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शून्य में धूनी रमाई ! आध्यात्मिक कविता “जागरण जंक्शन फोरम”

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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कर्तापन में जीव है रहता,
होनापन में ईश्वर की प्रभुताई !
हाँ,होनापन में ईश्वर की प्रभुताई !
भक्त की खातिर हैं भगवान,
औरों की खातिर कर्मों की लिखाई !
हाँ,औरों की खातिर कर्मों की लिखाई !
वो जीव को समझा भाई,
शून्य महल में सिहासन पर बैठा जो मेरे भाई !
हाँ,शून्य महल में सिहासन पर बैठा जो मेरे भाई !
वो माया को समझा भाई,
रोक ली जिसने अपने मन की लड़ाई !
हाँ,रोक ली जिसने अपने मन की लड़ाई !
वो धर्म को समझा भाई,
जिसने शब्द में सुरत लगाई !
हाँ,जिसने शब्द में सुरत लगाई !
बाहर-भीतर घट में प्रभु हैं,
जो भक्त को देते दिखाई !
हाँ,जो भक्त को देते दिखाई !
वो प्रभु को समझा भाई,
जिसने शून्य में ध्वजा फहराई !
हाँ,जिसने शून्य में ध्वजा फहराई !
वो घर को समझा भाई,
जिसने शब्द की मार है खाई !
हाँ,सबसे शब्द की मार है खाई !
वो घाट को समझा भाई,
जिससे शब्द की चोट सहा नहीं जाई !
हाँ,जिससे शब्द की चोट सहा नहीं जाई !
शब्द तो कई जगह है भाई,
घर में घूमे बन के बेटा-बेटी-लुगाई !
जी हाँ, बन के बेटा-बेटी-लुगाई !
शब्द गूंजे उस गुरु के धाम में,
रहे जो गुदड़ी में अमृत छुपाई !
हाँ,रहे जो गुदड़ी में अमृत छुपाई !
शब्द सुने जो घट के भीतर,
शून्य में धूनी रमाई !.
जी हाँ,शून्य में धूनी रमाई !
झर-झर झरता अमृत पीये
अपने ही घट में जाई !
हाँ,अपने ही घट में जाई !
ज्योति निरंजन घट-घट में है,
धन्य हैं वो,जिसने अलख जगाई !
हाँ,धन्य हैं वो,जिसने अलख जगाई !!
(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)
शून्य में धूनी रमाई ! आध्यात्मिक कविता "जागरण जंक्शन फोरम"

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