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ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय “जागरण जंक्शन फोरम”

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय.
गुरु महाराज कबीर साहिब कहतें हैं कि पुस्तकें पढ़कर ज्ञान हासिल किया जा सकता है,परन्तु व्यक्ति सिर्फ पुस्तकें पढ़कर ईश्वर का साक्षात्कार नहीं प्राप्त कर सकता है.जब तक ईश्वर का साक्षात्कार न प्राप्त हो जाये तब तक किसी व्यक्ति को पंडित या ज्ञानी नही माना जा सकता है.अनगिनत लोग जीवन भर ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करते हुए संसार से विदा हो गये परन्तु कोई पंडित या ज्ञानी नहीं हो पाया क्योंकि ईश्वर का साक्षात्कार वे अपने जीवन में ईश्वर का साक्षात्कार नहीं कर पाए.गुरु महाराज कहते हैं कि ढाई अक्षर का एक शब्द है-“प्रेम”,जो उसको पढ़ लिया यानि परमात्मा से जिन्हें प्रेम हुआ और उसका दर्शन पा लिए वही वास्तव में पंडित हैं.कबीर साहिब का ये दोहा पढ़ते समय साधारण लगता है,परन्तु इस दोहे एक रहस्य छिपा हुआ है.वास्तविक ज्ञान व्यक्ति के ह्रदय में तब प्रगट होता है जब वो भगवान का दर्शन करता है.इसीलिए कहा गया है कि वेद या ज्ञान ह्रदय में उतर जाता है जब भगवान दर्शन देते हैं.यही वजह है कि बहुत से अनपढ़ संत भगवान का दर्शन पाकर इतने ज्ञानी हो गये कि वेद,गीता व् उपनिषदों का सार बताने लगे.परमात्मा सर्वज्ञ है और प्रेम या भक्ति के द्वारा उससे जुड़ने पर वास्तविक ज्ञान प्राप्त हो जाता है.वास्तविक ज्ञान प्राप्त व्यक्ति ही कबीर साहिब की निगाहों में असली पंडित या सच्चा ज्ञानी है.कबीर साहिब के विचार से प्रेम का अर्थ परमात्मा की भक्ति है.
संसार में पैदा होने से लेकर मृत्यु तक हर व्यक्ति प्रेम की ही तलाश में रहता है.कोई माता-पिता.भाई-बहन,पत्नी-बच्चों और कोई किसी लड़का-लड़की या अपने मित्रों में प्रेम ढूंढ़ता है तो कोई धन-संपत्ति,जमीन-जायदाद और पद-प्रतिष्ठा में प्रेम ढूंढ़ता है.बहुत से लोग नशे में भी प्रेम ढूंढते हैं.किसी से भी लगाव हो जाये तो व्यक्ति उसे प्रेम देना चाहता है और उसके बदले में उससे प्रेम पाना भी चाहता है.पति अपनी पत्नी में प्रेम ढूंढ़ता है और पत्नी अपने पति में प्रेम ढूंढ़ती है.बच्चे माता-पिता में और माता-पिता बच्चों में प्रेम ढूंढते हैं.बड़ी अजीब बात है कि पति पत्नी में प्रेम ढूंढ़ता है और पत्नी पति में प्रेम ढूंढ़ती है उनके कई बच्चे भी हो जाते हैं फिर भी प्रेम की तलाश जारी रहती है.संत कहते हैं कि वहां पर वो सच्चा प्रेम और सच्चा प्रेमी है ही नहीं जिसकी आप को तलाश है.परिवार में प्रेम ढूंढते-ढूंढते उम्र बीत जाती है और एक दिन इसी खोज और अतृप्ति में इस दुनिया से विदा हो जाते हैं.कारण क्या है जो इन जगहों पर प्रेम नहीं मिलता?संत कहते है कि आदमी गलत जगह पर प्रेम ढूंढ़ता है.परिवार में लोग एक-दूसरे का पिछले जन्मों का कर्जा चुकाते हैं.कर्ज चुकाने वाली जगह पर सच्चा प्रेमी मिलेगा कहाँ से?परिवार का मतलब है पिछले जन्म में जिसका हम खाएँ हैं उसे खिलाना है और जिसको खिलाएं हैं उससे खाना है.परिवार में कोई किसी से न तो पूछ के आता है और न ही पूछ के जाता है.सबका एक लेन-देन और खता-बही है जो एक अदृश्य शक्ति के द्वारा चलता रहता है.परिवार में जिसका लेन-देन पूरा हुआ वो परिवार और संसार दोनों को छोड़ के चल देता है.अब प्रश्न ये है कि यदि परिवार में नहीं तो फिर सच्चा प्रेम और सच्चा प्रेमी है कहाँ?सच्चे प्रेम और सच्चे प्रेमी की परिभाषा क्या है?इन मूल प्रश्नों पर विचार करने का नाम ही आध्यात्म विद्या है.
सच्चा प्रेमी परमात्मा है क्योंकि वो हमारे शरीर धारण करने से पहले साथ था,अब हम शरीर के साथ हैं तो वह भी साथ है और एक दिन हम शरीर छोड़ देंगे तो भी वह साथ रहेगा.हम परमात्मा के अंश हैं और वो हमारा अंशी है.बूंद और समुन्द्र का जैसे घनिष्ठ और अभिन्न सम्बन्ध है,वैसे ही हमारा और परमात्मा का घनिष्ठ और अभिन्न सम्बन्ध है.सच्चा प्रेमी वो जो हमेशा हमारे साथ रहे और हमेशा हमारा साथ दे.परमात्मा रूपी सच्चा प्रेमी हमारे ह्रदय में रहता है,अत: वो हमारे अत्यंत समीप है,हमसे दूर नहीं है.परमात्मा के हमारे ह्रदय में होने की अनुभूति पाने के लिए सच्चे प्रेम की जरुरत
पड़ती है.सच्चे प्रेम का अर्थ है परमात्मा के समक्ष तन,मन धन और आत्मा हर तरह से समर्पण कर देना.प्रेम करने के तीन माध्यम हैं-पहला शरीर,दूसरा-मन और तीसरा-आत्मा.संसार में जो शरीर के सम्बन्धी हैं जैसे माता-पिता,भाई-बहन और पति-पत्नी-बच्चे,इन सबसे प्रेम का माध्यम मानव शरीर ही है.शरीर के माध्यम से देवी-देवताओं और भगवान की पूजा भी की जाती है.पति-पत्नी के बीच शरीर के सम्बन्ध सबसे गहरे होते हैं.पति के लिए एक शब्द है-श्रीमान अर्थात श्री यानि धन कमाना और धन का मान करना,उसे नशे और जुए में नही उडाना,फिजूल खर्च से बचना ये पति का कर्तव्य है.पत्नी के लिए एक शब्द है-श्रीमती अर्थात पति के कमाकर लाये गये धन को या स्वयम के कमाए गये धन को बुद्धिमानी से खर्च करना और भविष्य के लिए कुछ बचत करना.पति के लिए एक और शब्द है-पति परमेश्वर,इसका अर्थ है कि पति साधना करके परमात्मा की अनुभूति प्राप्त करे और फिर परमात्मा की अनुभूति प्राप्त करने में अपनी पत्नी की मदद करे.पति-पत्नी दोनों के जीवन की पूर्णता और सार्थकता इसी बात में निहित है.
प्रेम करने का दूसरा माध्यम मन है.मन के जरिये हम अपने परिवार से व् अपने मित्रों से और संसार की चीजों से प्रेम करते हैं.मन के जरिये देवी-देवताओं और भगवान से भी प्रेम किया जाता है.प्रेम करने का ये सूक्ष्म माध्यम बहुत कारगर और भावनात्मक है.किसी व्यक्ति के मन के भीतर समाये सत,रज व् तम आदि गुण हमारे मानसिक प्रेम की गुणवत्ता तय करते हैं.प्रेम करने का तीसरा माध्यम है आत्मा.आत्मा से प्रेम का अर्थ है अपने वास्तविक स्वरुप से प्रेम और परमात्मा से प्रेम.बहुत से लोग कहतें हैं कि मै तुम्हे आत्मा से प्रेम करता हूँ,वो सरासर झूठ बोलते हैं.शरीर व् मन के माध्यम से आप दूसरों से प्रेम कर सकते हैं परन्तु आत्मा के माध्यम से नहीं,क्योंकि शरीर में जहाँ आत्मा है उस जगह पर सबको छोड़ के ही आप पहुँच सकते हैं.वहां आप के सिवा दूसरा कोई है ही नहीं.आत्मा के समुन्द्र में गोता लगाने का नाम ही भगवद प्राप्ति है.आत्मा तक पहुंचने की कई सीढियाँ हैं जैसे-प्रेम,सेक्स,ज्ञान.ध्यान,मौन,भक्ति,गहरी निद्रा और योगनिद्रा.महात्मा बुद्ध आत्मसाक्षात्कार के लिए अमानुषी रति व् विपश्यना साधना को महत्व देते हैं.अमानुषी रति का अर्थ है किसी दूसरे से प्रेम न करके स्वयम से रति या प्रेम करना और विपश्यना साधना का अर्थ है-मौन होकर अपनी स्वांस में मन लगाकर स्वांस को आते-जाते हुए देखना.विपश्यना का अर्थ है अपने विचारो को एक एक करके देखो.जैसे ही विचार को ध्यान से देखेंगे,विचार समाप्त हो जायेगा.अपने धयान से विचार का पीछा करने पर विचार मर जाता है.आप अपने मन का धयान के द्वारा पीछा कर देखिये कि मन क्या सोच रहा है?जैसे ही आप मन का पीछा करेंगे वो मर जायेगा.गुरु महाराज कबीर साहिब इसी बात को अपने एक भजन में इस प्रकार से कहतें हैं-
मै कासो कहूँ को सुने को पतियाय
फुलवा छुवत भंवरा मरि जाय
यहाँ पर फूल का अर्थ आत्मा व् ध्यान है जिसे चेतना भी कहते हैं और भंवरा का अर्थ मन है.मै किससे कहूँ,कौन सुनेगा और विश्वास करेगा कि ध्यान रूपी फूल से छुवाते ही मन रूपी भंवरा मर गया.इसीलिए संत कहते हैं कि अपने ध्यान के द्वारा अपने विचारों को देखोगे तो वो मर जायेंगे.जब कोई विचार मन में न रहे तब आप समझिये कि आप आत्मा में रति कर रहे हैं.यही महात्मा बुद्ध की अमानुषी रति है और कबीर साहिब के मन रूपी भंवरे की मृत्यु है और यही कबीर साहिब का ढाई आखर का प्रेम है.(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)
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