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उलटा कुआं गगन में,तिसमें जरै चिराग “जागरण जंक्शन फोरम”

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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उलटा कुआं गगन में,तिसमें जरै चिराग.
संत पलटू साहिब कहते हैं कि आसमान में एक उल्टा कुआं है,जिसमे चिराग हमेशा जलता रहता है.आसमान में देखने पर हमें न तो कोई उल्टा कुआं नज़र आता है और न ही जलता हुआ चिराग,फिर वो आसमान है कहाँ पर,जिसमे चिराग हमेशा जलता रहता है.मनुष्य का सिर उल्टा कुआं है.सिर का मुंह ऊपर की बजाय नीचे की और खुलता है.जबकि पानी वाले कुँए का मुंह हमेशा ऊपर की तरफ खुलता है.सिर रूपी उल्टा कुआं में हमारी आत्मा या हमारी चेतनता का दीपक हमेशा जलता रहता है.ये चेतनता का दीपक यदि बुझ जाये तो शरीर मृत हो जाता है.हमारी चेतनता का जलता हुआ चिराग हमारे शरीर को जीवित रखता है.
तिसमें जरै चिराग,बिना रोगन बिन बाती.
छह ऋतु बारह मॉस,रहत जरतें दिन राती.
हमारे सिर के अंदर जो चेतनता का चिराग जलता है,वो बिना तेल व् बिना बाती वाला है.हर ऋतु में और बारहों महीने ये दीपक जलता रहता है.संत हमें सझना चाहते हैं कि विभन्न त्योहारों पर अथवा मंदिर,मस्जिद,गुरुद्वारा व् चर्च आदि धार्मिक स्थानो पर हम तेल व् बाती वाला दीपक जलाते हैं,ये दीपक तो हमारी आत्मा की ज्योति का प्रतीक मात्र है.असली दीपक तो हमारे दोनों भवों के बीच तीसरे नेत्र पर जल रहा है.वो बिना तेल-बाती वाला चेतनता का दीपक हमारा वास्तविक अस्तित्व है.उसी चेतनता रूपी दीपक की धाराएं पूरे शरीर में फैलकर शरीर को जीवित और क्रियाशील बनाये रखतीं हैं.ये चेतनता का दीपक यदि बुझ जाये तो हमारे शरीर का कोई अंग कम नहीं करेगा.
सतगुरु मिला जो होय,ताहि की नजर में आवै.
बिन सतगुरु कोउ होर,नहीं वाको दर्शावै.
आज हमारे देश में संतों की अजीब स्थिति हो गई है.यौन-शोषण के अपराध में कोई जेल में बंद है तो कोई जमीन के नीचे से खजाना निकालने की बात कर रहा है.कोई मोटी रकम ले के दीक्षा दे रहा है तो कोई हजारों-लाखों की भीड़ को लाउडस्पीकर पर दीक्षा दे रहा है.आज के बड़े-बड़े प्रसिद्द संत सबसे एक सामान व्यवहार भी नहीं करते हैं,जो मोटी रकम दान दे रहा है उससे अलग व्यवहार करते हैं और कुछ दान नहीं देने वाले गरीब आदमी से अलग तरह का व्यवहार करते हैं.सबको पैसा चाहिए,प्रसिद्धि चाहिए,और भोग-विलास चाहिए.संत कबीर साहिब कहते हैं कि- साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,सार-सार को गहि रहै,थोथा देई उड़ाय.अर्थात साधू को अनाज साफ करने वाले सूप के जैसा होना चाहिए,जो नश्वर और निरर्थक चीजों को कचरा समझ अपने से दूर उड़ा दे और शाश्वत सत्य रूपी अनाज को ग्रहण करे.पलटू साहिब कहते हैं कि कोई सच्चा गुरु ही अपने भीतर के चैतन्य प्रकाश को ढूँढता है और और दूसरों को भी अपने शरीर के भीतर चेतनता का प्रकाश देखने के लिए प्रेरित करता है.बिना किसी सच्चे गुरु के मार्गदर्शन के मन का अज्ञान दूर नहीं होता है.संतों के अनुसार सच्चे गुरु को ब्रह्मज्ञानी व् ब्रह्मनिष्ठ होना चाहिए अर्थात जिसको भगवान की जानकारी हो और जो भगवान में लीन रहता हो.महात्मा बुद्ध के अनुसार सच्चे गुरु में आनंद व् करुणा होनी चाहिए.
निकसै एक आवाज,चिराग की जोतिन्हि मांही.
जाय समाधी सुनै,और कोउ सुनता नांही.
ब्रह्म के दो स्वरुप हैं,पहला-शब्द ब्रह्म और दूसरा आलोक ब्रह्म.आलोक ब्रह्म से ही शब्द ब्रह्म की उत्पत्ति होती है.शब्द ब्रह्म यानि अनहद नाद को सुनते हुए हम आलोक ब्रह्म तक पहुँच सकते हैं.तीसरे नेत्र या आज्ञा चक्र में नियमित रूप से ध्यान लगाने से शब्द ब्रह्म व् आलोक ब्रह्म का अनुभव हो जाता है.मेरे अपने अनुभव के अनुसार जब हम आज्ञा चक्र पर एकाग्रचित्त हो जाते हैं,तब हम अपने वास्तविक स्वरुप नाद और आलोक में बदल जाते हैं.संत मार्ग में इसको सुरति-निरति का जागना भी कहते हैं,जो आत्मा की सुनने व् देखने कि शक्ति कहलाती है.मन का एकाग्र हो जाना ध्यान है और मन का निर्विचार हो जाना समाधी है.मन के निर्विचार होते ही नाद और आलोक स्पष्ट रूप से सुनाई व् दिखाई देने लगते हैं.मन जब तक चंचल है और दुनिया की और भाग रहा है तब तक व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरुप से दूर रहता है.
पलटू जो कोई सुनै ताके पूरे भाग.
उलटा कुआँ गगन में,तिसमें जरै चिराग.
संत पलटू साहिब कहते हैं कि दुनिया में चाहे हम कितनी भी तरक्की क्यों न कर ले और संसार में हर तरह का सुख-वैभव क्यों न हम भोग लें,परन्तु यदि हमने जीते जी अपने को नहीं जाना और यहाँ पर हमें भेजने वाले मालिक को नहीं जाना तो हमारा भाग्य अधूरा ही है.यदि हमने जीते जी खुद को और परमात्मा को जान लिया तो ये हमारा सौभाग्य है.यही हमारा पूरा भाग्य है कि हम अपने सिर रूपी उलटे कुँए के भीतर अपने वास्तविक स्वरुप अर्थात अपनी चेतनता रूपी ज्योति का अनुभव प्राप्त कर लें.हमारे सिर के भीतर चेतनता रूपी ज्योति रात-दिन निरंतर जलती रहती है.यही चेतनता रूपी ज्योति निरंजन ज्योति,ओंकार ज्योति,रारंग ज्योति,सोऽहं ज्योति को निहारती हुई अपने शाश्वतधाम सतयलोक पहुँच सत्पुरुष रूपी अनंत ज्योति में जा समाती है.यही आत्मा रूपी ज्योतिर्मय बूंद का परमात्मा रूपी ज्योति के समुन्द्र में जा समाना है.बूंद समानी समुन्द्र में सो कैसे हेरी यानि खोजी जाय.
(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)
उलटा कुआं गगन में,तिसमें जरै चिराग "जागरण जंक्शन फोरम"

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