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मैंने भटकती आत्मा को देखा (सत्य कथा) जागरण जंक्शन फोरम

इस सत्यकथा के बारे में=ये मेरे जीवन की ऐसी घटना है,जिसे मै भूल नहीं सकता.मै जानता हूँ कि कई लोगों को ये कथा काल्पनिक और अन्धविश्वास से भरी हुई लगेगी.ज्ञानी और मनोवैज्ञानिक अपने ढंग से इसकी व्याख्या करेंगे.मुझे किसी भी आलोचना की परवाह नहीं है.मेरी आँखों से देखा जो सच है,उसे मै बयान कर रहा हूँ.मैंने जब उस भटकती हुई आत्मा को देखा तो अपने पूरे होश में था और आज जब उस घटना का बयान कर रहा हूँ तब भी पूरे होश में हूँ.
———————————————————————————————————————————————————————————————-उस समय मै सोलह साल का था और दसवीं प्रथम श्रेणी में उतीर्ण करने के बाद जुलाई के महीने में अपने मामा जी के गांव गया हुआ था.उन दिनों विज्ञानं में मेरी बड़ी रूचि थी.मन में न कोई भय और न कोई अन्धविश्वास था.गांव में बचपन के मेरे कई मित्र थे.मेरा एक मित्र है,जिसका नाम चुन्नू है.मुझे पता चला कि उसे किसी प्रेत ने पकड़ा हुआ है.मैंने अपनी नानी से कहा कि सब झूठ है.भूत-प्रेत कुछ नहीं होते हैं.मेरी नानी ने जाकर देखने को कहा.मै अपने मित्र को देखने गया.वो मुझे देखते ही दौड़कर आया और मेरे गले से लिपट गया.उसने ख़त बिछाई और उसपर दरी डाल दिया.
मैंने हँसते हुए पूछा-मैंने सुना है यार कि तुम्हे कोई प्रेत पकड़ लिया है.पर तुम तो ठीकठाक नजर आ रहे हो.ये सब क्या नाटक है ?पढ़े-लिखे आदमी हो.फिर ये नौटंकी क्यों कर रहे हो ?उसी साल वो भी दसवी पास किया था.
जब वो आता है तो मुझे होश नहीं रहता है.उसके जाने के बाद फिर होश में आ जाता हूँ.मुझे नहीं मालूम कि इस बीच में क्या होता है ?वो एकदम गम्भीर हो गया.
वो कब आएगा ?मै भी जरा देखूं कि वास्तव में तुम्हारी बात सही है या झूठ ?-मै बोला.
“वोकरी अइले क कौनो निश्चित समय नइखे अउर जब आ जाई त ई अंग्रेजी बूके लगिहें. (उसके आने का कोई निश्चित समय नहीं है.वो इसके ऊपर आएगा तो ये अंग्रेजी में बकने लगेगा)-उसका भाई मुन्नू भोजपुरी भाषा में बोला.
मै कुछ देर इन्तजार किया,परन्तु सबकुछ सामान्य रहा.मै खाट से उठते हुए बोला-इसको कोई भूत-प्रेत नहीं पकड़ा है.सब इसका वहम है.फिर उसके भी से मै बोला-जब वो प्रेत इसके ऊपर आये तो मुझे बुला लेना.मै घर चला आया.
शाम के समय मुन्नू मुझे बुलाने आया-जल्दी चलिए.भईया के ऊपर वो मास्टर जी वाला भूत आया हुआ है.
मै लगभग दौड़ते हुए उसके साथ उसके धर पहुंचा.मित्र के घर के बाहर दस बारह लोगों की भीड़ जमा थी.वो एक खाट पर बैठा हुआ अंग्रेजी में लेक्चर दे रहा था.अंग्रेजी भी इतनी कठिन कि मुझे भी समझने में मुश्किल हो रही थी.मेरा मित्र अंग्रेजी तो छोड़िये हिंदी भी ठीक से नहीं बोल पाता था.जो देख रहा था,उसपर मुझे विश्वास नहीं हो रहा था.मुझे कुछ घबराहट तो हुई,परन्तु हिम्मत कर मैंने पूछा-आप कौन हैं ?
मै मास्टर हरी नारायण सिंह,अंग्रेजी पढ़ाता हूँ.इसे ठीक करके रहूँगा.-मेरे मित्र के मुह से आवाज़ निकली.
इसके ऊपर आकर इसे क्यों परेशान किये हुए हैं ?-अपने दिल की बढ़ती धड़कनों पर काबू पाते हुए मैंने पूछा.
ये नहर के पास अपने खेत में पाखाना करते समय सभी मास्टरों को गाली दे रहा था.इसे सबक सिखाने के लिए मैंने पकड़ लिया.-मेरे मित्र के मुंह से आवाज़ निकली.तभी मेरे मित्र का भाई मुन्नू जोर से हंसने लगा.
ईडियट,दांत निपोरता है,बेहूदा कहीं का !मेरी छड़ी कहाँ हैं !-मेरे मित्र के मुंह से निकली आवाज़ बहुत रोबदार थी.मेरे मित्र का पूरा शरीर गुस्से के मारे कांप रहा था.
मैंने हाथ जोड़कर कहा-आप,मेरे मित्र को छोड़ दीजिये और उसके भाई को भी माफ़ कीजिये.
वो धीरे धीरे-धीरे शांत होने लगा.उसी समय उसके पिता एक ओझा को लेकर वहाँ पहुंचे जो लाल कपड़ों में लिपटा हुआ था,कंधे पर लाल रंग का झोला लटकाये हुए था और लम्बी सफ़ेद दाढ़ी रखे हुए था.ओझा मित्र की आँखे देखा,शरीर को छूकर देखा और फिर मित्र की ओर देखते हुए पूछा-कौन है बे तू ?
मित्र का हाथ अचानक उठा और खींचकर एक तमाचा ओझा के गाल पर जड़ दिया-कायदे से बात कर.मै मास्टर हरी नारायण सिह हूँ.मझवारा के स्कूल में पढ़ाता हूँ.पड़े बड़े ओझाओं को मैंने ठीक किया है.तुम क्या चीज हो.अभी परसों एक ओझा को ये ले के आया था,वो कमरे में ले जाकर दरवाजा अंदर से बंद कर मुझे झाड़ू से मारने लगा,जब मुझे गुस्सा आया तो बल भर उसे थुरा.अब यहाँ आने की हिम्मत नहीं करेगा.-मेरा मित्र गुस्से में दिख रहा था.
ओझा अपना गाल सहलाते हुए बोला-मास्टर ! अभी बताता हूँ तुझे.तू मुझे जानता नहीं है.मैंने बड़े बड़े भूत भगाए हैं,तू क्या चीज है ?अभी भागेगा तू !ओझा अपने ने झोले से कपूर और दिया निकाला और और कपूर जलाकर मित्र के चेहरे के चारो और घुमाते हुए गायत्री मंत्र पढ़ने लगा.मित्र के चेहरे प् गुस्से के भाव उभरने लगे.उसका हाथ हवा में उठा और कसकर एक तमाचा ओझा के गाल पर जड़ दिया-गलत ढंग से मंत्र पढता है.पहले ठीक ढंग से मंत्र का उच्चारण करना तो सीख ले.मैंने आजीवन गायत्री मंत्र का जप किया है.तू मेरे सामने गलत उच्चारण करता है.
ओझा बुरी तरह से भयभीत हो चूका था.अपना झोला उठाते हुए बोला-ये हमारे वश का रोग नहीं है.किसी और ओझा गुनी को दिखाओ.मित्र की माता ने हाथ जोड़ के पूछा-बाबा,इस बच्चे को माफ़ी दे दीजिये और बताइये कि आप कैसे जायेंगे ?
हमको मनहर ले चलो.इसे छोड़ देंगे और अब हम वही रहेंगे.-शांत स्वर में मित्र के मुंह से आवज़ आई.
ठीक है बाबा हम ऐसा ही करेंगे,जैसा आप चाहते हैं.-मित्र की माता हाथ जोड़े रहीं.कुछ देर बाद मेरा मित्र होश में आ गया,उसे कुछ भी याद नहीं था.पानी के झींटे मार उसकी माँ चेहरा धोई.वो आश्चर्य से गांव वालों को देख रहा था.उसे कुछ भी याद नहीं था.मैंने उसके भाई से पूछा-परसों कोई ओझा आया था क्या ?
हाँ,बड़ी मार खाया था..मार खाकर कमरे से बाहर निकलते ही यहाँ दर के मारे रुका नहीं सीधे अपने घर भाग गया.-मुन्नू हँसते हुए बोला.
पाता किया कि मझवारा के किसी स्कूल में हरी नारायण सिंह नाम के कोई मास्टर थे ?-मै उत्सुकता से पूछा.
अरे,उनके मारे तो दस साल हो गया.आजकल उसी में मै पढ़ा रहा हूँ न !-रामवचन यादव बोले.
मै पीछे मुड़ के देखा और चरण छूकर मास्टर साहब को प्रणाम किया.
खुश रहिये ! कब आये ?-मास्टर साहब हाथ में गोबर फेंकने वाली खचियां लिए थे.
आजकल पिताजी की पोस्टिंग कहाँ पर है ?
जी,जबलपुर में -जबाब देकर मै पूछा-मास्टर साहब ई आप भूत-प्रेत में यकीन करते हैं और क्या वाकई चुन्नू को कोई प्रेत पकड़ा है ?
यकीन करना ही पड़ता है.जो सच सामने प्रत्य्क्ष दिख रहा है,उसे कैसे झुठलाया जा सकता है.मास्टर साहब वहाँ से चल दिए.रत हो रही थी और मच्छर भी काट काट कर परेशान किये थे,इसीलिए मै भी अपने नानी के घर की तरफ चल दिया.
अगले दिन मुन्नू से पाता चला की घरवाले चुन्नू को लेकर मनहर गये हैं,जहाँ पर किसी बाबा की समाधी है और जहाँ पर जाकर भूत-प्रेतों से छुटकारा मिल जाता है.वाकई वहाँ जाकर मेरा मित्र चुन्नू ठीक हो गया.उसे पिछली कोई बात याद नहीं थी.
कुछ दिनों के बाद मैंने चुन्नू से मैंने अनुरोध किया कि मै मनहर का वो समाधी स्थल देखना चाहता हूँ,जहाँ जाकर तुम ठीक हुए थे,बहुत अनुरोध करने पर वो मान गया.हम दोनों साईकिल से एक दिन सुबह निकले.चार घंटे की यात्रा के बाद मनहर पहुंचे.मैंने समाधी स्थल को देखा.एकदम शांतिपूर्ण.बहुत से हरे भरे पेड़-पौधे और थोड़ो दूर पर एक सुंदर सा तालाब.मै सोचने लगा कितनी मनोरम और शांतिपूर्ण जगह मास्टर साहब ने अपने विश्राम के लिए चुनी है.यहाँ से जाने की इच्छा नहीं हो रही है.समाधी के पास लोगों की काफी भीड़ थी.न वहाँ कोई मौलवी था और न पुजारी.बहुत से औरत-आदमी मैदान में झूम रहे थे,कुछ देर झूमने के बाद नार्मल हो जाते थे.मै समाधी स्थल को हाथ जोड़कर प्रणाम किया.कुछ दूर जाने के बाद मै पीछे मुड़कर फिर हाथ जोड़कर प्रणाम किया.मेरा मित्र आश्चर्य से मेरी तरफ देखने लगा-अब किसे प्रणाम किये ?
मैंने अब उस मास्टर साहब को प्रणाम किया है,जो तुम्हारे ऊपर आते थे.-मै बोला.हम दोनों समाधिस्थल से बाहर आकर एक हलवाई की दुकान में गए.वहाँ पर पकौड़ी और जलेबी खाने के बाद वापस घर के लिए चल दिए.मै तब भी ये सोचता था और आज भी ये सोचता हूँ कि कुछ ज्ञानी लोग जिस भूत-प्रेत को अन्धविश्वास कहते हैं और उसे मानसिक बीमारी का नाम देते हैं.उसका ईलाज उनके पास तो नहीं है,परन्तु जो भुगत रहा हैं वो ईलाज का कोई न कोई न रास्ता भी ढूंढ लिया हैं.ज्ञानियों कि नज़र में वो अंधविश्वासी हैं और उन अंधविश्वासियों की नज़र में ज्ञानी किसी काम के नहीं,बस सारी सुख-सुविधाओं को भोगते हुए अपने घरों में कैद होकर गाल बजाते हैं.गांव के लोग कहते हैं कि ज्ञानी लोग सीधे गिलास से नहीं बल्कि लग्गी से पानी पिलाते हैं.
मैंने जिस भटकती हुई आत्मा को देखा था उसका वर्णन मैं-“भटकती आत्मा को देखा “(सत्यकथा भाग-२) में शीघ्र ही करूँगा.कृपया इंतजार कीजिये.एक निवेदन और करूँगा कि जिन चींजों पर करोडो लोगों की आस्था हैं,उसपर केवल आलोचना करने के लिए ही आलोचना मत कीजिये.स्वस्थ एवं सार्थक आलोचनाओं का स्वागत हैं.
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)