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छूप गया कोई रे,दूर से पुकार के भाग-९
मेरी बात सुनकर वो गुस्सा हो गई,वो सोफे से उठी और मेरा हाथ पकड़कर घर के भीतर खिंच ले गई.वो मुझे खींचते हुए घर के भीतर की ओर ले के चल पड़ी.बायीं तरफ डाइनिंग हाल और दाहिनी तरफ अर्चना के माताजी का कमरा था.वो मुझे खींचते हुए रसोई के पास बने अर्चना के कमरे के भीतर ले गई और उसके सफ़ेद गद्देदार बिस्तर पर मुझे धकेल दी.लगभग गिरते हुए और अपने को सँभालते हुए बिस्तर पर मैं बैठ गया.मुझे बहुत घबराहट होने लगी कि ये पागल लड़की न जाने क्या करेगी ?
उसने पास पड़ी अर्चना की मेज पर से सामान्य ज्ञान की पुस्तके और पत्रिकाएं उठा उठा कर मेरे ऊपर फेंकना शुरू कर दिया.जितनी भी पुस्तकें और पत्रिकाएं थीं,उसने मेरे ऊपर दे मारीं.मैंने अपना दायां हाथ अपने चेहरे के आगे कर लिया था,ताकि चेहरे पर चोट न लगे.ज्यादातर पुस्तकें और पत्रिकाएं मेरे दाहिने कंधे पर आ के लगीं और नीचे गिरकर कालीन पर यहाँ वहाँ बेतरतीब फ़ैल गईं.
लो पढ़ो बैठ के जनरल नॉलेज की बुक्स और आईएएस अफसर बनके कमरे से बाहर निकलना-वो गुस्से के मारे चिल्लाते हुए बोली और कमरे से बाहर निकल दरवाजा पूरी ताकत से अपनी तरफ खिंची.धड़ाम की एक तेज आवाज़ के साथ दरवाज़ा बंद हो गया.
घबराहट के मारे ठण्ड में भी मुझे पसीने छूटने लगे.मेरे कंधे दर्द कर रहे थे,जहाँ पर कई पुस्तकें और पत्रिकाएं उसने फेंकी थीं.
उसके ख़राब व्यवहार से और अपने दायें कंधे में हो रहे दर्द से मेरी आँखों में आंसू छलक आये.बहुत देर तक मैं चुपचाप बैठा रहा.कमरे के बाहर अपनी डोगरी भाषा में अर्पिता और अर्चना बहुत तेज आवज़ में झगड़ रहीं थीं.घबराहट के मारे मेरे हाथ पैर कांप रहे थे.मैं सोच रहा था कि कहाँ आके फंस गया.घडी में देखा तो शाम के चार बज रहे थे.मुझे अपनी माँ की याद आने लगी और सोचने लगा कि वो ठीक कहतीं हैं कि बेटा,परीक्षा में अच्छे नंबर लाना है तो कालेज में लड़कियों से दूर रहना.वो लड़कों को अपने रूपजाल में फांसकर बर्बाद कर देती हैं.मुझे उस समय लग रहा था कि माँ बहुत कम पढ़ी लिखीं हैं लेकिन बिलकुल ठीक बात कहती हैं.मैं बिस्तर पर चुचाप बहुत देरतक बैठा रहा.तभी मेरी नज़र बिस्तर पर बीच से खुली पड़ी मैरून कलर की डायरी पर गई.वो डायरी अर्चना की थी,जो सामान्य ज्ञान की किताबों के बीच छुपी थी और सामान्य ज्ञान की किताबों के साथ साथ उसने अर्चना की डायरी भी मुझे दे मारी थी.
मैंने डायरी उठाकर शुरू के पन्ने पलटे.चार पेज उसकी डायरी के मैं पहले ही पढ़ चूका था,
पांचवे पेज पर उसने एक गीत के कुछ बोल लिखे थे-
खिलाओ फूल किसी के किसी चमन में रहो,
जो दिल की राह से गुज़री है वो बहार हो तुम.
ज़ह-ए-नसीब अता की जो दर्द की सौग़ात,
वो ग़म हसीन है जिस ग़म के ज़िम्मेदार हो तुम.
चड़ाऊँ फूल या आँसू तुम्हारे क़दमों में
मेरी वफ़ाओं के उल्फ़त की यादगार हो तुम.
अर्चना की डायरी पढ़कर सोचते सोचते मेरा सिरदर्द करने लगा कि ये सब ये क्यों लिखती है और किसके लिए लिखती है ?इसके पीछे जरुर कोई बात है.मुझे मालूम करना चाहिए.वो मेरी मित्र है,यदि वो किसी को पसंद करती है तो उसकी मदद करनी चाहिए.डायरी को बीच से खोल बिस्तर के बीच मैंने रख दिया.तभी दरवाज़ा खुला.
क्यों जनाब, एक घंटे में आप ने जीके की कितनी किताबे आप ने पढ़ डालीं ?-अर्पिता बोली.
एक भी नहीं..और तुमसे मुझे बात नहीं करनी.-मैं अब भी उससे नाराज था.
गुस्सा थूक दो और लो अमरुद खाओ-कटे हए अमरुद से भरी प्लेट वो मेरे हाथों में पकड़ाते हुए बोली.प्लेट में एक तरफ नमक भी रखा हुआ था.मैं चुचाप अमरुद खाने लगा.अर्चना थोड़ी देर में चाय और बिस्कुट ले आई.ले आई.हम तीनो ने बिस्कुट खाकर चाय पी.मै गुस्से के मारे कुछ बोल नहीं रहा था.मै गुस्से के मारे अर्पिता से न बोल रहा था और न ही उसकी तरफ की तरफ नहीं देख रहा था.
अर्पिता मेरी तरफ देखते हुए बोली-मैंने कल रात को तुम्हारी याद में एक गीत के बोल लिखे हैं.मैं अभी कापी लाकर तुम्हे दिखती हूँ.
वो कमरे के बाहर गई और अपना बैग ले आई.बैग खोलकर उसने एक कापी निकाली और बैग मेज पर रख दी.कापी के पन्ने पलटते हुए वो आकर मेरी दायीं तरफ बैठ गई.
लो पढ़ो..मैंने अपने दिल का हाल लिखा है.-वो लिखा हुआ पेज मेरी नज़रों के सामने कर दी.
नहीं,आज मैं पढूंगा नहीं.तुम गाकर सुनाओ.-मैं बोला.
मेरी ओर देखते हुए वो बोली-ठीक है,तुम्हारी यही इच्छा है तो मैं गाके सुना देती हूँ-
बिना कारण उदासी क्यों अचानक घिरके आती हैं
थका जाती हैं क्यों मुझको बदन क्यों तोड़ जाती हैं
हैं आखिर कौन से बंधन, जो मुझसे खुल नहीं पाते
ये बादल बेबसी के क्यों बरस कर घूल नहीं जाते
उसकी आवाज़ अच्छी लगी.मैंने उसकी तरफ देखते हुए पूछा-ये सब क्यों लिखा है तुमने ?
अपने तड़फते मन की फिलोसफी तुम्हे समझाने के लिए-वो मुस्कुराते हुए बोली.
मैं बोला-क्या है तुम्हारे मन की फिलोसफी ?आज तुम मुझे समझा ही दो.रोज की कीच कीच से तो अच्छा है कि आज मैं तुम्हारी फिलोसफी अच्छी तरह से समझ लूँ.
अर्पिता मुझे समझाते हुए बोली-मैं तुम्हे एक साल से समझा रही हूँ कि हमें हर चीज का भोग करते हुए आगे बढ़ना चाहिए..हर चीज हर क्षण मरती जा रही है.जीवन फूल की तरह है.पहले कली बना फिर खिला और फिर सूखना शरू हो गया.तुम उस फूल को चाहे भोगो या न भोगो वो हर क्षण मर रहा है,उसका हर कदम मृत्यु की तरफ बढ़ रहा है.ऐसे ही हुमदोनो की जवानी भी है.आज कली है धीरे धीरे फूल बनेगी और फिर एकदिन सूख के ख़त्म हो जायेगी.हमें जीवन के सफ़र में चलते हुए हर चीज का भोग कर आगे बढ़ना चाहिए.सफ़र खत्म होते होते किसी भो चीज की इच्छा मन में न रहे.नियति हमें तीन चीजे बड़े सौभाग्य से प्रदान करती है-अवसर,एकांत और अनुरागी.यदि ये तुम्हे उपलब्ध है तो नियति को धन्यवाद देते हुए भोग लगाओ,मिले हुए अवसर को,एकांत को और अनुरागी को ठुकराओ मत.नियति तुम्हे साल भर से अवसर दे रही है,एकांत दे रही है अनुरागी दे रही है,फिर भी तुम भोग लगाने से इंकार कर रहे हो.तुम अभागे हो और एकदिन बहुत पछतोगे जब ये तीनो चीजें तुम्हारे पास नहीं होंगी.
मेरी भी इच्छा होती है तुम्हे देखने की छूनेकी और भोगने की,पर मुझे बहुत भय लगता है.ये सोचकर भयभीत हो जाता हूँ कि मेरी इस इच्छा का और भोग परिणाम क्या होगा ?-मैं डरते हुए बोला.
जो कुछ भी परिणाम होगा,हमदोनो मिल के भोगेंगे.मैं तुम्हारे साथ हूँ.-अर्पिता मेरा हाथ पकड़ ली और उसे दबाती चली गई.अपने पैर की एड़ी से मेरे पैर का अंगूठा और पंजा रगड़ने लगी.मेरे दिल की धड़कने बढ़ने लगीं.पुरे शारीर में मुझे सिहरन और उतेजना महसूस होने लगी.मैंने उठने की कोशिश की.उसने खींचकर फिर अपने पास में मुझे बैठा लिया और बोली-प्लीज मुझे न्यू पिंच कर लेने दो.
लेकिन मैंने कोई नया कपडा तो पहना नहीं है.तुम मुझे न्यू पिंच क्यों करोगी ?-मैं आश्चर्य से बोला.
तुम्हारे नए रुमाल के लिए.-मेरी जेब से सफ़ेद रुमाल निकाल वो बोली.फिर अर्चना की तरफ देख के वो डोगरी भाषा में कुछ बोली.अर्चना कमरे के बाहर जा दरवाजा बाहर से बंद कर दी.
अर्पिता बिस्तर से उठी और अपने दोनों हल्के गर्म हाथो में मेरा चेहरा थामकर ऊपर उठाई और मेरे दायें बाएं गाल पर और होठों पर चुम्बन जड़ दी.मुझे ऐसा लगा जैसे किसी गुलाब के फूल ने मेरे गालों और होंठों को छुआ हो.मेरा दिल जोर से धड़क उठा और पूरा शरीर रोमांच से कांप उठा.
अर्पिता बहुत भावुक होकर बोली-आई लव यू सो मच..मै पागल हो गई हूँ.. रात को मुझे नीद नहीं आती है..करवटें बदलती रहती हूँ..तुम्हारा चेहरा हमेशा मेरे दिमाग में घूमता रहता है..उसकी आवाज़ लड़खड़ाने लगी.उसकी आँखों से आंसू छलकने लगे.
उसकी हालत देख मेरा तो गला ही सूख गया.कुछ बोला नहीं गया तो उठकर खड़ा हो गया और अपने कोट की जेब से सफ़ेद रुमाल निकाल उसके आंसू पोंछे.मुझे बहुत घबराहट होने लगी.वो मेरे एकदम नजदीक आ डबडबाई आँखों से मुझे देखते हुए बोली-तुम कुछ करो,नहीं तो तुम्हारे प्यार में मै पागल हो जाउंगी.
मै भी तुम्हे बहुत चाहता हूँ,परन्तु मै क्या करूँ,मै कोई नौकरी या कोई कामधंधा तो करता नहीं कि तुमसे अभी शादी कर लूँ.तुम मेरे पिताजी को नहीं जानती हो,अगर उन्हें हमारे प्रेम सम्बन्धो के बारे में पता चल गया तो वे सचमुच में मुझे गोली मार देंगे और मेरी माँ भी मुझे नही बचा पायेगी.मेरी टांगे पिताजी के भय से थर थर से कांप रही थीं.
चलो,तुम अभी चलो,मैं चल के देखती हूँ तुम्हारे पिताजी को..देखूं तुम्हे कैसे गोली मारते हैं..तुम डरो मत,पहले गोली खाने के लिए मैं तुहारे आगे रहूंगी-गुस्से के मारे चीखते हुए और मुझे पूरी ताकत से खींचते हुए दरवाजे की तरफ ले के चली.उसने बाएं हाथ से दरवाजा खोला और दायें हाथ से मेरे बाएं हाथ की कलाई पकड़ खींचते हुए कमरे के बाहर ले आई.वो मुझे खींचते हए घर के बाहर ले आई.उसकी अँगुलियों से दबकर मेरी घडी मेरी कलाई में चुभ रही थी.घबराहट में मेरा दिल इतना तेज धड़क रहा था कि लगता था कि हार्टफेल हो जायेगा.मैं अर्चना को आवाज़ दिया.वो रसोई में काम करना छोड़ दौड़ के आई.वो उसका हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी,परन्तु वो इतना कस के मेरी कलाई पकड़ी थी की अर्चना छुड़ा नहीं पाई.उसी समय कालबेल बजी.मैं परेशान हो गया कि पता नहीं कौन है.उसके सामने भी ये बेइज्जत करेगी.
अपनी इज्जत बचाने के लिए मैंने कहा-प्लीज मुझे छोड़ दो,मैं तुम्हारा सब कहना मानूंगा.तुम जो कहोगी,मैं वो सब करूँगा.
अर्पिता का गुस्सा धीरे धीरे शांत होने लगा.मेरी कलाई पर उसके हाथ की पकड़ ढीली होने लगी.उसने मेरी कलाई छोड़ दी.मै अपनी दुखती कलाई सहलाने लगा.मैं गहरी सांसे ले रहा था.दिल जोर से धड़क रहा था और घबराहट में मेरी टांगे कांप रहीं थीं.कालबेल फिर बजी.अर्चना हमारी तरफ देखी और सब नार्मल होते देख वो गेट खोलने के लिए आगे बढ़ गई.
अर्पिता हांफते हुए मेरी कलाई छोड़ बोली-प्रॉमिस करते हो.जो कहूँगी वो करोगे.उसने मेरी तरफ अपना दायां हाथ बढ़ाया.मैंने भी अपना दायां हाथ आगे बढ़ा उससे हाथ मिला लिया और हांफते हुए बोला-मैं प्रॉमिस करता हूँ.फिर मैंने अपने हाथ धीरे से उसके हाथ से छुड़ा पीछे कर लिया.
अर्चना जाकर गेट खोली.उसके पिताजी आये थे.गेट के बाहर उनका स्कूटर खड़ा था.मैंने आगे बढ़ उन्हें प्रणाम किया.वो बहुत खुश होकर बोले-बहुत दिन बाद तुम्हे देखा बेटा.आजकल दिखाई नहीं देते हो और तुमलोगों की पढाई कैसी चल रही है ?
हाँ,अंकल जी,पढाई ठीक चल रही है.मैं अक्सर आता हूँ पर आप से मुलाकात नहीं होती है.-मै बोला.
कभी अपने पिताजी से मिलवाओ बेटा.मुझे उनसे कुछ जरुरी काम है-वो जूते उतारते हुए बोले.
जी,मिलवा दूंगा.-मै बोल तो दिया पर घबराते हुए सोचने लगा इन्हे पिताजी से क्या काम है.
अर्चना के पिताजी अर्पिता की और देखते हुए बोले-और अर्पिता बिटिया कैसी है तू ?
जी अंकल.मै ठीक हूँ.-अर्पिता बोली.
अर्चना,जाकर मेरे कमरे का दरवाजा अंदर से खोलो.मुझे कुछ फाइले लेनी है.-अर्चना के पिताजी बोले.
अर्चना ड्राइंगरूम के अंदर चली गई.कुछ देर बाद हमारे सामने का बंद दरवाजा खुल गया.उसके पिताजी कमरे के अंदर गए और लकड़ी की आलमारी खोलकर कुछ फाईले निकालने लगे.
अब मुझे जाने दो,कल फिर मिलेंगे-मैं अर्पिता से बोला.
ठीक है चलो ,मैं भी अब अपने घर जाउंगी-अर्पिता ये कहकर घर के भीतर चली गई.
मैं ड्राइंगरूम में आकर अपनी कापी ढूंढने लगा,परन्तु मेज पर कापी नहीं मिली.
मेरी कापी कहाँ है ?-डाइनिंग हाल से अपना बैग लेकर लौटती अर्पिता से मैने पूछा.
मेरे बैग में है,अभी देती हूँ.-वो अपना बैग खोलते हुए बोली.
मुझे अपनी वो कापी भी दे दो जिसमे हिंदी वाले सर के बताये महत्वपूर्ण प्रश्न तुमने नोट किये हैं.मैं रात को नोट करके कल सुबह तुम्हे वापस कर दूंगा-अर्पिता से मैं बोला.
मेरी कापी मुझे देते हुए वो बोली-मैंने तुम्हारी कापी में हिंदी वाले सर के बताये सभी महत्वपूर्ण प्रश्न नोट कर दिए है.अपना काला बैग बंद कर उसे वो अपने कंधे पर लटका ली.
मैं आश्चर्य से पूछा -कब नोट कर दिए ?
जब मैं गुस्से के मारे तुम्हे अर्चना के कमरे में बंद कर दी थी,तब डाइनिंग हाल में बैठे हुए अचानक मुझे याद आया कि तुम्हे हिन्दीवाले सर के बताये महत्वपूर्ण प्रश्न नोट कराने हैं तो मैंने ड्राइंगरूम से तुम्हारी कापी लाकर सब नोट कर दिया,सारे महत्वपूर्ण प्रश्न नोट करने में काफी समय लगा,इसीलिए दरवाजा खोलने में मुझे देर हो गई.उसके लिए सॉरी-अर्पिता मेरी ओर देखते हुए बोली.
मैं बहुत भावुक होकर बोला-मैं तुम्हे जितना ही ज्यादा समझने की कोशिश करता हूँ,उतना ही ज्यादा उलझता जाता हूँ.कमरे के अंदर बंद होकर मैं तुम्हे कोस रहा था ओर तुम मेरा काम कर रही थी.मैं तुम्हारे जैसे दोस्त का कैसे शुक्रिया अदा करूँ ?
मेरे तरीके से तो शुक्रिया अदा कर नहीं पाओगे,तुम अपने तरीके से ही मेरा शुक्रिया अदा कर दो-ये कहकर वो शरारत से मुस्कुराने लगी.
मैंने अपना दायां हाथ धीरे से उसके दायें हाथ पर रख दिया और धीमे से बोला-शुक्रिया.
मेरे घर चलो,कुछ देर और मेरे साथ रहो.मैं तुम्हारा ये शुक्रिया तभी कुबूल करूंगीं-वो मेरा हाथ कस के पकड़ ली.
आज नहीं,तुम्हारे घर गया तो बहुत देर हो जायेगी.फिर किसी दिन जरुर चलूँगा.आज मुझे घर जाने दो-उसकी गहरी झील सी आँखों में झांकते हुए बोला.
वो कुछ देर तक मेरा हाथ थामे मुझे एकटक देखती रही और फिर धीरे से मेरा हाथ छोड़.दी.हमदोनों ड्राइंगरूम के बाहर आ गए.बरामदे से होते हुए हम नीले रंगवाले मेनगेट के नजदीक पहुंचे.मेरा जूता और उसकी सेंडिल वहीँ रखी हुई थी.वो अपनी सैंडिल पहनने लगी ओर मैं अपने जूते पहनने लगा.कुछ देर बाद हमदोनो अर्चना को हाथ हिलाकर बाय बाय करते हुए गेट के बाहर आ गए.अब अर्पिता और मैंने एक दूसरे को मुस्कुराते हुए देखकर हाथ हिलाया.वो अपने घर की तरफ चल पड़ी.चलते चलते बीच बीच में पीछे मुड़ के देखती रही और मैं हवा में अपना दायां हाथ हिला देता था.कुछ दूर जाने के बाद वो अपने घर के गेट के पास रुकी और पीछे घूमकर मेरी और देखते हुए अपना दायां हाथ हवा में लहराने लगी.वो तबतक अपना हाथ हवा में लहराती रही,जबतक की बंद गेट खुल नहीं गया.वो अपने घर के अंदर चली गई तो मैं गेट के अंदर आ गया.
पापा,आप चाय पियेंगे तो मैं आप के लिए चाय बना दूँ ?.-अर्चना ने पूछा.
नहीं बेटा,मुझे कुछ जरुरी काम है,मै चलूँगा.-उसके पिताजी बोले.
अर्चना के पिताजी गेट के पास आकर अपने जूते पहनने लगे.
अंकल जी,मैं भी आप के साथ चलता हूँ.मुझे बस स्टैंड पर छोड़ दीजियेगा.-मैं बोला.
ठीक है बेटा चलो.कहो तो मैं घर तक छोड़ दूँ ?-अर्चना के पिताजी बोले.
नहीं अंकल जी.आप केवल बस स्टैंड तक छोड़ दीजिये.मैं चला जाउंगा-मैं बोला.
अर्चना के पिताजी गेट के पास रुक बोले-मेरे कमरे का दरवाजा बंद कर देना.वो गेट के बाहर निकल गए.अर्चना आकर गेट के पास खड़े होकर हमें देखने लगी.
बाय बाय अर्चना,अब हम कल फिर मिलंगे-मैं अर्चना की तरफ देख हाथ हिलाया.
बाय..बाय-अर्चना ने मेरी तरफ देख मुस्कुराते हुए हाथ हिलाया.
कुछ ही देर में स्कूटर स्टार्ट हुआ,मैं स्कूटर पर बैठ गया.मैं और उसके पिताजी दोनों स्कूटर से चले दिए.मैं पीछे मुड़ के देखा अर्चना एकटक मुझे निहार रही थी.
शेष अगले ब्लॉग में..
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)
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