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छूप गया कोई रे,दूर से पुकार के भाग-८

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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छूप गया कोई रे,दूर से पुकार के भाग-८
हमलोग मेनरोड पर पहुच उसके और अर्चना के घर जाने वाली कालोनी की तरफ बढे.रास्ते में एक औरत अमरुद बेच रही थी.उसने डोगरी भाषा में बात कर एक पोलिथिन में अमरुद ले लिया.हमलोग चलने लगे वो अमरुद बेचनेवाली हँसते हुए कुछ पूछने लगी.अर्पिता ने भी उसे हँसते हुए जबाब दिया.मै कुछ भी नहीं समझ पाया.दोनों डोगरी भाषा में बात कर रही थी.
आज ठंड कम थी और मौसम साफ था और धूप निकली हुई थी.हमलोग अर्चना के घर के पास आ गए थे.मैंने उत्सुक्ता से पूछा-वो अमरुद बेचनेवाली क्या कह रही थी ?
वो अर्पिता के घर की कालबेल बजा मुस्कुराते हुए बोली-वो हमें पति पत्नी समझ रही थी.पूछ रही थी की तुमदोनो की नई नई शादी हुई है क्या ?
तुमने क्या जबाब दिया ?-मैंने पूछा.
मैंने कहा कि हाँ हमलोग अभी अभी शादी करके आ रहे हैं.-वो कहकर हंसने लगी.
तुम्हे सबसे ऐसा नहीं कहना चाहिए.इससे हमदोनो की बदनामी होगी.कालेज में भी तुमने सबके सामने मुझे अपना पति कह दिया.लोग हमारे बारे में तरह तरह की बातें करते होंगे.- मैं बोला.
मेरे सामने करके देंखे,मार के मुंह तोड़ दूंगी.-वो मुक्का दिखाते हुए बोली.
तभी अर्चना आकर गेट खोली.आसमानी कलर की सलवार कमीज और नीले रंग की कोटी पहने थी और गले में आसमानी कलर का दुपट्टा लिए थी.मैंने धीरे से हैलो..कहा,परन्तु उसने कोई जबाब नहीं दिया.गेट के अंदर आकर मैंने अपने काले जूते और अर्पिता ने अपनी ऊँची हिल वाली काली सेंडिल उतार दीं. मै अमरुद से भरा हरे रंग का पोलिथिन बैग उठा लिया और उसने अपना काला बैग हाथ में ले लिया.ड्राइंग रूम में आकर मैंने अर्चना को फिर से हैलो..कहा,वो फिर कुछ नहीं बोली.
तुम मुझसे बात नहीं करोगी तो मै चले जाउंगा यहाँ से.दोस्त होकर ऐसा वर्ताव करती हो ?-मै नाराज होकर बोला.
तुम वास्तव में मुझे अपना दोस्त मानते हो,यदि मानते तो रात को झूठ बोलकर नहीं भाग जाते ?कितनी देर तक अर्पिता,मै और मेरी मम्मी परेशान रहे.तुम बीमार पड़ जाते तो..?-वो बहुत नाराज होकर के बोली.
सॉरी ..बोलते हुए मै अपना दाया हाथ उसकी तरफ बढ़ाया.उसने भी मुस्कुराते हुए अपना दाया हाथ बढ़ाया.दोस्ती के हाथ मिले और उसके गोरे नर्म मुलायम हाथ ठंडी में भी गर्म थे और छूने में बहुत अच्छे लग लग रहे थे.
मै उसके हाथों की गर्मी महसूस करते हुए बोला-तुम्हे बुखार तो नहीं है.तुम्हारा हाथ कितना गर्म है ?तुम्हे अपने शरीर का बुखार चेक कर कोई दवा लेनी चाहिए.
मेरी बात सुनकर अर्चना शर्मा गई.अर्पिता ने डोगरी भाषा में उससे कुछ पूछा और उसका जबाब सुनकर हँसते हुए मेरा हाथ उसके हाथों की पकड़ से दूर कर बोली-छोड़ो उसका हाथ..बुद्धू कही के..
मै कुछ समझ नहीं पाया.मैंने दोनों की और देखते हुए पूछा-तुमलोगों ने अपनी भाषा में क्या बातें की ?
अर्पिता मेरे एकदम करीब आ अपने दाएं हाथ से मेरा दायां हाथ पकड़ शरारत से मुस्कुराते हुए बोली-यहाँ नहीं,मेरे साथ भीतर कमरे में चलो तब बताउंगी.अकेले में बतानेवाली बात है.
तुम हमेशा गन्दी बातें क्यों करती हो ?-उसकी बातें सुनकर मेरा दिल धड़क उठा.उसकी ये सब बातें मन ही मन बहुत तो अच्छी लगती थीं,मगर उसपे अमल करने का परिणाम सोचकर भय लगता था.सबसे ज्यादा भय अपने पिताजी का था.
तुम जिन्हे गन्दी बातें कहते हो,वो सब जीवन को आनंद से भर देने वालीं चीजें हैं.और जीवन का एक अभिन्न अंग हैं.मुझे देर सबेर तुम्हे वो सब सिखाना तो पड़ेगा ही,क्योंकि तुम मेरे जीवनसाथी हो.-अर्पिता बोली.
तुमने कहाँ से सीखीं वो बातें ?-मैंने पूछा.
मेरे पास बहुत सी किताबे हैं.मैंने किताबो में सब पढ़ा है.अब मुझे उस नॉलेज का एक्सपेरिमेंट तुमपे करना है.-वो शरारत से मुस्कुराने लगी और मेरा हाथ पकडे हए सोफे पर बैठ गई और मुझे भी पास में खिंच के बैठा ली.
मुझपे एक्सपेरिमेंट करोगी,मुझे क्या चूहा और खरगोश समझ रखा है ?-मैंने घबराते हुए पूछा.मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था.
मेरी बात सुनकर वो जोर से खिलखिलाकर हंस पड़ी.उसके मोतियों जैसे सफ़ेद सुंदर दांत और गोरा सुंदर मुखड़ा चमकने लगा.वो कुछ देर हंसती रही फिर गम्भीर होकर बोली-तुम मेरे पति हो,इसीलिए मुझे जो भी प्रयोग करना है,तुम्ही पर करना है.
मेरा हाथ छोड़ वो मेरे कोट की सलवटें ठीक करते हुए बोली-आज तुम कितने अच्छे लग रहे हो.ये क्रीमकलर की कोट पैंट तुमपे कितनी जँच रही है.मेरी नजर न लगे.तुम्हारा वो नीला वाला कोट पैट भी भी बहुत अच्छा है.उसमे भी खूब जँचते हो.
तुम भी तो इस नये गुलाबी सूट में बहुत अच्छी लग रही हो.न्यू पिंच करूँ तो तुम्हे बुरा तो नहीं लगेगा ?-मैंने शरमाते हुए पूछा.
वो हंस पड़ी,फिर बोली–बुद्धू कहीं के..जिंदगी भर तुम हर चीज मुझसे पूछ के करोगे ?तुम्हे कभी अक्ल आएगी की नहीं ?कुछ क्षण रूककर फिर वो बोली- अच्छा चलो,न्यू पिंच करो.बच्चों वाला न्यू पिंच करोगे या बडोवाला न्यू पिंच करोगे ?
ये बच्चोंवाला न्यू पिंच और बडोवाला न्यू पिंच क्या है ?-मैं आश्चर्य से पूछा.बच्चोंवाला न्यू पिंच और बडोवाला न्यू पिंच जीवन में पहली बार ये शब्द उसके मुंह से सुन रहा था.
वो शरारत से मुस्कुराते हुए अपनी तरजनी अंगुली अपने गुलाबी रंग के दायें गाल पर रखी,फिर बाएं गाल पर रख बोली-ये बच्चोंवाला और फिर गुलाबी होंठ पर रख बोली-ये बडोवाला.
उसकी बात सुनकर मेरा दिल धड़कने लगा.फिर भी हिम्मत कर मैं अपने दायें हाथ की तरजनी अंगुली से उसके बाएं गुलाबी गाल को छूना चाहा उसने झट से अपने दायें हाथ से मेरा हाथ पकड़ लिया और झल्लाकर बोली-अरे बुद्धू अंगुली से नहीं अपने होंठो से किस करो..
उसकी बात सुनकर मेरा दिल धक् धक् करने लगा.मैं पीछे हटते हुए बोला-नहीं मैं ये सब नहीं करूँगा.ये सब गन्दी बात है.शादी से पहले ये सब नहीं करना चाहिए.
तुमने न्यू पिंच करने के लिए खुद ही कहा है,इसीलिए तुम्हे करना पड़ेगा.-मेरा हाथ पकडे हुए वो अपने पास खींचने लगी और मैं पीछे हटने लगा.मेरे हाथ पैर कंपकपा रहे थे.दिल तेजी से धड़क रहा था.
मुझे परेशान देख अर्चना पास आ मेरा हाथ छुड़ाते हुए-बोली-छोडो उसे,वो इनोसेंट है,कितना प्यारा है,उसे वैसा ही रहने दो.
उसका भोलापन ही मुझे हर समय पागल किये रहता है.उसके भोलेपन से परेशान भी हूँ और उस पर फ़िदा भी हूँ.-अर्पिता गहरी साँस खींचते हुए बोली.वो कुछ देर तक मुझे देखती रही फिर बोली-अच्छा चलो,तुम अपने ढंग से न्यू पिंच करो.
मई कुछ बोला नहीं,चुचाप बैठा रहा.न्यू पिंच करने से अब मुझे डर लग रहा था.मुझे चुप देख अर्चना बोली-तुमने कहा है तो अपने ढंग से न्यू पिंच कर दो.
मै दोनों की ओर देखा और शरमाते हुए उसकी गुलाबी कमीज को उसकी कमर के पास हल्के से छू के बोला-न्यू पिंच..
एकदम उल्लू हो..वो हंसने लगी.
तुमने मुझे उल्लू कहा..तुम हमेशा मेरी बेइज्जती करती हो..अब मै यहाँ नहीं रुकूंगा.-मैं सोफे से उठकर खड़ा हो गया.
अर्पिता मेरा हाथ पकड़ खींचते हुए फिर अपने बाईं ओर बैठा ली ओर गम्भीर होकर बोली-ये बार बार तुम जाने की बात क्यों करते हो..अब कहाँ जाओगे तुम मुझसे भागकर..मै तुम्हारे घर में घुसकर सबके सामने तुम्हारी कलाई पकड़ के खिंच ले आउंगी और किसी की हिम्मत नहीं की मुझे रोक सके..उसने मेरी दायें हाथ की कलाई कस के पकड़ ली और गुस्से मे बोली-मुझे किसी का डर नहीं..मुझे तुमसे प्यार है और तुम्हे मुझसे प्यार है..इसमें किसी तीसरे का दखल मै बर्दास्त नहीं कर सकती..चाहे वो कोई भी क्यों न हो..
उसे उग्र होते देख मै चुप हो गया.उसकी रातवाली हरकत से मै बहुत डरा हुआ था.मैंने सिर झुकाकर धीमे स्वर में कहा-तुम मुझसे प्यार करती हो तो अच्छा बर्ताव भी किया करो.रात को तुमने मेरे साथ बहुत बुरा बर्ताव किया था.
और तुमने क्या किया था ..जो लड़की तुमसे प्यार करती है..और अपना प्यार देने के लिए रात को तुम्हारे साथ रुकना चाहती थी,उसी को तुमने सबके सामने स्वार्थी कहा,इसीलिए मुझे गुस्सा आ गया था.तुम्हारे लिए मै रात को दुबारा आई तो पता चला की तुम झूठ बलकार यहाँ से भाग गए थे.-वो गुस्से में मेरी तरफ देखते हुए बोली.
सॉरी..मै सिर झुकाये हुए बोला.रात को बिना बताये यहाँ से चला गया था,इसीलिए मुझे अपने ऊपर शर्म आ रही थी.अपनी झेंप मिटाने के लिए मैं मेज पर से अंग्रेजी का अख़बार उठाकर पढ़ने लगा.मुख्य पेज पर छपी कुछ न्यूज़ पढ़ने के बाद नीचे एक महिला से रेप की न्यूज़ थी.पूरी न्यूज़ पढ़कर गुस्सा आ गया और मेरे मुंह से निकल गया-बलात्कारी को तो गोली मार देना चाहिए.
वो पेपर मेरे हाथ से खिंच बोली-बलात्कार का मतलब तुम जानते हो ?
हाँ,जब आदमी किसी औरत के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध जबर्दस्ती सम्बन्ध स्थापित करता है तो उसे बलात्कार कहते हैं.बलात्कार की शिकार बिचारी औरत कही मुंह दिखाने के लायक नहीं रहती है.-मै बोला.
और औरत किसी मर्द के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध जबर्दस्ती सम्बन्ध स्थापित करे तो उसे क्या कहेंगे ?-वो मेरी तरफ देख शरारत से मुस्कुराते हुए पूछी.
वो भी बलात्कार है,तब बलात्कार का शिकार आदमी कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा.-मै बोला.
बलात्कारी यदि औरत है तो उसे क्या सजा मिलनी चाहिए ?-उसने पूछा.
उसे भी गोली मार देनी चाहिए.-मैंने गुस्से में आकर कहा.
तुम्हे मालूम है कि जबर्दस्ती सम्बन्ध क्या होता है ?-उसने पूछा.
मुझे नहीं मालूम,मैंने सिर्फ सुना है.-मैं बोला.
नहीं मालूम,फिर भी गोली मार देने की सजा का एलान कर रहे हो-वो बोली.
ये जरुरी तो नहीं कि हर अपराध का अनुभव करके ही अपराधी को सजा दी जाये.-मैं गुस्से में बोला.
जब अपराध का अनुभव नहीं तो तुम सही मायने में जज कैसे बन सकते हो ?-उसने पूछा.
तुहारे कहने का मतलब है कि जज पहले कहीं चोरी करे,डाका डाले,हत्याएं करे और फिर फैसला सुनाये ?-मै गुस्से से उसे देखते हुए पूछा.
नहीं,मेरे कहने का ये मतलब नहीं,मैं केवल इतना कहना चाहती हूँ कि दुनिया का कोई जज ऐसा नहीं,जिसने अपने जीवन में कोई अपराध नहीं किया हो.संसार का हर व्यक्ति अपराधी है,फिर भी वो जीवन भर दूसरों को सजा सुनाता है और जाने अनजाने अपने किये हुए सारे अपराधों को अपने मन में छुपा के रखता है.तुम भी एक ऐसे ही जज हो.-वो गुस्से से बोली.
मैं भी गुस्से में आकर पूछा-मैंने क्या अपराध किया है ?
तुम मुझे मन से चाहते हो,मुझे देखना चाहते हो,मुझे छूना चाहते हो,मुझे भोगना भी चाहते हो,फिर भी हमेशा झूठ बोलते हो.तुम अपने मन से पूरी ईमानदारी से पूछो कि तुम यहाँ क्यों आते हो ?-वो गुस्से भरी आवाज़ में बोली.
मैं निरुत्तर हो गया.उसने मेरी कमजोरी पकड़ ली थी.
मैं तुम्हे चाहता हूँ,इस बात से इंकार नहीं कर सकता.तुम्हारी ये बात सही है-मैं शांत स्वर में बोला.एक तरह से बहस में मैंने उससे हार मान ली थी.मेरे इस समर्पण से उसका चेहरा ख़ुशी से चमक उठा.
मुझे खामोश देख वो हंसने लगी और फिर हमारी बातें सुनकर मुस्कुराती हुई अर्चना की तरफ देख के बोली-अर्चना तुम चाय बना के लाओ..मुझे अपने पति के साथ कुछ देर के लिए अकेला छोड़ दो.मुझे अकेले में उनसे कुछ कुछ बात करनी है.
हमलोगों की अभी शादी नहीं हुई है,इसीलिए तुम मुझे अभी से अपना पति मत कहा करो.तुम इस तरह से सबसे कहोगी तो सबलोग तुम्हे पागल समझेंगे और मैं तो कहीं मुह दिखाने लायक नहीं रहूँगा.-मैं चितित होकर बोला.
मेरी बात सुनकर वो खिलखिलाकर हंस पड़ी.कुछ देर हंसने के बाद बोली-मुंह दिखाने लायक तो तुम उस दिन नहीं रहोगे,जिस दिन मै तुम्हारा बलात्कार करुँगी.फिर तुम मुझे गोली मार देना.ये कहकर वो फिर हंसने लगी.
मैं गुस्से के मारे सोफे से उठ खड़ा हुआ-मैं जा रहा हूँ.आज के बाद मैं कभी यहाँ नहीं आउंगा.तुम बेकार की गन्दी बातें करती हो.न तो पढाई की बात करती हो और न ही साथ बैठकर सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारी करती हो.सिर्फ बेकार की गन्दी बातें कर मेरा कीमती समय नष्ट करती हो.
शेष अगले ब्लॉग में..
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

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