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छूप गया कोई रे,दूर से पुकार के भाग-४

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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छूप गया कोई रे,दूर से पुकार के भाग-४
किसी बात पर दोनों हंसते खिलखिलाते हुए कमरे में प्रवेश कीं.अर्चना सफ़ेद ट्रे में तीन कप चाय लिए हुए थी और वो स्टील की एक बड़ी प्लेट अपने एक हाथ में लिए हुए थी,जिसमे गरमागरम पकौड़ियां भरी हुईं थी.
एक पीले रंग का प्लास्टिक का स्टूल मेरे सामने रख वो पकौड़ियों से भरीं प्लेट रखते हुए बोली-लीजिये प्रोफ़ेसर साहब,गरमागरम पकौड़ियां खाइये-वो हंसने लगी.उसके सुंदर चेहरे पर सफ़ेद मोती जैसे दांत चमकने लगे.
मेरा मजाक उड़ा रही हो ?-मै उसकी झील सी गहरी आँखों में झांकते हुए बोला.
नहीं,लेकिन पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि तुम्हे प्रोफ़ेसर बनना चाहिए.देखने में वैसा ही लगते भी हो-वो बोली.
ये पकौड़ियां तुमने बनाई हैं ?-एक पकौड़ी प्लेट से उठाते हुए मै पूछा.
हमदोनो ने मिल के बनाई है.-अर्चना चाय की ट्रे मेज पर रखकर बिस्तर पर बैठते हुए बोली.
वो मेरे सामने बिलकुल पास में बैठ गई.मेरी नज़र मेज पर रखे रेडियो पर गई.मैंने दायें हाथ पर बंधी अपनी घडी देखी,दिन के साढ़े बारह बज रहे थे.
मैंने अर्चना से कहा-जरा रेडियो खोलो तो,आज पुराने फ़िल्मी गीतों का कार्यक्रम आ रहा होगा.
उसने बिजली से चलने वाला बड़ा रेडियो खोल दिया,कुछ ही पल में तलत महमूद और शमशाद बेग़म की मधुर आवाज़ पूरे कमरे में गूंजने लगी-
मिलते ही आँखे दिल हुआ दीवाना किसी का
अफ़साना मेरा बन गया अफ़साना किसी का.
मैंने उसकी तरफ देखा और उसने मेरी तरफ,उसने पलकें झुंका लीं और प्लेट से एक पकौड़ी उठा मेरे होंठों से लगा दी.मैंने शरमाते सकुचाते हुए मुंह खोला.पकौड़ी मुंह में ले उसकी तरफ देखने लगा.कमरे में फिर तलत साहब की मख़मली आवाज़ और शमशाद बेगम की खनकती आवाज़ गूंजने लगी-
पूछो न मुहब्बत का असर
हाय न पूछो – हाय न पूछो
दम भर में कोई हो गया परवाना किसी का.
उस गीत की भावुकता में बहकर पता नहीं कैसे मुझमे इतनी हिम्मत आ गई कि मैं भी प्लेट से एक पकौड़ी उठाकर उसके गुलाबी होठों से लगा दिया.उसने मेरा हाथ पकड़ लिया.मैंने अपने दूसरे हाथ से उसका हाथ छुड़ाना चाहा तो उसने दूसरा हाथ भी पकड़ लिया.पूरे शरीर में अजीब सी सिहरन होने लगी.तलत महमूद और शमशाद बेग़म कि कर्णप्रिय आवज़ कमरे में फिर गूंजने लगी-
हँसते ही न आ जाएं कहीं
आँखों में आंसू – आँखों में आंसू
भरते ही छलक जाए न पैमाना किसी का.
हमदोनो ने एक दूसरे की आँखों में झांकना शुरू किया.एक अजीब सा नशा छाने लगा.नाक से तेज गर्म सांसे छूटने लगीं.तभी अचानक बिजली चली गई.रेडियो बंद होने के साथ ही कमरे में कुछ अँधेरा छा गया.बाहर तेज हवा चलने और पानी गिरने की आवाज़ आने लगी.ठण्ड और ठिठुरन और बढ़ गई.मैंने उसके नर्म मुलायम गोरे हाथो में फंसे अपने हाथ छुड़ा लिए.अब मुझे होश आया की अर्चना भी पास में है.वो ये सब देखकर क्या सोच रही होगी ?मैंने शरमाते हुए अर्चना की तरफ देखा,वो अपनी आँखें पोछ रही थी.
क्या हुआ ?-मैंने पूछा.
कुछ नहीं,कुछ आँखों में पड़ गया था-वो अपनी आँखे धीमे से सहलाने लगी.मै समझ गया की ये झूठ बोल रही है,वास्तव में बात कुछ और है.
अरे,चाय पियो न,ठंडी हो रही है-अर्चना बात बदलते हुए एक कप चाय मेरे सामने स्टूल पर रख दी.एक कप चाय उसे पकड़ाई और चाय का तीसरा कप अपने होठों से लगा ली.मै चाय पीने लगा.चाय हल्की गर्म थी.
चाय ठंडी हो चुकी है.लाओ तुम्हारी चाय गरम कर लाऊं-वो बोली.
नहीं,रहने दो.चाय दुबारा गर्म करके नही पीना चाहिए-मै बोला.
मै कुछ देर बाद फिर से चाय बना दूंगी-अर्चना बोली.
तुम्हारे मम्मी पापा कब आयेंगे-मैंने अर्चना से पूछा.
मम्मी तो स्कूल से चार वबजे छुट्टी होने के बाद पाँच बजे तक घर आ जाएँगी और पापा..कुछ देर रूककर गहरी साँस खींचते हुए बोली-उनके लौटने का कोई निश्चित टाईम नहीं है.कब लौटेंगे कुछ पता नहीं.कभी होश में तो कभी खूब पी के लड़खड़ाते हुए.
तुम अकेले घर में बोर हो जाती होवोगी तुम्हारे और कोई भाई बहन भी नहीं हैं-मै बोला.
हाँ,वो तो है,एक लुसी थी मेरा बहुत साल साथ निभाई.दो महीने पहले वो भी साथ छोड़ के चली गई-वो बहुत उदास हो गई थी.
उसकी सफ़ेद बालों वाली कुतिया को याद करते हुए मै बोला-हाँ,बहुत अच्छी थी.पूंछ हिलाते हुए मेरे पीछे पीछे घूमती रहती थी.जहाँ मै बैठता था,वहीँ पास में बैठ जाती थी.
जाने दो मत याद दिलाओ उसकी-वो रोने लगी.
तुम एक दूसरी लुसी ले आओ-मै बोला.
नहीं,कभी नहीं.अब कोई लुसी नहीं पालूंगी.अब और सदमा मै नहीं बर्दाश्त कर सकती-वो सिसकते हुए बोली.कुछ देर रूककर मेरी तरफ अपना बायां गोरा नाजुक हाथ कर अपनी हथेली मेरे सामने फैलाते हुए बोली-तुमने कई बार मेरा हाथ देखा है.आज केवल मुझे इतना बता दो की मै कितने साल अभी और जिन्दा रहूंगी.मै और जीना नहीं चाहती.उसकी आँखों से फिर आंसू छलक पड़े.
उसकी बात सुनकर मै सन्न रह गया.उसकी पीड़ा का एहसास मुझे हो रहा था.
कैसी बातें करती है.मै हूँ न तेरे साथ.तू ऐसा क्यों बोलती है-वो उसके पास बैठ रुमाल से उसके आंसू पोछने लगी.तभी बिजली आ गई और कमरे में उजाला होने के साथ ही रेडियो पर मुकेश की आवाज़ गूंजने लगी-
ऐसे वीराने में इक दिन, घुट के मर जाएंगे हम
जितना जी चाहे पुकारो, फिर नहीं आएंगे हम
ये मेरा दीवानापन है …
मुझे महसूस हुआ कि ये दर्दभरा गीत उसके दुःख को और बढ़ानेवाला है.मैंने उठ के रेडियों का स्विच आफ कर दिया.तभी कालबेल बजी.अर्चना अपने को नार्मल की और उठकर कमरे से के बाहर की जाते हुए बोली-काम वाली बाई होगी.मै जा के देखती हूँ.
अर्चना के जाते ही वो फिर शरारत शुरू कर दी.मेरे नजदीक बैठ अपने दोनों हाथ मेरी तरफ की और अपनी दोनों हथेलियां फैला बोली-मेरा हाथ ध्यान से देखो और बताओ कि हमारी शादी कब होगी ?बच्चे कितने होंगे ?उसके चेहरे पर शरारत के भाव थे.उसके सवालों से मुझे शर्म महसूस हो रही थी.वो मेरी परेशान हालत का आनंद लेते हुए अपना चेहरा मेरे बाएं कान के नजदीक लाई.उसके चहरे से आती खुशबू और नाक से निकल रही गर्म सांसे मेरी हालत और ख़राब का दीं.वो मेरे कान में धीमे स्वर में फुसफुसाई-मुझे बच्चों से बहुत प्यार है..और ..
इससे पहले की वो कुछ और बोलती अर्चना कमरे में आकर उससे डोगरी भाषा में कुछ बोलने लगी.दोनों में देर तक बहस होती रही.अर्चना गुस्से के मारे तेज स्वर में कुछ बोली और कमरे से बाहर निकल दरवाजा बाहर से बंद कर दी.मै हड़बड़ाकर कुर्सी से उठ खड़ा हुआ-ये क्या मजाक है ?
वो जोर से हंसने लगी.कुछ देर हंसने के बाद बोली-तुम घबराओ मत अभी दो मिनट में वो दरवाजा खोल देगी.मेरा हाथ पकड़ वो कुर्सी पर बैठा दी.
अर्चना से कहो की दरवाजा खोले और वो डोगरी भाषा में तुमदोनों क्या बातें कर रही थीं ?
मुझे लगता है कि मेरे ही विषय में कुछ बातें हो रही थीं-मै नाराजगी से बोला.
वो गुस्से के मारे कह रही थी कि तू अभी शादी करले,सुहागरात मना ले और बच्चे पैदा करले..वो हँसते हुए बोली.
ये क्या पागलपन है ?तुम अपने साथ साथ मुझे भी बदनाम करोगी-मै गुस्से से बोला और कुर्सी से उठ खड़ा हुआ.
वो मेरे नजदीक आकर मेरे गले बाहें डाली और शरारत से मुस्कुराते हुए गुनगुनाने लगी-
तेरे प्यार में बदनाम दूर दूर हो गए
तेरे साथ हम भी सनम मशहूर हो गए
देखो कहा ले जाये बेखुदी अपनी
वो बहुत रोमांटिक मुड़ में हो रही थी.उसके शरीर की खुशबू मेरे शरीर में समा रही थी और उसकी नाक से निकलतीं गर्म सांसे मेरे नाक से निकलने वाली गर्म सांसों से टकराकर मुझे इतना उत्तेजित और मदहोश कर दीं कि मेरे दोनों हाथ उसकी कमर से लिपटते चले गए और वो मेरी बाँहों में कसती चली गई.उसके गुलाबी होंठों से मेरे होंठ सटते चले गए.एक तूफान कमरे के बाहर जारी था और एक तूफान कमरे के अंदर हमदोनो के शरीर में जारी था.दोनों ही तूफान प्राकृतिक था.दोनों ही अपने पूरे शरीर में उतेजना महसूस कर रहे थे और एक दूसरे को बाँहों में इस तरह से कसते जा रहे थे मानो आज एक दूसरे का शरीर पीस के रख देंगे.होठ से होठ और नाक से नाक एक दूसरे को दबाते ही जा रहे थे.दोनों के दिल की धड़कने और सांसे तेज होती जा रहीं थीं.पांच मिनट इसी तरह से बीते होंगे कि तभी अर्चना ने दरवाजा खोल दिया.वो हमलोगों को इस हालत में देखकर हतप्रभ रह गई.हमलोग न चाहते हुए भी एक दूसरे से अलग हो गए.
तुमलोग ये क्या कर रहे थे ?आग में इस तरह से घी मत डालो.भयंकर आग लग सकती है और वो भारी तबाही ला सकती है.-अर्चना पास बैठते हुए बोली.
आग और तबाही का दूसरा नाम इश्क है.इसीलिए जब इश्क के रास्ते पर चल पड़े तो आग और तबाही से क्या डरना ?-वो गहरी साँस लेते हुए बोली.
मै कुर्सी पर बैठकर गहरी सांसे लेने लगा और वो बिस्तर पर बैठकर गहरी सांसे लेते हुए बस मुझे देखे जा रही थी.उसके चेहरे की चमक और होंठो की मुस्कराहट बता रही थी कि वो आज बहुत खुश थी.कुछ देर बाद वो मुस्कुराते हुए बोली-तुम्हारी शक्ति और सत्ता को आज मैंने बहुत करीब से महसूस किया,मै उसे स्वीकारती भी हूँ,लेकिन इसका मतब ये नहीं कि तुमने मुझे पराजित कर दिया है.अपनी ताकत दिखाने का तुम्हारा मकसद मेरे उस वजूद को खत्म करना था जो मुझे आनंद देती है और तुम्हे परेशान करती है.
उसके मुंह से एक सच सुनकर मै कुछ झेंप गया.वाकई में आज उसे मै एक सबक सीखना चाहता था ताकि वो मुझे हमेशा परेशान न करे.फिर भी मैंने अर्चना के सामने अपनी सफाई देते हुए कहा-जो कुछ हुआ उसके लिए तुम भी बराबर की भागीदार हो.तुम मेरे पीछे पड़ी थी.बहुत दिनों से तुम मुझे परेशान कर रही थी.ये सब उसी की परिणति थी.
मै तुम्हारे पीछे साल भर से पागलों की भांति भाग रही थी.जबकि इसके ठीक ऊलट होना चाहिए था.अब आज से तुम मेरे पीछे पागलो की भांति भागोगे.यही मै चाहती थी.स्त्री एक खजाना है और पुरुष एक आशिक.आशिक को खजाना के पीछे भागना चाहिए.यहाँ तो उल्टा हो रहा था खजाना आशिक के पीछे भाग रहा था.
उसकी बातें सुनकर मुझे लगा की मै पागल हो जाउंगा.मै अपना माथा पकड़कर अर्चना की तरफ देख बोला-मेरा सिरदर्द कर रहा है.प्लीज मुझे एक कप चाय पिलाओ और घर जाने की इजाजत दो.
घर कैसे जायेंगे जनाब.बाहर बहुत तेज हवाएं चल रही हैं.बहुत तेज बारिश हो रही है.चाय मै ले के आती हूँ.तूफान की वजह से आज काम वाली बाई भी नहीं आई-अर्चना उठते हुए बोली.
बेल बजी थी,तब कौन आया था ?-मैंने पूछा.
डाकिया था,एक पत्रिका दे गया-अर्चना कमरे से बाहर निकलते हुए बोली.
मै जरा बाथरूम हो के आता हूँ-मै कुर्सी से उठ खड़ा हुआ.
भूख लगी होगी,तुम्हारे लिए कुछ बना दूँ ?-वो बिस्तर से उठते हुए बोली.
मैंने दोनों हाथ जोड़ दिए-जी नही,शुक्रिया.आप ने बहुत कुछ खिला पिला दिया है.
जनाब को पसंद आया ?-उसने शरारत से मुस्कुराते हुए पूछा.
आप दूसरे के घर में मेरी खिदमत कर रही हैं.यही खिदमत अपने घर में करने की हिम्मत है ?-मैंने भी शरारत से मुस्कुराते हुए पूछा.
चलो,ये भी देख लो-ये कहकर उसने मेरा हाथ पकड़ा और ले के चल दी.हम कमरे से बाहर निकले तो अर्चना रसोई से चाय बनाना छोड़ चली आई-ये पागल है जनाब,इसे मत जोश दिलाइये.ये इस तूफान में भी आप को घर जायेगी.आप की खिदमत भी करेगी.अंजाम क्या होगा,इसकी इसे परवाह नहीं.आप समझदार हैं,इसके घर जाने की गलती मत कीजिये.अर्चना ने धीरे से मेरा हाथ उसके हाथ से छुड़ा दिया.
मै बाथरूम की तरफ चल पड़ा.मै बाथरूम से लौटा तो कमरे में चाय पकौड़ियां रखीं हुईं थीं.बिस्तर पर बैठकर मैंने कुछ पकौड़ियां खाईं और चाय पिया.दिन का दो बज रहा था,न तेज हवाएं रुकने का नाम ले रहीं थी और न ही तेज बारिश थमने का नाम ले रही थी.
अब मै घर कैसे जाउंगा ?-मैंने चिंतित होकर कहा.
जनाब,आशिकों और फकीरों का कोई घर नहीं होता है.जहाँ आशिक का जी चाहा आशिकी कर ली और जहाँ फ़क़ीर का जी चाहा फकीरी कर ली.न आप आशिक हो पा रहे हैं और न ही फ़क़ीर.आप बड़ी दुविधा में हैं-वो मुस्कुराते हुए बोली.
घर पास में है न,इसीलिए फ़िल्मी डायलॉग मार रही हो.मेरी तरह आठ किलोमीटर दूर मिल्ट्री छावनी जाना होता तो पता चलता.रात को तो उधर जाने का कोई साधन मिलना भी मुश्किल होता है-मै कुछ झल्लाते हुए बोला.
चलो लगी शर्त.तुम यहाँ रुको,मै भी रुकूँगी-उसने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाया.
मैंने उसके हाथ को हलके से छू शर्त लगा ली.वो कुछ बोली नहीं,बस मुस्कुराती रही.
शेष अगले ब्लॉग में-
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

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