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कई साल बाद कोई कविता लिख रहा हूँ.बहुत दिनों बाद आज भोर में एक कविता मेरे मन में न जाने कैसे आ गई.कविता मेरे अपने विचारों और आध्यात्मिक अनुभवों से प्रभावित है.मैंने कोशिश की है सरल हिंदी भाषा में अपनी बात कहने की.आज भोर में जो मेरे मानस में उतरी है,उस कविता को यहां ब्लॉग पर उतारकर आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ.
सितारों से आगे मेरा घर जहां है
है आनंद करुणा सुख-दुःख कहां है
कहीं कोई सूरज न उगता जहां है
उस घर की मै खुद रौशनी हूँ
सुख-दुःख नहीं है कोई वहां पर
न तन है न मन है बस रौशनी हूँ
न जाने कितने सूरज उगते वहां हैं
सितारों से आगे मेरा घर जहाँ है
है आनंद करुणा सुख-दुःख कहा है
सफ़र कहूँ मै या माया का खेला
भटकते हैं सब जन्मों जहां पर
लगता जहां है अरमानो का मेला
है असली घर का पता भी वहां पर
कोई उस पते को पढता कहाँ है
सितारों से आगे मेरा घर जहाँ है
है आनंद करुणा सुख-दुःख कहां है
न पिता है न बेटा,न गुरु है न चेला
नहीं कोई रिश्तों का झमेला जहां है
नहीं कोई बूंद,सब आत्माओं का समुंदर
नहीं है अँधेरा,आत्माएं सूरज वहां हैं
न मेरा न तेरा,सब सत्पुरुष जहाँ हैं
सितारों से आगे मेरा घर जहाँ है
है आनंद करुणा सुख-दुःख कहां है
अब चलूँ मै सफ़र में निरंजन पुकारे
है मस्ती का आलम ओम गीत गाये
सुन्न-महासुन्न में सुधबुध कहां रे
सोहम बोलें सब भंवरगुफा में जाये
सत्यनाम पहुंचाए सत्यलोक जहां है
सितारों से आगे मेरा घर जहाँ है
है आनंद करुणा सुख-दुःख कहां है
नही कोई धर्म है नही कोई पुजारी
नही कोई झगडे नहीं कोई दंगे
नही कोई राजा है नही कोई भिखारी
नही कोई भूखे-प्यासे नहीं कोई नंगे
रौशनी के सिवा कुछ नहीं जहां है
सितारों से आगे मेरा घर जहां है
है आनंद करुणा सुख-दुःख कहा है
दया हो सत्पुरुष ये दुनिया हो रौशन
ये दुनिया तुम्हारी रहने लायक कहां है
सपना है संसार जिसमे मन है मगन
आत्मा है अमर पर हर पल मरती यहां है
माया भी निर्बल का साथ देती कहां है
सितारों से आगे मेरा घर जहाँ है
है आनंद करुणा सुख-दुःख कहा है
(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कन्द्वा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)
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