Menu
blogid : 15204 postid : 670281

छूप गया कोई रे,दूर से पुकार के भाग-२

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
  • 534 Posts
  • 5673 Comments

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
images3456
छूप गया कोई रे,दूर से पुकार के भाग-२
अब हम दोनों को यकीन हो गया था कि हमदोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं.अब हिंदी फ़िल्मी गीतों के बोलों के माध्यम से अपने दिल की बात अक्सर हम कहने लगे.हमारे कालेज में लड़कों के लिए कोई कोई ड्रेस नहीं थी,परन्तु लड़कियों के लिए सफ़ेद सलवार कमीज और सफ़ेद दुपट्टा धारण करके आना अनिवार्य था.सर्दियों के मौसम में उन्हें सफ़ेद स्वेटर या फिर सफ़ेद कोट पहनना पड़ता था.वहाँ सर्दियाँ भी साल भर में अधिकतर समय तक पड़तीं थीं.सफ़ेद कपड़ों में लिपटीं लड़कियों को देखकर लड़के अक्सर उन्हें सफ़ेद भुतनियां कहकर चिढ़ाते थे.अधिकतर लड़कियां भी सफ़ेद ड्रेस पहनने की अनिवार्यता से खुश नहीं थीं.वो और उसकी सहेली अर्चना दोनों ही मध्यम कद की,अच्छे नाक नक्स वालीं और देखने में बहुत सुंदर थीं.सफ़ेद ड्रेस में वो दोनों और अच्छी लगतीं थीं.एक दिन वो पार्क में अपनी सहेलियों के साथ बैठी थी.फ़रवरी का महीना था.काफी सर्दी पड़ रही थी.मै कालेज की छत पर धूप सेंक रहा था.मै उसे देख रहा था और वो सहेलियों से हंसी-मजाक करते हुए बीच बीच में बड़ी चालाकी से मुझे देख लेती थी.उसे देखा तो याद आया की कई दिन हो गए हैं उसे मैसेज दिए.मै अपनी कापी खोल छत के बाउंड्री की दीवाल पर रखा और एक गीत के बोल मै लिखने लगा-
किसी के दिल में बस के दिल को तड़पाना नहीं अच्छा
निगाहों को झलक दे दे के छुप जाना नहीं अच्छा
उम्मीदों के खिले गुलशन को झुलसाना नहीं अच्छा
हमें तुम बिन कोई जचता नही, हम क्या करे
ये दिल तुम बिन कही लगता नहीं, हम क्या करे
तसव्वूर में कोई बसता नही, हम क्या करे
तुम ही कह दो अब ऐ जान-ए-वफ़ा हम क्या करे
य़हां अकेले क्या कर रहें हैं जनाब ?क्या लिख रहे हैं ?आवज़ सुनकर मै पीछे मुड़कर देखा.अर्चना हंस रही थी और वो मुस्कुरा रही थी.
मैंने जल्दी से कापी बंद की और उसे देते हुए कहा-तुम असाइनमेंट की कापी मांग रही थी न,ये लो.जो नोट करना है,इसमें से नोट कर लेना.मै कुछ हड़बड़ा सा गया था.
अर्चना मुझे घूरते हुए बोली-जनाब ये आपके असाइनमेंट की कापी नहीं बल्कि आप के प्रेमपत्र की कापी है.मैंने इसकी कापी तो पढ़ ली है,जरा आप की कापी देखूं की आप ने क्या लिखा है ?वो अपनी सहेली के हाथों से मेरी कापी खिंच के खोल ली और पढ़ने लगी.
मैंने उसे रोकना चाहा और उसके हाथों से कापी छीननी चाही तो थोडा पीछी हट पढ़ने लगी.
रोको उसे,परसनल बातें हैं..-मैंने पास खड़ी वो से कहा.
वो अपने आसपास एक निगाह डाल धीमे स्वर में बोली-तुम परेशान मत होवो,मैंने आज उसे सबकुछ बता दिया है.कितने दिन छुपाती ?उसे शुरू से ही हमारे ऊपर शक था.फिर कुछ रूककर बोली-वैसे भी हमें आगे चलकर उसकी मदद की जरुरत पड़ेगी.
अर्चना छत की बाउंड्री वाल के ऊपर कापी रख के कुछ लिख रही थी.उसने कुछ लिखकर कापी मुझे पकड़ा दी-लीजिये जनाब,आप दोनों ही पढ़ लीजिये,मैंने भी आप दोनों की खिदमत में कुछ अर्ज फ़रमाया है.वो विजयी अंदाज में मुस्कुराने लगी.मैंने कापी पर नज़र डाली,उसने एक गीत के बोल लिखे थे-
लाख छुपाओ, छुप ना सकेगा, राज हो कितना गहरा
दिल की बात बता देता हैं, असली नकली चेहरा
फूल में खुशबू, दिल में चाहत, कभी न छुपने पायी हैं
आँख से झलकी बन कर सुर्खी जब जब आग दबायी हैं
जजबातों पर लग नहीं सकता ख़ामोशी का पहरा
मेरे हाथ से वो लेकर पढ़ने लगी.पहले मेरे लिखे गीत के बोल पढ़ी,पढ़कर शरमाने लगी.फिर मंद मंद मुस्कुराते हुए अर्चना के लिखे गीत के बोल पढ़ने लगी.
मुझे तो पहले से ही तुमदोनों पर शक था.आज सुबह जब ये मेरे घर पर आई थी और जब ये बाथरूम गई हुई थी तो मैंने इसके बैग से निकालकर इसकी कापी में लिखे तुहारे इसके सारे प्रेमगीत पढ़ लिए थे.जब इसे मेरे सबकुछ पढ़ लेने का पता चला तो सारी सच्चाई उगल दी.मुझे इस बात का बहुत दुःख हुआ की तुमलोग ये बात मुझसे छुपाने की कोशिश करते रहे.-अर्चना बहुत गम्भीर हो गई थी.वो हमदोनों से नाराज लग रही थी.
उसने पढ़कर मेरी कापी रख ली और अपनी कापी मुझे दे दी-मैंने भी तुम्हारे लिए कुछ लिखा है.घर जाकर पढ़ना.मै भी घर जाकर तुम्हारी बातें बार बार पढूंगी.अभी तुम कालेज की कैंटीन में आओ.इसे चाय पिलाकर इसका गुस्सा ठंडा किया जाये.
हमारी क्लास के कुछ दोस्त हमारी तरफ आते दिखे,वो दोनों सीढ़ियों की तरफ चलीं गईं.
क्यों जनाब,क्या बातें हो रहीं थीं.आजकल आप उस डॉक्टर की बेटी और उस बैंक वाले की बेटी पर बहुत मेहरबान हैं-एक दोस्त बोला.
कुछ नहीं यार,असाइनमेंट की कापी मांगने आईं थीं.-मैंने बहाना बनाया.
हाँ,उसपर बीस नम्बर जो मिलना है.आप से बेहतर असाइनमेंट किसका होगा.पिछले साल आप को बीस में बीस नंबर मिले थे.कुछ हम जैसे यारों पर भी दया हो जाये.-दूसरा दोस्त बोला.
ठीक है यार मै कापी दे दूंगा,लेकिन पहले मै अपनी असाइनमेंट की कापी तैयार तो कर लूँ.-मै बोला.
चलिए जनाब,इसी बात पर एक कप चाय हो जाये.आज बहुत सर्दी है.-एक दोस्त बोला.
हमलोग सीढियाँ उतर कैंटीन की तरफ चल पड़े.
कैंटीन में काफी भीड़ थी.सब कुर्सियां लड़के लड़कियों से भरी हुई थीं.कुछ यहाँ वहाँ खड़े होकर चाय समोसा ख़ा पी रहे थे.कुछ बहादुर नौजवान इतनी ज्यादा ठंडी में भी ठंडा शरबत पी रहे थे.कुछ लेक्चरर और प्रोफ़ेसर लोग भी कुर्सियों पर विराजमान दिख रहे थे.चारो तरफ बहुत शोर था.दोस्तों ने चाय का ऑर्डर दिया.हमलोग काउंटर के पास खड़े थे.मै उसको और अर्चना को भीड़ में ढूंढ रहा था.तभी अर्चना मेरे पास आती दिखी.वो पास आकर बोली-चलिए हमलोग वहाँ पर बैठे हैं.
यार तुमलोग चाय पियो मै अभी आता हूँ.-मै दोस्तों से बोला.मेरे जेन से वो दोनों मित्र खुश नहीं थे,लेकिन कुछ बोले नहीं.मै अर्चना के साथ चल दिया.हिंदी के प्रोफ़ेसर साहब बड़े ध्यान से मेरी तरफ देख रहे थे.मैंने उन्हें नमस्ते किया,उन्होंने सिर हिलाया और अपनी चाय पीने लगे.हम तीनो बुद्धिजीवी दोस्तों की गहरी दोस्ती लेक्चरर और प्रोफ़ेसर लोगो को बहुत अच्छी लगती थी,लेकिन ज्यदारतर लड़कों को भाती नहीं थी,उनके लिए ये ईर्ष्या का भी ये एक विषय था.लड़कों के साथ कालेज की कैंटीन में,कालेज के पार्क में और धूप लेने के लिए कालेज की छत पर मै अक्सर जाता था,परन्तु उनकी बातें मुझे पसंद नहीं आतीं थीं,क्योंकि उनकी अधिकतर बातें मनोविकृत सेक्स पर आधारित होती थीं.बहुत से लड़के क्लास अटेंड करने की बजाय इधर उधर खड़े होकर महफ़िल जमाते थे.लड़कियों के बारे भद्दे कमेंट और अश्लील बातें कर जोर जोर से हँसते थे,लेकिन कोई लड़की एकदम पास से गुजरती थी तो सब के सब कुछ देर के लिए खामोश हो जाते थे.उसके थोड़ी दूर जाते ही वो लोग फिर लड़कियों का मजाक उड़ाना शुरू कर देते थे.मुझे उनकी संगति हमेशा ख़राब लगती थी,परन्तु मज़बूरी में कभी कभार उनका साथ देना पड़ता था.
कैंटीन में सबसे पीछे वो कुर्सी पर बैठी थी.लकड़ी की एक गोल मेज के चारो ओर रखीं लोहे की तीन कुर्सियां.हम तीनो बैठकर चाय का इंतजार करने लगे.थोड़ी दूर पर बैठे अर्थशास्त्र पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसर साहब रह रह कर हम तीनो को देख रहे थे और चाय पीते हुए नई नई आईं एक महिला लेक्चरर को कुछ समझा रहे थे.मैंने उनकी तरफ एक बार देखा फिर अपने दायीं ओर बैठी अर्चना की ओर देखा-चाय के लिए बोल दिया ?कुछ लड़के हमें घूर घूर के देख रहे थे.
हाँ,बोल दिया,पर पता नहीं कब चाय ले के आएगा ?यहाँ आने से तो अच्छा था की मेरे घर पर चला गया होता.-अर्चना बोली.
तभी केतली गिलास ले के चायवाला आ गया.वो शीशे की तीन गिलास मेज पर रख आधी आधी गिलास चाय उड़ेला और आगे बढ़ गया.हमलोग ठण्ड से ठिठुरते हुए चार पीने लगे.
मैंने अपनी घडी में देखा.दिन के दो बज रहे थे.हिंदी का एक पीरियड और बाकी था.तभी बेल बजने की आवाज़ सुनाई दी.हमलोग जल्दी से चाय ख़त्म कर कुर्सी से उठ खड़े हुए.काउंटर के पास आकर मैंने चाय के पैसे देने चाहे तो अर्चना बोली-चलो,मैंने उसे पहले ही तीन चाय के पैसे दे दिए थे.आजकल वो पैसे पहले लेता है,चाय बाद में देता है.
हमलोग क्लासरूम में पहुंचे तो पता की हिंदी वाले प्रोफ़ेसर साहब कहीं चले गए हैं,इसीलिए आज वो क्लास नहीं ले पाएंगे.हमलोग घर के लिए चल पड़े.कालेज से बस एक किलोमीटर दूर उनदोनो का घर था.जबकि मुझे आठ किलोमीटर दूर जाना था.मैनरोड पर आकर मैंने उन दोनों से विदा लिया अपने घर जाने के लिए बस पकड़ लिया.घर पहुंचकर मै हाथ मुंह धोया और खाना कहकर अपने कमरे में चला गया.मै उसकी कापी खोलकर पन्ने पलटने लगा.बहुत से गीतों के बोल लिखे हुए पेज पर कल उसने एक गीत का बोल लिखा था-
प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज नहीं
एक खामोशी हैं सुनती हैं कहा करती हैं
न ये बुझती है, न रुकती है, न ठहरी हैं कही
नूर की बूँद है, सदियों से बहा करती हैं
मैंने कई बार पढ़ा.उस गीत के बोल को और कई बार छुआ उन नीले अक्षरों को.पुरे शरीर में एक अजीब सी सिहरन हो रही थी,दिल तेजी से धड़क रहा था और उसे छूने का एहसास हो रहा था.कानो में गीत के बोल गूंज रहे थे.मैंने किताबों के बीच छुपाकर रखी हुई अपनी एक डायरी निकाली जिसमे मै रेडियो और टेपरिकार्डर के द्वारा सुने हुए कुछ अच्छे गानो को नोट करता था.उसमे मै पन्ने पलटते हुए “ख़ामोशी” फ़िल्म का गीत ढूंढा,उसी फ़िल्म के एक गीत के बोल थे.मैंने उसी गीत का अगला बोल लिख दिया-
मुस्कराहट सी खिली रहती हैं आँखों में कही
और पलको पे उजाले से झुके रहते हैं
होठ कुछ कहते नहीं, कापते होठों पे मगर
कितने खामोश से अफसाने रुके रहते हैं
हम ने देखी है, उन आखों की महकती खुशबू
हाथ से छूके इसे, रिश्तो का इल्जाम ना दो
सिर्फ एहसास हैं ये, रूह से महसूस करो
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो
मैंने कापी बंद की और दोनों कापियां आलमारी में किताबों के बीच छुपा के रख दी.मै अब असाइनमेंट तैयार करने का मूड बनाया.अंग्रेजी और राजनीतिशास्त्र का असेसमेंट मै पहले ही जमा कर चूका था,अब अर्थशास्त्र और हिंदी का असाइनमेंट तैयार करना था.पहले अर्थशात्र की किताब खोलकर अंग्रेजी में लिखकर अर्थशात्र का असेसमेंट तैयार किया और फिर हिंदी की किताबे खोल हिंदी का असाइनमेंट लिखने लगा.रात बारह बजे तक हिंदी का असेसमेंट तैयार कर दिया.बीच में केवल शाम की चाय पीने और रात का खाना खाने के लिए डाइनिंग हाल में गया.माता-पिता जी और बहनें सब बहुत खुश थे की आज जबसे मै कालेज से लौटा हूँ लगातार पढाई में बिज़ी हूँ.लिख लिख के मेरी हाथ की अंगुलियां दर्द कर रहीं थीं.मैंने इतनी मेहनत बीस नंबर पाने के लिए तो की ही थी,लेकिन उसके पीछे सबसे बड़ी प्रेरणा मेरे प्रेम की थी,मुझे उसे बौद्धिक रूप से प्रभावित करना था.उन दिनों में सिर्फ दो साल का ही बीए का कोर्स था और कालेज में विश्वविद्यालय की और से ही ये नियम लागू था कि बीस नंबर का असाइनमेंट मार्क हर विषय के टीचर अपने विषय से सम्बंधित छात्रों को देंगे.टीचर अपने सब्जेक्ट से सम्बंधित दो प्रश्न देते थे,जिसका जबाब पंद्रह-बीस पेज की पतली सी कापी में लिख के दे दिया जाता था.टीचर छात्रों की योग्यता और व्यवहार के अनुसार मार्क देते थे,जो हर साल की मार्कशीट में जुड़ जाता था.इसका सबसे बड़ा फायदा ये था कि बहुत कम छात्र फेल होते थे और अपने टीचरों का सम्मान करना छात्रों की मज़बूरी थी.
शेष अगले ब्लॉग में…
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh