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भटकती हुई आत्माओं के प्रयोग भाग-२ जागरण जंक्शन फोरम

सद्गुरुजी
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प्रस्तुत ब्लॉग “भटकती आत्माओं के प्रयोग” भाग-२ के बारे में=प्रेत योनि में भटकती हुई आत्माओं को अपने वश में कर जहाँ एक ओर बहुत से तांत्रिक समाज के हित के लिए उनका सदुपयोग कर रहे हैं तो वही दूसरी तरफ बहुत से तांत्रिक अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए और दूसरों को नुकसान पहुँचाने के लिए उनका दुरूपयोग भी कर रहे हैं.कई सालों तक मैंने बहुत गहराई से इस विषय पर रिसर्च किया है,जिसे सार रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ.
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सन १९९० की बात बात है.राजेश पांडे जी और मै कुछ काम से आसाम में गुहाटी गये थे.हमलोग प्रात: पांच बजे नित्य क्रियाओं से निपट कामाख्या मंदिर दर्शन करने गए.वहाँ पर मंदिर के प्रांगण में पशुओं की बलि होते देख मेरा मन बहुत दुखी हो गया.मै सोचने लगा-ये कैसी माँ है,जिसके सामने रोज सैकड़ों पशुओं का खून बहता है और इसे दया नहीं आती.हम लोग जल्दी से दर्शन कर मंदिर के बाहर निकले.मेरा मन बहुत दुखी और ख़राब हो गया था.पुजारी लोग देवी माँ के साल भर में एक बार होने वाले रजोस्राव से भींगा लाल कपडे का छोटा सा टुकड़ा महंगे दामों में बेंच रहे थे.मेरे एक गुरुदेव इसे ढोंग और कमाने-खाने का धंधा कहते थे,वो कहते थे कि किसी पत्थर को मासिक धर्म हो ही नहीं सकता है.राजेश जी कुछ कहने का अनुरोध किये तो मै मना कर दिया.मेरा मन बहुत खिन्न था.मंदिर से एक किलोमीटर दूर वो मुझे एक आश्रम में ले गए,जहाँ पर हमने शाकाहारी भोजन किया.वहीँ पर हमारी मुलाकात एक अघोरी साधू से हुई.उन्हें जब पता चला की हमलोग काशी से आये हैं तो बहुत खुश हुए.हमलोगो का नाम उन्होंने पूछा.अपना नाम उन्होंने स्वामी अवधूतानन्द बताया.उनका सांसारिक नाम अवधेश झा था.उनका व्यक्तित्व बहुत आकर्षक था.लाल कपड़ों में लिपटा लम्बा-चौड़ा शरीर,चेहरे पर लम्बी सफ़ेद दाढ़ी,लगभग ६० वर्ष की उम्र रही होगी.बातचीत से पता चला कि साधू बनने से पहले वो एक सरकारी विभाग में इंजीनियर थे.पत्नी के गुजरने के बाद कुछ ऐसा वैराग उतपन्न हुआ की साधू हो गए.उनकी एकमात्र संतान एक लड़की है,जिसकी कई साल पहले उन्होंने शादी कर अपना फर्ज निभा दिया था.मै उनसे कुछ प्रश्न पूछना छह रहा था.वो आश्रम के जिस कमरे में रहते थे,वहाँ पर हमें ले गए.कमरे में दो चौकी,एक कुर्सी मेज और कुछ सामान इधर उधर रखा हुआ था.खाली पड़ी चौकी पर उन्होंने एक सफ़ेद दरी बिछा दिया.दूसरी चौकी पर सफेद गद्दा व् सफ़ेद चादर बिछा था.अपनी चौकी पर बैठते हुए उन्होंने हमें भी बैठने का अनुरोध किया.दूसरी चौकी पर हमदोनो बैठ गए.
पूछिए ऋषिजी,आप क्या पूछना चाहते हैं ?वो मेरी तरफ देखते हुए बोले.
आप ने कौन सी साधना की है ?मैंने पूछा.
मैंने तो शमशान साधना से लेकर बहुत सी साधनाये की हैं.आप किस साधना के बारे में जानना चाहते हैं ?वो हंसने लगे.
मैंने कहा-शमशान साधना के बारे में ही कुछ बता दीजिये ?
पहले देखिये,फिर कुछ बताऊंगा तो ज्यादा अच्छे ढंग से समझेंगे.-यह कहकर उन्होंने अपना खाली हाथ हमें दिखाया फिर मुट्ठी बंद कर होठो में कुछ बुदबुदाये और मुट्ठी खोल दिए.उनके हाथ में ताम्बे का ताबीज था.हम लोग आश्चर्य से देख रहे थे.
आप लोग क्या खायँगे ?उन्होंने हमारी तरफ देखते हुए पूछा.
अभी तो खाना खाएं हैं.अभी कुछ खाने की इच्छा नहीं है.-राजेश जी बोले.
खाने के बाद कुछ मीठा हो जाये.-उन्होंने एक कटोरा लेकर उसमे पचास रूपये रखे और अपने सफ़ेद रुमाल से ढँक दिया.वो कुछ देर तक होठों में कोई मंत्र बुदबुदाते रहे,फिर कटोरा पर से सफ़ेद रुमाल हटाया तो हम हैरान रह गए.उसमे एक पाव के लगभग सफ़ेद रंग का बर्फी था.उन्होंने एक पीस बर्फी उठाया और राजेश जी के हाथ में रख दिया.एक बर्फी मेरे हाथ में रख दिया और एक बर्फी अपने हाथ में ले कटोरा ढक के रख दिया.
ये बर्फी क्या आप ने किसी दुकान से मंगाई है ?और वो पचास का नोट कहाँ गया ?-राजेश जी ने बहुत हैरानी से पूछा.राजेश जी स्वामी जी की सिद्धियों से बहुत प्रभावित हो चुके थे.
मेरे परिचित का एक हलवाई है.उसे सब पता है.बिना रुपये दिए मै उसके यहाँ से कोई चीज नहीं मंगाता हूँ.पचास रूपये उसके गल्ले में चले गये.-स्वामी जी बोले.
स्वामी जी,ये जो चमत्कार आप ने दिखाया है,इसके पीछे कौन सी शक्ति काम की है,कोई प्रेत या कोई देवी-देवता या फिर कोई मानसिक शक्ति ?मैंने पूछा.
मैंने श्मशान सिद्धि की है.जिस प्रेत को मैंने सिद्ध किया है,उसी प्रेत के जरिये ही मैंने ये सामान मंगवाएँ हैं.-स्वामी जी बोले.
स्वामी जी ये प्रेत होते क्या हैं और कैसे कार्य करते हैं ?मैंने जिज्ञासा प्रकट की.
स्वामी जी बोले-जिसकी कोई इच्छा नहीं है,केवल वही व्यक्ति जीवन-मरण के बंधन से मुक्त हो पाता है.शरीर छूटने के बाद उसका अस्तित्व सर्वव्यापी परमात्मा में विलीन हो जाता है.वो दुबारा इस संसार में नहीं आता है.ऐसे महापुरुष विरले ही होते हैं.सामान्यत: होता यही है की पंचभूतों से बना सांसारिक शरीर छूटने के बाद पंचभूतों की तन्मात्राओं से बना सूक्ष्म शरीर प्राप्त होता है,इसे ही प्रेत योनि कहते हैं.बहुत से संतों ने इसे अतृप्त वासना और तृष्णा भी कहा है.आप इसे मन भी कह सकते हैं.मन बहुत प्रबल शक्ति है.शरीर छूटने के बाद भी ये जीवित रहता है.संत कबीर साहब ने कहा है-
हम जानी मन मर गया,मरा हो गया भूत ! `
मरने पर भी हुआ खड़ा,ऐसा मन है कपूत !!
स्वामी अवधूतानन्द जी आगे बोले-आप ने दूसरा सवाल पूछा है की प्रेत कैसे कार्य करते हैं ?वैज्ञानिक ढंग से खोज करने पर मैंने पाया की प्रेतों में सांसारिक पदार्थों का संघटन और विघटन करने की अदभुद क्षमता होती है.अभी ये क्षमता विज्ञानं हासिल नहीं कर पाया है.जिस दिन विज्ञानं ये क्षमता हासिल कर लेगा,उस दिन दुनिया में तहलका मच जायेगा.फिर ये प्रेतों वाला चमत्कार विज्ञानं का चमत्कार कहलायेगा.
क्या आप इसे एक उदहारण देकर समझा सकते हैं ?वो संघटन और विघटन वाली वैज्ञानिक बात मुझे ठीक से समझ नहीं आई.-मैंने कहा.
अपनी बात अभी प्रत्यक्ष रूप से साबित कर समझाता हूँ.-स्वामी जी मुस्कुराते हुए बोले.उन्होंने हमारी तरफ देखते हुए पूछा-कोई ऐसी चीज दीजिये जिसकी अभी जरुरत न हो मै उसे आप के घर पहुंचा दूंगा.
राजेश जी ने एक रुद्राक्ष की माला सौ रूपये में खरीदी थी,उन्होंने वही अपने बैग से निकालकर स्वामी जी को पकड़ा दिया.स्वामी जी ने एक कागज पर उनके घर का पाता नोट किया.एक छोटी सी कटोरी में माला रख रुमाल से उन्होंने ढक दिया.राजेश जी के घर का पता पढ़ते हुए वो कोई मंत्र बुदबुदाते रहे.कुछ देर बाद कटोरी से उन्होंने रुमाल हटाया तो वो खाली दिखी,उसमे कुछ नहीं था.
स्वामी जी बोले-पांडे जी,आप अपने पूजास्थल पर जाकर देखिएगा,माला वहाँ पहुँच गई है.फिर मेरी तरफ देखते हुए वो बोले-जिस प्रेत को मैंने बुलाया था उसने यहाँ आकर माला का छोटे छोटे अणुओं में विघटन किया और पांडेजी के पूजास्थल पर जाकर उन अणुओं का फिर से संघटन कर माला वहाँ रख दिया.आप जाके देखिएगा जो माला आप ने यहाँ खरीदी थी,हूबहू वही माला आप को अपने घर पर मिलेगी.
तभी दो लोग कमरे के भीतर प्रवेश किये.वो किसी गांव के लग रहे थे.स्वामी जी के पांव छूकर वो हमारे साथ चौकी पर बैठ गए.
स्वामी जी हँसते हुए हम लोगों से बोले-अब शाम तक लोग आते रहेंगे.मै अब दिनभर खाली नहीं मिलूंगा.हमारे साथ बैठे एक बुजुर्ग की तरफ देखते हुए बोले-कहाँ से आये हो बाबा.मेरा पता किसने बता दिया.
हमलोग सासाराम बिहार से आये हैं बाबा.गांव का ही एक आदमी गोपी यादव आप का भक्त है वही आप का पता बताया है.पूछते-पूछते यहाँ तक चले आये.-बुजुर्ग व्यक्ति बोले.
बोलो बाबा,क्या परेशानी है ?स्वामी जी ने पूछा.
महाराज,एक नई भैंस साथ हजार की ख़रीदे थे.दो दिन पहले रात के समय कोई कोई चोर आया और खूंटे से छोर ले गया.बहुत ढूंढा उसे पर नहीं मिली.कुछ पता चल जाता महाराज,मेरी भैंस कहाँ है,मिलेगी की नहीं ?-इतना बोलते-बोलते बुजुर्ग रुआंसा हो गये.अपनी आँखे पोछने लगे.
कोटरी से निकाल एक एक बर्फी का पीस दोनों को देते हुए स्वामी जी बोले-घबराओ नहीं,मै कोशिश करता हूँ की आप की भैंस आप को मिल जाये.लो पहले पानी पियो.बाहर मटके में पानी रखा है.वहीँ एक गिलास भी है.
दोनों बाहर जाकर मिठाई खाये और पानी पीकर आ गये.स्वामी जी ने अपने छोटे से पैड पर बुजुर्ग से पूछकर पूरा पता नोट किया और फिर स्वामी जी आँख बंद कर कुछ बुदबुदाते रहे,किसी से बात करते रहे.थोड़ी देर बाद आँख खोलकर बोले-तीन दिन पहले आप की भैंस खरीदने के लिए दो लोग आये थे,वही लोग भैंस चुरा के ले गए हैं.इस गांव में पुलिस ले के जाओ भैंस मिल जायेगी.-एक कागज पर उन्होंने गांव का नाम लिख के दे दिया.
बुजुर्ग व्यक्ति हाथ जोड़कर बोले-महाराज मेरी भैंस मिल गई तो मै जल्दी ही फिर आउंगा और ग्यारह सौ रूपये दक्षिणा दूंगा,फ़िलहाल अभी ये स्वीकार करें.जेब से पचास रूपये निकाल उन्होंने स्वामी जी के आगे रख दिया.
बाबा,किराया भाड़ा कम हो तो ये रूपये रख लो.मेरी चिंता मत करो.मुझे अपने गुजारे भर की पेंशन मिल जाती है.-स्वामी जी उसे पचास का नोट उठा देने लगे.
किराया भाड़ा सब है महाराज .आप इसे रखें.-बुजुर्ग व्यक्ति दोनों हाथ जोड़ बोले.वो दोनों चले गए.
महाराज,हमलोगों को भी ऐसा ही एक प्रेत दे देते.हमलोग भी ऐसे ही लोगों का भला करते.-राजेश जी हँसते हुए बोले.
आप लोग कम से कम दो साल मेरे पास रुकिए,श्मशान सिद्धि करा दूंगा.ऐसे प्रेत किसी को नहीं दिया जाता है.मैंने कई साल तक शमशान में रहकर साधना की है.-स्वामी जी बोले.
मै और राजेश जी दोनों स्वामी जी से बहुत प्रभावित थे.परन्तु हमलोग और ज्यादा गुहाटी में नहीं रुक सकते थे.दोपहर को हमारी ट्रेन थी.हमने स्वामी जी से जाने की इजाजत चाही.
स्वामी जी बोले-इसी आश्रम में जगह दिला देता हूँ.आप लोग और दो चार दिन रुकें.आपलोग बुद्धिजीवी हैं,मुझे भी आपलोगों से बात करके अच्छा लगता है.
नहीं स्वामी जी अब इजाजत दीजिये.हमलोग फिर आयेंगे.घर पर पंखे का कारखाना है.मेरे वहाँ पर न रहने से सब लोग परेशान होंगे.-राजेश जी हाथ जोड़े और फिर जेब से सौ का एक नोट निकाल देना चाहे,परन्तु वो हाथ पकड़ लिए.मैंने जेब से २२ रूपये निकाल बर्फी वाली कटोरी में डाल दिया.राजेश जी भी सौ का नोट उसी कटोरी में डाल दिए-स्वामी जी,रख लीजिये,किसी की सेवा में लगा दीजियेगा.
स्वामी जी कुछ बोलते उससे पहले दो स्थानीय औरते हाथ जोड़े आ पहुंचीं.स्वामी जी असामी में उनसे बात करने लगे.हमने अपना बैग कंधे पर रखा और कमरे के बाहर निकाल आये.स्वामीजी कमरे के बाहर निकले.हम सबने एक दूसरे को हाथ जोड़ प्रणाम किया.स्वामीजी बोले-आप लोगों की यात्रा मंगलमय हो,फिर आइयेगा.उन्हें धन्यवाद देते हुए हमलोग गुहाटी रेलवे स्टेशन जाने के लिए आश्रम से बाहर निकल आये.टेम्पो पकड़ हमलोग गुहाटी रेलवे स्टेशन पहुँच गए.ट्रेन बिलकुल सही समय पर आई.हम लोग अगले दिन वाराणसी पहुँच गए.स्वामी अवधूतानन्द जी ने जो माला प्रेत के जरिये भेजी थी,वो राजेश जी को अपने पूजास्थल पर रखी हुई मिल गई थी.यहाँ पर हम दोनों अपने अपने कामों में ऐसा व्यस्त हुए की आज तक फिर दुबारा हमलोग गुहाटी नहीं जा पाये.आज भी हमलोग जब मिलते हैं तो बड़ी श्रद्धा से स्वामी अवधूतानन्द जी की चर्चा करते है.वो महापुरुष आज जहाँ भी हों परमात्मा उन्हें स्वस्थ और सुखी रखें.उनकी खोजी प्रवृति को मै सलाम करता हूँ.
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प्रेत योनि में भटकती हुई आत्माओं को अपने वश में कर जहाँ एक ओर बहुत से तांत्रिक समाज के हित के लिए उनका सदुपयोग कर रहे हैं तो वही दूसरी तरफ बहुत से तांत्रिक अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए और दूसरों को नुकसान पहुँचाने के लिए उनका दुरूपयोग भी कर रहे हैं.कई सालों तक मैंने बहुत गहराई से इस विषय पर रिसर्च किया.उस रिसर्च का साररूप कुछ लेखों के रूप में प्रस्तुत है.अगला ब्लॉग “भटकती आत्माओं के प्रयोग भाग-३ इसी विषय पर आधारित है,जो शीघ्र ही प्रकाशित होगा.
(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

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