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इस लघुकथा के बारे में=सार्वजानिक जीवन में रहने के कारण कई लोगों से रोज मुलाकात होती है.बहुत से लोग अपनी आपबीती सुनाते हैं.कुछ लोगों के जीवन की कहानियों को प्रकाशित करने का विचार मेरे मन में आया है,जिनके जीवन की घटनाओ से दूसरो को कुछ न कुछ शिक्षा मिलती है.आज मैंने तीसरी क्लास में पढ़ने वाली आठ वर्ष की बच्ची अनन्ता (बदला हुआ नाम) की आपबीती को एक लघुकथा का रूप देने के लिए चुना है.
आठ साल की मासूम और गुड़िया सी सुंदर अनंता आज सुबह जब अपने पिता के साथ मेरे पास आयी तो उसका ऊपर का होंठ सूजा हुआ था.आज वो हमेशा की तरह वो खुश और चंचल नहीं दिख रही थी.अपने पिता के साथ चुपचाप खामोश सी दरी पर बैठी थी.
मैंने उसके चेहरे की तरफ देखते हुए पूछा-अनंता,ये तुम्हारे होंठ पर कैसे चोट लगी है.
आप से शिकायत करने आयी है.मै ड्यूटी से आया तो देखा की रो रही थी.मुझसे कहने लगी गुरूजी के पास चलो.-उसके पिता हँसते हुए बोले.
बोलो बेटा किसकी शिकायत करनी है.तुमने बताया नहीं की ये होठों पर चोट कैसे लगी है ?
माँ ने आज सुबह मारा है.मेरे मुंह पर कई थप्पड़ मारे.मेरा होंठ दांतो से कट गया..बहुत खून निकला…मेरी बात कोई नहीं सुनता….मै किसी दिन मर जाउंगी.- इतना बोलते बोलते वो रोने लगी.
ये सब क्या है.बच्चों को ऐसे मारते हैं.-मैंने उसके पिता को डांटा.
मैंने नहीं मारा है.इसकी माँ ने मारा है.
क्यों मारा है ?-मैंने पूछा.
आज सुबह मैंने माँ से कहा था कि मैं संतोष भैया से ट्यूशन नहीं पढूंगी.वो बार-बार मेरे कपड़ों के भीतर हाथ डालते हैं….इतना सुनते ही माँ मुझे मारने लगी.-वो बोलते बोलते हिचक हिचक कर रोने लगी.
ये तो बहुत गम्भीर बात है.इसकी माँ ने इसका साथ देने की बजाय उलटे इसी को मारा.आज वो साथ में क्यों नहीं आईं.-मैंने हाथ बढाकर अनंता के आंसू पोछे.
इसकी माँ डर के मारे नहीं आई कि आप डांटेंगे.-उसके पिता बोले.
ये संतोष कौन है और कहाँ पर ट्यूशन पढता है ?-मैंने पूछा.
हमारी रिश्तेदारी में पड़ता है.वो बीकॉम में पढता है और ट्यूशन भी पढ़ाता है.शाम को पांच बजे वो हमारे घर पर आकर पढ़ा जाता है.बहुत अच्छा लड़का है.ये पढ़ना नहीं चाहती है,इसीलिए नाटक करती है.-उसके पिता बोले.
और यदि वो सच बोल रही हो तब..?-मै उनकी आँखों में झांकते हुए पूछा.
वो कुछ न बोलकर नीचे सिर झुका लिए.मेरी बात का कोई जबाब उनके पास नहीं था.
मै उन्हें समझाया-जानते हो..बच्चो का यौनशोषण करने वाले ज्यादातर रिश्तेदार,मित्र और पडोसी ही होते हैं.कल को कोई अप्रिय घटना घाट गई तब क्या करोगे ? किसी पर आँख मूंदकर कभी विश्वास मत करो.जितनी देर तक बच्ची ट्यूशन पढ़ती है,उतनी देर तक कोई न को उसके साथ बैठे,ताकि ट्यूशन पढ़ाने वाले की हिम्मत न हो कि बच्ची से कोई छेड़खानी कर सके.जाओ जाकर छानबीन करो कि इस मेल में सच्चाई क्या है ?
मैंने अनंता के सिर पर हाथ रखा और बोला-बिटिया,अब आगे वो छेड़खानी करे तो तुरंत चिल्लाना शुरू कर देना.रोना नहीं..डरना नहीं..ऐसे राक्षस जीवन में तुम्हे बहुत से मिलेंगे.तस्वीरों में माँ दुर्गा देखो कैसे राक्षसों का वध करती है.तुम्हे भी माँ दुर्गा की तरह बहादुर बनना होगा.मरने की बात कभी मन में मत लाना.ये कायरों की सोच है,बहादुरों की नहीं.कोई भी ऐसी बात हो छुपाना मत.घर कोई न सुने तो मुझसे कहना,मै तुहारे साथ हूँ.
अब अनंता आश्वस्त और सामान्य लग रही थी.वो लोग चले गए.मै भी अपने कार्य में व्यस्त हो गया.
दो दिन बाद अनंता और उसके माता-पिता मेरे पास पहुंचे.आज अनंता बहुत खुश थी.सब लोग जब पास आकर दरी पर बैठ गये तब हंसती मुस्कुराती हुई अनंता की तरफ देखते हुए कहा-आज अनंता बहुत खुश है.क्या हुआ इसकी दिक्कत दूर हुई ?
हाँ,गुरूजी,कल शाम को जब संतोष पढ़ा रहा था तो छिपकर मैं देख रहा था.जैसे ही वो इसके कपड़ों के भीतर हाथ डाला,इसने संतोष का हाथ पकड़ चिल्लाना शुरू कर दिया-माँ..पापा…दौड़कर मै गया और उसका हाथ पकड़ बिटिया के कपड़ों से बाहर खीचा और दो तमाचा कस के उसके गाल पर जड़ दिया.सारी मास्टरी भुला दी उसकी.उसे खीचकर घर से बाहर लाया और थाने ले जाने लगा तो रोने लगा और मेरा हाथ पैर जोड़ने लगा.मुहल्ले के कई लोग इकट्ठा हो गये.शोर सुनकर संतोष के घरवाले भी आ पहुंचे.सब बात जानकर सब लोग उसे धिक्कारने लगे.अंत संतोष के घरवालों की विनती पर उसे चेतावनी देकर छोड़ा गया.-अनन्त के पिता पूरी घटना बयान किये.
गुरूजी,सच कहा था इसने.कल मास्टर साहब रंगे हाथों पकडे गए.खूब छीछालेदर हुई उनकी-अनंता की माँ बोली.
तुम तो आपनी बेटी को ही दोष दे रही थी.कई थप्पड़ भी मारा था तुमने उसे.-मै अपनी नाराजगी जाहिर किया.
गलती हो गई गुरूजी.अब आगे से ध्यान रखूंगी.दरअसल संतोष पर हमें बहुत ज्यादा बिश्वास था.मैंने कभी नहीं सोचा था कि हमारा रिश्तेदार होकर हमें धोखा देगा और रिश्ते में लगने वाली अपनी ही बहन को छेड़ेगा.-अनंता की माँ को अपनी गलती बहुत पछतावा था.वो बार बार बेटी कि तरफ देखती थी,मानो क्षमा मांग रही हो.
अपनी बेटी पर विश्वास करना सीखो.माँ को तो सबसे पहले अपनी बेटी की बात सुनना चाहिए और उस पर गौर भी करना चाहिए.-मैंने अनंता की माँ को समझाया.
(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)
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