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छूप गया कोई रे,दूर से पुकार के भाग-६

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छूप गया कोई रे,दूर से पुकार के भाग-६
उस दिन चित्रहार का अंतिम गीत पुरानी फ़िल्म मदारी का था.टीवी पर ज्यो ही गीत दिखाया जाने लगा,रोमांचित हो उठा.मन के साथ साथ मेरे हाथ पैर भी थिरकने लगे.-
दिल लूटनेवाले जादूगर
अब मैंने तुझे पहचाना हैं
नज़रें तो उठा के देख ज़रा
तेरे सामने यह दीवाना हैं
मै तो गीत के बोल गुनगुना ही रहा था.वो भी रोमांचित होकर गीत के बोलों को दुहरा रही थी.उसने धीरे से मेरे हाथ पकड़ लिए और हल्के से दबाने लगी.मुझे अच्छा लगा,मैंने भी उसका हाथ धीरे से दबाया.चित्रहार ख़त्म हो गया तो हम फिर यथार्थ की दुनियाँ में आ गये.हमलोग ठीक से बैठ गए.
मै अर्पिता से बोला-मै घरवालों को कैसे सूचना दूँ.वो लोग चितित होंगे.बिना घर सूचना दिए यहाँ पर रुक गया मेरी खैर नहीं.घर में बहुत डांट पड़ेगी.
तुम्हारे क्वार्टर पर फोन है ?है तो चलो मेरे घर चल के फोन कर देते हैं.-अर्पिता बोली.
है तो सही,मगर वो मिलट्रिवाला फोन है.उसपे केवल घर से लेकर पिताजी के ऑफिस तक ही बात हो पाती है.-मै बोला.मै सोच में पड़ गया कि अब क्या किया जाये.
तुम चिंता मत करो.यहाँ पर रुक जाओ.कल मै तुम्हारे घर चल के सबको समझा दूंगी.अर्पिता बोली.
नहीं.तुम यदि चली गई मुझे बहुत दिक्कत हो जायेगी.मेरे घरवाले तुम्हारे ही बारे में सबसे पहले पूछने लगेंगे कि ये लड़की कौन है.तुम्हारे साथ क्यों आई है ?इन सब सवालों से बचने के लिए ही मै तुम्हे आजतक घर नहीं ले गया.-मै बहुत चिंतित स्वर में बोला.
तुम कबतक अपने घरवालों से डरोगे ?तुम्हारी अपनी भी कोई लाइफ है की नहीं?मुझे अपने घर ले के चलो मै चल के सबको ठीक करती हूँ.-वो गुस्से में बोली.मै चुप रहा.कुछ बोला नहीं.
तभी अर्चना की मम्मी ड्राइंगरूम में आकर बोलीं-बच्चों खाना बन गया है.कहो तो मै ले आऊँ.यहींपर तुम तीनो खा लो.
मम्मी मै भी आपकी हेल्प करती हूँ.-अर्चना टीवी बंद कर रसोई की तरफ बढ़ गई.
अर्पिता के घर पर दो बार और अर्चना के घर पर मै कई बार खाना खा चूका था,इसीलिए मुझे कोई संकोच नही हुआ.भूख भी तेज लगी थी.मै बाथरूम गया और हाथ धोकर आ गया.
खाना मेज पर लग चूका था.अर्पिता भीतर चली गई.थोड़ी देर बाद वापस आई मेरे पास सोफे पर बैठ गई.हम तीनो ने आपस में हंसी मजाक करते हुए खाना खाने लगे.तभी कालबेल बजी.
तुमलोग खाना खाओ मै जाकर देखती हूँ.-दरवाजा खोल अर्चना की मम्मी बाहर चली गईं.दरवाजा खुलते ही वो सर्द हवा भीतर आई की ठण्ड के मारे मुझे कपकपी होने लगी.
बस जनाब,इतने में ही परेशान हो गए.आप तो इस आंधी तूफान में अपने घर जाने को कह रहे थे.-अर्पिता मेरा मजाक उड़ाते हुए बोलीं.
मै कुछ बोला नहीं.बस उसके हंसते चेहरे की तरफ देखने लगा.तभी उसके पिताजी हाथ में काला बैग लिए.घर में घुसे-अब कैसी है मेरी बेटी ?
ठीक हूँ,अंकल आइये.-अर्चना बोलीं.
मै उठकर उन्हें प्रणाम किया.वो मेरे सिर पर हाथ रख बोले-बेटा,मेरे घर पर तुम्हारी बहुत चर्चा होती है.दो बार तुमसे मुलाकात हुई है.तुम्हारे संस्कार मुझे बहुत अच्छे लगते हैं.
अर्पिता हँसने लगी.उसने हँसते हुए मेरी तरफ देखा.मेरा मजाक उदा रही थी.
उसके पिता ने उसे प्यार से डांटा-इस लड़के को देखकर तू क्यों हंस रही है ?इसका मलक उदा रही है.इस लड़के से कुछ अच्छे संस्कार सीख.फिर गम्भीर होकर बोले-बेटा,इंसान की परख एक बार अच्छी तरह से कर लेना चाहिए.फिर परख नहीं विश्वास करना चाहिए.
मै खाना खा चूका था.मै जाकर आँगन में वाशबेसिन पर हाथ धोया और कुल्ला कर दांतों को साफ किया.मै वापस ड्राइंगरूम आ गया.
पापा,आज मै यहीं रुकूँगी.मुझे अपनी असाइनमेंट पूरी करनी है.-अर्पित बोली.
लेकिन बेटा,तेरी मम्मी की तबियत ठीक नहीं है.मेरे लिए और तेरे छोटे भाई के लिए अब खाना कौन बनाएगा ?-अर्पिता के पिता चाय पीते हुए बोले.
भाईसाहब,आप यहीं खाना खा लीजिये.कुछ रोटी सब्जी घर के लिए भी मै पैक करके दे देती हूँ.-अर्चना की माता जी बोली.
नहीं बहन जी,अभी नौ भी नहीं बजे हैं.मै खुद जा के बना लूंगा.-चाय की खाली प्याली मेज पर रखते हुए वो बोले.
अर्पिता तुम्हे घर जाकर खाना बनाना चाहिए.तुम्हारे रहते तुम्हारे पिताजी खाना बनायें,ये कितने शर्म की बात है ?तुम्हे इतना स्वार्थी नहीं होना चाहिए.-मै अर्पिता को समझाते हुए बोला.
बहुत अच्छी बात है,चलो चलती हूँ.तुम भी मेरे साथ चलोगे.-वो गुस्से के मारे मेरा हाथ पकड़ खींचते हुए दरवाजे की और ले चली.दरवाजा जैसे ही वो खोली,ठंडी हवा का तेज झोंका मेरे पुरे बदन को कंपकपाने लगा.मेरे पास कान ढकने को भी कुछ नहीं था.वो मुझे खींचते हुए गेट तक ले गई-मुझे स्वार्थी कहते हो.तुम क्यों घर के अंदर घुसे हो ?तुम परमार्थी हो तो चल के मेरी मदद करो.वो गेट खोलने लगी.बारिश बंद हो चुकी थी,लेकिन भयंकर ठंडी हवा चल रही थी.
अंदर से तीनो लोग डोगरी भाषा में कुछ बोलते हुए और उसे रोकने की कोशिश करते हुए बाहर निकले.एपिता गेट खोल दी थी.गेट के बाहर वो खीच ले आई.मेरा तो ठण्ड के मारे बुरा हाल था.पूरा बदन कांप रहा था और दांत ठण्ड के मारे किटकिटा रहे थे.मेरा जूता गेट के अंदर ही रह गया था.उसने पहनने का मौका ही नहीं दिया था और गुस्से के मारे अपनी चप्पल भी नहीं पहनी थी.मेरे पैर की जुराबे भीग गई थीं.मेरा पैर बर्फ की तरह ठंडा होने लगा.उसके व्यवहार से बहुत दुखी और हैरान था.वो सड़क पर मुझे खिंच के अपने घर की तरफ लिए जा रही थी.वो बड़बड़ा रही थी-मुझे स्वार्थी कहते हो ?तुम्हारे बारे में हमेशा सोचती रहती हूँ,इसीलिए स्वार्थी हूँ..मै स्वार्थी हूँ ?
तुम गुस्से में पागल हो गई हो.छोड़ो मेरा हाथ.-मै बहुत घबराते हुए बोला.सड़क पर मरक़री लाईट की रौशनी में मै चारो और ताकने लगा की कही कोई अपने घर से हमें देख तो नहीं रहा हैं.भयंकर ठण्ड के करण सड़क पर सन्नाटा पसरा था.
हाँ,मै तुम्हारे पीछे पागल हो गई हूँ.अब तुम अपना हाथ छुड़ा के नहीं भाग सकते हो.-इतना कहकर वो मेरी कलाई और कस के पकड़ ली.मेरे हाथ में बहुत तेज दर्द होने लगा.उसी समय उसके पिता और अर्चना दौड़कर मेरे पास पहुँच गए.अर्चना डोगरी भाषा में कुछ कहने लगी.उसके पिता उसे समझाने लगे-ये तुम क्या कर रही हो ?ये तुम्हारे कालेज का साथी है,एक होनहार छात्र है और एक भले घर का सम्मानित लड़का है.तुम इसके साथ ऐसा ख़राब व्यवहार नहीं कर सकती हो.
अर्चना उसके हाथ से खींचकर मेरा हाथ छुड़ा दी.अर्पिता ने कस के एक तमाचा अर्चना के गाल पर जड़ दिया और गुस्से से बोली-तू कौन होती है हम दोनों के बीच में बोलने वाली ?
अर्चना चुचाप अपना गाल सहलाने लगी.उसकी माँ गेट पर खड़ी हो सबकुछ देख रही थी.
अर्पिता मेरी तरफ देख चीखी-तुम मेरे साथ चलते हो की नहीं ?
नहीं हरगिज नहीं-मै रुआंसे स्वर में बोला.मेरी आँखों में आंसू छलक आये थे.
तो ठीक है,इसके साथ नरक में जाओ.-गुस्से के मारे वो पैर पटकते हुए अपने घर की तरफ चल दी.मै उसके व्यवहार से हतप्रभ था.
बेटा,तुम बुरा मत मानना,वो गुस्से में आकर ऐसा ही व्यवहार करती है.अब मै घर चलूँ नहीं तो अपने छोटे भाई पर गुस्सा निकलेगी.-इतना कहकर वो सड़क के किनारे खड़ा अपना स्कूटर स्टार्ट कर चले गए.
मुझे दुःख है की मेरे कारण आप की बेज्जती हुई.-मै बहुत दुखी स्वर में बोला.
मुझे इसकी आदत है.मै कई बार ये सब झेल चुकी हूँ.आप के साथ उसने जो बर्ताव किया उसका मुझे बहुत दुःख है.मै उसकी तरफ से मांफी मांगती हूँ.-अर्चना रुआंसे स्वर में बोलीं.
मै अर्चना के साथ उसके गेट तक आया.गेट के अंदर जाकर अपने जूते पहनने लगा.अर्चना मेरा हाथ पकड़ बोली-नहीं,मै आप को नहीं जाने दूंगी.इस भयंकर ठण्ड में सर्दी लग गई तो आप बीमार पड़ जायेंगे.
हाँ,बेटा तुम ऐसी गलती मत करो.मुझे मालूम है की उसके ख़राब व्यवहार से तुम्हे बहुत दुःख पहुंचा है-अर्चना के माता जी बोलीं.
माँ जी,मेरी किताब कापी यही है.मै कहीं जा नहीं रहा हूँ.मै कहीं से घर पर फोन करने की कोशिश करता हूँ.वो लोग चितित होंगे.-मै बहाना बनाया.
मै भी साथ चलती हूँ-अर्चना बोलीं.
नहीं,रात का समय है.तुम्हारा साथ चलना ठीक नहीं.तुम यही मेरी प्रतीक्षा करो.-मै गेट से बाहर निकल गया.
ठण्ड लग जायेगी.साल या मफलर कुछ तो ले लो.-वो पीछे से चिल्लाती रह गई.
तुम चिंता मत करो.मै अभी आया.-मै ऊँचे स्वर में बोला.
मै बाहर सड़क पर आने के बाद कहीं नहीं गया.सीधे अपने घर के लिए चल पड़ा.न कोई बस मिली और न ही हाथ हिलाने पर कोई मिल्ट्री की गाड़ी रुकी.मैनरोड पर कई जगह अँधेरा था और कई जगह पानी लगा था.कुछ सड़क की मर्करी लाइटें जल रही थी तो कुछ बुझी हुईं थीं.घर तक पंहुते पहुँचते झींक आने लगी.मेरा शरीर ठण्ड से बुरी तरह से कांप रहा था और सर्द बर्फीली हवाओ से अकड़ता ही जा रहा था.अँधेरी रात में आठ किलोमीटर पैदल चलकर रात साढ़े दस बजे घर पहुंचा.पिताजी ने दरवाजा खोला.वो काफी देर तक मुझे डांटते रहे.अंत में जाकर खाना खाकर सोने का आदेश दिए.मै गुस्से के मारे सीधे रसोई घर में गया और जितनी रोटिया रखीं थी सब खा गया.घर में बाकी सब लोग सो रहे थे.मै अपने कमरे में गया.मै बुरी तरह से छींक रहा था.मैंने जल्दी से कपडे चेंज किये,अपने कमरे की लाईट बुझाया और बिस्तर पर लेट रजाई ओढ़कर सो गया.कुछ देर तक आज घटी घटनाओं पर सोचता रहा.मेरे पास सोचने के लिए एक हमउम्र लड़की द्वारा जीवन के उन्नीसवें वर्ष में में मिला प्रथम चुम्बन था.मेरा बायां हाथ मेरे बाएं गाल को उस जगह बार बार सहलाता रहा,जहाँ पर उसने अपने नर्म गुलाबी होंठ रखे थे.मेरा पूरा शरीर रोमांचित होने लगा.कुछ ही पलों में रोमांच के साथ साथ उतेजना भी महसूस होने लगी.मैंने अपना ध्यान उधर से हटाया और दाहिने हाथ की दुखती कलाई को सहलाने लगा.जहाँ पर उसने कस के मेरी कलाई पकड़ी थी,वहाँ पर अब भी दर्द हो रहा था.उसका गुस्सा,उसकी क्रूरता,अर्चना को थप्पड़ मारना और मेरा अपमान करना सबकुछ याद कर मेरी आँखों से आंसू बहते रहे.तभी डाइनिंग हाल में किसी ने लाईट जलाई.कुछ ही देर में माँ की आवाज़ सुनाई दी-रोटी तो सब खा लिया है,बहुत भूख लगी रही होगी.सुबह का नाश्ता करके गया था.फिर कुछ देर बाद माँ की आवाज़ सुनाई दी-आप उसे इतनी बुरी तरह से क्यों डांटते हैं ?मै अपनी चारपाई पर लेटे लेटे सब सुन रही थी.मै तो आप के डर के मारे आई नहीं की मुझे भी डांटने लगोगे.वो अब बड़ा हो गया है.उसके साथ आप इतना ख़राब व्यवहार क्यों करते हैं ?
मै तो आज उसे दो चार झापड़ मारने का मन बना लिया था,लेकिन उसकी बुरी हालत देख के तरस आ गई.ठण्ड से कांप रहा था,न कान में मफलर और न हाथो में दस्ताने.हीरो बना फिरता है.
इतना बड़ा लड़का हो गया है,और आप अब भी उसे मारने की बात करते हैं.ये सब आप को नहीं कहना चाहिए.वो अगर सुन रहा होगा तो क्या सोचेगा.-माँ बोली.
मै उसे सुनाने के लिए ही बोल रहा हूँ.मै आज भी उसे मार् सकता हूँ.वो कितना भी बड़ा हो जाये मुझसे बड़ा नहीं होगा.-पिताजी मुझे सुनाने के लिए जोर से चिल्लाते हुए बोले.
एक ही लड़का है.मार् दो उसे जान से.बिचारा सीधा साधा है,कुछ बोलता नहीं है इसीलिए जो चाहे बोल लेटे हो.-माँ गुस्से में बोली.
तुम्ही ने उसको बिगाड रखा है.कितनी बार तुम्हे मैंने समझाया है की उसकी तरफदारी मत किया करो.जब मै उसे डांटा करूं तो बीच में तुम मत बोला करो.मैंने उसे बिना वजह नहीं डांटा है.उसने गलती की है,इसीलिए मैंने उसे डांटा है.मिल्ट्री का ये रूल है की जब भी कोई जवान गलती करे,उसे तुरंत सजा दो.जरा भी किसी जवान ने अनुशासन तोडा नहीं की मै उसे तुरंत सजा देता हूँ-जाओ,पिट्ठू लगा के मैदान का बीस चक्कर लगाओ.मैदान के बीस चक्कर लगाते लगाते वो सुधर जाता है.-पिता जी गुस्से में बोल रहे थे.
आप घर को भी आफिस मत बनाया करें.आफिस में आप क्या करते हैं,इससे मुझे मतलब नहीं है.लेकिन घर में आप शांति से रहा कीजिये.थोडा बहुत डांट हो गया.ये क्या की उसे खड़ा करा के जो मुंह में आया आधे घंटे तक बोलते चले जा रहे हैं.-माँ बोल रही थी.
क्या पापा,आप लोग आधी रात को झगड़ रहे हैं.आप लोग सबकी नींद ख़राब कर रहे हैं.
आप ने उसे जरुरत से ज्यादा डांट ही लिया.अब आप लोग जा के चुपचाप सोइए और उसे भी सोने दीजिये.वो चुप रहता है,जल्दी कुछ बोलता नहीं,लेकिन बहुत समझदार है.अपने कालेज का ब्रिलिएंट स्टूडेंट है.किसी चीज का भी उसे नशा नहीं है.घर में चुपचाप अपने कमरे में पढता रहता है.कोई कमी नहीं है उसमे.हाँ,पिछले एक महीने से वो कुछ परेशान सा लगता है.सोचता कुछ है और बोलता कुछ है.जरुर कोई प्रॉब्लम है उसकी,मगर घर में वो किसी को कुछ बताता नहीं है.-दीदी की आवाज़ सुनाई दे रही थी.
कोई प्रॉब्लम है तो उसे मुझसे कहना चाहिए न-पिताजी बोल रहे थे.
क्या हिम्मत करेगा वो आप से कुछ कहने की,हमेशा उसके सीने पर बन्दूक तान के बात करते हो.लोग कहते हैं की बाप की पनही जब बेटे के पैर में आने लगे तो बीटा नहीं दोस्त समझना चाहिए.आप कभी अपने सामने बैठाकर उससे प्यार से कुछ पूछते हैं ?-माँ गुस्से में जोर से बोली थी.
बकवास बंद करो और जा के चुचाप सो जाओ.अनुशासन तोड़नेवाली बात मत किया करो.उसे ऐसे ही बिगाड़ती रहोगी तो एक दिन सिर पकड़ के रोवोगी.-पिताजी गुस्से से चिल्ला रहे थे.
ठीक है मै रोउंगी न,आप क्यों चिंता करते हैं ?मेरे पिताजी ठीक ही कहते हैं की फौजी सब आधे पागल होते हैं.पिट्ठू लगा के दौड़ते दौड़ते उनकी बुद्धि आधी हो जाती है.-माँ की आवाज आई.तभी मेरे कमरे में अँधेरा हो गया.डाइनिंग हाल की लाईट बुझ गई थी.
मेरी आँखों से आंसू बहे जा रहे थे.गहरी नींद में खो जाने से पहले मेरे होंठ बार बार बुदबुदा रहे थे-माँ..माँ.मै इतना दुखी था की अपनी माँ के आँचल में छुपकर सोने की चाह हो रही थी.पता नहीं कब नीद रूपी माँ ने मुझे अपने आँचल में छुपाकर गहरी नीद में सुला लिया.
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)