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छूप गया कोई रे,दूर से पुकार के “शतक ब्लॉग” भाग-१

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इस संसार में अनगिनत लोग हैं,जिन्होंने मुझे प्रेम किया और जिन्हे मैंने प्रेम किया.मै उन सबका ऋणी हूँ,आज के समय में तो मै सबसे बड़ा ऋणी परमात्मा का,अपनी आत्मा का,आश्रम से जुड़े अनगिनत लोगों का,इस मंच का ,फेसबुक का एवं ट्विटर का तथा घर में अपनी माता जी,अपनी श्रीमती जी और अपनी दो साल की प्यारी बिटिया का हूँ.अपने अब तक के जीवन में मैंने प्रेम के बहुत से स्वरुप देखे.मेरे बहुत से मित्र आज मेरे साथ नहीं हैं.कुछ देश में यहाँ वहाँ है और कुछ विदेशों में हैं.यदि कोई संयोग से मेरे इस लेख को पढ़े तो जरुर मुझसे संपर्क करे.बहुत सालों से जो बिछुड़े है उनसे मिलने से बड़ी ख़ुशी क्या होगी.जिन्होंने कभी मुझे अनगिनत बार पुकारा था,वो इस संसार में मुझसे बिछुड़कर न जाने कहाँ छुप गए हैं-
छूप गया कोई रे, दूर से पुकार के
दर्द अनोखे हाय, दे गया प्यार के
आज हैं सूनी सूनी, दिल की ये गलियाँ
बन गयी काँटे मेरी, खुशियों की कलियाँ
प्यार भी खोया मैंने, सब कुछ हार के
अखियों से नींद गयी, मनवा से चैन रे
छूप छूप रोये मेरे, खोये खोये नैन रे
हाय यही तो मेरे, दिन थे सिंगार के
आज इस सौवे ब्लॉग में मै अपने बीते दिनों को याद करना चाहता हूँ,वयस्तता के कारण जिधर देखने की फुर्सत नहीं मिलती है.काश जीवन में भी रीटेक होता और हम पुराने दिनों में जा पहुँचते.आज बचपन के मित्र याद आते हैं और कालेज के दिनों के साथी याद आते हैं.मुकेश का गाया गीत मन में गूंजता है-
आया हैं मुझे फिर याद वो जालिम
गुज़रा जमाना बचपन का
हाये रे अकेले छोड़ के जाना
और ना आना बचपन का
वो खेल, वो साथी, वो झूले
वो दौड़ के कहना, आ छू ले
हम आज तलक़ भी ना भूले वो
ख्वाब सुहाना बचपन का
इस की सब को पहचान नही
ये दो दिन का मेहमान नही
मुश्किल हैं बहोत आसान नही ये
प्यार भूलाना बचपन का
मिलकर रोये, फरियाद करे
उन बीते दिनों की याद करे
ऐ काश कही, मिल जाये कोई जो
मीत पुराना बचपन का
प्यार बहुत अनोखी चीज है.दो बुद्धमान लोगों के बीच जल्दी प्रेम नहीं होता है,क्योंकि दोनों के अपने अपने अहंकार होते हैं.यदि प्रेम हो जाये तो फिर वो हमेशा के लिए हो जाता है.एक बहुत छोटी सी प्रेम कहानी है मेरी,जिसने मेरे जीवन को पूरी तरह से रूपांतरित कर दिया.कश्मीर की खूबसूरत वादियों में उन दिनों मै बीए कर रहा था.क्लास में एक लड़की से मेरी रोज किसी न किसी विषय पर बहस हो जाती थी.उससे बहस में जीतने के लिए मै मै विधिवत घर से स्टडी करके जाता था.ज्यादातर बहस हिंदी के पीरियड में होती थी.हिंदी पढने वाले प्रोफ़ेसर साहब जानबूझकर हम दोनों में बहस करते थे और बड़े मजे लेकर दोनों की बाते सुनते थे.क्लास के सभी साथी भी आनंद लेते थे.दो लोगों को लड़ाकर आनंद लेना इस देश में सबसे लोकप्रिय और सबसे सस्ता मनोरंजन है.बीए अंतिम साल में पहुँचने तक
हमारी बौद्धिक दुश्मनी गहरी दोस्ती में बदल गईं.भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए एक साथ बैठकर तैयारी करने लगे.किसी विषय पर बौद्धिक चर्चा में अब भी मेरी उससे बहस हो जाती थी लेकिन मेरी और उसकी दो रुचियाँ मेल खातीं थीं,जो हम दोनों को साथ जोड़े रखती थीं,पहली पुराने फ़िल्मी गीतों में रूचि और दूसरे गरीब व् अनाथ बच्चों की सेवा करने का सपना देखना.हम लोग अक्सर घर से जो जेबखर्च मिलता था उसका कुछ हिस्सा बचाकर बच्चों के एक अनाथालय में दे आते थे.एक दिन हमदोनो ने निश्चय किया की नौकरी में लग जाने पर हमदोनो मिल के बेसहारा,गरीब और कूड़ा बीननेवाले बच्चो के लिए एक अनाथालय खोलेंगे.मैंने उस अनाथालय की कल्पना करते हुए उसकी कापी लेकर साहिर साहिब का एक गीत लिख दिया-
मैं हर एक पल का शायर हूँ
हर एक पल मेरी कहानी है
हर एक पल मेरी हस्ती है
हर एक पल मेरी जवानी है
रिश्तों का रूप बदलता है,बुनियादें ख़तम नही होती
ख्वाबों कि और उमंगो कि मीयादें ख़तम नहीं होती
एक फूल में तेरा रूप बसा एक फूल में मेरी जवानी है
एक चेहरा तेरी निशानी है,एक चेहरा मेरी निशानी है
मैं हर एक पल का शायर हूँ …
तुझको मुझको जीवन अमृत,अब इन हाथों से पीना है
इनकी धड़कन में बसना है,इनकी साँसों में जीना है
तू अपनी अदाएं बक्श इन्हें में अपनी वफ़ाएं देता हूँ
जो अपने सोची थी कभी,वोह सारी दुआएं देता हूँ
मैं हर एक पल का शायर हूँ …
उसने मुझसे कापी लेकर कई बार पढ़ा और फिर एकदम गम्भीर हो गई,शायद कुछ नाराज भी.उसने मेरी कापी छीन ली और नाराजगी से उठते हुए कहा-इसका जबाब कल मै तुम्हे दूंगी.तुम्हारी कापी में लिखकर अपनी सहेली से भिजवा दूंगी.वो चली गई.कालेज के पुस्तकालय में अकेला बैठा मै सोचने लगा-मुझसे क्या गलती हो गई.नाराज़ हो के चली गई.कल पता नहीं क्या जबाब लिख के देगी.घर जाकर अनमना और उदास सा रहा.रात को ये सोच सोच के नींद नहीं आई कही वो प्रिसिपल से या फिर मेरे घर पर आकर शिकायत न करे.मेरे सैनिक पिता तो सुनते ही नाराज हो जायेंगे.उनका तो हर समय बस यही कहना रहता है की फालतू समय कहीं भी बर्बाद मत करो और पूरा मन लगाकर आईएएस की तैयारी करो.अगले दिन मै जानबूझकर कालेज नहीं गया की पता नहीं क्या जबाब लिख के दे.अगले दिन मै कालेज पहुंचा.जब कालेज की गैलरी में उससे मुलाकात हुई तो गुस्से से बोली-कल क्यों नहीं आये कालेज मै शाम तक इंतजार करने के बाद घर गई.फिर उसने अपने बैग से मेरी कापी निकाल मुझे थमा दी-लो,तुम्हारे लिखे गीत के नीचे मैंने भी जबाब में एक गीत की कुछ लाईने लिखीं हैं.इत्मीनान से पढ़ लेना और मतलब समझ जाना और न समझ में आये तो मुझसे पूछ लेना.इतना कहकर वो मुस्कुराई और फिर क्लासरूम की तरफ चली गई.मेरा तो दिल धड़क रहा था की इसने जबाब में क्या लिखा है.मै क्लासरूम में जाने की बजाय कालेज की छत पर चला गया और जल्दी से कापी खोलकर पन्ने पलटने लगा.कुछ देर में वो पन्ना मिल गया,जिसे मै तलाश रहा था.उस पेज पर उसने नीले रंग की स्याही वाले पेन से ये गीत लिखा था-
तुम ही मेरे मंदिर, तुम ही मेरी पूजा, तुम ही देवता हो
कोई मेरी आँखों से देखे तो समझे के तुम मेरे क्या हो
जिधर देखती हूँ, उधर तुम ही तुम हो
न जाने मगर किन ख़यालों में गुम हो
मुझे देखकर तुम ज़रा मुस्कुरा दो
नहीं तो मैं समझुंगी मुझ से खफा हो
तुम ही मेरे माथे की बिंदीयां की झिलमिल
तुम ही मेरे हाथों के गजरों की मंज़िल
मैं हूँ एक छोटीसी माटी की गुड़ियाँ
तुम ही प्राण मेरे, तुम ही आत्मा हो
बहोत रात बीती, चलो मैं सुला दू
पवन छेड़े सरगम मैं लोरी सुना दू
तुम्हे देखकर ये ख़याल आ रहा हैं
के जैसे फरिश्ता कोई सो रहा हो
उसका जबाब पढ़कर दिल की धड़कने तो बढ़ीं,प्यार का इजहार समझ में भी आया,परंतु ये समझ में नहीं आया कि वो सच कह रही है या फिर मुझे बेवकूफ बना रही है.मैंने उसके मन की थाह लेने के लिय़े उसी गीत के नीचे एक गीत लिख दिया-
वो पास रहें या दूर रहें नज़रों में समाये रहते हैं
इतना तो बता दे कोई हमें क्या प्यार इसी को कहते हैं.
छोटी सी बात मुहब्बत की और वो भी कही नहीं जाती
कुछ वो शरमाये रहते हैं और कुछ हम शरमाये रहते हैं.
मिलने की घड़ियाँ छोटी हैं और रात जुदाई की लम्बी
जब सारी दुनिया सोती है हम तारे गिनते रहते हैं.
मै नीचे की मंजिल पर स्थित अपने क्लासरूम की तरफ बढ़ा.हिंदी का पीरियड चल रहा था.प्रोफ़ेसर साहब से इजाजत लेकर मै दूसरी बेंच पर बैठ गया,जिधर लड़के बैठे थे.दायीं तरफ की बेंच पर लड़कियां बैठीं थीं.सबसे पीछे की बंच्चों पर वो लड़के आराम फरमा रहे थे,जिन्हे पढाई से कोई मतलब नहीं था.उनमे से कई पॉकेट ट्रांजिस्टर की बहुत धीमी आवाज़ करके क्रिकेट मैच की कमेंट्री सुने थे.प्रोफ़ेसर साहब ने चाहा कि मीरांबाई के एक भजन पर मै और वो अपने कुछ विचार व्यक्त करें.वो आज फिर मुझे व् उसे बौद्धिक रूप से लड़ाना चाहते थे.मैंने जो कुछ बोला उसने भी वही कहा.प्रोफ़ेसर साहब ने आश्चर्य से हमदोनों को देखते हुए बोले-आपलोगों में दोस्ती हो गई क्या ?हमने एक दूसरे को मुस्कुराते हुए देखा परन्तु कोई जबाब नहीं दिया.
पीरियड ख़त्म होने के बाद लड़के लड़कियां क्लासरूम के बाहर निकलते गए.कई मित्रों ने बाहर निकलने को कहा,मैंने सबको एक ही जबाब दिया-आप चलें,मै आ रहा हूँ.न मै पार्क में गया और न ही कालेज की कैंटीन में,वही क्लासरूम में बैठा रहा.वो अपनी सहेली अर्चना के साथ मेरे पास आई.मैं उसे अपनी एक कापी पकड़ाते हुए बोला-लो.इसमें कल का कुछ नोट्स हैं,देख लेना.उसने मुस्कुराते हुए कापी ले ली.
वाह जनाब,कल आप आये भी नहीं और नोट्स दे रहे हैं.-हमलोगों की तरफ देख हंसने लगी.
इडियट,ये कल का नहीं दो चार दिन पहले का नोट्स है.-उसने बड़ी चालाकी से झूठ बोला.
अगले दिन उससे कालेज जानेवाले रास्ते में ही मेरी मुलाकात हो गई.अपनी सहेली के साथ कालेज की और जा रही थी.वो मेरी कापी धनयवाद सहित वापस कर दी.अर्चना मेरे हाथों से कापी खींच के ले ली और बोली-जनाब,मुझे भी कुछ नोट करना है.नोट करके कल आप को ये कापी दे दूंगी.हमदोनो एक दूसरे की तरफ देखने लगे.मेरी तो जान सूखने लगी.कहीं इसे पता चल गया तो ?ये किसी और को न बता दे.उसने अर्चना से लड़झगड़ कर मेरी कापी उससे छीनकर मुझे दे दी और अपनी कापी अर्चना को देते हुए बोली-ले तू मेरी कापी से नोट कर लेना.अर्चना कापी लेते हुए बोली-कुछ बात जरुर है,जो तुमलोग मुझसे छिपा रहे हो.हमने कई बहाने बनाये लेकिन वो संतुष्ट नहीं हुई.उसे हमदोनो पर शक हो गया था.
हमलोग कालेज के पास पहुँच गये थे.वो दोनों क्लासरूम की तरफ चल पड़े और कालेज के पार्क की तरफ.पार्क में लड़के लड़कियों की भीड़ थी.एक एकांत जगह ढूंढकर मैंने जल्दी से कापी खोला.मेरे गीत के जबाब में उसने ये गीत लिखा था-
धड़कते दिल की तमन्ना हो मेरा प्यार हो तुम
मुझे करार नहीं जबसे बेकरार हो तुम
खिला वो फूल किसी के किसी चमन में रहो
जो दिल की रह से गुजरी है वो बाहर हो तुम
जहें नसीब अता थी जो दर्द की तौबा
वो गम हसीन है जिस गम के जिम्मेदार हो तुम
चढ़ाऊँ फूल या आंसू तुम्हारे क़दमों में
मेरी वफाओं के उल्फत की यादगार हो तुम
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६) ,