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“संत कबीर की दीवाली” इस आलेख में मैंने गुरु महाराज संत कबीर साहब के कुछ दोहों की आध्यात्मिक रूप से व्याख्या करने की कोशिश की है.”कबीर” शब्द का अर्थ है-वो वीर पुरुष जो काया के अंदर के आध्यात्मिक रहस्यों को जान ले,आत्मबोध प्राप्त कर ले.कई जन्मों से तलाश रहा आनंद,शांति,करुणा और विश्राम अपने शरीर रूपी सच्चे मंदिर-मस्जिद के भीतर पा ले और “उन्मनी अवस्था” में यानि ईश्वर की इच्छानुसार लोगों की सेवा करते हुए संसार में अपना जीवन बिताये.कबीर साहब के कुछ विशेष दोहे व्याख्या सहित प्रस्तुत हैं-
कबीरा निर्भय राम जप,जब लग दिय में बाती,
तेल घटा बाती बुझी, सोवेगा दिन राती.
दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति.दीपावली के दिन हर घर में हमें सजी हुई और रोशनी बिखेरती दीपों की पंक्तियाँ नजर आती हैं.इंसान रोशनी क्यों करता है,अंधेरा दूर भगाने के लिए.अंधेरा संसार में बाहर ही नहीं है.सबसे बड़ा अंधेरा तो अज्ञान के रूप में मन के भीतर है.मन का अज्ञान व्यक्ति को भयभीत करता है.संत कबीर साहब कहते हैं कि भगवान से प्रेम करके ही मन का अज्ञान मिटता है और व्यक्ति निर्भय बनता है.मनुष्य़ का शरीर एक दीपक की भांति है,जिसमे बाती जीवात्मा है और तेल आयु है.आयु रूपी तेल ख़त्म होते ही शरीर में बाती के रूप में जलने वाली जीवात्मा बुझ कर गहन निद्रा में चली जाती है.शरीर में जीवात्मा ही ज्योति बनकर जलती है.मनुष्य का जीवन जीवात्मा का प्रकाश है.अपने इस जन्म और पिछले कई जन्मों के संस्कारों के अनुसार ही हर जीवात्मा इस संसार में प्रकाशित होती है.जीवन का उद्देश्य भगवान से प्रेम कर निर्भय बनना होना चाहिए.
साच बराबर तप नहीं ,झूठ बराबर पाप,
जा के हिरदय साच है ,ता के हिरदय आप.
गुरु महाराज कबीर साहब कहते है कि सच बोलने से बड़ी कोई तपस्या नहीं है और झूठ बोलने से बड़ा कोई पाप नहीं है.जागरण जंक्शन मंच पर सच्ची बात लिखने वालों की कोई कमी नहीं है.संतों की निगाह में वो सब लोग बहुत बड़े तपस्वी हैं.जो लोग सच बोलते है और सच लिखते हैं,उनके ह्रदय में भगवान स्वयं विराजमान होकर उन्हें सत्य बोलने-लिखने के लिए प्रेरित करता हैं.सच बोलना और सच लिखना ये भी ईश्वर तक पहुंचने का एक साधना मार्ग है.यदि मनुष्य अपने जीवन में सच का साथी बन जाये तो ह्रदय में बसने वाले भगवान भी ऐसे मनुष्य़ के साथी बन जाते हैं.अपने जीवन में अनेक अवसरों पर मैंने महसूस किया कि सच का साथ देने के कारण सब साथ छोड़ गए हैं और मै अकेला पड़ गया हूँ,परन्तु भगवान ने शीघ्र ही महसूस करा दिया कि मै तुम्हारे साथ खड़ा हूँ,तुम अकेले नहीं हो.मेरे विचार से सत्य पर चलने का अर्थ संसार से न लगाव रखा जाये और न ही उससे घृणा की जाये.तटस्थ होने पर सत्य की अनुभूति शीघ्र और बेहतर होती है.
जब मै था तब हरी नहीं ,अब हरी है मै नाही,
सब अँधियारा मिट गया ,जब दीपक देखा माही.
जब तक अहंकार है,तब तक परमात्मा नाम की कोई सत्ता नहीं है.हम अलग हैं और परमात्मा अलग है.जैसे ही हमारा अहंकार मिटता है,हम भगवदस्वरुप हो जाते हैं और भगवान हमें प्रेरित करने लगते हैं.मेरे अपने अनुभव से हमारे भीतर से अहंकार चला गया है,उसकी एकमात्र पहचान यही है कि हमारे अंदर बहुत विनम्रता आ जायेगी.इस सृष्टि में हमारा अस्तित्व एक बूंद की तरह लघु है और परमात्मा समुन्द्र की विशाल हैं.दुनिया में जो लोग अहंकार किये,उनका हश्र भी इतिहास में दर्ज है.मनुष्य का अहंकार चला जाये तो आत्मबोध भी हो जाता है कि-मै क्या हूँ ?शरीर के अंदर यदि अज्ञान का अंधेरा है तो आत्मा रूपी हमेशा जलने वाला दीपक भी है.आत्मसाक्षात्कार होते ही मन का सब अज्ञान मिट जाता है.हमारा ह्रदय भगवद प्रेम से भर जाता है और फिर हम किसी सांसारिक प्रेम के मोहताज नहीं होते हैं.
कबीर कहा गरबियो, काल गहे कर केस,
ना जाने कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेस.
कबीर साहब समझते हैं कि-हे मनुष्यों तुम क्यों गर्व करते हो.झूठे अहंकार से भरकर किसी का अपमान करते हो तो किसी पर अत्याचार करते हो.गर्व करने लायक तुम्हारे पास है क्या?जो कुछ भी तुम्हारे पास है,वो सब तुमने इसी संसार से ग्रहण किया है और एक दिन सब यहीं छूट जायेगा.हे मनुष्य तुम धन-दौलत,मन-बड़ाई और अपने बलवान प्रतिष्ठित परिजनो के बल पर घमंड से सीना फुलाकर यहाँ-वहाँ घूमते हो,परन्तु इस बात का तुम्हे एहसास नहीं है कि कल तुम्हारे सर पर बैठ कर तुम्हारे सर के केश पकडे हुए है और वो समय आने पर तुम्हारे घर पर या परदेश में कहाँ मारेगा,पता नहीं?संत कहते हैं कि समझदार मनुष्य को मृत्यु और भगवान इन दो चीजों को कभी नहीं भूलना चाहिए-
दो बातों को भूलो मत जो चाहो कल्याण,हे नर एक मौत को दूजे श्री भगवान.एक संत ने कहा है-ये शरीर एक किराये का घर है,इसको एक दिन खाली करना पड़ेगा.मौत जब देगी आवज़,तुझको घर से बाहर निकलना पड़ेगा.
आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें.दीवाली आप सब के लिए और आप सब के पुरे परिवार के लिए ढेरों खुशियां लेकर आये.प्रकाश बिखेरतीं दीपों की पंक्तियाँ आप सब के तन मन व् आत्मा सबको प्रफुल्लित करें.
(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)
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