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समलैंगिकता अप्राकृतिक और घातक बीमारी “जागरण जंक्शन फोरम”

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पुरुष का पुरुष से और स्त्री का स्त्री से समलैंगिक रिश्ते रखना भारतीय कानूनो के अनुसार बहुत पहले से ही अपराध माना जाता रहा है.व्यस्को के द्वारा बनाये गए समलैंगिक रिश्ते को दिल्ली हाईकोर्ट ने २ जुलाई २००९ को अपराध की श्रेणी से हटा दिया था.इस फैसले को कई सामाजिक और धार्मिक संगठनों ने सुप्रीमकोर्ट में चुनौती दी थी.लगभग साढ़े चार साल के बाद सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए समलैंगिक सम्बन्ध बनाना फिर से कानूनन अपराध घोषित कर दिया है.हालाँकि सुप्रीमकोर्ट ने समलैंगिक सम्बन्धो को अपराध बतानेवाली आईपीसी की धारा ३७७ को कानून की किताब से हटाने के लिए सरकार और संसद को पूरी छूट दी है.अब देश में फिर से धारा ३७७ पूर्व की भांति लागू हो गई है,जिसके अनुसार अप्राकृतिक सेक्स और समलैंगिक सम्बन्ध आपराधिक कृत्य है,इस तरह का अपराध करते हुए पकडे जाने पर और जुर्म साबित हो जाने पर सजा मिलेगी.
सुप्रीमकोर्ट के इस फैसले की कड़ी आलोचना हो रही है.हालाँकि ये बात सभी लोग जानते हैं कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति के मुताबिक समलैंगिक सम्बन्ध कहीं से भी फिट नहीं बैठते हैं.सबसे बड़ी बात ये है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने या सुप्रीमकोर्ट ने समलैंगिक विवाहों या या विवाह के बाद समलैंगिक सम्बन्धों को कानून मान्यता नहीं दी है.मुझे आश्चर्य हो रहा है कि बड़े से बड़े नेता से लेकर प्रसिद्द अभिनेता-अभिनेत्री तक समलैंगिक सम्बन्धो को जायज ठहराते हुए उसके पक्ष में बयान दे रहे हैं.क्या हो गया है इनकी बुद्धि को ?कहीं इनकी बुद्धि को लकवा तो नहीं मार गया है ?क्या इन्हे मालूम नहीं है कि समलैंगिक सम्बन्धों की आड़ में छोटे और मासूम बच्चो का कितना यौनशोषण हो रहा है.भोजन की तरह छोटे मासूम बच्चों को ये वासना के हवशी निगल रहे हैं.बच्चो की मासूमियत और बचपना छिनी जा रही है.कई पर्यटन स्थलों पर इन्हे विदेशियों को भोजन की तरह परोसा जा रहा है.ऐसे हवशी लोगों को मौत की सजा दी जाये तो वो भी कम है.
समलैंगिक सम्बन्ध बनाने वाले वो लोग हैं जो भोग-विलास की सारी हदें पार कर किसी नये मनोरंजन की तलाश में रहते है.यह पश्चिमी देशो से आई बीमारी है,जो अपने साथ सिफलिस और एड्स जैसे भयंकर जानलेवा रोग भी साथ ले के आई है.पश्चिमी देशों में राष्ट्राध्यक्ष,अधिकारी.अभिनेता,व्यापारी से लेकर अधिकतर आम जनता तक समलैंगिकता की पाशविक बीमारी पाई जाती है.हम पश्चिमी देशों से अपनी तुलना नहीं कर सकते हैं और न ही भारत में समलैंगिकता को जिंदाबाद कह सकते हैं.ये सब विकसित देशों का पाशविक व् व्यभिचारपूर्ण रहन-सहन है जो भारत जैसे विकासशील देश के अनुकूल नहीं है.हमलोग तो आज भी भूख,गरीबी,बलात्कार,यौनशोषण और भ्रस्टाचार से लड़ रहे हैं और इन सब समस्याओं की लात खाकर बड़ी बेहयाई और बेशर्मी का जीवन जी रहे हैं.जिस देश की आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा दो जून की रोटी ठीक से नहीं खा पा रहा है,जिस देश के लाखों बच्चे पढ़ने लिखने की जगह मज़बूरी वश कूड़ा बीनते हों और फुटपाथों पर भूखे-नंगे सोते हों,जिस देश की ओरतें आज भी घरों और पर्दों में कैद हैं,जिस देश के करोड़ों नौजवान नौकरी की तलाश में दर-दर भटकते हुए बूढ़े हो जा रहे हैं,उस देश में समलैंगिकता रूपी विकृत मानसिक बीमारी और बेलगाम अप्राकृतिक यौन सम्बन्धों की बात करते हो.ऐसा सोचते हुए भी शर्म आनी चाहिए.बलात्कार और यौनशोषण से पूरा भारत पहले से ही पीड़ित है.अब इसे और बढ़ाना चाहते हो.बहुत से लोग समलैंगिकता के पक्ष में यह कुतर्क देते हैं कि स्त्री-पुरुष का सम्बन्ध केवल संतान उत्पन्न करने के लिए है,उसमे आनंद और प्रेम नहीं है.पुरुष जब पुरुष से प्रेम करता है और स्त्री जब स्त्री से प्रेम करती है तो उसमे आनंद भी आता है और गहरे भावनात्मक सम्बन्ध भी बनते हैं.दुनिया भर में बहुत से मनुष्य ही नहीं बल्कि पशु-पक्षी भी समलैंगिक सम्बन्ध बनाते हैं.ये बातें सत्य से कोसो दूर और केवल कुतर मात्र है.स्त्री-पुरुष या नर-मादा का का प्रेम सम्बन्ध ही स्वाभाविक और प्राकृतिक है.दोनों एक दुसरे के पूरक हैं.दो समलैंगिक व्यक्ति संतान नहीं उत्पन्न कर सकते,इसी बात से साबित होता है कि समलैंगिक सम्बन्ध प्रकृति के भी खिलाफ है.आप जरा सोचिये कि देशभर में समलैंगिकता की बीमारी फ़ैल जेन पर,वो स्थिति कितनी हास्यास्पद,घातक,कलहकारी और भयावह होगी जब घरों में परुष पुरुष को ब्याह के लाएगा और स्त्री स्त्री को ब्याह के लाएगी.
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६) ,