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गुरु महाराज कबीर साहिब क़े इस दिव्य आध्यत्मिक भजन की व्याख्या करने से पहले मै अपने सभी गुरुजनों और उन सभी संतो को प्रणाम करता हूँ, जिनके सान्निध्य में रहकर कबीर साहिब क़े बहुत से भजन मैंने सुने। श्रद्धेय गुरुजनों व् बहुत से संत महात्माओं क़े अनुभव जानने के बाद उसपर गहनता से चिंतन-मनन व साधना करके इन भजनो की गहराई में उतरा। गुरु महाराज कबीर साहिब को नमन करते हए अपने अनुभव क़े अनुसार मै इस भजन की व्याख्या कर रहा हूँ।
बूझो-बूझो पंडित अमृतवाणी।
बरसे कम्बल भींजे पानी।।
अक्सर लोग यह कहकर इस भजन से दूर भागते हैं कि “कबीरदास की उलटी वाणी, बरसे कम्बल भींजे पानी।” लोगों को कबीर साहिब का ये भजन अजीब और जटिल समझ में आता है। ये भजन मुझे बहुत प्रिय है। इस भजन की विशेषता ये है कि ईश्वर प्राप्ति की साधना की प्रथम सीढ़ी से लेकर ईश्वरानुभूति पाने की अंतिम सीढ़ी तक का वर्णन इस भजन में है। कबीर साहिब कहते हैं कि इस संसार में पंडित यानि विद्वान व्यक्ति वो है जो अमृतवाणी यानि जीवन-मरण के बंधन से मोक्ष दिलाने वाणी की खोज में रहता है। ऐसी वाणियों पर गहराई से समझने-बूझने की जरुरत होती है, तभी वो हमें कोई लाभ दे सकती है। ईश्वर भक्ति की तरफ हर व्यक्ति नहीं जाता है। हर व्यक्ति अपने भीतर सूक्ष्म रूप में विद्यमान संस्कार रूपी कम्बल ओढ़ा हुआ है, जिसमे कई जन्म के संस्कार हैं। जब ये भक्ति रूपी संस्कार के कम्बल बरसतें हैं, अर्थात जीवन में सक्रीय व क्रियाशील होत५ए हैं, तब आदमी का ह्रदय भक्ति रूपी जल में भींगने लगता है।
लौकी बूड़े सील उतराय,
मछली धरि के बगुलहिं खाय,
धरती बरसे सूरज नहाय,
ओरिया का पानी बरेडियाई जाय,
तर भाई घड़ा ऊपर पनिहारी।
बूझो-बूझो पंडित अमृतवाणी।।
ब्रह्मज्ञान यानि भगवान के बारे में जानकारी प्राप्त कर जब व्यक्ति ब्रह्मअनुभूति पाने के लिए भगवान की भक्ति में पूरी लगन से डूब जाता है तो उसके मन के अंदर साधुता के गुण यानि विवेक और वैराग्य पैदा हो जाते हैं और उसकी बगुला भक्ति यानि दिखावे की भक्ति विवेकी मन समाप्त कर देता है। बगुलाभक्ति करने वाले अन्तोगत्वा ईश्वरीय दंड के भागी जरुर बनते हैं, प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में ऐसे बहुत से लोग इस समय जेलों में बंद हैं। भक्त के ह्रदय में जब भक्ति की बरसात होती है तो इस भक्ति रूपी वर्षा में नहाकर सूर्य रूपी यानि प्रकाश रूपी आत्मा के सारे मायिक आवरण हटने लगते हैं। मकान की ओरी से नीचे गिरता पानी पीछे मुड़कर बरेडी की तरफ जाने लगता है अर्थात भक्ति में सराबोर होने पर संसार की ओर भागता मन पीछे मुड़कर भगवान की ओर जाने लगता है। संसार में भक्त रूपी घड़ा और ऊपर शाश्वतधाम में भगवान पनिहारी के रूप में भक्त रूपी घड़े को अपनी ओर खींचने लगते हैं। धन्य हैं कबीर साहिब! आप की वाणी को बुझने-समझने वाले ही वास्तव में पंडित हैं।
तर भई छानी ऊपर भई भीत,
यह दुनिया की उलटी रीत,
चिलवा के तट पर टेंगनी बियानी।
बूझो-बूझो पंडित अमृतवाणी।।
संसार में पहले दीवार खड़ी की जाती है, फिर उसके ऊपर छत ढाली जाती है। आध्यात्मिक जगत में इसके ठीक विपरीत होता है। संसार में भक्त रूपी छत तैयार होता है ओर शाश्वत धाम में दीवार खड़ी होने लगती है अर्थात संसार में जब कोई भक्त भक्ति करता है तो परमात्मा रूपी शाश्वतधाम में उसके लिए जगह बनने लगती है। नदी के तट पर छोटी मेंढ़की जन्म लेती है तो छोटी-छोटी छलांग मारती है, फिर जैसे-जैसे बड़ी होने लगती है, उसकी छलांग भी बड़ी होती जाती है। जब हम आँख बंद करते हैं तो दोनों भवों के बीच का स्थान अर्थात आज्ञाचक्र नदी के समान है ओर हमारा शुरूआती ध्यान छोटी मेंढ़की के समान थोड़ी दूर तक कूदने जैसा अर्थात थोड़ी देर के लिए लगता है, फिर धीरे-धीरे ध्यान की अवधि बढ़ती चली जाती है। हे विद्वानों! अमृत दिलाने वाली इस वाणी को समझो।
ठाढ़े डोमवा के फाड़े बांस,
बकरी बेंचे चीख के मांस,
हुडरा के घर में बकरिया बा रानी।
बूझो-बूझो पंडित अमृतवाणी।।
मृत्यु रूपी डोम को बांस रूपी स्वांस का भजन पराजित कर देता है. यहाँ पर गुरु महाराज स्वांस के द्वारा किये जाने वाले भजन की महत्ता बताते हैं। पश्यन्ति श्रेणी का यह भजन परा यानि परमात्मा के समीप पहुंचा देता है। हमारी बकरी जैसी कमजोर आत्मा भजन के कारण बलवान होकर मृत्यु रूपी कसाई का मांस चीख-चीख कर बेचने लगती है अर्थात भजन करके ईश्वरानुभूति को प्राप्त महापुरुष मृत्यु और जन्म मरण के बंधन से बचने का उपाय बताने लगते हैं। मृत्यु रूपी हुंडार के घर में आत्मा रूपी बकरी निर्भय होकर रानी की तरह रहने लगती है अर्थात मृत्यु व् जन्म-मरण का भय नहीं रह जाता है, इस संसार में निर्भय होकर भक्त जीता है। हे पंडितों! वास्तव में मोक्ष दिलाने वाली इस वाणी को समझो।
तवा के ऊपर चूल्ह चढ़ी जाय,
पकवनवाला के रोटिया खाय।
चले बटोहिया थाकल बाट,
सोवनहार ते उल्टा खाट।
कहें कबीर यह उल्टा ज्ञान,
मूते न इंद्री, बांध लो कान,
लड़का की गोद में खेले महतारी।
बूझो-बूझो पंडित अमृतवाणी।।
बूझो-बूझो पंडित अमृतवाणी।
बरसे कम्बल भींजे पानी।।
तपस्या रूपी तवा के ऊपर जब चित्त रूपी चूल्हा चढ़ जाता है, तब भक्त रूपी पकाने वाले को परमात्मा रूपी रोटी खा जाती है अर्थात जब चित्तवृत्तियों का पूर्णत: निरोध हो जाता है तब आत्मा परमात्मा में ही लीन हो जाती है। इसी बात को कबीर साहिब एक अन्य भजन में कहते हैं- “फूल भल फूलल मालिन भल गांथल, फुलवा विनसि गयो, भंवरा निरासल।” अर्थात भक्त रूपी फूल जब पूरी तरह से खिल जाता है तो परमात्मा रूपी मालिन उसे तोड़कर अपनी माला में पिरो लेती है। मेरे एक गुरु महाराज जो अब चोला छोड़ चुके हैं, वो इस भजन को जब गाते थे तो इतने भाव-विभोर हो जाते थे कि फूट-फूट कर रोने लगते थे। इस भजन की कई बार मैंने सोचा व्याख्या करने को परन्तु गुरु क़े प्रति ऐसी श्रद्धा है कि उनकी याद से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है, फिर भी मै अपना कर्तव्य पूरा करने की कोशिश जरुर करूँगा। जो भगवद भक्ति करता है उस पथिक के लिए ईश्वरानुभूति होते ही आगे का रास्ता ख़त्म हो जाता है। ईश्वर-पथ पर चलते हुए जो साधू पथ-भ्रस्ट हो जाते हैं उन सोने वाले साधुओं के लिए यही उल्टा खाट रूपी संसार है।
कबीर साहिब कहते है कि इस भजन में वर्णित ज्ञान उल्टा ज्ञान है अर्थात यह सांसारिक नहीं आध्यात्मिक ज्ञान है। आध्यात्मिक पथ पर चलने वालों को ये ध्यान रखना चाहिए कि उनकी इंद्रिया न मूंतें अर्थात वो पथभ्रस्ट न हों और कान को बांध लें अर्थात जब ईश्वर-पथ पर चल पड़ें तो किसी की भी न सुनें। ईश्वर-पथ पर यदि व्यक्ति चलता रहे तो एक दिन लड़का अर्थात भक्त की गोंद में महतारी अर्थात भगवान जरुर खेलेंगे। सभी संत हम सबको बार-बार यही समझाते हैं कि भगवान सिर्फ भक्त क़े लिए हैं और बाकी सबके लिए माया है, जो कर्मानुसार अच्छा-बुरा फल देती है। इस दिव्य भजन का सार ही यही है कि यदि व्यक्ति सही ढंग से भजन करता रहे तो एक दिन भगवद प्राप्ति जरुर होगी ओर यदि मोह माया में फंसकर पथभ्रस्ट हुआ तो फिर यही नश्वर संसार है, जहाँ पर आवागमन के बंधन में बंधकर बार-बार नश्वर शरीर धारण करते रहो।
(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)
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