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गंगा आये कहाँ से, गंगा जाए कहाँ रे “जागरण जंक्शन फोरम”

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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गंगा आये कहाँ से, गंगा जाए कहाँ रे
लहराए पानी में जैसे धूप छाँव रे
पौराणिक कथाओं के अनुसार गंगा जी भगवान विष्णु के पैरों के नखों से निकली हैं और ब्रह्मा जी के कमंडल में रहती हैं.स्वर्ग में गंगा मन्दाकिनी के नाम से भी जानी जाती हैं.स्वर्ग से धरती पर मां गंगा को लाने का श्रेय अयोध्या के इक्ष्वाकु वंशीय राजा भगीरथ को को दिया जाता है,जिन्होंने कपिल मुनि के श्राप से भस्म होकर अपने साठ हजार पूर्वजों की भटकती आत्माओं की मुक्ति के लिए ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर मां गंगा को पृथ्वी पर लाये थे.धरती पर उतरने से पहले गंगा भगवान शिव की जटाओं में समां गईं थीं,भगवान शिव की जटाओं से निकलकर गंगा की अविरल धारा भगीरथ के पीछे-पीछे चलते हुए ऋषिकेश,हरिद्वार,कानपुर,इलाहाबाद,वाराणसी,पटना होते हुए बंगाल के गंगा सागर संगम पर स्थित कपिल मुनि के आश्रम में आईं,जहाँ पर कपिल मुनि के श्राप से जलकर भस्म हो चुके भगीरथ के पूर्वजों की साठ हजार राख की ढेरियां ज्यों ही गंगा के पवित्र जल में डूबीं,त्यों ही भूत बनकर भटक रहे भगीरथ के पूर्वजों का उद्धार हुआ और उन्हें प्रेत योनि से छुटकारा मिला.धार्मिक कथाओं से अलग हटकर भौतिक रूप से देखा जाये तो गंगा हिमालय के गोमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद से निकलती है,जहाँ पर उसे भागीरथी नदी कहते हैं.हिमनद से निकलने वाली कई छोटी नदियों से संगम करते हुए जब भागीरथी नदी देव प्रयाग में अलकनंदा नदी से मिलती है तो यहीं से दोनों नदियों की सम्मिलित जल-धारा गंगा नदी के नाम से आगे बढती है,ऋषिकेश और हरिद्वार होते हुए गंगा नदी फर्रुखाबाद,कानपुर, इलाहाबाद,वाराणसी,पटना होते हुए पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद शहर पहुंचती है.मुर्शिदाबाद जिले के गिरिया नामक स्थान के पास गंगा नदी भागीरथी नदी और पद्मा नदी नामक दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है,पद्मा नदी बंगला देश की ओर,और भागीरथी नदी पश्चिम बंगाल के हुगली शहर की और चली जाती है.हुगली शहर से गंगा हुगली नदी के नाम से आगे बहते हुए कोलकाता,हावड़ा,सुंदरवन होते हुए अंत में बंगाल की खाड़ी में जाकर सागर-संगम करती है.यहीं पर हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ गंगा-सागर-संगम है.
गंगा भारत ही नहीं बल्कि बंगला देश के भी बहुत बड़े भू-भाग को सिंचित करती है.दोनों देशों की कृषि पर आधारित अर्थ व्यवस्था में गंगा नदी का बहुत बड़ा योगदान है.गंगा नदी अपनी सहायक नदियों के साथ मिलकर दोनों ही देशों में बहुत विशाल और अति उपजाऊ मैदान तैयार करती है.दोनों ही देशों में गंगा बहुत बड़े क्षेत्र को बारहों महीने सींचती है.इन क्षेत्रों में धान,गन्ना,दाल,तिलहन,सरसों,आलू,गेहूं,मिर्च और जुट की बहुत अच्छी खेती होती है.गंगा नदी में मत्स्य उद्योग भी चल रहा है.भारत के लिए गंगा केवल एक प्राकृतिक नदी भर ही नहीं है,यहाँ पर करोड़ों लोगों की आस्था भी गंगा नदी से जुडी हुई है.हिन्दुओं के बहुत से तीर्थस्थल गंगा नदी के किनारे बसे हैं,जिसमे से हरिद्वार,इलाहाबाद और वाराणसी पुरे विश्व में प्रसिद्ध हैं.हजारों विदेशी प्रतिदिन इन तीर्थस्थलों पर भ्रमण हेतु आते हैं.भारत में माँ और देवी के रूप में गंगा की पूजा की जाती है.हिन्दू धर्मग्रंथों में गंगा की बहुत महिमा गाई गई है.गंगा अपने प्राकृतिक सौंदर्य और औषधीय गुणों वाले जल के कारण भारत में हजारों-लाखों वर्षों से पूजी जा रही है.गंगाजल लम्बे समय तक शुद्ध बना रहता है.गंगाजल की शुद्धता पर वैज्ञानिक कहते हैं कि “गंगाजल में बैक्टीरियोफेज नामक विषाणु होते हैं जो जीवाणुओं और अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों को मार देते हैं,इसीलिए गंगा का जल शुद्ध रहता है”.गंगा नदी के जल में असाधारण आक्सीजन यानि प्राणवायु होती है.यही सब विशेष गुण गंगाजल को अन्य नदियों के जल से भिन्न बनाते हैं.गंगा नदी को हिन्दू धर्मग्रंथों में इतना पवित्र माना गया है कि लोग अपने पापों के नाश हेतु गंगा स्नान करते हैं,गंगा जल को पवित्र मानकर लोग पीते हैं.मरते हुए व्यक्ति के मुख में तुलसी-पत्र व् गंगाजल डाला जाता है और मृत व्यक्ति कि अस्थियों को गंगा जी में प्रवाहित कर दिया जाता है.गंगा के किनारे बैठकर लोग पूजा व् ध्यान करते हैं.गंगा का बहुत गहरा सम्बंध मकर-संक्रांति,कुम्भ और गंगा दशहरा आदि पर्वों से है.इन पर्वो पर गंगा में नहाना और गंगा का दर्शन करना बहुत शुभ व् व्यक्ति के समस्त पापों का नाश करने वाला माना जाता है.हमारे देश में सुहागिने माँ गंगा से मनौती मांगती हैं-गंगा मईया में जब तक ले पानी रहे,मेरे सजना तेरी जिंदगानी रहे.
गंगा नदी हम सब के लिए अमृत के रूप में गंगोत्री हिमनद से अवतरित होती है.ये अमृत ऋषिकेश के बाद से जहर बनना शुरू हो जाता है,और ये सिलसिला ऋषिकेश,कानपुर से लेकर कोलकाता तक जारी रहता है,जब गंगा के किनारे लगे परमाणु बिजलीघर,रासायनिक खाद और चमड़े के कारखाने जहर रूपी अपना औद्योगिक कचरा गंगा में छोड़ते हैं.प्रेदेश की बड़ी चीनी मीलों का स्क्रैप हर साल गंगा नदी में बहाकर गंगाजल को ख़राब किया जाता है.गंगा तट पर बसे शहरों के नालों की गंदगी का जहर जाकर गंगा नदी में मिल रहा है.कूड़ा-करकट.इंसान व् पशुओं के मृत शरीर तथा प्लास्टिक कचरे के जहर ने भी गंगाजल को प्रदूषित किया है.कई त्योहारों पर हानिकारक रंगो से युक्त देवी-देवताओं की प्रतिमाएं गंगा में प्रवाहित कर उसे प्रदूषित किया जाता है.गंगा में दो करोड़ नब्बे लाख लीटर से ज्यादा प्रदूषित कचरा हर रोज गिर रहा है.गंगाजल में आक्सीजन का स्तर सामान्य तीन डिग्री से बढ़कर असामान्य रूप से छे डिग्री पर जा पहुंचा है.विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर-प्रदेश में बहुत सी बिमारियों का कारण जहर बन चूका गंगाजल है.आज गंगा-जल पीने व् नहाने के योग्य नहीं रहा.कई वैज्ञानिकों के अनुसार गंगा का पानी फसलों की सिंचाई करने के योग्य भी नहीं है.अपने तुच्छ स्वार्थ में अंधे लोभी लालची मनुष्य ने जड़ी-बूटियों के स्पर्श से अमृत बनकर बहती मां गंगा की कीमत नहीं समझी.अब प्रकृति भी शायद हमारे बीच से मां गंगा को लुप्त करना चाहती है.संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार गंगा को हिमालय पर जल देने वाली हिमनदी सन 2030 ई तक समाप्त हो सकती है,फिर गंगा वर्षा के ऊपर आश्रित होकर एक बरसाती नदी बनकर रह जायेगी.गंगा भारत के सभ्यता व् संस्कृति की पहचान है.भारत सरकार ने सन 2008 ई में गंगा को भारत की राष्ट्रिय नदी घोषित किया और इलाहाबाद-हल्दिया के बीच गंगा नदी जलमार्ग को राष्ट्रिय जलमार्ग घोषित किया.
गंगा को बचाने के लिए और प्रदूषणमुक्त करने के लिए सबसे पहले सन 1985 ई में समाजसेवी एम् सी मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की कि गंगा के किनारे किनारे लगे कारखानों और गंगा के किनारे बसे शहरों से निकलने वाली गंदगी को गंगा में बहाने से रोका जाये.सुप्रीम कोर्ट के दबाब से जागी सरकार ने गंगा की सफाई के लिए सन 1985 ई में गंगा एक्शन प्लान शुरू किया.इस योजना के अंतर्गत गंगा के किनारे बने कारखानो का जहरीला पानी और गंगा के किनारे बसे शहरों का गन्दा पानी साफ करने का प्लांट लगाया जाने लगा,इससे गंगा के पानी की शुद्धता में कुछ सुधार हुआ.बीस सालों में 1200 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करने पर भी गंगा निर्मलीकरण अभियान असफल रहा.मेरे विचार से इस प्लान की असफलता की वजह यह रही कि गंगा में निरंतर गिर रहे कारखानो के जहरीले पानी और शहरों के सीवर के गंदे पानी को गंगा में बहने से पूर्णत:रोका नहीं जा सका.आज भी गंगा नदी के प्रदूषित होने की मुख्य वजह यही है.गंगा के किनारे बसे शहरों में सीवर का गन्दा पानी जितना निकल रहा है,उस हिसाब से सीवेज ट्रीटमेंट की व्यवस्था हमारे पास नहीं है.उदहारण के लिए वाराणसी शहर में लगभग तीन सौ एम्एलडी गन्दा पानी निकल रहा है,जबकि गंदे जल की शोधन की हमारी व्यवस्था प्रतिदिन सिर्फ लगभग 100 एम्एलडी सीवेज ट्रीटमेंट की है.सरल शब्दों में इसका यह अर्थ हुआ कि लगभग 200 एम्एलडी सीवर का गन्दा जल प्रतिदिन गंगा नदी में मिलकर गंगा जल को प्रदूषित कर रहा है.यही हाल गंगा नदी के किनारे बसे अन्य दूसरे शहरों का भी है.
गंगा के पानी को शुद्ध करने का सबसे कारगर तरीका है गंगा नदी के बहाव को तेज किया जाये,जबकि इसके ठीक विपरीत टिहरी में भागीरथी नदी पर बांध बना कर पानी के तेज बहाव को बहुत हद तक रोक दिया गया है,बहुत समय से साधू-संत इसका विरोध कर रहे हैं,विरोध करने वाले साधू-संतों से नेता बड़ी बेशर्मी से पूछते हैं कि आप को बिजली चाहिए या गंगा में पानी?गंगा के बहाव के साथ पहाड़ों से कटकर आने वाली मिटटी गंगा की गहराई को कम करते हुए जमीनी पानी से उसका नाता तोड़ती जा रही है.अत:जहाँ पर जरुरत महसूस हो वहाँ पर हर वर्ष गंगा नदी में खुदाई करा कर गंगा की गहराई पर धयान दिया जाये,भूमि का पानी और गंगा का पानी दोनों का मेल रहेगा तो पानी की शुद्धता जरुर बढ़ेगी.
अब स्वच्छ गंगा अभियान के तहत कूड़े-करकट को शहर से दूर एक बड़े कुंड में जमा किया जाने लगा है,सफाई का यह जैविक तरीका बहुत कारगर है.गंगा निर्मलीकरण अभियान से लोगों में जागरूकता बढ़ रही है.मिडिया भी जनमानस को,स्थानीय प्रशासन को और राज्य व् केंद्र सरकार को भी भली-भांति गंगा निर्मलीकरण के लिए प्रेरित कर रही है.गंगा की सफाई के लिए मूल रूप से प्रयास केंद्र व् राज्य सरकारों को ही करना होगा,क्योंकि गंगा की सफाई के सभी संसाधन उन्ही के पास है,बस उनमे दृढ इच्छाशक्ति का अभाव है.कई त्योहारों पर गंगा जी में बहाई जाने वाली हानिकारक रंगों से युक्त देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के विसर्जन पर रोक लगाने के लिए कोर्ट से लेकर सरकार तक सभी गम्भीरता से विचार कर रहे हैं.समय के अनुसार परम्पराएं बदलती रहतीं हैं और आवश्यक होने पर बदलना भी चाहिए.ज्यादा अच्छा तो ये है कि त्योहारों पर पंडालों में हम देवी-देवताओं की ऐसी प्रतिमाये रखें,जो धातु की हों,और जिन्हे गंगा में विसर्जित करने की जरुरत ही न पड़े.हर साल वही प्रतिमाएं पंडाल में रखी और पूजी जाये.अंत में सभी लोगों से मेरा विनम्र निवेदन है कि आप सब लोग माँ गंगा के जल को निर्मल करने में अपना सहयोग दें और हर व्यक्ति ये प्रण करे कि वो व्यक्तिगत रूप से गंगा जी में कोई भी कूड़ा-करकट या पोलिथिन का थैला प्रवाहित नहीं करेगा.धरती पर गंगा का अवतरण कठिन तपस्या करके भगीरथ ने किया था और आज के समय में तपस्यारत सभी साधू-संतों को गंगा को निर्मल करने के लिए भगीरथ बनना पड़ेगा और आम जनता यानि हम सब को भी भगीरथ बनकर व् कठिन से कठिन प्रयास करके भी गंगा की रक्षा करनी है,क्योंकि हमने गंगा में गंदगी और कचरा फेंककर गंगा के अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया है.अत: गंगा निर्मलीकरण के लिए हम सबको आज का भगीरथ बनाना ही पड़ेगा.गंगा को धरती पर लाने वाला भगीरथ हम नहीं बन सकते,परन्तु धरती पर माँ गंगा को स्वच्छ रखने वाले और धरती से माँ गंगा को लुप्त होने से बचाने वाले भगीरथ हम सब लोग जरुर बन सकते हैं.माँ गंगा सदियों से मनुष्य जीवन के चारों पुरुषार्थों-धर्म,अर्थ,काम व् मोक्ष की प्राप्ति में सहायक रही हैं और आज भी हैं.गंदगी और कूड़े कचरे के रूप में माँ गंगा करोड़ों लोगों का पाप और दबाब झेलते हुए भी करोड़ों लोगों को कहीं भूमि सिंचित कर तो कही पीने का जल प्रदान कर अन्न और जल प्रदान कर रही हैं.गंगा में स्नान कर लोग अपने पापों का नाश करते हैं.अधिकतर लोग यही चाहते हैं कि मरने के बाद गंगा के किनारे उनका अंतिम संस्कार हो और उनकी अस्थियां गंगा में विसर्जित कर दी जाएँ.हिंदुओं के समस्त पूजा-पाठ व् धार्मिक संस्कारों में गंगाजल का प्रयोग होता है,इसीलिए गंगाजल को पवित्र और आवश्यक मानकर घर-घर में रखा जाता है.माँ गंगा न सिर्फ हमारी आस्था की केंद्र हैं,बल्कि वो दुनिया भर में हमारी पहचान भी हैं.देश-विदेश में लोग आज भी ये गीत गुनगुनाते हैं-
होठों पे सच्चाई रहती हैं,जहाँ दिल में सफाई रहती हैं
हम उस देश के वासी हैं, जिस देश में गंगा बहती हैं
(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

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