवधुओं के देहरी की मिटटी लाकर मिलायी जाती है.हमारे वर्तमान सामाजिक संरचना की ये कितनी बड़ी बिडम्बना है कि जो नगरवधुएं समाज की दृष्टि में खासकर कुलवधुओं की दृष्टि में अछूत,अपवित्र,वहिष्कृत और तिरष्कृत हैं,उन्ही के देहरी की धूल मिलाकर मां दुर्गा की प्रतिमा बनती है,और जब वो प्रतिमा पंडालों में सज जाती है तो अमीर-गरीब सभी घरों की कुलवधुएं उस प्रतिमा पर अपने श्रद्धा के फूल चढ़ाती हैं.मूर्तिकार झोली फैलाये उस नगरवधू की देहरी पर खड़ा होता है,जो अपवित्र व् तिरष्कृत समझी जाती है.साहिर लुधियानवी साहब की ये पन्क्तियां याद आती हैं-
संसार की हर एक बेशर्मी,गुर्बत की गोद में पलती है,
चकलों ही में आ के रूकती है,फांकों से जो राह निकलती है,
मर्दों की हवस है जो अक्सर,औरत के पाप में ढलती है.
औरत ने जनम दिया मर्दों को,मर्दों ने उसे बाज़ार दिया,
जब जी चाह मसाला कुचला,जब जी चाहा दुत्कार दिया.
देहरी की धूल के लिए झोली फैलाये मूर्तिकार की झोली में नगरवधू अपनी अंजुरी से उठा धूल डाल देती है.उसकी आँखों से आंसू छलकतें हैं,कुछ बोल नहीं पाती.कहना चाहती है कि मां मुझे इस नरक से छुटकारा दिलाओं.जो नगरवधू बूढी हो चुकी है,कई रोगों की शिकार है.वो खांसते-हांफते हुए अपने अंजुरी में बटोरी धूल मूर्तिकार की झोली में डाल अपने आंसू पोछते हुए बोल ही पड़ती है कि मां ये जनम तो बिता,अब अगले जनम में या तो मुझे बेटी का जनम मत देना या फिर अच्छे कुल में जनम देना ताकि मै तुझे ये आंसुओं से नम धूल नहीं बल्कि कुलवधू के रूप में हंसी-ख़ुशी के साथ अपनी श्रद्धा के फूल चढ़ाऊं.मूर्तिकार अपनी आँखे पोछता हुआ वहां से चल पड़ता है.भारत में बहुत पहले जब देश में स्त्रियाँ अधिकार संम्पन्न थीं,तब उन्होंने नगरवधू रूपी सभ्य नाम दिया था और सार्वजनिक दुर्गा पूजा में मां दुर्गा की प्रतिमा बनाने के लिए सबसे पहले नगरवधुओं की देहरी से मिटटी लाना अनिवार्य कर दिया था,ताकि समाज में उन्हें भी सम्मान मिल सके.ये कितने शर्म की बात है कि आज़ादी के ६७ वर्षों बाद भी हम अपने देश कि नगरवधुओं को कोई रोजगार नहीं दे सके,उन्हें सम्मान के साथ जीने का हक नहीं दिला सके.हमारे रहनुमाओं को गंभीरता से इस समस्या का कोई हल ढूँढना चाहिए.साहिर लुधियानवी साहब ने बहु सही कहा है-
जरा मुल्क के रहबरों को बुलाओ,
ये कूंचे,ये गलियां,ये मंजर दिखाओ,
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर उनको लाओ
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं?,कहाँ हैं?,कहाँ हैं?
स्त्री को सम्मान मिलना ही चाहिए.साहिर लुधियानवी साहब के शब्दों में-
औरत संसार की किस्मत है,फिर भी तकदीर की हेटी है,
अवतार पयम्बर जनती है,फिर भी शैतान की बेटी है.
सभी पुरुषों और महिलाओं से मै आग्रह करूँगा की वो नगरवधुओं के उत्थान के लिए मुद्दा बनायें,चर्चा करें और सरकर पर भी दबाब बनायें कि वो नगरवधुओं के उत्थान के लिए,उन्हें सम्मानित जीवन देने के लिए समुचित कदम उठाये.
(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.

नगरवधुओं के देहरी की धुल पर चढ़ेंगे कुलवधुओं के श्रद्धा के फूल
नगरवधुओं के देहरी की धुल पर चढ़ेंगे कुलवधुओं के श्रद्धा के फूल

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