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छूप गया कोई रे,दूर से पुकार के भाग-५

सद्गुरुजी
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छूप गया कोई रे,दूर से पुकार के भाग-५
मुझे बहुत तेज ठण्ड महसूस हुई.ठण्ड से मुझे झींक आ गई.अर्पिता बक्से के ऊपर रखा एक पीला साल उठा लाई और मुझे ओढ़ा दी.सर्दी से मुझे कुछ राहत मिल गई.मै उसे बस देखता रहा.वो भी मुझे देखते हुए मुस्कुराती रही.
अर्चना मेरे पास आकर बोली-अपने दोनों पांव उठाकर बिस्तर पर रख लीजिये,आप को सर्दी से बहुत राहत मिलेगी.
मैंने दोनों पांव उठाकर बिस्तर पर रख लिए और शाल ठीक से ओढ़ लिया.सर्दी से काफी राहत मिली.
अब मेरा हाथ देखिये.-मेरे पास कुर्सी खीचकर अर्चना बैठ गई.अपना बायां हाथ मेरे सामने कर हथेली फैला दी.
मै उसका हाथ सालभर में कई बार देख चूका था.अब फिर से देखने की इच्छा नहीं थी,परन्तु मज़बूरी में फिर से देखते हुए बोला-सभी पर्वत अच्छे हैं.भाग्यरेखा और सूर्यरेखा दोनों अच्छी है.सरकारी नौकरी करोगी.अपनी कमाई से भूमि,भवन वाहन खरीदोगी और विदेश यात्रा भी होगी.
मेरी मैरिज लाइफ के बारे में कुछ बताइये.शादी मेरी मर्जी से होगी या घरवालों की ?-अर्चना बोली.
ऊसका सवाल सुनकर मै सोचने लगा-आदमी जीवन जीने के प्रति भीतरी मन से कितना आशान्वित होता है,जबकि बाहर से मरने की बात करता है.ये भी कुछ देर पहले मरने की बात कर रही थी.
तुम्हारा बुध पर्वत तो अच्छा है,परन्तु..-मै आगे कुछ कहते कहते रुक गया और सोचने लगा कि इससे कहूं या न कहूं.
जो कुछ भी है,साफ साफ बताओ न ?-अर्चना बड़ी उत्सुकता से बोली.
तुम्हारे बुध पर्वत पर विवाह रेखा ही नहीं है..आगे मै कुछ कहता उससे पहले ही अर्पिता बहुत जोर से खिलखिलाकर हंस पड़ी.अर्चना कुछ गम्भीर हो गई.
मुझे भी बहुत आश्चर्य है,लेकिन विवाह रेखा हाथ में न हो तब भी विवाह होता है.तुम इस बात को गम्भीरता से मत लेना.-मै बोला.
चल तेरी तो शादी विवाह से छुट्टी हुई.जा अकेले इस दुनिया में ऐश कर.-अर्पिता हंसते हुए मेरे पास बैठ अपना दायां हाथ मेरे सामने फैला दी-अब इसे छोडो,मेरे बारे में कुछ बताओ.मेरे हाथ में तुम सिर्फ बच्चों की रेखा देखो.शादी तो मै तुमसे हर हालत में कर ही लूंगी.
मैंने उसकी विवाह रेखा देखी,जो नीचे ह्रदय रेखा की तरफ झुकी हुई थी.विवाह रेखा के ऊपर कोई संतान रेखा नहीं दिखी.मै जानता था की हस्तरेखाओँ के अनुसार कुछ कहूंगा तो ये बहुत तर्क वितर्क करेगी और मेरा मजाक उड़ाएगी,इसीलिए उससे पीछा छुड़ाने के लिए मै बोला-दस बारह संतान रेखाएं हैं.चूल्हा-चौका करने और घर के बर्तन मांजने के प्रबल योग बने हुए हैं.
मजाक छोडो,सीरियसली बताओ..और पहले शाल से अपने हाथ बाहर निकालो.-वो बोली.
मैंने शाल से हाथ बाहर निकाले,उसने अपना दाया हाथ मेरे दायें हाथ के ऊपर रख दिया-लो अब कायदे से देखो.
उसके हाथ नर्म मुलायम और भयंकर ठण्ड के कारण कुछ ठन्डे से थे.मैंने असका हाथ देखते हुए कहा-सबकुछ ठीक है हाथ में,कोई सीरियस बात नहीं है.उसके हाथ में शुक्र पर्वत सबसे ज्यादा उठा हुआ था,जिसे देखकर मै सोचने लगा इसी वजह से ये इतनी ज्यादा रोमांटिक नेचर की है.
अर्पिता मेरी तरफ देखते हुए बोली-दुनिया से विपरीत चलनेवालों के हाथ में सबकुछ ठीक नहीं होता है.तुम या तो जानते नही हो या फिर मुझे बताना नहीं चाहते हो.
मै कोई ज्योतिष का विशेषज्ञ तो हूँ नहीं,जितना जानता था बता दिया-मै बोला.
मुझे लगता है की तुम जानते हो क्योंकि किसी भी विषय की तुम बहुत डीपली स्टडी करते हो.तुमसे कभी अकेले में हाथ दिखाउंगी तब तुन सब सही सही बताओगे-वो अपना हाथ मेरे हाथ पर से हटाते हुए बोली.मैंने राहत की साँस ली.
तीन बज रहे हैं.आज बारिश के कारण काम वाली बाई नहीं आई.मै बर्तन धोकर सब्जी बनाने जा रही हूँ.मम्मी आकर रोटी बनाएंगी.-अर्चना कुर्सी से उठते हुए बोली.
तबतक हमलोग हिंदी और अर्थशास्त्रवाली असाइनमेंट तैयार कर लेते हैं.-अर्पिता उठकर अपना बैग खोली और उसमे से चार पतली कापियां और मेरी दी हुई असाइनमेंट की फ़ोटो कापी निकाली.वो कुर्सी मेज के पास खिंच बैठ गई.मुझे हिंदी के असाइनमेंट की फोटो कापी पकड़ाते हुए बोली-तुम बोलते जाओ और मै लिखती जाती हूँ,इससे जल्दी लिखा जायेगा.
मै हिंदी की असाइनमेंट पढ़ के बोलता गया और वो लिखती गई.तीन घंटे लगे तब जाके बीस पेज की असाइनमेंट पूरी लिखा पाई.
वो असाइनमेंट पूरी करके बहुत खुश थी.अपनी अंगुलियां सहलाते हुए बोली-मान गई यार,कितनी बढियां असाइनमेंट है.इतना अच्छा तो मै भी नहीं लिख पाती.तुम वाकई बहुत इंटेलिजेंट हो.वो कुर्सी से उठकर मेरे पास बैठ गई-तुम्हारा शुक्रिया कैसे अदा करूँ.मेरी ओर देखते हुए बोली.
उसकी जरुरत नहीं.दोस्ती में क्या शुक्रिया अदा करना ?-मै बोला.
फिर भी मेरा दिल कर रहा है,शुक्रिया अदा करने को.-वो शरारत से मुस्कुराई.
मेरा दिल धड़क उठा.ये पागल लड़की पता नहीं क्या करे.तभी कालबेल बजी.मै निश्चिन्त हो गया.वो एक झटके से उठी मेरे सर पर दोनों हाथ रखे और बायीं तरफ के गाल पर अपने नर्म होठों से एक चुम्बन जड़ दिया-थैंक्यू सो मच…
मुझे बिजली के झटका जैसा लगा.दिल जोर से धड़क उठा.एक अजीब सा रोमांच पूरे शरीर में हुआ.मै शर्म से झेंप गया.उन्नीस साल की युवावस्था में मेरे ही उम्र के लगभग की किसी युवा लड़की का दिया हुआ ये पहला चुम्बन था.जिसे मै अपने जीवन में कभी भूल नहीं पाया.
मै आश्चर्य से उसकी तरफ देखा.वो शरारत से मुस्कुराते हुए अपने होठों को अपने सफ़ेद मोती जैसे दांतों से दबा रही थी.कुछ देर बाद मुस्कुराते हुए धीमे स्वर में बोलीं-एकदम मासूम हो..छोटे बच्चो की तरह..देखते ही प्यार करने को दिल करने लगता है..मेरे लिए हमेशा ऐसे ही रहना..आई लव यू..
तभी कमरे में बातें करते हुए अर्चना और उसके माता जी प्रवेश किये.मैंने जाकर उसके माता जी को प्रणाम किया.तेज बारिश में वो बुरी तरह से भींग चुकीं थीं.उनके शरीर और कपड़ों से पानी चू रहा था.
हमेशा खुश रहो बेटा..अर्चना बता रही थी,उसकी दवाएं तुम लाए.बहुत अच्छा किया.स्कूल में दिनभर इसी की चिंता लगी रही.सुबह तो इसकी हालत बहुत ख़राब थी.प्रिंसिपल इतना ख़राब आया है की किसी को जल्दी छुट्टी ही नहीं देता है.सुबह ये अर्पिता आई तो मै इसे अर्चना के देखभाल की जिम्मेदारी सौप के स्कूल गई.स्कूल जाना भी जरुरी है.इंटर के बच्चो का हिंदी का कोर्स पूरा कराना है.-वो बोलती रहीं फिर कमरे से बाहर जाते हुए बोलीं-तुमलोग बैठो..मै कपड़े चेंज करके आती हूँ..अब फिर से नहाना पड़ेगा.
दूरदर्शन पर आज रात साढ़े सात बजे चित्रहार आएगा.हमलोग साथ बैठ के देखेंगे-अर्पिता बोलीं.
अर्चना घडी की और देखते हुए बोलीं-अभी तो साढ़े छह बजे हैं.एक घंटे का टाइम है.अपनी हिंदी के असाइनमेंट की कापी दे,मै भी अभी एक घंटे में जितना लिखा जाये लिख लूँ.
अर्पिता उसे अपनी कापी दे दी.वो कुर्सी मेज पर बैठकर लिखने लगी.
तुम अपना इकोनॉमिक्स का असाइनमेंट नोट करो.मै बोलते जाता हूँ.-मै अर्पिता से बोला.
हाँ,ये ठीक रहेगा.-अर्पिता बोलीं.
और हाँ,इस बार शुक्रिया अदा करने की जरुरत नहीं-मै उसकी तरफ मुस्कुराते हुए देखा.
अर्पिता मेरी ओर देख जोर से हंसने लगी.अर्चना लिखना छोड़ उसकी तरफ देखते हुए बोलीं-ये शुक्रियावाला क्या मैटर है ?
कुछ नहीं,तू अपना काम कर-अर्पिता बोलीं.वो इकोनॉमिक्स के असाइनमेंट की फोटोकापी मुझे पकड़ा दी.एक मोटी सी कापी के ऊपर असाइनमेंट लिखा जाने वाली पतली कापी रख अर्पिता मेरी बगल में बैठ गई और मेरी तरफ देखने लगी.मै अंग्रेजी में पढ़कर सुनाने लगा और वो असाइनमेंट नोट करने लगी.एक घंटे में आठ पेज असाइनमेंट वो नोट कर चुकी थी.तभी एक ट्रे में चाय बिस्कुट और नमकीन लेकर अर्चना की माताजी आइन-लो बच्चों,चाय पियो.आज बहुत ठंडी है.अभी भी बारिश हो रही है और सर्द हवाएं चल रही हैं.
अर्पिता घडी की तरफ देखी.साढ़े सात बज रहा था.वो लिखना छोड़ उठ खड़ी हुईं.-जल्दी चलो चित्रहार शुरू होने वाला है.
चाय तो पीते जाओ.-अर्चना की माता जी बोलीं.
अर्चना अपने माता जी के पास आकर चाय की ट्रे ले ली.-मम्मी,हम वहीँ पी लेंगे.तुम अपनी चाय ले लो.
ट्रे से एक कप चाय उसकी माताजी उठा लीं.हमलोग आगे के कमरे में गए,जो बहुत सजा धजा ड्राइंगरूम था.हमारे सामने दरवाजे के बायीं तरफ एक मेज थी,जिसपर एक बड़ा सा ब्लैक एंड वाइट टीवी था.उसकी स्क्रीन पर एक नीले रंग का प्लास्टिक कवर चढ़ा हुआ था.
उस समय रेडियो घर घर में होता था,परन्तु टीवी किसी किसी के पास होता था और पोल वाला बहुत लम्बा एंटीना लगाना पड़ता था.टीवी के आगे तीन सोफे,एक दायें बाएं और एक सामने लगे थे.सामने के सोफे के पीछे चार कुर्सियाँ थी.बीच में कम उंचाईवाली लकड़ी की चौकोर मेज थी.कमरे के चारो ओर की सफ़ेद दीवारों पर जगह जगह खूबसूरत पेंटिंग लगी थीं.
अर्चना ने टीवी आन किया.थोड़ी देर बाद टीवी आन हुआ.चित्रहार शुरू हो गया था.किसी नई फ़िल्म का गाना चल रहा था,जो राजेश खन्ना और रेखा पर फिल्माया गया था-
तुम्हें क्या बताऊं के तुम मेरे क्या हो
मेरी ज़िंदगी का तुम ही आसरा हो
मैं आशा की लड़ियां, न रह-रह पिरोती
अगर तुम न होते…
अर्पिता और अर्चना बिना पलक छपकाए टीवी की और ताकने लगीं.मै पीछे जाकर कुर्सी पर बैठ गया.गाना ख़त्म होने के बाद दोनों का ध्यान मेरी तरफ गया.दूसरा नई फ़िल्म रोमांस का गाना चल रहा था.अर्चना मुझे सोफे के पास बुलाई.-आओ सोफे पर यहीं तीनो बैठते हैं.
नहीं,तू यहाँ सोफे पर बैठ हमदोनो पीछे बैठेंगे.-अर्पिता ट्रे से दो कप चाय उठाते हुए बोली.
वो मेरे पास आई,एक कप चाय मुझे दी और मेरे बगल में बैठ गई.
तुम तो गाना सुनते सुनते मुझे भूल ही गई.-मै चाय पीते हुए बोला.
मै उस गाने में भी तुम्हे ही ढूंढ रही थी.मुझे राजेश खन्ना और रेखा से क्या लेना देना.अभी एक खूबसूरत हिरोइन टीवी पर दिखेगी तो तुम मुझे भूल उसी में खो जाओगे.मर्द सोचते किसी और के बारे में है देखते किसी और को हैं और मज़बूरी में प्यार किसी और से करते हैं.-अर्पिता बोली.
मै गुस्से के मारे उठ खड़ा हुआ-तुम मेरे बारे में ऐसा सोचती हो तो मुझे नहीं देखना चित्रहार.मै घर जा रहा हूँ.
अब चिढ क्यों गए.तुम्हे बुरा लगा न.ऐसे ही मुझे भी तुम्हारी बात का बुरा लगा था.चुचाप मेरे साथ बैठो.-उसने मेरा हाथ पकड़ खींचते हुए कुर्सी पर बैठने को मजबूर कर दिया.चित्रहर में सब नई फिल्मो के गाने दिखाए जाते रहे.जब चित्रहार ख़त्म होने को दस मिनट रह गया मिनट रह गया तब पुराने गाने दिखाने लगा,अनाड़ी फ़िल्म के हीरो राजकपूर परदे पर गा रहे थे-
किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार,
किसी का दर्द मिल सके तो, ले उधार
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार,
जीना इसी का नाम हैं
मेरा गुस्सा ठंडा होने लगा.अर्पिता को भी अच्छा लगा.उसने धीरे से अपना सिर मेरे कंधे पर रख दिया.उसके नाक से निकलती गर्म सांसे और उसके देह से आती सुगंध अच्छी लग रही थी.गाने का अंतिम बोल बहुत अच्छा लगा.-
रिश्ता दिल से, दिल के ऐतबार का
ज़िंदा हैं हम ही से नाम प्यार का
के मर के भी किसी को याद आयेंगे
किसी के आसुओं में मुस्कुरायेंगे
कहेगा फूल हर कली से बार बार,
जीना इसी का नाम हैं….
शेष अगले ब्लॉग में-
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)
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