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“भटकती आत्माओं के प्रयोग” प्रस्तुत ब्लॉग के बारे में=प्रेत योनि में भटकती हुई आत्माओं को अपने वश में कर जहाँ एक ओर बहुत से तांत्रिक समाज के हित के लिए उनका सदुपयोग कर रहे हैं तो वही दूसरी तरफ बहुत से तांत्रिक अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए और दूसरों को नुकसान पहुँचाने के लिए उनका दुरूपयोग भी कर रहे हैं.कई सालों तक मैंने बहुत गहराई से इस विषय पर रिसर्च किया है,जिसे सार रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ.
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सन १९८९ में जब मै वाराणसी आया तो मेरी मित्रता राजेश पांडे जी से हुई.एक दिन जब हमदोनों के बीच प्रेतों की चर्चा चल रही थी तो बातों ही बातों में मैंने उनसे पूछा कि क्या आप वाराणसी में किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो प्रेतों को सिद्ध किया हो और जनता के हित में उसका प्रयोग कर रहा हो ?
राजेश जी ने हड़हासराय में रहनेवाले एक पंडित जी का नाम लिया और बोले-उन्होंने कई प्रेतों को अपने वश में कर रखा है.लोगों की भलाई के लिए वो उसका प्रयोग भी कर रहे हैं.वो प्रेतों के जरिये बता सकते हैं कि आप क्या सोच रहे हैं,आप क्या करते हैं और यहाँ तक कि आप की जेब में कितना पैसा है ?
मै उनसे पंडित जी के पास ले चलने को कहा.राजेश जी ने घडी देखी,जिसने शाम के चार बज रहे थे,वो उठते हुए बोले-चलिए,इस समय वो खाली होंगे.विधिवत बात हो जायेगी.
हमदोनों रिक्से से हड़हासराय पहुंचे.राजेश जी एक गली में ले गए.एक पुराने मकान के भीतर हमलोग प्रवेश किये.मकान के भीतर घुसते ही एक बड़ा हाल था.पूरे हाल में गद्दा बिछा था.एक बुजुर्ग पंडित जी अपने आगे एक छोटी सी मेज रख बैठे थे.उनका एक चेला आयुर्वैदिक दवा की पुड़िया बांध के दे रहा था.तीन लोग उसके सामने बैठे थे.
हमदोनों ने पंडित जी को प्रणाम किया और उनके सामने बैठ गये.राजेश जी ने पंडित जी से मेरा परिचय कराया.मैंने उनसे पूछा-क्या आप ने वाकई प्रेतों को सिद्ध कर रखा है ?
पंडित जी हंसने लगे,फिर एक छोटी सी हड्डी अपने कान से लगा बोले-आप किसी फूल का नाम सोचिये ?
मैंने चालाकी दिखाते हुए पहले गुलाब सोचा,फिर गेंदा सोचने लगा.वो हँसते हुए बोले-ये कह रहा है कि इन्होने पहले गुलाब सोचा अब गेंदा सोच रहे हैं.
राजेश जी बोले-इनके जेब में कितना पैसा है,जरा पूछिए.
पंडित जी फिर कान में हड्डी लगा बोले-पैंतालीस रुपया पचास पैसा है.
मैंने जेब से रूपये पैसे निकाल गिने,सब मिलाकर ठीक पैंतालीस रुपया पचास पैसा था.
उसी समय दो आदमी और एक औरत पहुंचे और पंडित जी का पैर छूकर बैठ गए.पंडित जी ने पूछा-कहो,क्या बात है ?
बाबा,पन्द्रह दिन हो गये हमारे लड़के का कुछ पता नहीं चल रहा है.-अधेड़ महिला रोने लगी.
उसका फोटो लायी हो ?पंडित जी ने पूछा.
महिला एक पासपोर्ट साइज़ फ़ोटो मेज पर रख दी.फ़ोटो देखते हुए कान में हड्डी लगा उन्होंने कुछ देर बातचीत की,फिर बोले-लड़का घरवालो से नाराज है.जौनपुर रेलवे स्टेशन पर बैठा है.चलो मै साथ चल के तुम्हारा लड़का दिलाता हूँ.मेरा किराया भाड़ा दे देना और जो इच्छा हो दक्षिणा दे देना.
वो लोग जाने के लिए उठ खड़े हुए.हमलोगों की तरफ देखते हुए पंडित जी बोले-आईये आपलोग फिर किसीदिन,इत्मीनान से बैठा जायेगा.वो प्रेम से हाथ जोड़ दिए.हमलोग भी हाथ जोड़ विदा लिए.
पंडित जी के यहाँ दो तीन बार जाने के बाद उनसे गहरी दोस्ती हो गई.प्रेतों के जरिये वो जो लोककल्याण कर रहे थे,उससे मै बहुत प्रभावित था.उन्होंने मुझे बताया कि उनके पास कई प्रेत हैं.एक बार उनसे मैंने निवेदन किया कि एक प्रेत मुझे भी दे दें ताकि मै भी लोककल्याण में उसका प्रयोग कर सकूँ.उन्होंने कुछ सामान माँगा,मैंने सामान की जगह उन्हें रूपये दे दिए.जिस दिन उन्होंने प्रेत देने का वादा किया था उसदिन मै इंतजार करता रहा,परन्तु कोई प्रेत नहीं आया.दो दिन बाद मै उनके पास पहुंचा तो वो कुछ नाराज दिखे.मै जैसे ही उनके पास बैठा वो नाराजगी से बोले-आप ने पहले क्यों नहीं बताया कि आप ने संतमार्ग से दीक्षा ली हुई है और श्वांस का भजन करते हैं ?
हाँ,ये तो सही है,मगर हुआ क्या ?मैंने आश्चर्य से पूछा.
मैंने दो प्रेत आप के पास भेजे,वो लौट के मेरे पास नहीं आये.तीसरे प्रेत से पता चला कि वो सब मेरे वशीकरण प्रभाव से ही मुक्त हो गए हैं.उसने आप के बारे में मुझे पूरी जाकारी दी.फिर वो हाथ जोड़ बोले-मेरे पास अब दो ही प्रेत बचे हैं.मैंने बड़ी मुश्किल से इन्हे वश में किया था.आप कृपा करके मेरी दाल रोटी चलने दें.यह कहकर मेरे दिए हुए दो सौ रूपये उन्होंने वापस कर दिए.
मैंने रूपये जेब में रखे और हाथ जोड़कर उनसे विदा लिया.उस दिन के बाद फिर मै दुबारा उनके पास नहीं गया.मुझे बहुत दुःख हुआ था कि मैंने उनके जैसा मित्र खो दिया,परन्तु इस बात की थोड़ी ख़ुशी भी हुई कि मेरी वजह से दो आत्माएं उनके चंगुल से मुक्त हुईं,
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प्रेत योनि में भटकती हुई आत्माओं को अपने वश में कर जहाँ एक ओर बहुत से तांत्रिक समाज के हित के लिए उनका सदुपयोग कर रहे हैं तो वही दूसरी तरफ बहुत से तांत्रिक अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए और दूसरों को नुकसान पहुँचाने के लिए उनका दुरूपयोग भी कर रहे हैं.कई सालों तक मैंने बहुत गहराई से इस विषय पर रिसर्च किया.उस रिसर्च का साररूप कुछ लेखों के रूप में प्रस्तुत है.अगला ब्लॉग “भटकती आत्माओं के प्रयोग” भाग-२ इसी विषय पर आधारित है,जो शीघ्र ही प्रकाशित होगा.
(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)
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