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मैंने भटकती हुई आत्मा को देखा भाग-३ जागरण जंक्शन फोरम

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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अभी मुझे लगभग १५ दिनों तक अपने मामा जी के यहाँ रहना था.मुझे प्रेत को देखने की व्याकुलता थी.मैंने पंडित जी के दिए मंत्र को जपने का निश्चय किया.मंत्र को एकांत स्थान में जपना था.इसीलिए मै गांव से बाहर आकर उस बगीचे में जपा,जिसमे चिता जलाई जाती थी.पहले दिन कोई अनुभूति नहीं हुई.रात को घर में मेरे नाना जी ने डांटा-शमशान में अकेले बैठ के क्या कर रहे थे ?मै सौदा ले के बाजार जा रहा था तो देखा कि तुम अकेले बैठ के आँखे बंद किये कुछ बुदबुदा रहे थे.मेरी नानी चिल्लाने लगीं-यही सब करते हो,कहीं कोई प्रेत पकड़ लिया तब ?
घर में बैठ के कुछ पढ़ना लिखना चाहिए.यहाँ वहाँ जाकर फालतू समय बर्बाद करते हो-मेरे मामा जी ने डांटा.मै कुछ बोला नहीं.बस मन ही मन मन्त्र जप जारी रखने का दृढ निश्चय कर किया.
मेरे नाना जी ने मुझे शमशान में देख लिया था,इसीलिए अब आगे मंत्र जप जारी रखने के लिए एक निर्जन जगह की जरुरत थी.मै सोच रहा कि कहाँ पर मंत्र जप किया जाये,तभी मुझे याद आया कि गांव से पूर्व की तरफ नहर के पास निर्जन स्थान है.वहाँ पर ताड़ के कई वृक्ष हैं.एक बहुत विशाल वट-वृक्ष है,जिसके पास में एक बहुत पुराना खंडहरनुमा कुआं है.पूरे गांव में सबको ये पता था कि वहाँ प्रेत रहते हैं.कई लोगों ने अपने खेत की रखवाली करते समय रात में प्रेतों को देखा भी था.लोगो के मन में उस जगह के प्रति भय इतना था कि दिन में भी जल्दी कोई उस तरफ नहीं जाता है.उस भुतहा जगह पर मैंने मंत्र जपने का निश्चय किया.
मै अपने मित्र चुन्नू के पास गया और उससे नहर की तरफ चलने के लिए कहा.वो उस समय खाली था,इसीलिए तैयार हो गया.हम लोग टहलते हुए नहर के पास पहुंचे.मैंने पूछा-वो प्रेत किस जगह तुम्हे पकड़ा था ?
वो अपना दायां हाथ उठा अंगुली से ईशारा किया-वो तरकुल के पेड़ के पास.
चल उस पेड़ के नजदीक चल के दिखा.-मै उसका हाथ पकड़ बोला.
नहीं,हमको अब डर लगता है.उधर अब मै नहीं जाता हूँ.-वो डर के मारे जाना नहीं चाहता था.मै उसका हाथ कस के पकड़ खींचते हुए ले गया-डरता क्यों है.मै हूँ न साथ में.
विशाल वट वृक्ष और खंडहरनुमा कुआं पास में ही थोड़ी दूर पर था.चारो और हरे भरे खेत थे.ज्यादातर खेतों में गन्ने की हरी भरी पेड़ी थी,
मेरा मित्र हाथ के ईशारे से बताया कि इसी तरकुल के पेड़ के पास गन्ने के इस खेत में मुझे प्रेत पकड़ा था,जब मै सुबह के समय शौच करने के लिया यहाँ पर आया था.ये जगह मुझे तंत्र जप के लिए ठीक लगी.कोई इस तरफ जल्दी आता नहीं था,बहुत एकांत स्थान था.
मैंने अपने मित्र से कहा कि -अब तुम जाओ.मै थोड़ी देर यही बैठूंगा.
नहीं,चलिए यहाँ से,घर चलकर बैठते हैं.-मेरा मित्र मेरा हाथ पकड़ खींचने लगा.
तुम चलो,मै आता हूँ.मेरे घरवाले यदि आके पूछें तो उन्हें बताना मत कि मै यहाँ बैठा हूँ-मै अपना हाथ छुड़ाते हुए बोला.वो जानता था कि मैं नहीं मानूगा,इसीलिए चला गया.
मै मंत्र जप पूरा किया.जैसे ही उठने को हुआ एक पका हुआ तरकुल का फल नीचे गिरा,जोर से धम् की आवाज़ आई.मै जाकर फल उठा लिया.वो पककर एकदम लाल हो चूका था.मै अपने मित्र चुन्नू के पास वापस आया.उसे तरकुल का फल खाने का न्योता दिया.वो भुतहा तरकुल खाने से मना कर दिया.मै दांत के सहारे उस मीठे फल को खाया और गुठली खेत में फैंक दिया.
आप प्रेतों की खोज में हैं.ठीक काम नहीं कर रहे हैं.-मेरा मित्र बोला.
तुमसे किसने कहा ?-मैंने हैरानी से पूछा.
सुरेन्द्र भईया बता रहे थे.वो आप को लेकर किसी तांत्रिक के पास भी गये थे.आप खतरनाक काम में जुटे हैं.-चुन्नू बोला.मै समझ गया कि उसे सुरेन्द्र सबकुछ बता दिया था.
तुम चिंता मत करो.मुझे कोई भय नही है.मै केवल जानना चाहता हूँ कि सच क्या है ?वास्तव में प्रेत होते हैं या नहीं होते हैं ?-मै बोला.
मुझे तो अब बहुत डर लगता है.रात को गांववाले पीपल के पेड़ की दो टहनिया.
जब हवा से आपस में टकराकर चर..चर की आवाज़ करती हैं तो डर के मारे मेरी हालत ख़राब हो जाती हैं.पहले ऐसा नहीं था.ये जबसे मुझे प्रेत पकड़ा था,तभी से ये हालत है.-चुन्नू मुझसे बोला.
डरो मत.जब भी भय लगे हनुमान चालीसा पढ़ लिया करो.उस प्रेत वाली घटना को अब भूल जाओ.-मै उसे धीरज बंधाया.कुछ देर बाते करने के बाद मै घर चला आया.
मंत्र जप करते हुए ग्यारह दिन बीत गए,परन्तु कोई प्रेत नज़र नहीं आया.मै बहुत निराश हो गया था.पंडित जी के पास सुरेन्द्र को लेकर मै दुबारा जाना चाहता था,लेकिन वो घर और खेत के कामों में बहुत व्यस्त था,इसीलिए समय नहीं निकल पा रहा था.मै प्रेतों को देखने के बहुत उतावला हो गया था.आखिर वो दिन भी आ ही गया,जब मेरी किस्मत में एक स्त्री-प्रेत का दर्शन करना लिखा था.मेरे घर वालों ने मुझे सख्त हिदायत दी थी कि मै घर में ही रहूँ,इधर-उधर कहीं न जाऊं.
एक दिन दोपहर के समय में जब घर से सब लोग खाना खा के सो रहे थे,मै धीरे से अपनी खाट से उठा और घर से बाहर निकल पड़ा.मै टहलते हुए गांव के बाहर तरकुल के पेड़ के नीछे आ गया.तरकुल के पेड़ के सामने एक लगभग फुट चौड़े संकरे रास्ते पर तरकुल का एक पका हुआ फल गिरा था.वो पककर लाल सिंदूरी रंग का हो गया.मै तरकुल के फल को उठा अपने हाथ में ले लिया और तरकुल के पेड़ के नीचे बैठ गया.चारो तरफ गन्ने के हरे भरे खेत थे.मै प्रेतों को न देख पाने से बहुत निराश हो चूका था.अब मुझे शक होने लगा था कि वाकई प्रेत होते भी हैं या नहीं ?अपने दोनों हाथों में तरकुल का फल गेंद की तरह उछालते और लोकते हुए मै सोचने लगा कि तरकुल का पका हुआ एक फल और मिल जाये तब यहाँ से चलूँगा और बगीचे में जाकर दोस्तों के साथ खाऊंगा.
मुझे आज भी अच्छी तरह से याद है कि उस समय मै पूरी तरह से होश में था.मै नशे में भी नहीं था क्योंकि जीवन में मैंने कभी कोई नशा नहीं किया.उस समय मै मानसिक रूप से पूरी तरह से स्वस्थ और बहुत निडर था.मै तरकुल के पेड़ के नीचे बैठे-बैठे अपंने दोनों हाथों से तरकुल का फल थोडा सा उछालकर लोक रहा था,तभी अचानक मेरी नज़र अपनी दाहिनी तरफ गई.मैंने देखा कि मुझसे मुश्किल से चार कदम की दूरी पर बीस-बाईस साल की लाल कपड़ों में लिपटी हुई एक बहुत सुंदर युवती मुस्कुराते हुए खड़ी है.उसके गोरे सुंदर शरीर से सफ़ेद रोशनी निकल रही है.उसका पूरा शरीर सोने के चमचमाते गहनो से भरा हुआ है.सिर से लेकर पैर तक उसका कोई अंग ऐसा नहीं था जहाँ पर सोने के चमचमाते हुए गहने न हों.उसके शरीर के प्रकाश से मेरी आँखे चौधियां रहीं थी.वो अकेली थी,उसके आगे पीछे दायें-बाएं कोई नहीं था,वहाँ पर उस समय केवल मै था और वो थी.मेरे दिल की धड़कनें बहुत बढ़ गईं थीं,मुझे बहुत घबराहट होने लगी थी.फिर भी हिम्मत कर मैंने पूछा-कौन हो…
उसने मुस्कुराते हुए अपनी बाहें फैलाकर कहा-आओ..
मै हाथों में तरकुल का फल लिए हुए उठ खड़ा हुआ और लाल कपड़ों और सोने के गहनो में लिपटे हुए उसके शरीर को सिर से नीचे की और देखते हुए जैसे ही मेरी निगाह उसके पैरो पर गई,मै देखा की उसके पांव के पंजे पीछे की और है और एड़ी आगे की तरफ है और पांव जमीन से थोडा सा ऊपर हैं.मैंने सबसे सुन रखा था की प्रेतों के पैर उलटे होते हैं.मै समझ गया की ये स्त्री एक प्रेत है.मै अपने हाथों में लिया तरकुल का फल उसके ऊपर फेंका और भूत..भूत..चिल्लाते हुए सामने गन्ने के खेत में पूरी स्पीड से भागा.मै नाक की सीध में पूरी स्पीड से भागते हुए गन्ने का खेत पार कर बगीचे में पहुंचा.वहाँ पर रूककर जोर जोर से हांफने लगा.कबड्डी खेलते मेरे चारो मित्र आकर मुझे घेर लिए-क्या हुआ ?आप इतने घबराये हुए क्यों हैं ? आप कहाँ से आ रहे हैं ?
एक साथ सब प्रश्न करने लगे.मेरा शरीर गन्ने के नुकीले पत्तों से जगह-जगह चीरा गया था.जिसमे से खून छलक रहा था,वहाँ पर हल्की सूजन हो गई थी और दर्द भी कर रहा था.दस मिनट बाद जब घबराहट और दिल की धड़कने कम हुई तो मै बोला-नहर के पास तरकुल के पेड़ के नीचे मैंने एक स्त्री प्रेत को देखा.
वहाँ कईठो चुरहीन हैं.रात को खेत अगोरने वाले कितने लोगों को परेशान कर चुकीं हैं.लोग डर के मारे खेत अगोरने वाली फसल वहाँ पर बोना बंद कर दिए हैं.-चुन्नू बोला.
हम तो आप को मना किये थे कि ई सब चक्कर में मत पड़िये,परन्तु आप माने नहीं-सुरेन्द्र बोला.
कुछ देर बाद सामान्य होने पर मैंने कहा-प्रेत होते हैं,आज मै अपनी आँखों से देख लिया.अब मुझे प्रेतों के अस्तित्व में विश्वास हो गया है.
चलिए अब कबड्डी खेला जाये.चुरहीन जो आपने देखा उसे भूल जाइये.-झिनकू बोला.
ब्रह्मबाबा को परई में खीर बना के चढ़ा दीजिये.वो चुरहीन आप का कुछ बिगाड़ न सकेगी.-नारायण अपनी राय व्यक्त किया.
मै पूरी तरह से सामान्य होते हुए बोला-उसने मुझे डराया है,पहले हमें चलकर उसे डांटना है.सब लोग अपना अपना लाठी डंडा उठाओ और मेरे साथ चलो.
बचकानी हरकत थी,परन्तु हम लोगों ने किया.जाकर हमें तरकुल के पेड़ के पास जमीन पर लाठियां ठोंकी.पीपल के पेड़ के पास जाकर जमीन पर लाठियां पटकीं और खंडहरनुमा कुँए में झांककर भूत-प्रेतों को चुनौती दिया-दम है तो अब आओ सामने.
वो सब सुन रहे होंगे ?-सुरेन्द्र हँसते हुए पूछा.
जब यहाँ रहते हैं,यहाँ दिखाई देते हैं तो जरुर सुन रहे होंगें.-मै बोला.
चलो अब चल के नहर में नहाया जाये.इस समय पानी आ रहा है.वहाँ से सौ कदम कि दूरी पर नहर थी.हम सब ने देर तक नहर में स्नान करते हुए तैरने का अभ्यास किया.अब शाम होने वाली थी.शाम होते ही गांव में काम बढ़ जाता है.सबसे ज्यादा समय पशुओं की देखभाल में लगता है.यही वजह है कि सब लोग अपने अपने घर जाने के लिए उतावले थे.
मै घर पहुंचा तो देखा पिताजी आये हुए थे.मामाजी के साथ वो खाट पर बैठे हुए थे.मुझे देखते ही बुलाकर डांटने लगे-कहाँ घूमते हो दिनभर ?तुम्हारी बड़ी शिकायतें मैंने सुनी हैं.जरा भी पढ़ते-लिखते नहीं हो.साधू-संतों और ओझा सोखा के चक्कर में लगे हुए हो.ये सब फालतू काम है.अपनी पढाई की तरफ ध्यान दो.
मैंने पास जाकर उनके पांव छुए परन्तु कुछ बोला नहीं,चुचाप पास में खड़ा हो गया.वो कुछ नरम पड़ते हुए बोले-जाओ जाके अपनी तैयारी करो.कल सुबह हम लोग भटिंडा जाने के लिए निकलेंगे.उन दिनों पिताजी सेना में थे और उनका ट्रान्सफर पंजाब के भटिंडा जिले में हो गया था.अगले दिन सुबह पिताजी-माताजी,मै और तीनो बहने भटिंडा जाने के लिए मामा जी के घर से निकल पड़े थे.उन दिनों कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था,तब जाके रेलवेस्टेशन जाने के कोई साधन मिलता था.
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प्रेत योनि में भटकती हुई आत्माओं को अपने वश में कर जहाँ एक ओर बहुत से तांत्रिक समाज के हित के लिए उनका सदुपयोग कर रहे हैं तो वही दूसरी तरफ बहुत से तांत्रिक अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए और दूसरों को नुकसान पहुँचाने के लिए उनका दुरूपयोग भी कर रहे हैं.कई सालों तक मैंने बहुत गहराई से इस विषय पर रिसर्च किया.अगला ब्लॉग “भटकती आत्माओं के प्रयोग” इसी विषय पर आधारित है,जो शीघ्र ही प्रकाशित होगा.
(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

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