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एक मछली ने दूसरी मछली से कहा-
हम लहरे हैं,
लहरों का उठना हमारा जीवन
और लहरों का गिरना हमारी मृत्यु है.
कुछ मछलियों ने कहा-सच है !
कुछ मछलियों ने कहा-झूठ है !
कुछ मछलियों ने कहा-
लहरें नहीं समुन्दर सच है !
भ्रमित हैं सब समुंदर की मछलियां,
समय चीख के कहता है-
लहरें भी झूठ समुंदर भी झूठ है.
अपने आप न रची है
न चल रही है ये कायनात,
समय से परे ये कौन हंस रहा है-
कि समय भी झूठ है.
सफ़र तब तलक ही सफ़र है,
जब तलक ये मालूम न हो जाये
कि ये सफ़र भी झूठ है.
सफ़र में हो इसलिए समय सच मालूम देता है,
सफ़र रोको और समय से परे जाओ तो देखो गे
कि ये समय भी झूठ है.
कौन है सच्चा ज्ञानी और कौन है
सच्चा भक्त इस दुनिया में !
यहाँ पर तो जो मान ले वो झूठ
और जो जान ले वो भी झूठ है.
साढ़े तीन हाथ का आदमी
मर जाता है मै मै करके !
जीवन भर अपने को तो समझ नहीं पाता,
क्या समझेगा इस बृहद सृष्टि को !
और इस बृहद सृष्टि के रचयिता को !
इस सम्पूर्ण सृष्टि का परम सत्य
न जानने में है और न मानने में
और न ही ग्रंथों में है और न ही किताबों में !
ये तो परमात्मा की कृपा से प्रकट हो जाता है,
किसी सौभाग्यशाली भक्त के ह्रदय में !!
किसी सौभाग्यशाली भक्त के ह्रदय में !!
(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)
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