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भटकती आत्मा को देखा भाग-२ जागरण जंक्शन फोरम

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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MeghnaRiver
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अगले दिन मै अपने मित्र सुरेन्द्र यादव से मिला.चुन्नू की चर्चा चली तो वह बोला-भूत-प्रेत वास्तव में होते हैं.हमारे घर से थोड़ी दूर पर जो भारी पीपल का पेड़ है,जिस पर घट बंधाता है,वो कुछ दिन पहले तेज आंधी में गिर गया था.उसे सब प्रेत मिल के फिर से खड़ा कर दिए.
मै आश्चर्य से बोला-असम्भव सी बात है.
आँखों देखी बात है.चलिए मै चल के आप को दिखता हूँ.-वो मेरा हाथ पकड़ ख़त से उठ खड़ा हुआ.
सुरेन्द्र के घर से थोडा दूर आगे जाने पर पीपल का वो भारी पेड़ मिला,जिसे मैंने पहले अनेको बार देखा था.पेड़ के पास हमलोग पहुंचे देखा कि कुछ लोग घट में पानी डालने आये हैं.कई घट पीपल के भारी वृक्ष पर टंगे थे,जिनकी पेंदी में से बूंद-बूंद कर पानी चू रह था.मरने वाले की प्यासी आत्मा को पानी पिलाने के लिए लोग ऐसा करते हैं.बहुतों को ये अन्धविश्वास और अंधश्रद्धा लगता होगा.परन्तु मुझे लगता है कि ये सब भी यदि बच्चो के खेल की तरह भोलापन में हो तो जरुर महत्व रखता है,पीपल का भारी पेड़ लहलहा रहा था,उसकी जड़े देखने से उखड़ी हुई लग रहीं थीं,जैसे किसी पौधे को उखाड़ के गिरा दिया जाये और फिर से उसे खड़ा कर दिया जाये.
आंधी आयी तो क्या ये पेड़ उखड़कर जमीन पर गिर गया था,अगले दिन अपनेआप फिर उठ खड़ा हुआ.आश्चर्य की बात है.हजार आदमी मिल के भी इस भारी पेड़ को उठाकर खड़ा नही कर पाएंगे.-मै आश्चर्य से बोला.
जिसदिन ये पेड़ अपनेआप उठ खड़ा हुआ था,उसदिन यहाँ पर आसपास के दसों गाँवो के लोग ये तमाशा देखने के लिए इकट्ठा हो गए थे.ये सब कमाल इस पेड़ पर रहने वाले असंख्य प्रेतों का है.-सुरेन्द्र बोला.
मै भूत-प्रेतों के बारे में सच्चाई जानना चाहता हूँ.क्या मुझे ऐसे ओझा-सोखा के पास ले के चल सकते हो,जो पढ़ालिखा हो और इस विषय की अच्छी जानकारी रखता हो-मै अपने मित्र से बोला.
वो कुछ सोचते हुए बोला-ओझा सोखा तो बहुत हैं,परन्तु सब इन सब चीजों का धंधा करने वाले और नाटकबाज हैं.हाँ,एक पंडित जी हैं जो बहुत पढ़े-लिखे भी है,वो मास्टर थे,अभी कुछ माह पहले रिटायर हुए हैं.प्रेतों के मामले में बहुत सिद्ध हैं.मै उनके कई चमत्कार अपनी आँखों से देखा हूँ.मैं बराबर उनके पास जाता हूँ.
मैं ख़ुशी और उत्सुकता से बोला-चलो.चलो चलते हैं उनके पास.कहाँ रहते हैं वो ?
रहते तो वो ज्यादा दूर नहीं हैं.यहाँ से दो गांव आगे डीहपट्टी है,पंडितों का गांव है,उसी गांव में रहते है.परन्तु इस समय दिन में उनके यहाँ बहुत भीड़ होती है,इसीलिए ज्यादा बात नहीं हो पायेगी.शाम को चला जाये.मै शाम को पांच बजे आप के यहाँ आ जाता हूँ.तब तक घर से लेकर खेत तक के जरुरी काम भी निपटा लेता हूँ.-सुरेन्द्र अपनी भैसो की तरफ बढ़ा.नाद में भूसा डालने लगा.
उसकी व्यस्तता देखते हुए मै बोला-तुम अपना जरुरी सब काम निपटाओ,मै चल रहा हूँ.शाम को मुलाका होगी.और हाँ,घर में किसी को मत बताना कि हम लोग कहाँ जा रहे हैं ?
सुरेन्द्र हंसने लगा-हाँ,मै समझ गया.आप के नाना नानी जाने नहीं देंगे और आप के मामा जी यानि मास्टर साहब तो एक घंटे तक लेक्चर देंगे.
मै मामा जी के घर चला आया.शाम को पांच बजे सुरेन्द्र आया.हमलोग बाज़ार जाने का बहाना कर घर पैदल ही निकल पड़े.करीब आधा घंटा बाद दो गाँवो को पार कर डीहपट्टी पहुंचे.गांव से पहले डीह बाबा का एक मंदिर था.वहाँ एक चापाकल दिख रहा था.मुझे प्यास लगी थी.मैंने सुरेन्द्र से कहा-बहुत प्यास लगी है,आओ पहले पानी पी लिया जाये,फिर पंडित जी के यहाँ चला जाये.
हमलोग चापाकल के पास पहुंचे.मै पानी पिने को झुका,तभी मेरी नज़र डीहबाबा की चौकी पर चढ़ी हलुवा-पूड़ी पर गई.मै जाके हाथ जोड़ प्रणाम किया और हलुआ-पूड़ी उठा लाया.दो पूड़ी और आधा हलुआ सुरेन्द्र को दिया-लो,ये डीहबाबा का प्रसाद लो.अपने हाथ में लिया दो पूड़ी और हलुआ मै खाने लगा.हलुआ-पूड़ी दोनों ठन्डे थे,परन्तु आटे का बना हलुआ बहुत स्वादिष्ट लगा.
सुरेन्द्र हंसने लगा-आप की बचपन की आदत गई नहीं.देवी-देवताओ से तो कोई भय ही नहीं है.बचपन में तो चढ़ा हुआ हलुआ-पूड़ी खाने के साथ-साथ डीहबाबा पर चढ़ी मेटी और घूंची भी तोड़ दिया करते थे.
देवी-देवताओ से भय कैसा ?अच्छे कर्म करके और तप करके वो भी इसी लोक से गए लोग हैं.मुझे उनका कोई भय नहीं.इस संसार में जो कुछ भी है,सबकुछ उनका प्रसाद है.-मै बोला.
मैंने उसे बचपन ली याद दिलाते हुए कहा-मेरे हाथो का दिया वही चढ़ा हुआ हलुआ-पूड़ी तुम खाते थे और जाकर मेरे नाना-नानी से शिकायत भी करते थे-मै भी हंसने लगा,बबचपन के दिन याद आने लगे.डीहबाबा के मंदिर पर वो दखिनहिया की पूजा,पूजा करने आये पंडित जी को ये गीत गा-गाकर प्रेषण करना-
काली मईया करिया भवानी मईया गोर !
डीहबाबा लंगड़,पुजारी बाबा चोर !
पुजारी बाबा डंडा लेकर बच्चों को मारने दौड़ते थे,पर कोई बच्चा उनके हाथ नहीं आता था.याद आने लगा गांव की आरतों के द्वारा वहीँ बना के हलुआ-पूड़ी का चढ़ाया जाना,उनके जाते ही चढ़ाये उए हलुआ-पूड़ी को खाने के लिए बच्चो का डीहबाबा की चौकी पर टूट पड़ना और इसी जंग में मिटटी की बनी मेटी और घूंची का टूट फुट जाना घर शिकायत पहुँचने पर बुजुर्गों से डांट खाना सबकुछ याद है.
हम दोनों पानी पी कर गांव में प्रवेश किये.सुरेन्द्र आधी मिटटी का और आधी ईंट के पक्का बने एक मकान में ले गया.मकान के बाहर बरामदे में दो खाली चौकियां पड़ीं थीं.उस समय कोई वहाँ पर नहीं था.
आप बैठिए मै भीतर जा के पूछता हु कि पंडित जी कहाँ हैं ?दरवाजा खुला हुआ था,वो भीतर चला गया.कुछ देर बाद वो एक बुजुर्ग पंडित जी के साथ घर से बाहर निकला और मेरा परिचय कराया-ये रसूलपुर गांव के तीर्थराज मास्टर साहब के भान्जे हैं.
मै उठकर उन्हें प्रणाम किया.वो मेरे सिर पर हाथ रख बोले-तीर्थराज के भान्जे हो,तीर्थराज तो मेरा पुराना मित्र है.नाम और परिचय जानने के बाद वो बोले-और बताएं कैसे आना हुआ और मै आप की क्या सेवा कर सकता हूँ ?उन्होंने गुड पानी लाने के लिए भीतर आवाज़ लगाई.मेरे सामने की चौकी पर जब वो बैठ गए तो मै बोला-मास्टर साहब,मै आप से प्रेतों के बारे में जानना चाहता था.क्या वाकई प्रेत होते है ?यदि होते हैं तो वो किस रूप में होते हैं ?विज्ञानं के अनुसार शरीर छोड़ने के बाद जीवन तभी सम्भव है जब पंचभूतों से बना ये भौतिक शरीर हो.मै इन सब प्रश्नो का सही जबाब पाने को बहुत उत्सुक हूँ.आप से आग्रह है की मेरी जिज्ञासाओं का समाधान करें.
मास्टर साहब हंसने लगे-यही सुरेन्द्र आप को मेरे बारे में बताया होगा.मै पढ़ा लिखा मास्टर आदमी इन सब में बातों में कभी यकीन नहीं करता था.लेकिन आज से बीस साल पहले जब मेरी मेरी पत्नी की जब तबियत ख़राब थी और कोई दवा असर नहीं कर रही थी,तब उसके बहुत कहने पर मै उसे दो तीन ओझा लोगों के पास ले जाकर दिखया था.कुछ तो ओझा होने का खाली ढोंग रचे थे.दो ओझा जब भूत भगाने के नाम पर मेरी मेरी पत्नी को मारने लगे तब उनसे मेरी खूब कहा-सुनी भी हो गई थी.यहाँ तक की उनसे मेरी मारपीट भी हो गई थी.मै जब ओझासोखा से निराश हो गया तो उसी समय एक दिन एक बाबा जी का पता चला,जो पास के ही एक गांव में आये थे.मै उन्हें आदर सहित अपने घर लाया.अपना सब दुखदर्द उन्हें बताने के बाद बिस्तर पर पड़ी अपनी पत्नी को मैंने दिखाया.वो कुछ देर तक मंत्र पढ़ते रहे,फिर थोडा सा जल छिड़क बोले-बुरी आत्मा का जो कुप्रभाव था वो मैंने दूर कर दिया.कल सुबह तक ये ठीक हो जायेगी.वाकई अकेले दिन सुबह जब मेरी पत्नी उठी तो वो बिलकुल ठीक थी.उसने बाबा जी को अपने हाथों से खाना बनाकर खिलाया.वो वर्षों जीवित रही और बिलकुल स्वस्थ रही.वो जबतक जीवित रही,तब तक बाबा जी की अनन्य भक्त रही.मै बाबा जी का भक्त बन गया.मै प्रेतों के बारे में सच जानना चाहता था.मेरे बहुत आग्रह करने पर उन्होंने एक मंत्र दिया,जिससे मुझे प्रेतों का दर्शन हुआ.भूत-प्रेत भगाने का भी उन्होंने मंत्र मुझे दिया.उसी मंत्र को सिद्ध कर मै लोगों का भला कर रहा हूँ.अब आप के सवालों का जबाब देता हूँ.आप ने पूछा है की क्या वाकई भूत-प्रेत होते हैं और यदि होते हैं तो किस रूप में होते हैं ?
इंसान की मृयु के बाद और उसके द्वारा अगला जन्म लेने से पहले तक का समय प्रेतयोनि कहलाती है.गीता के अध्याय २ श्लोक २२ में इसका वर्णन है-
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न्यन्यानि संयाति नवानि देही ।।
इसका अर्थ है की-जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर दूसरे नये वस्त्रों को धारण करता है,वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीर को छोड़ने के बाद दूसरे नये शरीर को धारण करती है.पंचभूतों से बना शरीर छोड़ने के बाद जीवात्मा पंचभूतों के सूक्ष्म रूप से बना शरीर धारण करती है,जिसे भूत-प्रेत कहा जाता है.यहाँ पर भूत का अर्थ है-पंचभूतों के सूक्ष्म स्वरुप जैसे,गंध,रूप,रस,शब्द और स्पर्श आदि से बना सूक्ष्म शरीर और प्रेत यानि जीवात्मा.प्रेत जीवात्मा के रूप में सूक्ष्म शरीर होते हैं.यहाँ पर भौतिक शरीर के बिना भी जीवन चलता रहता है.
क्या प्रेत हम मनुष्यों को प्रभावित करते हैं.किसी व्यक्ति पर प्रेत का प्रभाव हो तो उसका क्या लक्षण है ?-मैंने पंडित जी से पूछा.
पंडित जी बोले-प्रेत मनुष्यों को प्रभावित करते हैं,परन्तु अधिकतर लोगो को केवल वहम होता है.मेरे पास रोज आने वाले सौ में से नब्बे लोगों को सिर्फ शंका रहती है.सौ में से मात्र दस प्रतिशत लोग होते है जो वाकई प्रेत प्रभाव से ग्रस्त होते हैं.जो लोग प्रेत प्रभाव से ग्रस्त होते हैं,उनके आँखों की खड़ी बरौनी से,पलक न झपकने से,हर समय शरीर के कांपने से,आग से डरने से,शरीर से बदबू आने से और सबसे बड़ी बात कुछ समय के लिए होशोहवाश खो देने से पता चल जाता है की व्यक्ति प्रेत प्रभाव से ग्रस्त है.बिना देखे नहीं बताया जा सकता है की व्यक्ति प्रेत से प्रभावित है या नहीं.
मेरे सवालों के जबाब मिल गए थे,परन्तु किसी प्रेत का दर्शन करने की बहुत इच्छा थी.मैंने पंडित जी से अनुरोध किया की आप मुझे प्रेतों के दर्शन कराने वाला वो मंत्र दीजिये.जो आप के गुरु जी ने आप को दिया था.पंडित जी थोड़ी देर नानुकुर करते रहे,परन्तु मेरे बहुत जिद करने पर मंत्र बताये,जिसे मै नोट कर लिया.उन्होंने ग्यारह दिनों तक रोज १०८ बार किसी एकांत स्थान में मंत्र जपने को कहा.
पंडित जी से बात करते हुए रात के सात बज गए थे.मेरा मित्र अब चलने का ईशारा करने लगा-रात हो चली है.अब चलिए,मुझे अपनी भैंस चल के दुहना है.फिर किसी दिन हम लोग आ जायेंगे.
आप लोग गुड पानी लें.पंडित जी गुड का कटोरा हम लोगो की तरफ बढ़ा दिए.
थोडा थोडा सा गुड लेकर हम दोनों ने पानी पिया और पंडित जी को प्रणाम कर वहाँ से अपने गांव रसूलपुर की तरफ चल पड़े.
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मैंने जिस भटकती हुई आत्मा को देखा था उसका वर्णन मैं-”भटकती हुई आत्मा को देखा भाग-३” में शीघ्र ही करूँगा.कृपया इंतजार कीजिये.एक निवेदन और करूँगा कि जिन चींजों पर करोडो लोगों की आस्था हैं,उसपर केवल आलोचना करने के लिए ही आलोचना मत कीजिये.इसे एक रिसर्च के रूप में लीजिये.स्वस्थ एवं सार्थक आलोचनाओं का स्वागत हैं.
(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

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