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मैंने कहा फूलों से हंसो..”जागरण जंक्शन फोरम”

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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हमारे क्षेत्र में दो दिन से बिजली नहीं थी,कहीं कोई बड़ी खराबी थी.इन दो दिनों में भी हर रोज हमेशा हाने वाला कार्य जारी रहा,परन्तु कम्प्यूटर नहीं खुलने से कुछ छूटा-छूटा सा लगता रहा.दिनभर की व्यस्तताओं के बावजूद भी कभी जागरण जंक्शन मंच तो कभी फेसबुक तो कभी अपना ईमेल याद आता रहा.कुछ चीजें आदत में शुमार हो जातीं हैं.ये चीजे अब हम सब की रोजमर्रा की जरुरत भी बन गई हैं.दो दिन बाद आज सुबह बिजली आई है.सुबह के समय सूर्य की रोशनी में अपनी दो साल की बच्ची को गोद में लेकर तेज क़दमों से मै छत पर टहलने लगा.ध्यान तो कंप्यूटर पर लगा था कि जल्दी से सुबह की सैर पूरी हो और कम्प्यूटर आन किया जाये.तेज कदमो से चलते हुए अचानक गुलाब के फूलों के गमले से पांव टकराते हैं और और एक हल्की सी चुभन महसूस होने पर मै रुक जाता हूँ.कुछ कांटें मेरे पांव में चुभे थे.बेटी को गोद में लिए हुए मै गमले के पास बैठ जाता हूँ.मेरी निगाह गुलाब के ताजे खिले फूलों पर जाती है.वाह!कितने सारे सुंदर गुलाब के लाल रंग के फूल खिले हुए हैं.कितनी खुशमिजाजी और हसरत से ये फूल हमें देखते हैं.कितनी देर तक काँटों से उलझने के बाद फूलों पर निगाह पड़ी थी.मै वहीँ बैठ के सोचने लगा-अब तक ठीक से इन फूलों को मै नहीं देख पाया था,क्योंकि सारा ध्यान तो काँटों पर था.गुलाब के लाल खिले हुए फूलों से भरी टहनी को मै हिला देता हूँ.मेरी बिटिया जोर से खिलखिलाकर हंस पड़ती है.मै बिटिया से कहता हूँ-देख फूलों को वो हंस रहे हैं.वो और जोर से हंसने लगती है.अचानक एक गीत मुझे याद आता है-
मैंने कहा फूलों से
हंसो तो वोह खिल -खिला के हंस दिए
और यह कहा जीवन है
भाई मेरे भाई हंसने के लिए
कुछ देर और टहलने के बाद बिटिया को लेकर मै नीचे आ आता हूँ.कम्प्यूटर आन कर पहले जागरण जंक्शन खोलता हूँ,”उलटा कुआं गगन में,तिसमें जरै चिराग” के कमेंट देखता हूँ और कुछ का जबाब भी दे देता हूँ.ये कमेंट ढेर सारे गुलाब के फूल लगते हैं.फेस बुक खोल के देखता हूँ,वहाँ भी ढेर सारे गुलाब के फूल देखता हूँ,अंत में अपना ईमेल चेक करता हूँ,वहाँ पर भी कमेंट रूपी गुलाब के ढेर सारे फूल देखता हूँ.अब मुझे अपने ऊपर हंसी आती है-कहाँ उलझा रहा काँटों में,मुझे तो इन फूलों के पास होना चाहिए था.मै किस-किस का नाम लूँ,इस मंच पर एक से बढ़कर एक सुंदर गुलाब के फूल खिले हुए हैं.जागरण जंक्शन मंच रन-बिरंगे फूलों का गुलदस्ता बन गया है.जागरण जंक्शन मंच को संचालित करने वाले सभी आदरणीय सम्पादक व् सदस्यगण अपना कार्य पूरी मेहनत और ईमानदारी से कर रहे हैं.वो लोग ऐसे काबिल माली हैं,जो हर फूल का हिसाब रखे हुए हैं.किस फूल को कहाँ पर चढ़ाकर सम्मान देना है ये वो लोग बखूबी जानते हैं.विभिन्न प्रकार के रंग-बिरंगे फूलों जैसे मंच के सभी ब्लागर मित्रों और मंच रूपी गुलदस्ते को बेहतरीन ढंग से चलाने वाले संपादक मंडल व् अन्य सभी सदस्यों के प्रति मेरे दिल की भावनाएं फ़िल्म गबन के इस गीत में हैं,जो मै बहुत संकोच और विनम्रता के साथ व्यक्त कर रहा हूँ-
एहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तों,
यह दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों.
बनता है मेरा काम तुम्हारे ही काम से,
होता है मेरा नाम तुम्हारे ही नाम से,
तुम जैसे मेहरबान का सहारा है दोस्तों.
जब आ पड़ा है कोई भी मुश्किल का रास्ता,
मैं ने दिया है तुम को मुहब्बत का वास्ता,
हर हाल में तुम्हीं को पुकारा है दोस्तों.
यारों ने मेरे वास्ते क्या कुछ नहीं किया,
सौ बार शुक्रिया अरे सौ बार शुक्रिया,
बचपन तुम्हारे साथ गुज़ारा है दोस्तों.
एहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तों,
यह दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों.
आदरणीय सूफी ध्यान मुहम्मद जी=सबसे पहले मेरा सादर प्रेम स्वीकार करें-
कबीरा खड़ा बजार में, सब की चाहे खैर ।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर ॥
सबको अपनी बात कहने का अधिकार है,इसीलिए मै किसी की बोलती बंद करने में विश्वास नहीं रखता,बल्कि मै भ्रम दूर करने में विश्वास रखता हूँ.आप मेरे बारे में जो चाहे सोचें लेकिन मैंने आपको जिस आदर के साथ मित्र माना है,उसे हमेशा निभाता रहूँगा.आप तो एक दिन किसी को आदर देते हैं और अगले ही दिन सड़क पर आकर निम्न स्तर पर झगड़ने लगते हैं.आप का साक्षी भाव पता नहीं कहाँ गायब हो जाता है.ऋषियों का काम है रिसर्च करना.मै आप की तरह ढिंढोरा नहीं पीटता कि मै ही सत्य हूँ और बाकी सब झूठे.मै आप के हर लेख को बड़े ध्यान से कई बार पढता हूँ कि इसमें कमेंट के लायक या जबाब देने लायक कोई चीज है की नहीं.संयोग से हमारे यहाँ दो दिन से बिजली नहीं थी.कल एक शिष्य के लेपटाप से सचिन के सम्मान में एक लेख पोस्ट किया था.आपने सोचा होगा मै मंच छोड़ के भाग गया.ये भ्रम आप अपने दिल से निकाल दीजिये.मै इस मंच को छोड़ कर कही जाने वाला नहीं हूँ.
हमारे आश्रम में विगत बाईस वर्षों में लाखों लोग आये गए होंगे.हमने अपना काम पूरी मेहनत और ईमानदारी से किया है.हम आज भी किराये के दो कमरों में आश्रम चला रहे हैं.पिछले बाईस वरसों से मै अपने आश्रम का आध्यात्मिक पथ-प्रदर्शक हूँ,इसीलिए लोग मुझे सद्गुरुजी कहते हैं.अपने आश्रम के लिए मै सद्गुरुजी हूँ,ये एक सच्चाई.है.जिसे अच्छा लगता है,या जो इस लायक मुझे समझते हैं वो अपना सद्गुरु मानते हैं.सब संतों के साथ ऐसा ही है.एक संत को सभी लोग अपना गुरु नहीं मानते हैं और किसी संत को ऐसा आग्रह करना भी नहीं चाहिए.मैंने तो कभी किसी से नहीं कहा कि मुझे गुरु मानो,लेकिन जो लोग मानते हैं मै उन्हें मना भी नहीं करता हूँ.मै तो यही मानता हूँ कि सब लोग मेरे मित्र हैं.मै इसकी चर्चा भी नहीं करता लेकिन आप का भ्रम दूर करना जरुरी हो गया था.
आप दूसरे साधुओं की तरह मुझे अनपढ़ मत समझियेगा.भले ही मैंने अर्थशास्त्र में एम् ए किया है,परन्तु मैंने भी सभी धर्मों का दर्शन पढ़ा है.कई वर्षों तक मै एकांत में रहकर अपने शरीर के भीतर ही सत्य की खोज में रिसर्च करता रहा,अंत में मुझे सत्य की अनुभूति हुई.बहुत से संतों के साथ रहने का भी मुझे सौभाग्य मिला.उनसे मुझे असीम ज्ञान और अनुभव मिला.आज जो कुछ भी मेरे पास है,सब भगवान और संतों की कृपा का ही फल है.आप की तरह चौबीस हजार पुस्तकें तो मैंने नहीं पढ़ी हैं,परन्तु कुछ दार्शनिकों की पुस्तकें जरुर पढ़ी हैं.मै ‘पोथी पढ़ी-पढ़ी जग मुआ’ वाला पंडित होना भी नहीं चाहता था.मै तो ‘ढाई आखर प्रेम’ वाला पंडित होना चाहता था.संत कबीर कहते है-“पंडित जन फूल रहल लुभाई”.इसका अर्थ है कि विद्वान व्यक्ति को इस सृष्टि के दो सर्वोत्तम फूल आत्मा और परमात्मा में मगन रहना चाहिए.मुझे ख़ुशी है कि सविचार और निर्विचार दोनों ही तरह से मै इस फूल में लीन रहता हूँ.रही बात विद्वता की तो मै विद्वान होना भी नहीं चाहता,क्योंकि विदवता का कोई अंत नहीं.मै तो भक्त ही होकर रहना चाहता हूँ.हमारे काशी में एक से बढ़कर एक विद्वान हैं.बहुत से विद्वान मुझसे मिलने आते हैं.कई मुद्दो पर मेरे उनके विचार मेल नहीं खाते,परन्तु इससे हमारी दोस्ती पर कोई फर्क नहीं पड़ता है.हम लोग इसे कभी भीं इगो हर्ट का मैटर नहीं बनाते हैं और एक दूसरे की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं.सभी विद्वानो का मै आदर करता हूँ.ये मेरा स्वाभाव है.दो दिन पहले की घटना का मै जिक्र करना चाहूंगा.परसों रात के समय मै अपनी छत पर टहल रहा था.तभी मैंने देखा की दो शराबी लुढ़कते बतियाते हुए सड़क से गुजर रहे हैं.एक शराबी ने कहा-“गुरु कौनो ज्ञान क बात बताव.जब चढ़ेले त तू और ज्ञानी हो जालअ”
दूसरा शराबी उसके कंधे पर हाथ रख बोला-“ले सुन ज्ञान क बात..और हमरे एगो सवाल क जबाब दे-
राम रावण का दामाद तो लड़ाई क्यों हुई ?
सीता लक्ष्मण की बहन तो भौजाई क्यों हुई ?”
वो दोनों शराबी दूर निकल गए थे,इसीलिए मै दूसरे का जबाब तो नहीं सुन पाया,परन्तु मेरी पूरी दिलचस्पी थी दूसरे का जबाब सुनने में,क्योंकि मै उनकी बाते सुनकर हैरान रह गया था.उसके सवाल से मेरा भी दिमाग चकरा गया था.मुझे ख़ुशी हुई कि ये देश एक से बढ़कर एक ज्ञानियों से भरा पड़ा है.ये देश का सौभाग्य है.जो कहता है कि मै ही एकमात्र ज्ञानी हूँ,ये उसकी भूल है.एक से बढ़कर एक ज्ञानी देश की सड़कों पर घूम रहे हैं.
मैंने आप के नए सभी लेख पढ़े.आप ने सोचा कि मै मंच छोड़ के भाग जाउंगा,ये आप की भूल थी.मै बता चूका हूँ कि मेरे यहाँ पर दो दिनों से बिजली नहीं थी.आप की कुछ बातों का स्पष्टीकरण दे दूँ.
पहला-मै अज्ञानी हूँ.आप की बात सौ फीसदी सत्य है.जब मै निर्विचार हो जाता हूँ तो मुझे अपने भीतर किसी ज्ञान का और किसी विचार का अनुभव नहीं होता है.ये ठीक वैसा ही है,जैसे सुबह गहरी निद्रा से जागने पर हमें यद् रहता है कि रत को गहरी नींद आया.कोई स्वप्न नहीं आया.उस समय की मेरी अज्ञानता ही मेरी चरम उपलब्धि है और मेरी अनुभवगम्य समाधी है.जब इच्छा होती है मै जागते हुए भी इस चरमसुख की अनुभूति कर लेता हूँ और जब मै गहरी नींद में सोता हूँ,तब भी मै निर्विचार होता हूँ.मुझे सपने नहीं आते हैं.यही मेरी योग निद्रा है.मेरे ध्यान और समाधी का तरीका है.ये मेरा वर्षों का अनुभव है और इस विषय पर मै किसी से कोई बहस नहीं करना चाहता.मेरी ये अज्ञानता बड़े-बड़े ज्ञानियो के लिए भी दुर्लभ है.मै सभी संतों को और ईश्वर को ये उपलब्धि पाने में मेरी मदद करने के लिए के लिए ह्रदय से धन्यवाद देता हूँ.
दूसरा-जागरण परिवार ने “बेस्ट ब्लागर ऑफ़ दी वीक” चुनकर अपराध किया है.मै इस बात से बिल्कुल भी सहमत नहीं हूँ.मुझे लगता है कि वो लोग विद्वान हैं और उन्होंने कोई गलती नहीं की है बल्कि ये सम्मान भुत देर से देने की अपनी गलती सुधारी है.मुझे सम्मान की भी परवाह नहीं.अपने कृपालु पाठकों और इस मंच के ब्लागर मित्रों के बीच हमेशा लिखते रहना चाहता हूँ.इस मंच के संपादकगण किसी भी ब्लागर को सम्मानित करें,मुझे ख़ुशी होगी और मै जरुर उसे बधाई दूंगा.यदि वो कभी आप को भी “बेस्ट ब्लागर ऑफ़ दी वीक” चुनते हैं तो सबसे ज्यादा ख़ुशी मुझे होगी.
तीसरा-आप के दो लेखो को लेकर जो मैंने आपत्ति की थी वो मेरी विचारधारा और दृष्टि में वो सही थी.नारी जाति के प्रति मेरी जो भावना है,उसके मुताबिक मैंने अपना कर्त्तव्य निभाया.मै मंच पर अकेला खड़ा हुआ,फिर मेरे साथ आदरणीय इमाम हुसैन कादरी जी और फिर इस मंच के बहुत सम्मानित और आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी साथ आ खड़े हुए.मै सबको ह्रदय से धन्यवाद देता हूँ और उनको भी मै ह्रदय से धन्यवाद देता हूँ जो चाहते हुए भी किसी मजबूरी के कारण साथ नहीं खड़े हो पाये.
चौथी-मन की एकाग्रता ध्यान है और निर्विचार होना समाधी है-ये मेरा अपना निजी अनुभव है.ये मेरे वर्षों की साधना का प्रतिफल है.किसी को मानने हेतु मै आग्रह नहीं करता हूँ.व्यक्ति स्वयं अपनी चेतना के द्वारा विचारों का पीछा करके देखे.एक समय ऐसा आएगा जब उसका मन निर्विचार हो जायेगा.
गीता के अध्याय छठा श्लोक ३४ में कहा गया है-मन बड़ा चंचल है,इसीलिए उसको वश में करना कठिन काम है.
गीता के अध्याय छठा श्लोक ३५ में कहा गया है-अभ्यास और वैराग्य के द्वारा मन वश में होता है.
भगवान के किसी भी नाम का मानसिक रूप से या स्वांस से जाप या स्वांस को आते-जाते हुए देखना अभ्यास है और किसी भी चीज से आंतरिक जुड़ाव न रखना वैराग्य है.आंतरिक जुड़ाव न रहने और इच्छाएं कम होते चले जाने पर मन एकाग्र और निर्विचार होने लगता है.ये मेरा स्वयं का अनुभव है.नींद से पहले भी मन एकाग्र होता है और गहरी नींद में मन निर्विचार हो जाता है ये कुदरती ध्यान-समाधी है,जो सबको उपलब्ध है.
आप कहते हैं कि मई गीता को नहीं मानता,तब तो फिर आप ये भी कहेंगे कि मै कुरान,बाइबिल और गुरुग्रंथ साहिब को भी नहीं मानता.जब आप किसी को नहीं मानते तो कोई आप की बातों को क्यों माने?.इस मंच पर मै बहुत से लोगों के लेख पढता हूँ,जो मुझसे भी अच्छा लिखते हैं और कई मामले में उन्हें मुझसे ज्यादा जानकारी है.हर मामले में हर व्यक्ति विशेषज्ञ नहीं हो सकता है.इसीलिए मै सबकी इज्जत करता हूँ और मै सबकी विदवता को सलाम करता हूँ.मै तो स्पष्ट कहता हूँ कि मै ज्ञानी नहीं हूँ बल्कि मै भक्त हूँ और आजीवन भक्त ही बना रहना चाहूंगा.मै एक अच्छा कवि और एक अच्छा साहित्यकार भी नहीं हूँ,बस अपने ह्रदय की बात और अपना अनुभव इस मंच पर रखता हूँ,चाहे उसे कोई माने या न माने.इस मंच पर सभी लोग अपना विचार रखते हैं और उनके विचारों से सहमत होना या न होना पढ़ने वाले की मर्जी है.
मै कासों कहूं को सुने को पतियाय,
फुलवा छुवत भंवरा मरि जाय.
मै किससे कहूं,कौन सुनेगा और कौन इस बात पर विश्वास करेगा कि फूल को छूते ही भंवरा मर जाता है.कौन सा फूल और कौन सा भंवरा ? आत्मा रूपी फूल और मन रूपी भंवरा.जी हाँ,मन रूपी भंवरा आत्मा रूपी फूल को छूते ही मर जाता है.कबीर साहब जानते थे कि उनकी बात पर वो लोग विश्वास नहीं करेंगे जो पोथी पढ़-पढ़ के दुनिया से विदा हो जाने वाले हैं.इसीलिए उन्होंने कहा कि पोथी पढ़ी पढ़ी जग मुआ,पंडित भय न कोय.ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय.ज्ञानी लोगों में मत भिन्नता होती है-मुण्डे-मुण्डे मतिर्रभिन्ने,ये स्वाभाविक सी बात है.सब अपने ही अर्जित ज्ञान और अनुभव को सही मानते हैं.परन्तु सभी संत यही कहते हैं कि जिस व्यक्ति में प्रेम न हो और जिस व्यक्ति में शील यानि साधुता के गुण-विवेक वैराग्य न हों,उससे दूर रहना ही बेहतर है.जिस व्यक्ति में विवेक और वैराग्य जागृत नहीं है,वो व्यक्ति संत कबीर साहिब का भजन जानने समझने लायक नहीं है,भले ही वो कितना भी बड़ा विद्वान क्यों न हो.संत कबीर साहिब तो साफ कहते हैं-
मै कहता आँखिन की देखि,
तू कहता कागज की लेखी.
तेरा मेरा मनवा कैसे एक होई रे,
तेरा मेरा मनवा कैसे एक होई रे,
ये कबीर साहिब की वाणी है.मेरी उनकी इस वाणी पर आस्था है.किसी को बुरा लगे तो मै क्षमा चाहूंगा और यहाँ पर स्पष्ट कऱ दूँ कि मै कबीर साहिब का विचार रख रहा हूँ.मै व्यक्तिगत रूप से किसी के लिए नहीं कह रहा हूँ.
पांचवी-इसमें कोई संदेह नहीं की आप ज्ञानी हैं और मै आप की उन लेखों के लिए प्रशंसा करता हूँ,जो मुझे अच्छे लगते हैं.भविष्य में भी मै हमेशा ऐसा करता रहूँगा.हाँ जिस दिन आप मुझसे कह देंगे कि मेरे लेख मत पढ़िए और उस पर कमेंट मत कीजिये,मै आप की बात मान लूंगा.आप विद्वान हैं,लेकिन बहुत चतुर हैं.आप जानते है कि मंच पर हंगामा होने पर कोई आपकी आलोचना करेगा तो कोई बड़ाई.दोनों ही स्थितियों में आप को फायदा है.आप की और आप के लेख की चर्चा होगी.मंच पर कोई हंगामा हो मै नहीं चाहता हूँ,क्योंकि इससे मंच पर लिखने वाले सभी ब्लागरों से लेकर मंच के संचालकों तक सभी को परेशानी होती है.कमेंट देने पर रोक लग जाती है.
आप से अपने दिल की बात कहता हूँ कि जब आप जैसे ज्ञानी ये कहते है कि मै सबका बैंड बजा दूंगा,मैंने मधुमख्खी के छत्ते में ढेला फेंका हैं,मै आप को आप की फ़ीस भेज रहा हूँ.मुझे घोर आश्चर्य होता है.मै संशय में पड़कर आप का ज्ञान और साक्षीभाव सब भूल जाता हूँ.आप के लेख के अंत में मुझे अहंकार और प्रतिशोध की भावना नज़र आने लगती है.लेख का मर्म ही भूल जाता हूँ और इस भूल-भुलैया में मै ढूंढने लगता हूँ कि सूफी ध्यान मुहम्मद कहाँ हैं?आप जैसे ज्ञानी को ये सब कहना शोभा नहीं देता हैं.यदि मेरे लिए आप के ह्रदय में जरा सा भी आदर और प्रेम है तो आप से विनम्र निवेदन है कि आगे से अपने लेखों में ऐसे शब्दों का प्रयोग न करें.सबको चुनौती देना कि-मै दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञानी हूँ,आओ मुझसे शास्त्रार्थ करो.आप की नज़र में भले ही ये बौद्धिक व्यायाम या मनोरंजन का साधन हो,परन्तु मेरी नज़र में इससे बड़ी मूर्खता और कोई दूसरी हो ही नहीं सकती.ज्ञानी व्यक्ति तो सूर्य के समान होता है,सूर्य उगा नहीं की अँधेरा गायब.ज्ञानी व्यक्ति का लेख भी सूर्य के समान होता है,जिसके प्रकाशित होते ही उसे पढ़कर ह्रदय में ज्ञान का प्रकाश फैलता है और अज्ञान दूर होता है.किसी को चुनौती देने का मतलब है जबर्दस्ती अपनी बात मनवाना और अपनी ही योग्यता पर संदेह करना.
अंत में आप से मेरा आग्रह है कि आप बुद्धत्व,साक्षी-भाव,ध्यान-समाधी,बंधन-मोक्ष आदि जैसे विषयों पर अपने विचार और अनुभव प्रगट करें.मै ही नहीं बल्कि मंच के सारे ब्लागर आप के ज्ञान और अनुभव से लाभन्वित होंगे.आप में ज्ञान और ऊर्जा की कोई कमी नहीं है.आप अपने को सबसे अलग साबित करने के लिए उन विषयों को क्यों चुनते हैं,जिसमे किसी का भी हित नहीं है.आप का ज्ञान और ऊर्जा गलत दिशा में और व्यर्थ बह रही है.अत:आप से मरे फिर आग्रह है कि आप ऐसे विषयों पर लिखें जिससे बहुत से लोगों को फायदा हो.यदि मेरी बातें आप का बुरी लगी हों तो मै भविष्य में इस विषय पर कोई चर्चा नहीं करूँगा.अपने सादर प्रेम और समस्त शुभकामनाओं सहित.
(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

मैंने कहा फूलों से हंसो..”जागरण जंक्शन फोरम”
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