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छूप गया कोई रे,दूर से पुकार के भाग-७

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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छूप गया कोई रे,दूर से पुकार के भाग-७
अगले दिन सुबह मै देरतक सोता रहा.माता जी ने मुझे जगाया-आज कालेज नहीं जाओगे क्या ?सुबह के नौ बज गए हैं.कब उठोगे.
मै रजाई हटा देखा कमरे में सूर्य की रोशनी फैली हुई है.मै रजाई एक तरफ कर बिस्तर से उठ खड़ा हुआ.कल की घटनाओ को लेकर मन बड़ा खिन्न था.पता नहीं अब कैसा विहेव मै अर्पिता से करूँगा और रात को अर्चना से भी झूठ बोलकर घर आने का दुःख था और पिताजी ने घर देर से आने पर जो लताड़ा था,वो सब याद था.यही सब कारण था की आज कालेज जाने की इच्छा नहीं हो रही थी,परन्तु आज हिंदी की क्लास अटेंड करना जरुरी था.
आज कालेज जाओगे की नहीं ?-माता जी ने फिर पूछा.
जाउंगा,मगर बारह बजे.आज हिंदी का पीरियड अटेंड करना जरुरी है,नहीं तो जाता नहीं.आज हिंदी वाले सर परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न बताएँगे.-मै बोला.
ठीक है,तू नहा धो ले,मै खाना तैयार कर देती हूँ.माताजी ये कहकर जाने लगीं,फिर वापस आकर बोलीं-देख तेरे पिताजी सुबह अपने हाथों से ये क्रीम कलर वाला कोट पैंट और सफ़ेद शर्ट प्रेस करके टांगे हैं.आज इसे पहन के जाना और हाफ स्वेटर भी भीतर पहन लेना.
मैंने दीवाल पर लगे हेंगर की तरफ देखा.क्रीम कलर का कोट पैंट,सफ़ेद रंग की टेरीकाट वाली चमचमाती हुई शर्ट,नीले रंग का हाफ स्वेटर और पिला मफलर सब सलीके से टंगा था.
देख,वो यूझे दिल से बहुत चाहते हैं.रात को जो कुछ उन्होंने कहा उसका बुरा मत मानना,तेरे भले के लिए ही कहते हैं.कहीं भी रहो,शाम को छह बजे तक घर जरुर आ जाया करो.-माँ ने मुझे समझाया.
दीदी पढ़ाने चली गईं ?-मै बात बदलना चाहा.
वो तो सुबह आठ बजे ही चली गई.वो दोनों भी स्कूल जा चुकीं हैं.-माताजी बोली.
रसोई में जाकर मै दो गिलास पानी गर्म करके पिया और मै बाथरूम की तरफ बढ़ गया.सुबह की नित्य क्रिया से निपट,शेविंग करने और नहा धोकर खाना खाने में ही दिन के बारह बज गए.तैयार होकर घर से निकलते-निकलते साढ़े बारह बज गए.बस स्टैंड पर आया तो बहुत देरतक इतजार करना पड़ा.बस एक घंटे बाद मिली.
मै कालेज पहुंचा तो दिन के दो बजकर बीस मिनट हो रहे थे.क्लासरूम के पास पहुंचा तो देखा कि हिंदी वाले सर क्लास ले रहे हैं.मैंने हाथ उनकी तरफ करके उनसे अंदर आने की इजाजत मांगी.मेरी तरफ देखते ही वो खुश होकर बोले-अरे तुम,आओ आओ मै कबसे तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ.
अंदर घुसते ही बायीं तरफ जैसे ही निगाह गई,मै देखता ही रह गया.अर्पिता अपने बैठने वाली जगह पर खड़ी थी और आज कालेज सफेद ड्रेस में न होकर गुलाबी रंग की सलवार कमीज और लाल कोटी में लिपटी थी.
वो मुझे देख रही थी और बहुत खुश लग रही थी.मै जैसे ही बैठने के लिए आगे वाले बेंच की तरफ बढ़ा,पीछे की बेंच से एक लड़के ने ताना मारा-अरे सबलोग खड़े होवो भाई,हमारे हिंदी के प्रोफ़ेसर साहब आ गए.
सब लड़के लड़किया हंसने लगे.प्रोफ़ेसर साहब हँसते हुए बोले-हाँ,आज तो ये एकदम सूटेड बूटेड होकर वाकई प्रोफ़ेसर लग रहे हैं.फिर गम्भीर होकर बोले-इस लड़के में बहुत काबिलियत है.मेरी पारखी नज़र कहती है की ये किसी भी क्षेत्र में जाएँ,इन्हे सफलता जरुर मिलेगी.मेरी शुभकामनाएं इनके साथ हैं.
मैंने खड़े होकर उन्हें धन्यवाद दिया.सिर हिलाकर प्रोफ़ेसर साहब ने स्वीकार किया और फिर हिंदी की किताब पढ़ते हुए बोले-संतो की समदर्शिता पर एक लड़की ने प्रश्न पूछा था.हमलोग उसी विषय पर चर्चा कर रहे थे.अर्पिता ने जैसा कि हमसब को बताया कि जो संत ज्ञानी हुए हैं वो समदर्शी और सर्वश्रेष्ठ हैं.इन्होने संत कबीर का उदाहण दिया.इसपर किसी को और कुछ पूछना या कहना है ?
मै खड़े होकर बोला-सर,इनकी बात ये बात सही है कि जो संत ज्ञानी हैं वो समदर्शी हैं,परन्तु ये बात सही नहीं है कि वो सर्वश्रेष्ठ हैं.मेरे विचार से जो संत भक्त हुए है,वो समवर्ती हैं और सर्वश्रेष्ठ हैं.सबको समान दृष्टि से देखने वाला सर्वश्रेष्ठ नहीं है,बल्कि सबसे एक समान व्यवहार करनेवाला सर्वश्रेष्ठ है.
बहुत अच्छी बात कही.अपने बात के समर्थन में कुछ उदाहरण दीजिये.मै आगे बढ़कर सर की मेज पर से एक चॉक लिया और ब्लैकबोर्ड पर लिखा-
कबीरा कबीरा क्या करे,जा यमुना के तीर.
इक गोपी का प्रेम देख,बह गये लाख कबीर.
अदभुद व्याख्या..मै इनसे सहमत हूँ.-अर्पिता खड़े होकर बोली.
लड़कों ने ताली बजाकर और शोर करके मेरा साथ दिया.तभी पीरियड ख़त्म होने की घंटी बज गई.प्रोफ़ेसर साहब सबको चुप कराते हुए बोले-मैंने आज परीक्षा कि दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रश्न नोट करा दिए है.अब कल से जबतक क्लासें चलेंगी,तबतक हमलोग इन्ही पश्नो पर विचार करेंगे.मार्च में सबलोग अपना असाइन्मेंट मेरे पास जरुर जमा कर दें और हाँ,एक दूसरे की नक़ल न करें.जो विषय दिया गया है,उसपर अपने मौलिक विचार लिखें.प्रोफ़ेसर साहब अपना रजिस्टर और असाइनमेंट की कापियां उठाकर क्लासरूम के बाहर चले गए.
सब लड़के लड़कियां क्लासरूम के बाहर निकलने लगे.मै अपनी जगह पर बैठा रहा.पीछे से मेरे कंधे पर हाथ रख मेरा एक मित्र बोला- मान गए यार तुम्हे.आज तुमने लड़कियों की तो बोलती ही बंद कर दी.
एक दूसरा दोस्त बोला-जनाब,आप की वजह से आज सुबह कालेज में हंगामा खड़ा हो गया.
हंगामा मेरी वजह से..क्यों क्या हुआ आज सुबह ?-मै आश्चर्य से पूछा.
जनाब आप को और अर्पिता को लेकर कुछ बोल दिया था उसने.बस क्या था,बिचारे की तो शामत ही आ गई थी,पीटते पीटते बचा,.जमकर हंगामा हुआ.प्रिंसिपल साहब ने आकर उस लड़के से माफ़ी मंगवाई,तब जाके मामला ख़त्म हुआ.
उस लड़के ने कहा क्या था.-मैंने पूछा.
उसने डोगरी भाषा में पूछ लिया था-वो फौजी तुम्हारा कौन लगता है ?बस फिर क्या था.अर्पिता ने डोगरी भाषा में चुन चुन के गलियां दी.अर्पिता ने सबके सामने चिल्लाकर कह दिया-वो फौजी मेरा पति है,मैंने उससे शादी की है.क्या कर लेगा तू मेरा ?जनाब,अर्पिता ने अपना चप्पल पैर से निकालकर उसे मारने को दौड़ा लिया था -मेरा दोस्त बोला.
चलो यार,वो यही आ रही है.-मेरे दोनों दोस्त उसे मेरे पास आते देख चलते बने.
मै क्लासरूम के बाहर दस मिनट से वेट कर रही हूँ.तुम बाहर क्यों नहीं निकल रहे हो ?उठो और चलो मेरे साथ.-अर्पिता मेरे पास आका बोली.
आज वो लाल स्वेटर और गुलाबी रंग के सूट में बहुत अच्छी लग रही थी.मै उसकी तरफ देखते हुए बोला-मै तुम्हारे साथ नहीं चलूँगा.रात को तुमने मेरे साथ बहुत खराब व्यवहार किया.रात को ठिठुरते हुए मै घर गया.घर में पिताजी की डांट खानी पड़ी.
रात को झूठ बोल के चोरी छिपे भाग गए.मै और अर्चना गेट के पास बैठकर कितनी देर तक तुम्हारे लौटने का इंतजार करते रहे.चलो पहले चल के अर्चना से माफ़ी मांगो.तुम्हे लेकर वो इतनी परेशान है कि आज कालेज भी नहीं आई.चलो अब उठो और चुपचाप मेरे साथ चलो.-अर्पिता मेरी और देखते हुए बोली.
मुझे आज जल्दी घर जाना है.कल मैंने पिताजी से बहुत डांट खाई है.पिताजी का हुक्म है कि शाम छह बजे तक मै हर हालत में घर पहुंच जाऊं.-मै बोला.
अभी तो तीन भी नही बजे हैं.चलो दो घंटे बैठना फिर घर चले जाना.मै हिंदी के महत्वपूर्ण प्रश्न भी लिखा दूंगी,जो सर ने आज बताये हैं.तुमको उसे भी तो नोट करना है.चलो,अब देर मत करो.उठो..-वो इतना कहके बाये हाथ में अपना बैग पकड़ दाये हाथ से मेरा दाया हाथ पकड़ ली.
रात की घटना मुझे याद आ गई.कहीं यहाँ भी वही हंगामा न करे.मै ये सोचकर घबराते हुए उठकर बोला-चलो मै चलता हूँ,पर ज्यादा देर वहाँ नहीं रुकूंगा.
हमदोनो क्लासरूम से बाहर निकल सीढ़ियों की तरफ बढ़ गए.सीढियाँ उतरते हुए मैंने पूछा-आज तुमने कालेज की ड्रेस नहीं पहनी ?
उसने मेरी तरफ देखा फिर सीढियाँ उतरते हुए कहा-कालेज के लिए तो मै रोज ड्रेस पहनती हूँ.आज ये ड्रेस मैंने तुम्हारे लिए पहनी है.तुम्हे अच्छी लगी ?
मैंने अपने आगे पीछे देखा और किसी और को न पा बोला-बहुत बच्छी लग रही हो.लेकिन प्रिंसिपल साहब देख लिए तो बहुत डांटेंगे.
एकदिन बिना ड्रेस के आना चलता है.ड्रेस की फिक्र फर्स्ट इयर की लड़कियां ज्यादा करती हैं.कोई भी टीचर उन्हें बुला के डांट देता है.हम सीनियर स्टूडेंट हैं यार ,कौन पूछता है ?वैसे भी अब हमारी क्लासें एक डेढ़ महीने और चलेंगी.हमलोग अब इस कालेज के कुछ महीनों के मेहमान हैं.हमदोनो सीढियाँ उतर चुके थे.
नीचे गैलरी में कदम रखते हुए मै बोला-मेरे मित्र बता रहे थे कि सुबह किसी से तुम्हारा कुछ झगड़ा हो गया था ?
मेरी बाई तरफ एकदम पास में पास खड़ी अर्पिता अपना दायां हाथ उठाई और ऊँगली दिखा ईशारा करते हुए बोली-वो देखो,सामने गैलरी में बेंच पर जो काला स्वेटर पहने पहला लड़का बैठा है,उसी से झगड़ा हुआ थी.कामर्स का सीनियर स्टूडेंट है.हमारे जिले के किसी गांव का जाहिल लड़का है,एकदम पुराने ख्यालातवाला.तुम्हे थोडा बहुत वो जानता है या किसी से सुन रखा होगा.पूरी बात मै तुम्हे बाद में बताउंगी.अभी तो तुम बस देखते जाओ कि मै क्या करती हूँ ?
अपने दाहिने हाथ से मेरा बाया हाथ पकड़ते हुए अर्पिता बोली-तुम चुपचाप ऐसे ही मेरा हाथ पकडे हुए चलते रहो.उसे अभी और जलाना है.उस लड़के को हम दोनों का एक दूसरे का कस से पकड़ा हुआ हाथ दिखाते हुए वो उस लड़के के पास से गुजरी.वो वो गैलरी में कुछ और लड़कों के साथ बेंच पर बैठा हुआ चुपचाप हमदोनो को देखता रहा.मुंह से कुछ भी बोला नहीं.
बहुत से लड़के लड़किया हमें ही देख रहे हैं,मेरा हाथ छोड़ दो.-मै शरमाते हुए बोला.
देखने दो,आज इन्हे जी भर के देख लेने दो..इन्हे पता तो चले की अर्पिता ने किससे प्रेम किया है और अर्पिता ने सुबह किसके लिए झगड़ा किया था.-वो मेरा हाथ कस के पकड़ते हुए बोली.मुझे उसके नर्म मुलायम हाथों का स्पर्श अच्छा लग रहा था परन्तु बहुत शर्म लग रही थी और बहुत घबराहट भी महसूस हो रही थी.मै जानता था कि कालेज मेरी अच्छी छवि खराब हो रही है,परन्तु अर्पिता का विरोध करने कि हिम्मत मुझमे नहीं थी.
गैलरी में कुर्सियों पर बैठे हुए कालेज के कई लेक्चरर और प्रोफ़ेसर भी देखते रहे.किसी की हिम्मत नहीं हुई कुछ भी बोलने की.कालेज के गेट तक वो मेरा हाथ कस के थामे चलती रही.उसके बाये हाथ में काले रंग का बैग था और मेरे दायें हाथ ने कापी थी.गेट के बाहर निकले तो वो धीरे से मेरा हाथ छोड़ दी और विजयी मुद्रा में मेरी तरफ देख मुस्कुराते हुए बोली-तुमने आज मेरा साथ दिया,इसका मुझे जीवनभर गर्व रहेगा.
हमलोग शार्टकट कच्चे रास्ते से मेनरोड की तरफ बढे.हम जल्दी से जल्दी अर्चना के घर पहुँच जाना चाहते थे,ताकि अधिक से अधिक समय समय तक साथ रहे.अर्पिता और अर्चना से लगभग साल भर पुरानी गहरी दोस्ती मेरे लिए एक मदिरालय बन चुकी थी.शराबियों की तरह रोज प्रण करता था कि अब आज से दारु नहीं पिऊंगा,लेकिन दोनों का सानिध्य पाते ही मेरा प्रण कमजोर होने लगता था.लड़कियों से दोस्ती करना उस उम्र का एक प्राकृतिक आकर्षण भी था.कुछ फ़िल्मी हीरोइने मुझे बहुत पसंद थीं.रियल लाइफ में मै उनकी छवि तलाशता था.अर्पिता और अर्चना में मुझे वो छवि मिली,इसीलिए गहरी दोस्ती हो गई.
सुबह जानते हो उस लड़के ने मुझसे क्या पूछा था ?-वो मेरी तरफ देखी.
हाँ,मेरा दोस्त बता रहा था.उसने पूछा था-वो फौजी तुम्हारा कौन लगता है ?
जानते हो मैंने क्या जबाब दिया था ?-उसने फिर मेरी तरफ देख के पूछा.
हाँ,मेरा दोस्त बता रहा था तुमने उसे जबाब दिया था-वो फौजी मेरा पति है,मैंने उससे शादी की है.पर तुमने झूठ क्यों बोला ?हमारी शादी अभी कहाँ हुई है ?-मै आश्चर्य से बोला.
हाँ,मैंने चिल्ला-चिल्लाकर ये बात सबसे कहा.कई बार कहा,क्योंकि मैंने मन ही मन तुमको अपना पति मान लिया है.मैंने मन ही मन तुसे शादी भी कर ली है.-वो बड़ी गम्भीरता से बोली.मै कुछ बोला नहीं.चुप हो गया.
शेष अगले ब्लॉग में-
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

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