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मां दुर्गा जी की ये आरती मुझे बहुत प्रिय है.मां ने इस संसार को जन्म दिया है और अपने तीन गुणों सत,रज व् तम के जरिये इस संसार को चला रही है.मां हमारे भीतर शक्ति के रूप में विराजमान हैं.जब बहुत से लोग मिलकर किसी अन्याय,अत्याचार,शोषण,भ्रस्टाचार या घोटाले का विरोध करतें हैं तो ये मां का समन्वित शक्ति रूप ही है.मां की आराधना हमारी शक्ति को बढाती है.मां हमारे मन और बुद्धि में बसती हैं.आइये नवरात्र में मां की आराधना करके अपने मन व् बुद्धि की शक्ति को बढ़ाएं और उस शक्ति का उपयोग अपने परिवार,समाज और देश के हित के लिए करें.प्रस्तुत है-॥ आरती श्री दुर्गाजी की ॥
अम्बे तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गावें भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ।
तेरे भक्त जनो पर माता भीर पड़ी है भारी ।
दानव दल पर टूट पडो माँ करके सिंह सवारी ॥
सौ-सौ सिहों से बलशाली, है अष्ट भुजाओं वाली,
दुष्टों को तू ही ललकारती ।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥
माँ-बेटे का है इस जग मे बडा ही निर्मल नाता।
पूत-कपूत सुने है पर ना माता सुनी कुमाता ॥
सब पे करूणा दर्शाने वाली, अमृत बरसाने वाली,
दुखियों के दुखडे निवारती ।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥
नहीं मांगते धन और दौलत, न चांदी न सोना ।
हम तो मांगें तेरे चरणों में छोटा सा कोना ॥
सबकी बिगड़ी बनाने वाली, लाज बचाने वाली,
सतियों के सत को सवांरती ।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥
चरण शरण में खड़े तुम्हारी, ले पूजा की थाली ।
वरद हस्त सर पर रख दो माँ संकट हरने वाली ॥
माँ भर दो भक्ति रस प्याली, अष्ट भुजाओं वाली,
भक्तों के कारज तू ही सारती।
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ॥
ये संसार एक दुर्ग यानि किला है और संसार का सुख भोगने के लिए तथा इस पर विजय यानि मोक्ष पाने के लिए शक्ति चाहिए.मां की भक्ति से हमारे तन,मन और बुद्धि तीनों को शक्ति मिलती है.मां दुर्गा एक समन्वित शक्ति का नाम है,जिसमे सत यानि सरस्वती,रज यानि लक्ष्मी और तम यानि काली तीनों शामिल हैं.माता भगवती दुर्गा जी के तीनों स्वरूपों माता महासरस्वती, माता महालक्ष्मी व माता महाकाली की एक साथ साधना का पूर्ण प्रभावक बीज मंत्र है,जिसे नवार्ण मंत्र कहतें हैं.नव का अर्थ नौ संख्या से है और अर्ण का अर्थ अक्षर होता है.मां दुर्गा जी का बीज मंत्र नवार्ण मंत्र के रूप में ये है-‘ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे’ है.नवार्ण मंत्र के नव अक्षरों का सम्बब्ध भगवती दुर्गा जी के नव रूपों से है.इस मंत्र के जाप से धर्म,अर्थ,काम व् मोक्ष चारों पुरुषार्थ सिद्ध होते हैं.नवरात्र में मां दुर्गा जी की पूजा करके हम अपने भीतर देवी-जागरण करतें हैं.मां दुर्गा संसार का सृजन करती हैं तो स्त्री संसार के लोगों का सृजन करती है,इसीलिए नवरात्र में स्त्रियों को विशेष सम्मान दिया जाता है.मेरे विचार से देवी-जागरण का अर्थ है-अपने मन के भीतर के दानव यानि काम,क्रोध,लोभ,मोह,अहंकार,निद्रा,और ईर्ष्या-द्वेष को मां की भक्ति करके ख़त्म करना.अपने भीतर दैविक शक्तियों को जागृत करना और समाज व् देश के उत्थान के लिए एकजुट होकर प्रयास करना.देश के लोग जब-जब एकजुट होकर बलात्कार,भ्रस्टाचार,महंगाई,बेरोजगारी और किसी भी तरह के शोषण व् अन्याय के खिलाफ सड़कों पर उतरकर एक साथ आवाज़ बुलंद करते हैं तब-तब देवी-जागरण होता है और उस समय जनता का शोषण करने वाले,जनता पर अत्याचार करने वाले असुर थर-थर कांपने लागतें हैं.आज हमारे समाज और देश का दुर्भाग्य सौभाग्य में बदलने के लिए यानि जनता की सभी समस्याओं के समाधान के लिए ऐसे ही देवी-जागरण की जरुरत है.हम सब का संगठित रूप ही मां का जागरण है.अंत में मां भगवती से मेरी बस यही प्रार्थना है-“दानव दल पर टूट पडो माँ करके सिंह सवारी”.ये दानव दल बुरे विचारों के रूप में हम सब के भीतर हैं और समाज व् देश के भीतर ये बुरे कार्यों के रूप में हैं.दोनों ही तरह के दानवों का संहार होना चाहिए,तभी हम सबका ,समाज का और देश का कल्याण होगा.आप सभी को नवरात्री की शुभकामनाएँ.आप सबके के भीतर देवी-जागरण हो.(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)
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