सद्गुरुजी
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मै आईना हूँ ये कहना
बहुत आसान है !
मगर आईने की तरह
रहना मुश्किल है !!
आईना में जो जैसा हो
वैसा दिखाई देता है !
आईना को क्या मतलब
कौन कैसा दिखाई देता है !!
आत्मा तो आईना है
मन को आईना कर लो !
कोई भी देख ले खुद को
अपने को आईना कर लो !!
जो कहते थे आईने से
अज़नबी हो जाने बात !
सदमे में हैं सुनकर
दोस्ती हो जाने की बात !!
आईना ले के भागे
ज्ञानियों की महफ़िल से !
रास्ते में मिला भक्त
मिल गया दिल दिल से !!
आईने की गहराईयों में
नज़र आया गूढ़ ज्ञान !
एक तरफ जीव का ज्ञान
तो दूसरी तरफ अज्ञान !!
अज्ञान दूर करने के लिए
चाहिए एक दिव्य दृष्टि !
जो दे सकता है वही
जिसने रची है ये सृष्टि !!
जिसने रची है ये सृष्टि !!
(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)
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