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शर्माजी सदैव हमारे बीच जीवित रहें (कहानी) जागरण जंक्शन फोरम

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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इस कहानी के बारे में=हमारे आसपास बहुत सी घटनाये घटती रहती है.एक घटना जिसने मेरे जीवन को बहुत प्रभावित किया,उसे मै कहानी के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ.ये कहानी श्रद्धांजलि के रूप में शर्माजी को समर्पित है.शर्माजी जैसे लोगों की इस देश को बहुत जरुरत है.इसीलिए शर्माजी सदैव हमारे बीच जीवित रहें.
सुबह के समय छत पर टहलते हुए घर से थोड़ी दूर पर स्थित कूड़ा खाना की तरफ देखा.कूड़े का ढेर के पास जमीन पर बैठकर शर्मा जी कूड़ा बीनने वाले दो छोटे बच्चों को कुछ समझाते दिखे.दस बारह साल के मैले-कुचैले कपडे पहने एक लड़का और एक लड़की उनकी बातें ध्यान से सुन रहे थे.थोड़ी देर बाद एक लकड़ी से जमीं पर कुछ लिखकर बच्चों को पढ़ा रहे थे.शर्मा जी के पास दो सड़क छाप कुत्ते भी बैठे थे,जिनके खाने पीने से लेकर नहलाने धुलाने तक सारी सेवा व्यवस्था शर्मा जी करते थे.कूड़े खाने के पास ही शर्मा जी का घर है.जिसमे अपने बहू और बेटे के साथ रहते हैं.साल भर पहले परिवहन विभाग से रिटायर हुए है,जहांपर वो बस में कंडक्टरी करते थे.एक दिन वो सत्संग सुनने आये और व्यवहारकुशलता और भगवान के इतने बड़े प्रेमी निकले कि पहली मुलाकात में ही दोस्ती हो गई.सबमे प्रभु को देखना और सबको प्रभुजी कहना उनके व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता है.कुत्ते और बिल्ली तक को प्रभुजी कहना कोई उनसे सीखे.
प्रभुजी आप कहाँ हैं ?
उनकी आवाज़ से ही मै समझ गया कि शर्मा जी हैं-आइये शर्मा जी,गेट खोलकर चले आईये.
हाथ जोड़े हुए वो घर के अंदर घुसे.मैंने उनसे कुर्सी पर बैठने का आग्रह किया.
प्रभुजी,सुबह आप कूड़ा बीनने वाले बच्चों को कुछ समझा रहे थे.क्या उन बच्चों से कोई गलती हुई थी ?-मै पूछा.
नहीं प्रभुजी ऐसी कोई बात नहीं.मै उन्हें समझा रहा था कि बच्चो तुम्हे कूड़ा बीनने की बजाय स्कूल जाना चाहिए.शिक्षा प्राप्त करना चाहिए.और वो बच्चे मुझे समझा रहे थे कि उनके घर की हालत बहुत ख़राब है.माँ-बाप बीमार हैं.यदि वो कूड़ा बीनकर कुछ कमाएंगे नहीं तो खायेंगे क्या ?घर कैसे चलेगा और माँ बाप का ईलाज कैसे होगा ?-शर्मा जी बहुत चितित होकर बता रहे थे.
हम लोग इन बच्चों के लिए क्या कर सकते हैं ?-मै शर्मा जी कि तरफ देखने लगा.
शर्मा जी बड़ी दृढ़ता से बोले-प्रभुजी,मैंने तय कर लिया है कि इन बच्चों को कल से मै पढ़ाउंगा.
मगर कहाँ पढ़ाएंगे ?
वहीँ,जहाँ बच्चे कूड़ा बीनते हैं.घर के बरामदे में बहू पढ़ाने नहीं देगी.वो तो इस पक्ष में ही नहीं है कि मै उन बच्चों को पढ़ाऊं.कहती है कि कूड़ा फेंकने वाले बच्चो को पढ़ाने से सारे मोहल्ले में हमारी बदनामी होगी.लेकिन मैंने भी तय कर लिया है कि उन बच्चों को पढ़ाउंगा जरुर,चाहे जो हो.अब दिक्कत ये है कि बच्चों को पढ़ाया कैसे जाये.बिना कापी-किताबों के जमीन पर लिखकर कितने दिन पढ़ाउंगा मै.मैंने अपने बेटे और बहू से कहा कि इन बच्चों की किताब कापी और पेन आदि खरीदने के लिए पांच सौ रूपये दे दो.इतना सुनते ही दोनों चिल्लाने लगे कि हमारे पास फालतू कामो के लिए पैसा नहीं है.-शर्मा जी इतना कहते कहते उदास हो गए.
आप को पैंशन मिलती है न ?-मैंने पूछा.
मिलती है पर बेटा-बहू सब ले लेते हैं.न दूँ तो घर से बाहर निकाल दें सब.जिस दिन पेंशन मिलती है बस उसी एक दिन दोनों का व्यवहार सही रहता है.पेशन के रुपए मेरे हाथों से लेते ही गिरगिट की तरह फिर से रंग बदल लेते हैं सब.काश मेरी पत्नी आज जीवित होती.वो अपने गहने बेच के मुझे रूपये दे देती थी और पूछती भी नहीं थी कि कहाँ खर्च करोगे ?-बोलते बोलते लगा की शर्मा जी रो देंगे.मै कुछ कहता तब तक चाय आ चुकी थी.
मैंने चाय का कप उनके हाथों में थमा मै घर के भीतर गया और पांच सौ का एक नोट लाकर उन्हें देते हुए कहा-शर्माजी,आप एक अच्छे कार्य के लिए विचार कर रहे हैं.मै भी इसमें अपना कुछ योगदान करना चाहता हूँ.
नहीं प्रभुजी नहीं.मै आप के रुपये नहीं लूंगा-शर्मा जी मना करते रहे,परन्तु मैंने उनके शर्ट की जेब में पांच सौ का नोट डाल दिया.अगले दिन सुबह छत पर टहलते हुए कूड़ा खाना की तरफ देखा तो वहाँ शर्मा जी जमीन पर बैठकर दोनों बच्चो को पढ़ा रहे थे.उनकी भगीरथ तपस्या देखकर बहुत ख़ुशी हुई.
दिन में प्रात:लगभग दस बजे शर्मा जी आये.एक हाथ में एक पोलिथिन बैग लिए हुए,जिसमे रोटियां दिखाई दे रही थीं.वो राम राम करते हुए भीतर आये.पॉलीथीन बैग गेट के पास रख भीतर आ गये.
शर्माजी,उस पोलिथिन बैग में क्या है ?-मैंने पूछा.
बासी रोटियां हैं प्रभुजी,मोहल्ले में सुबह के समय घर-घर जाकर इकट्ठी कर लेता हूँ.अब जाकर अपने प्रभुजी लोगों को भोग लगाऊंगा.मेरे प्रभुजी लोग सब खा लेते हैं,ये कोई विदेशी थोड़े ही हैं,जिन्हे दूध,ब्रेड और मीट चाहिए.-शर्मा जी ने ये कहते हुए जेब से कुछ रुपये और एक पर्ची निकालकर मेज पर रख दिया.
ये सब क्या है शर्मा जी ?
बच्चो के लिए किताब-कापी-पेन ४३५ रपये का ख़रीदा है,बाकी बचे ६५ रुपये और खरीद की ये पर्ची है.प्रभुजी,मै आप का दिल से आभारी हूँ.-वो हाथ जोड़ दिए.
क्यों आप मुझे शर्मिंदा करते हैं.ये रुपये रखिये उन बच्चों पर ही लगा दीजियेगा.-मैंने कहा.
नहीं प्रभुजी,अभी फ़िलहाल मेरा काम चल जायेगा.-वो जाने लगे.
बैठिये,एक कप चाय हो जाये.-मैंने उन्हें रोकना चाहा.
नहीं प्रभुजी,अब जाने दीजिये.मेरे भगवान लोग भूखें हैं.कल रात को उन्हें नहीं के बराबर खाना मिला.दो रोटी में तीन लोग खाना खाये और पानी पी-पी के पेट भरा.-वो हंसने लगे.
दो रोटी में आप लोग सपरिवार खा लिए.?-मैंने आश्चर्य से पूछा.
प्रभुजी,मुझे घर में सब गिन के मिलता है.सुबह-शाम एक एक कप चाय और दो-दो रोटियां.पहले सुनह-शाम चार-चार रोटियां मिलतीं थीं तो एक-एक रोटी अपने प्रभुजी लोगों को खिला देता था.अब बहु कहती है-इन्हे चार रोटियां देने से फायदा क्या है,दो रोटी खाते हैं और दो कुत्तों को खिलाते हैं,इसीलिए अब दो ही रोटियां सुबह मिलेंगी और दो ही रोटियां शाम को.”-शर्माजी,गम्भीर हो गये थे.
शर्माजी,आप वास्तव में सच्चे साधू हैं,दो रोटी भी बाँट के खाते हैं.-मैं भावुक हो गया था.
प्रभुजी,सच्चा साधू हूँ की नहीं,ये तो मुझे पता नहीं,परन्तु जब मै प्रभुजी लोगों को खिला के खाता हूँ तो एक रोटी खाकर और ठंडा पानी पीकर भी पेट भर जाता है.दोनों प्रभुजी,आधा-आधा रोटी खाते हैं,ठंडा पीते हैं,और फिर हम तीनो मिल के भगवान की चर्चा करते हैं.मै उन्हें समझाता हु की आप लोग खोटे कर्म करके श्वान योनि में आ गए हैं,अब अच्छे कर्म करके और भगवान का भजन करके पुन:मनुष्य योनि में जाएँ,यही आपकी उन्नति है.आप से दिल की बात कहूं ऐसा करके बहुत शांति मिलती है.-वो जाने के लिए बासी रोटियों से भरा पोलिथिन बैग उठाने लगे.
आपकी बात समझते हैं सब ? जो मनुष्य योनि में हैं वो तो खोटे कर्म करते हुए भी कहाँ चेत रहे हैं ? आप की फिलोसफी के अनुसार तो वो सब लोग अगले जन्म में कुत्ता बनने की तैयारियों में जुटे हुए हैं.-मै पूछा
प्रभुजी,आप बहुत डीपली चले जाते हैं.मुझे मनुष्यों का तो पता नहीं पर मेरे प्रभुजी लोग मेरी बात खूब अच्छी तरह से समझते हैं,और पूंछ हिलाकर,सिर हिलाकर अपनी सहमति भी प्रदान करते हैं.अब चलूँ प्रभुजी,मेरे भगवान लोग इंतजार कर रहे होंगे.-शर्मा जी चले गए.
दिन बीतने के साथ-साथ धीरे-धीरे बच्चो कि संख्या बढ़ने लगी.कूड़ा बीनने वाले कई बच्चे और उनके ओपन स्कूल से जुड़ गए.एक दिन मै छत से देखा कि शर्मा जी चार बच्चो को जमीन पर बैठाकर पढ़ा रहे हैं और उनके दोनों प्यारे कुत्ते भी वहीँ जमीन पर बैठकर दुम हिला रहे हैं.शर्मा जी के हाथ में कांच का टुकड़ा जैसा दिख रहा था जिसमे से देखकर किताब पढ़ते थे और फिर कापी में कुछ लिखवाते थे.मै समझ गया कि ये उनके नजदीक के चश्मे का शीशा ह.आँखों पर उनके चश्मा नहीं था,जबकि वो पढ़ते-लिखते समय नजदीक का चश्मा लगाते थे.मुझे महसूस हुआ कि हमेशा नेक काम में लगे रहने वाले शर्मा जी परेशानी में हैं.उनकी कुछ मदद करनी चाहिए.मै छत से नीच आया हवाईचप्पल पैरो में डाल चल पड़ा.कूड़ेखाने के नजदीक पहुंचा,शर्माजी मुझे देखते ही उठ खड़े हुए-प्रभुजी,आप यहाँ ?फिर बच्चो से बोले-बच्चो खड़े होकर हाथ जोड़कर स्वामीजी को प्रणाम करो.
चारो बच्चे पढ़ना-लिखना छोड़कर खड़े होकर हाथ जोड़ दिए.मैंने आशीर्वाद दिया और उन्हें बैठकर पढ़ने के लिए कहा.बच्चे फिर से बैठकर पढ़ने-लिखने लगे.
मै शर्माजी से बोला-सोचा आज आप का ओपन स्कूल नजदीक से देख लूँ.आज आप ऐनक का शीशा हाथ में लेकर पढ़ा रहे हैं.आप की ऐनक टूट गई है क्या ?
टूटी नहीं है प्रभुजी,बल्कि तोड़ दी गई है,ताकि मै इन बच्चों को न पढ़ा सकूँ.मेरे बेटे और बहू की साजिश है ये.मेरा चश्मा तोड़कर बरामदे में मेरी सोने वाली चौकी के नीचे उन दोनों ने फेंक दिया था.-शर्माजी कुछ आवेश में थे.
मै आप का चश्मा बनवा देता हूँ.आप चश्मे वाले दूकान पर जाकर नया चश्मा बनवा लीजिये,मै उनसे फोन पर बात कर लेता हूँ.-मै बोला.
नहीं प्रभुजी,मै बनवा लूंगा.एक दूकानदार से मेरी बात हुई है.वो मेरा चश्मा बनवा देगा,बदले में उसकी कुछ मदद कर दूंगा.-शर्मा जी मेरी मदद नहीं लेना चाहते थे.मैले कुचेले कपडे पहने और अपने साथ गन्दा सा प्लास्टिक बोरा लिए लिखने पढ़ने में लगे चारों बच्चों को मै देखा.बच्चो में सबसे छोटी लगभग आठ साल की एक बच्ची थी.उसके दायें हाथ पर चोट लगी थी.मै उसके पास बैठकर पूछा-बीटा,ये हाथ में चोट कैसे लगी है.
वो लड़की मेरी तरफ देखते हुए बोली-दो दिन पहले एक के घर के सामने कूड़ा बीन रही थी.उन्होंने मुझे पकड़कर डंडे से मारा और घर में घुसकर चोरी करने का झूठा आरोप लगाया.
प्रभुजी,संयोग से मै हंस नगर कालोनी से गुजर रहा था.एक घर के बाहर भीड़ देखा तो जाकर सब जानकारी ली और इस बच्ची को छुड़ाया.मैंने बहुत डांटा उनको.ये बच्ची वाकई निर्दोष थी.अगले दिन पता चला कि इस बच्ची को बुरी तरह से पीटने वाला उस घर का लड़का ही चोरी किया था.वो नशा करता है और नशा करने के लिए अपने घर और मोहल्ले में चोरी करता है.
बहुत दुखद है.-मै इतना ही बोल सका.
प्रभुजी,इन बच्चो का ऐसे ही शोषण होता है.पुलिस भी इन गरीब बच्चो का साथ नहीं देती है.देखिय वो बड़ी वाली लड़की जो बारह साल की है,उसे कुछ रोज पहले बहला फुसलाकर फ्री में प्लास्टिक की बोतले देने के लिए दो बदमाश लड़के घर के भीतर खिंच ले गए,वो इसे एक कमरे में बिठा दारु पीने लगे.ये उनकी खराब नियत समझ गई और दोनों को चकमा देकर भाग निकली.
मै कुछ बोल नहीं पा रहा था.क्या बोलू इंसान गिरता ही जा रहा है.पता नहीं और कितना गिरेगा ?तभी जमीन पर बैठा एक कुत्ता उठा और लंगड़ाते हुए चलने लगा.मैंने उसकी तरफ ईशारा कर पूछा-शर्माजी,इसकी टांग में क्या हुआ है.लंगड़ा क्यों रहा है ?
आप ने गुप्ता जी के लड़के देव को वैशाखी लेकर लंगड़ाते हुए चलते देखा है ?
हाँ,देखा तो है,मगर इससे क्या सम्बन्ध है ?
प्रभुजी,एक हफ्ता पहले उसी ने इसकी टांग पर डंडा मारा था.मैंने उसी समय उसके मुंह पर कह दिया था-तूने मेरे प्रभुजी,की टांग तोड़ी है,तुझे इसका फल जरुर मिलेगा.और दूसरे दिन ही सड़क पर एक्सीडेंट हुआ और उसकी टांग टूट गई.उसे अपनी करनी का फल मिला.-शर्मा जी गुस्से से बोले.
जाने दीजिये,आप साधू हैं,ऐसा न बोला करें.देव में भी आप के प्रभुजी विराजमान हैं.-मै शर्माजी को समझाया.
शर्माजी तभी घडी में समय देख बोले-बच्चो,अब चलो काम पर.अब स्कूल की छुट्टी हो गई.
बच्चे अपना अपना कापी किताब और पेन समेट शर्मा जी को पकड़ा दिए और हाथ जोड़कर नमस्ते कर कूड़ा बीनने के लिए कूड़ाखाना की तरफ भागे.उन्हें कूड़ा बीनते देख मै बोला-शर्माजी,इन बच्चो के लिए एक स्कूल होना चाहिए,जिसमे ऐसे बच्चे रहें भी और पढ़ें भी.हमारे देश का भविष्य कूड़ा बीन रहा है.देश चलने वाले नेताओं को शर्म से चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए.क्या खाक देश चला रहे हो.देश की तरक्की का ढिंढोरा पीटते हो,आँखे खोल के अपने आसपास जरा देखो.देश का भविष्य कहीं पर कूड़ा बीन रहा है तो कहीं पर नौकरी के लिए दर दर भटक रहा है और कही पर देश की होनहार प्रतिभाएं देशसेवा का मौका न मिलने से निराश होकर देश छोड़कर विदेश जाने की तयारी में हैं.
प्रभुजी,कूड़ा बीनने वाले इन बच्चो के लिए स्कूल खोलने का मेरा भी सपना है.पर क्या करूँ मेरे पास कोई साधन नहीं है.स्कूल खोलने की बात तो दूर रही मेरे पास अपनी दवा कराने के लिए भी रुपये नहीं हैं.-शर्मा जी अपने सीने पर हाथ फेरने लगे.
क्या हुआ है आप को ?
वीपी बढ़ गया है.सीने में दर्द भी रहता है.डॉक्टर कहते हैं कायदे से जाँच करा लो.कायदे से जाँच कराने के लिए कायदे से रूपये भी चाहिए.हर जाँच में इनका कमीशन बंधा रहता है,तभी तो इतनी जांचे लिखते हैं.मैंने बेट-बहू से बात की,वो कहते हैं की आप को सिर्फ भ्रम है,कुछ नहीं हुआ है.अच्छी-खासी सेहत है और अच्छा-खासा खा पी रहे हैं.-शर्माजी रुआंसे हो उठे.उनकी आँखे नाम हो आईं
आप कहें तो मै आप की कुछ मदद करूँ.बहुत से डॉक्टर भी मेरे परिचित के हैं.जाँच में लगभग आधा पैसा ही लगेगा.उसकी व्यवस्था भी मै कर दूंगा.-मै बोला
प्रभुजी,मै कल दस बजे आप के पास आउंगा.आप की मदद जरुर लूंगा.-शर्माजी हाथ जोड़ आगे बोले-प्रभुजी आज्ञा हो तो इन बच्चों की कुछ मदद कर दूँ.आज पढ़ाते-पढ़ाते बहुत देर हो गई है.शर्माजी कूड़ा बीनते बच्चों की तरफ बढना चाहे.
हाँ,जरुर.एक बात और कहनी थी आपसे.अब दीवाली के बाद से रात में थंड शरू हो गई है.इन बच्चों के लिए कम्बल मेरे पास आकर ले लीजियेगा.-मै भी हाथ जोड़ दिया.
जरुर प्रभुजी,कल सुबह मै आउंगा.-शर्मा जी मुझसे विदा ले कूड़ेखाने की तरफ बढे,जहाँ बच्चे कूड़े में अपने काम की चीज बीन ईहे थे.कूड़ेखाने की सड़ी-गली बदबू मेरे पास तक आ रही थी.शर्मा जी चारों बच्चो के मिलकर कूड़ा में प्लास्टिक और शीशे की बोतलें ढूंढने लगे.
मै घर वापस आ गया.अगले दिन शर्माजी आये,वो बहुत जल्दबाजी में थे,कही जरुरी काम से उन्हें जाना था,इसीलिए बैठे भी नहीं,चार कम्बल लिए और धन्यवाद देते हुए चले गए.
अगले दिन सुबह मै छत पर टहलने गया तो देखा कूड़ेखाने के पास आज कोई नहीं है,न शर्मा जी, न बच्चे.और न ही शर्माजी के दोनों प्रभुजी.तभी मेरी नज़र शर्मा जी के घर के बाहर जमा भीड़ पर पड़ी.स्त्रियों की रोने की आवाजें आ रही थीं.शर्मा जी के पाले हुए दोनों कुत्ते अजीब ढंग से भोंक रहे थे.कूड़ा बीनने वाले चारों बच्चे एक बुजुर्ग आदमी के साथ खड़े होकर रो रहे थे.मै समझ गया की कुछ दुखद घटा है.छत से उतर बिना चप्पल पहने ही मै शर्माजी के घर की तरफ भागा.घर के पास पहुँच भीड़ के बीच दायें-बाएं होते हुए घर के अंदर बरामदे में पहुंचा.शर्माजी का मृत शरीर जमीन पर पड़ा था.मेरे दिए हुए चारो कम्बल चौकी पर विखरे पड़े थे.लोग चर्चा कर रहे थे-रात को दिल का दौरा पड़ा और चल बसे.
ठण्ड से शरीर का खून जमता चला गया,सारा शरीर देखो कैसे अकड़ गया है.
चार-चार कम्बल ओढ़े थे.बेटा-बहु घर का सब कम्बल ला के ओढ़ा दिए थे.शर्मा जी का कितना ख्याल रखते थे.
शर्माजी के बेटा बहू और नजदीक के कुछ रिश्तेदार दहाड़े मर मर कर और छाती पीट पीट के रो रहे थे.
मेरी नज़र तभी खूंटी पर टंगे सफ़ेद रंग के पोलिथिन बैग पर गई,जिसमे पड़ीं सूखीं रोटियां दूर से ही झलक रहीं थीं.कुछ हरी मिर्च और दो प्याज भी उसमे थी.तभी चौकी के नीचे मेरी नज़र गई,प्याज के छिलके और कई दिन की सुखी रोटी के कुछ टुकड़े बिखरे थे.चौकी के पास ही एक घड़े में पानी रखा हुआ था.घड़े के ऊपर स्टील का एक गिलास रखा हुआ था.
मेरे मन में उथल-पुथल होने लगी-इसका मतलब तो ये है की शर्माजी कई दिनों से मुहल्ले भर की इकट्ठी की हुईं सुखी रोटियां खा रहे था,अपने घर से उन्हें खाना मिलना बंद हो गया था.मुझसे भी झूठ बोले.कुत्तों के नाम से मोहल्ले भर से सुबह रात का बचा बासी खाना बटोरते थे और अपने दोनों कुत्तों को तो खिलाते ही थे,वही खाना खुद भी खाते थे.मेरी आँखे आंसुओं से धुंधली होने लगी.मै हाथ जोड़ा उनके अंतिम दर्शन किया और बस इतना ही बोल सका-प्रभुजी..!मै शर्मा जी के घर से बाहर आ गया.कूड़ा बीनने वाले चारो बच्चे रो रहे थे.दोनों कुत्ते रह रह कर भौंकने लगते थे.एक बुजुर्ग बच्चो को समझा रहे थे-क्यों रोते हो..मै हूँ न.वो अपने आंसू भी पोछते जा रहे थे.,
मै बच्चो के पास आ कर जैसे ही रुका,वो चारो बच्चे मुझसे लिपटकर रोने लगे-पापा कहाँ चले गए..पापा..!
बुजुर्ग व्यक्ति छड़ी के सहारे धीरे-धीरे चलते हुए मेरे पास आ गये-वो आश्रम वाले स्वामीजी..आप ही है न.शर्माजी आपकी हमेशा चर्चा करते थे.
हाँ,मगर आप ? मै उनकी तरफ देखते हुए पूछा.
मै उनका मित्र हूँ.कल मेरे पास शर्मा जी आये थे.इन चारों बच्चों को पढ़ाने की और इन दोनों कुत्तों को पालने की जिम्मेदारी मुझे अब मुझे सौपना चाहते थे.-वो बच्चों के सिर पर हाथ फेरने लगे.
मगर आप कैसे पढ़ाएंगे इन बच्चों को ? इस उम्र में आप को दिक्कत होगी.-मै उन्हें देखने लगा.
मै विकास नगर कालोनी में रहता हूँ.वहीँ पर मेरा दसवी तक का स्कूल भी चलता है.ये बच्चे मेरे स्कूल में निशुल्क शिक्षा ग्रहण करेंगे.मै कोशिश करूँगा की इन्हे हर महीने एक निश्चित छात्रवृति मिले,जिससे इनके घर का भी खर्च चलता रहे.और इन दोनों कुत्तों को मै अपने घर रखूँगा.मेरे यहाँ दो कुत्ते हैं,ये भी दोनों वहाँ रह लेंगे.वो अपनी आँखे पोछते हुए बोले.
मै सबसे विदा ले घर आ गया.अपनी डायरी के पन्ने खोला और लिखा-“इंसान और इंसानियत को जीवित रखने वाले शर्माजी सदैव हमारे बीच जीवित रहें.शर्माजी सदैव हमारे बीच जीवित रहें.”
(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

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