- 534 Posts
- 5673 Comments
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
इस मंत्र के दो अर्थ हैं,पहला अर्थ है-गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं, गुरु ही शंकर हैं; गुरु ही साक्षात् परब्रह्म हैं; उन सद्गुरु को प्रणाम करता हूँ.इस मंत्र का दूसरा अर्थ है-ब्रह्मा गुरु हैं,विष्णु गुरु हैं,शंकर गुरु हैं,परब्रह्म गुरु हैं,मै उन सब गुरु को प्रणाम करता हूँ.मानस में सद्गुरु की परिभाषा इस प्रकार से दी गई है-
वंदे बोध मयम नित्यं गुरुम शंकर रूपिणम् ! यमाश्रितो ही वक्रोअपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते !! इस श्लोक में कहा गया है कि धरती पर हर समय गुरु मौजूद रहतें हैं.गुरु शंकर के रूप में इस संसार में विराजमान रहते हैं.गुरु को शंकर रूप इसीलिए कहा जाता है,क्योंकि वो शिष्य की सभी शंकाओं का समाधान करते हैं.जैसे भगवान शंकर की जटाओं में लगकर अपूर्ण टेढ़ा चन्द्रमा भी सर्वत्र सम्मान पाता है,उसी प्रकार से खराब से खराब मन वाला व्यक्ति भी किसी ज्ञान देने वाले गुरु से जुड़कर और मन को सही करके यानि ज्ञान से भरकर इस संसार में सब जगह सम्मान पाता है.
सबसे पहले माता,पिता,भाई,बहन,और घर के बुजुर्ग बच्चे के गुरु बनते है.फिर स्कूल और कालेज में उसे ज्ञान देने वाले गुरु मिलते हैं.व्यक्ति जन्मने से लेकर मरने तक हर समय हर किसी से कुछ न कुछ सीखता है.उसे कोई न कोई गुरु के रूप में हमेशा मिलता रहता है.हर किसी से उसे लाभप्रद ज्ञान मिले,ये जरुरी नहीं.कही-कहीं हानि पहुंचाने वाला ज्ञान भी उसे मिलता है.कुछ लोगो को यदि हम ढूंढ़कर गुरु बनाते हैं तो कुछ लोग सौभाग्य या दुर्भाग्य से कहीं पर मिल भी जाते हैं.गुरु यदि हम किसी को बनाते हैं तो उसमे बहुत सावधानी भी रखनी पड़ती है,क्योंकि गुरु बनाने के बारे में कहा गया है कि-पानी पियो छान के और गुरु करो जान के.कुछ लोग ये मानते हैं कि गुरु किया नहीं जाता है बल्कि वो तो जन्मने से लेकर मरने तक स्वमेव मिलते चले जाते हैं.जीवन के सफ़र में किसी से अच्छा ज्ञान मिले तो वो भी गुरु है किसी से ख़राब ज्ञान मिले तो वो भी गुरु है.ये वास्तव में ये गुरु की एक अधूरी परिभाषा है और सतगुरु की परिभाषा तो है ही नहीं.सतगुरु तो सौभाग्य से बड़ी सरलता से भी मिल जाते हैं और कुछ लोग उनकी तलाश में यहाँ-वहाँ जाते भी हैं.सतगुरु का कार्य सत्य की जानकारी देना ही नहीं है,बल्कि सत्य की अनुभूति कराना भी है.
जो लोग ये कहते हैं कि हम किसी देहधारी को गुरु नहीं मानेगें,हम तो प्राकृतिक रूप से जीवन में जो भी अच्छी-बुरी चीज मिलती जायेगी,उसी को गुरु मानेंगे.ये विचारधारा कोई नई नहीं है.बहुत पुरानी विचारधारा है.ऐसा कहने या मैंने वाले कौन सी नई बात करते हैं,उन्हें भगवान दत्तात्रेय की जीवनी पढ़ना चाहिए.भगवान दत्तात्रेय ने अपने जीवन में कई लोगों से शिक्षा ली,यहाँ तक कि जंगली पशुओं के जीवन और उनके कार्यकलापों से भी शिक्षा ग्रहण की.दत्तात्रेयजी कहते हैं कि जिससे जो भी गुण सीखने को मिला है उनको उन गुणों का प्रदाता मानकर उन्हें अपना गुरु माना है,इस प्रकार मेरे 24 गुरु हैं-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चंद्रमा, सूर्य, कपोत, अजगर, सिंधु, पतंग, भ्रमर, मधुमक्खी, गज, मृग, मीन, पिंगला, कुररपक्षी, बालक, कुमारी, सर्प, शरकृत, मकड़ी और भृंगी.
गुरु गीता में बहुत से गुरुओं के बारे में बताया गया है,जैसे-सूचक गुरु,वाचक गुरु,बोधक गुरु,निषिद्ध गुरु,विहित गुरु,कारणाख्य गुरु तथा परम गुरु या सद्गुरु आदि.सद्गुरु है कौन?जिसके पास ब्रह्ज्ञान और ब्रह्मनुभूति हो.बुद्ध कहते हैं कि सद्गुरु के पास दो ही चीज होनी चाहिए,पहला-आनंद और दूसरी करुणा.सद्गुरु वो है,जो सत्य की जानकारी दें जो आत्मा-परमात्मा की जानकारी दे और उसे अनुभव करने का रास्ता बताये.सद्गुरु का कार्य समाज में अच्छे विचारों का प्रचार-प्रसार करना भी है.कुछ सद्गुरु विचार करने को या बौद्धिक कसरत करने को सिर्फ सूत्र देते है,परन्तु अनुभवी सद्गुरु अपने दिए हुए सूत्र की न सिर्फ व्याख्या करते हैं बल्कि शिष्य के भीतर उतरकर उस सूत्र के सत्य से साक्षात्कार भी करा देते हैं.बहुत से लोग ऐसे हैं,जो किसी को गुरु नहीं बनाते हैं,बल्कि वो लोग स्वयं ही स्वयं का गुरु बनकर स्वयं को ही शिक्षित करते हैं,जो की बहुत अच्छी बात है.कुछ लोग जो अपने को जरुरत से ज्ञानी समझते हैं वो हर साधू-संत और हर सद्गुरु की आलोचना करते फिरते हैं.उन्हें कोई समझाए कि आप को कहता कौन है कि उन्हें गुरु मानो,आप मत मानो,परन्तु जो मानते हैं,उन्हें मना करने का आप को कोई अधिकार नहीं है.
हिन्दू सहनशील और उदार होते हैं,इसीलिए उनके गुरुओं को और उनके धर्मग्रंथों की आप आलोचना ही नहीं करते हैं बल्कि गाली-गलौज भी भी दे लेते हैं,ऐसे तथाकथित विद्वानो और भ्रमित ज्ञानियों का लेख पढ़कर वाह-वाही करने वाले हिंदुओं को शर्म आनी चाहिए.यदि हम अपने धर्मग्रंथों को सम्मान नहीं देंगे और उनके सम्मान की रक्षा नहीं करेंगे तो एक दिन इस देश में ऐसे लोग खुद भी अपमानित होयेंगे.आज अपने को जो लोग जरुरत से ज्यादा चालाक समझते हैं,वो दोहरे मानसिकता वाली जिंदगी जीते हैं,वो अपने जीवन में स्वयं करते कुछ और हैं और गाल बजाते फिरते कुछ और हैं.जो अपने विचारों को ही यथार्थ जानकर विचारों की दुनिया में उड़ते हैं,जीवन के यथार्थ धरातल पर उनका पतन भी उतना ही जल्दी होता है.
कुछ लोग गीता को झूठी कहते हैं,यदि हिम्मत है तो सड़क पर आकर कुरान को,मुहम्मद साहब को,बाइबिल को,ईसा को,गुरुग्रंथ साहब को और सभी गुरुओं को झूठा कह के दिखाओं.केवल गीता को झूठा कहके अपने घरों में क्यों दुबक जाते हो?कड़वी सच्चाई तो ये है कि आप खुद झूठे हो,इसीलिए दूसरों को झूठा कहते हो.जो खुद धोखेबाज होते हैं,वो सारी दुनिया को धोखेबाज कहते हैं.अंत में मै एक बात स्पष्ट कर दूँ कि मै अपने आश्रम का गुरु हूँ.जिसके अनगिनत शिष्य हैं.जो मुझे गुरु मानते हैं तो उनकी मर्जी,और जो मुझे गुरु के रूप में जानते हैं तो उनकी मर्जी.मै कभी किसी से नहीं कहता हूँ कि मुझे गुरु मानो.मै सबको मित्र और भाई कहता हूँ परन्तु इस ब्लॉग पर कुछ ऐसे तथाकथित अति ज्ञानी लोग हैं,जो व्यर्थ में मेरी आलोचना किये जा रहे हैं,ये उनकी विक्षिप्तता है और उसके पीछे केवल उनकी ईर्ष्या और आधा-अधूरा ज्ञान है.ये लोग केवल अर्थ का अनर्थ निकालते हैं और अपने को दुनिया का सबसे चालाक व्यक्ति समझते हुए केवल शब्दों की बाज़ीगरी करते हैं.इनके बारे में ही कहा गया है कि-
कुछ लोग जो ज्यादा जानते हैं
इंसान को कम पहचानते है.
पोथी पढ़ी-पढ़ी जग मुआ वाले इन लोगों से कहीं बेहतर ढाई आखर प्रेम का जानने वाला अनपढ़ या कम पढ़ा-लिखा आदमी है.शर्म आनी चाहिए कि प्रकृति की हर चीज को गुरु बताते हो यहाँ तक की जड़ को भी और कोई जीता-जागता इंसान अगर कुछ अच्छा ज्ञान देता है तो उसकी आलोचना करते हो,यही आप का अधकचरा ज्ञान है,जिसे देने को बेताब हो,मुझे ऐसे कूड़ा में फेकने लायक ज्ञान की जरुरत नहीं है.ईश्वरीय कार्य समझकर मै अपना कार्य करता रहूँगा.मुझे इनकी परवाह नहीं क्योंकि कुछ कांटे हैं तो हजारो महकते हुए फूल भी है,जिन्हे मेरी जरुरत है और जो मेरे साथ हैं.जिन्हे जितना जहर और ईर्ष्या उगलना है,उगलते रहो,ये आप के लिए ही घातक है,मेरे लिए नहीं.ये ब्लॉग मेरा घर है और मेरे घर में आकर कलह मत करो.मेरे मुहल्ले में बहुत से नशेड़ी दारु पीकर उत्पात मचाते हैं और नशे में ज्ञान की इतनी बड़ी-बड़ी बातें करते हैं कि पूछो मत.मेरा निवेदन है कि मेरे ब्लॉग पर इस ढंग से आओ कि मै आप का स्वागत कर सकूँ.मुझसे इस ढंग से मिलो कि मुझे भी ख़ुशी हो और आप खूब कमेंट करें,प्रशंसा या आलोचना जो भी हो,उसका स्वागत है,इसमें मुझे कोई दिक्कत नहीं है,परन्तु ये कमेंट अशिष्ट और अमर्यादित नहीं होना चाहिए.मै यदि आप को सम्मान देता हूँ और शिष्टता से बात करता हूँ तो आप को भी वैसा ही करना चाहिए दीजिये अन्यथा मेरे ब्लॉग से दूर रहना चाहिए.आलोचना यदि आलोचना कि दृष्टि से की जाये तो अच्छा है,लेकिन जब आलोचना ईर्ष्या-द्वेष के आधार पर या किसी को नीचा दिखाने के लिए की जाये तो ये ये आलोचना नहीं बल्कि छल-कपट है स्वयं के साथ भी और दूसरे के साथ भी.मै इन सब चीजों से हमेशा दूर रहा हूँ और सबसे यही अपेक्षा भी करता हूँ.ये पढ़ने वालों के ऊपर निर्भर है कि-
मानो तो मै गंगा माँ हूँ ना मानो तो बहता पानी.
विचारणीय सूत्र=मानो,जानो और लीन हो जाओ.ये संतों का सूत्र है.मानने में कोई बुराई नहीं है,परन्तु हमें खोज करते हुए आगे जानने की तरफ बढना चाहिए और सत्य को जानकर उसमे लीन हो जाना चाहिए.इस सच्चाई को कोई झूठला नहीं सकता कि हम सब लोग अपने जीवन में बहुत सी चीजों को मानने के बाद जानते हैं और बहुत सी चीजों को जानने के बाद मानते हैं.इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है.ये सब चर्चा केवल बौद्धिक व्यायाम मात्र है.गणित को विज्ञानं कहा जाता है,परन्तु हमें ये नहीं भूलना चाहिए गणित के सारे सवालों के जबाब मान लो से ही शुरू होते हैं और अंत में जबाब भी मिलता है.इसी तरह से भक्त ये मान के चलता है कि भगवान और धर्मग्रन्थ सच्चे हैं और अपनी खोज शुरू करता है और सत्य को जानकर उसी में लीन हो जाता है.सत्य केवल इतना ही नहीं है,जो आँखों से दीखता है,मित्रों ९० % सत्य आँखों से नहीं दीखता है,परन्तु वो किसी के कहने से झूठ नहीं हो जायेगा.सत्य एक सागर की तरह है,इसीलिए कभी ये दावा मत करो कि मई सबकुछ जनता हूँ.जो ऐसा दावा करता है,उससे बड़ा झूठा इंसान इस पूरे संसार में कोई नहीं होगा.जो मान के चलते हैं वो भी विद्वान हैं और जो जान के चलते हैं वो भी विद्वान हैं और जो परमात्मा में लीन रहते हैं,वो परम विद्वान् हैं.यदि हम खुद झूठे हैं तो हमें हमारे धर्मग्रन्थ भी झूठे नज़र आयेंगे और यदि हम खुद सच्चे हैं तो हमें हमारे धर्मग्रन्थ भी सच्चे नज़र आयेंगे.हम स्वयं यदि सही हैं तभी किसी दूसरे पर आरोप लगाना चाहिए और सबकुछ जानकर ही आरोप का समर्थन करना चाहिए.मुझे बहुत दुःख और आश्चर्य होता है कि जो अपने व्यक्तिगत जीवन में स्वयं भ्रष्ट हैं वो दूसरो पर कीचड़ उछालते हैं.विद्वान और सही आदमी दूसरों के बारे में सोच-समझ के कुछ बोलता है.अंत में सत्य का प्रचार-प्रसार करने वाले,परमात्मा में लीन रहने वाले और लोककल्याण में लगे रहने वाले संसार के सभी सच्चे गुरुजनों को मेरा प्रणाम.
(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)
Read Comments