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छूप गया कोई रे,दूर से पुकार के भाग-१०
मार्च का महीना चल रहा था.सर्दियाँ कुछ कम होने लगी थी.मैंने अपनी पढाई अच्छी तरह से ध्यान देना शुरू कर दिया था.पढ़ते पढ़ते अक्सर रात को दो बज जाता था और अगले दिन सुबह देर से नींद खुलती थी.बीए फ़ाइनल इयर के कोर्स के साथ साथ मैं सिविल सर्विसेज की प्रारंभिक परीक्षा की तैयारी भी कर रहा था.घर पर पढाई में हमेशा व्यस्त रहने से मेरे पिताजी बहुत खुश थे.रात को दो बजे जब बहुत तेज नींद का झोंका आता था तो मैं अक्सर अपनी किताब कापियां और पेन बेतरतीब छोड़कर सो जाता था.सुबह जब सोकर उठता था तो किताब कापी पेन सब मेज पर बहुत सलीके से रखी हुई मिलती थीं.मैं समझ जाता था कि रात को पिताजी मेरे कमरे में आयें होंगे.जिस रात ज्यादा ठण्ड पड़ती थी उस रात वो मेरी सफ़ेद रजाई के ऊपर मिल्ट्री वाला काले रंग का मोटा कम्बल ओढ़ा जाया करते थे.वो एक सैनिक अफसर होने के कारण वो बाहर से बहुत अनुशासित थे,छोटी सी भी गलती के लिए परिवार में किसी को भी माफ़ नहीं करते थे और तुरंत सजा सुना देते थे.परन्तु वो परिवार के हर सदस्य का बहुत ख्याल रखते थे और वो अपने भीतरी मन से परिवार के हर सदस्य से प्रेम करते थे,जिसका दिखावा उन्होंने अपने जीवन भर कभी नहीं किया.
कालेज में हमारे चारों विषयों के पाठ्यक्रम पढ़ाये जा चुके थे,अब उसे दोहराने के साथ साथ परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रश्न लिखवाये जा रहे थे.कालेज में हम तीनो दोस्तों की मुलाकात हर रोज होती थी.कालेज पहुंचते ही मेरी नजरें अर्पिता को ढूंढने लगती थीं और उससे मुलाकात होते ही मेरा दिल धड़कने लगता था.क्लास में दूसरों की नजरों से बचते हुए एक दूसरे को निहार लेते थे.कालेज की छत पर जाकर धूप सेंकने के बहाने,कालेज की गैलरी में अगले पीरियड का इतजार करने के बहाने और कालेज की कैंटीन में चाय पीने बहाने हम मिलते थे पर दिल नहीं भरता था.पता ही नहीं चलता था कि समय कितनी जल्दी बीत गया.कालेज की बेल बजती थी और हमें मजबूरन क्लासरूम की ओर भागना पड़ता था.हमारी बातें अधूरी रह जाती थीं और एक दूसरे से जी भरके मिलने की चाह भी अधूरी रह जाती थी.कालेज से छूटने के बाद अक्सर हम अर्चना के घर पर घंटो एक दूसरे के साथ रहते थे,परन्तु फिर भी एक दूसरे से मिलने की चाह अधूरी ही रह जाती जाती थी.न जाने कितने जन्म की और न जाने कैसी प्यास थी ये,जो बुझने का नाम ही नहीं लेती थी.घर जाकर भी वो याद आती थी,परन्तु मै अपने ऊपर कंट्रोल कर पढाई में व्यस्त हो जाता था.कालेज में दो बजकर चालीस मिनट पर हमारा हिंदी का अंतिम पीरियड खत्म होता था.कालेज से छूटने के बाद हमतीनो मेनरोड तक साथ-साथ चलकर आते थे.वहाँ पर अर्पिता रोज अर्चना के घर चलने के लिए जिद करती थी.उसके साथ चलने को मेरा भी रोज बहुत मन करता था.उसके साथ समय बिताना मुझे भी बहुत अच्छा लगता था,लेकिन वहाँ जाने पर पढाई नहीं हो पाती थी और देर से घर जाने पर पिताजी की डांट खानी पड़ती थी.पिछले बाईस दिन से वो मेनरोड पर पहुँचने के बाद अपने घर चलने के लिए जिद कर रही थी.उसके साथ चलने को मेरा भी बहुत मन करता था,उसका सानिध्य मुझे भी बहुत अच्छा लगता था,परन्तु दिनोदिन बहकते जा रहे अपने मन पर किसी तरह से नियंत्रण करके और उसे अब पढाई पर ध्यान देने की सलाह देकर बस पकड़कर भाग लेता था.वो पीछे से आवाज़ लगाती रह जाती थी.
शुक्रवार २३ मार्च को दो बजकर चालीस मिनट पर हिंदी का आखिरी पीरियड ख़त्म हुआ.प्रोफ़ेसर साहब के जाने के बाद सब लड़के लड़कियां क्लासरूम से बाहर निकलने लगे.भीड़ कम हुई तो मै भी क्लासरूम के बाहर की तरफ चल पड़ा.बाहर गैलरी में अर्पिता और अर्चना मेरा इंतजार कर रहीं थीं.मुझे देखते ही अर्पिता गुस्से के मारे झल्ला उठी-तुम अब अपनी क्लास लोगे क्या ?क्लास के अंदर आराम से बैठे हुए हो.
मै भीड़ कम होने का इंतजार कर रहा था.अब आराम से हमलोग नीचे जा सकते हैं.सीढ़ियों पर भी भीड़ नहीं मिलेगी-मैं बोला.
अब जल्दी चलो,आज तुम्हे मेरे घर चलना है.मम्मी कई दिन से तुम्हे बुला रही हैं.आज कोई बहाना नहीं मत बनाना.आज मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनूगीं-वो मेरे और अर्चना के साथ सीढ़ियों की तरफ चलते हुए बोली.
उसकी बात सुनकर मैं कुछ बोला नहीं,परन्तु मन ही मन में आज फिर उसके न जाने का कोई बहाना ढूंढने लगा.सीढ़ियों से उतर हम नीचे आये और तेज कदमो से चलते हुए चुपचाप कालेज के गेट की तरफ बढे.बड़े से सफ़ेद रंग के गेट से बाहर निकल हमलोग शार्टकट कच्चे रास्ते से मेनरोड की तरफ बढे.कुछ लड़के लड़कियां हमारे आगे जा रहे थे और कुछ लड़के लड़कियां हमारे पीछे आ रहे थे.पीछे कोई लड़का ऊँची आवाज़ में गाना गा रहा था-
बहारों फूल बरसाओ
मेरा महबूब आया है
हवाओं रागिनी गाओ
मेरा महबूब आया है
मैं समझ रहा था की वो हमें चिढ़ाने के लिए गा रहा है.मेरी बाईं ओर मेरे साथ साथ चल रही अर्पिता अपने दायें हाथ से मेरा बायां हाथ कस के पकड़ ली.मुझे कुछ शर्म आ रही थी.जो लड़का गा रहा था,उसके कुछ दोस्त वाह वाह कह रहे थे.वो आगे फिर गाने लगा-
नज़ारों हर तरफ़ अब तान दो इक नूर की चादर
बडा शर्मीला दिलबर है, चला जाये न शरमा कर
ज़रा तुम दिल को बहलाओ
मेरा महबूब आया है
अर्पिता मेरा हाथ और कस के पकड़ रुक गई.मैं भी रुक गया.हमारे पीछे गाना गा रहा लड़का और उसके दोस्त पास में आ गए तो अर्पिता बोली-ऐ रुको,ये कौन गाना गा रहा था ?तुममे से कौन ये फूल बरसा रहा था ?
तीनो लड़के घबराते हुए एक दुसरे का मुंह देखने लगे और स्थानीय भाषा में कुछ कहने लगे.अर्पिता भी उसी भाषा में जाने क्या कही की तीनो हाथ जोड़कर माफ़ी मांगने लगे और फिर चुपचाप वहाँ से खिसक गए.
मेरी कुछ समझ में नहीं आया था.मैंने अर्चना से पूछा-इसने उन्हें क्या कहा था ?
अर्चना हंसकर बोली-ये उन्हें कह रही थी की मेरे पास भी गालियाँ और सेंडिल है बरसाने को,कहो तो बरसाऊँ ?
उसकी बात सुनकर मैं भी हंस पड़ा और बोला-इसने कुछ ज्यादा ही झाड़ दिया उन्हें.
वो अर्चना की और देखते हुए अपनी स्थानीय भाषा में कुछ बोली.अर्चना मेरी तरफ देख मुस्कुराने लगी.
क्या कहा इसने ?-मैं अर्चना से पूछा.
अर्चना बोली-ये कह रही है की इस बुद्धू से कहो की मेरे लिए ये भी कभी कुछ गा दिया करे.
मैं कोई अच्छा गायक नहीं हूँ.बस बाथरूम सिंगर हूँ.-मैं बोला.
तुम मेरे लिए गाओगे,इसीलिए मेरी नज़र में तुम इस दुनिया के सबसे अच्छे गायक हो-अर्पिता मेरी और देख बोली.
ठीक है,तुम्हारे जन्मदिन पर मैं कुछ सुना दूंगा-मैं बोला.
कल ही तो है,इसका जन्मदिन-अर्चना बोली.
हाँ,मुझे मालूम है.कई दिन से हमलोग इस बात की चर्चा कर रहें हैं-मैं अर्पिता की तरफ देखा.
वो बोली-मेरे घर चलकर कल का कार्यक्रम बनाते हैं.मैं कल अपने जन्मदिन को पूरी तरह से भोगना चाहती हूँ और उसे यादगार बनाना चाहती हूँ.मेनरोड की तरफ देखते हुए उसने मेरा हाथ और कस के पकड़ लिया.
हमलोग मेनरोड पर पहुँच गए थे.जैसे ही हम वहाँ पहुंचे,मेरे घर जाने वाली बस आ गई.मैं रोज की तरह आज फिर हाथ छुड़ाकर भागना चाहा,मगर आज हाथ छुड़ा नहीं पाया.वो पहले से ही मुझे रोकने की तैयारी कर ली थी.कई लड़के लड़कियां बस में चढ़े और बस कंडक्टर की सिटी के साथ बस आगे बढ़ गई.
वो गुस्सा होकर बोली-तुम कई दिनों से मुझसे दूर भागने की कोशिश कर रहे हो,अब कहाँ जाओगे भागकर ?ऐसी गलती बार बार मत करो,नहीं तो मैं यदि तुम्हारे घर तक पहुँच गई तो तुम्हे बहुत परेशानी उठानी पड़ेगी.
पौने तीन बजे वाली बस जा चुकी थी और अब अगली बस एक घंटे बाद ही मिलने वाली थी.रोड पार करने के बाद वो मेरा हाथ छोड़ दी और बोली-अब चुचाप मेरे साथ चलो.
उसके घर जानेवाले कालोनी के रास्ते पर हमलोग चल पड़े.मैं चुचाप उनके साथ चल रहा था.वो अपनी भाषा में कुछ बात कर रही थीं.कभी उनकी आवाज़ धीमी तो कभी तेज हो जाती थी.
तभी अर्पिता हिंदी में बोली-ये तेरा दोस्त है,इसीलिए तुझे इससे हमदर्दी है,तभी तो तू बस एक ही बात बार बार रट रही है की मैं इसका शोषण कर रही हूँ.लेकिन ये मेरा रातदिन कितना शोषण कर रहा है इस ओर तेरा ध्यान क्यों नहीं जा रहा है.ये तेरा सिर्फ एक अच्छा दोस्त है लेकिन मेरा तो जीवनसाथी है ओर वो मेरे लिए सबकुछ है,उसके साथ पूरा जीवन मुझे गुजारना है.उसके साथ सुखी ओर शांतिपूर्ण जीवन बिताने के लिए दो ही रास्ते हैं,या तो.मैं उसके विचाओं के अनुरूप ढल जाऊं या तो वो मेरे विचारों के अनुरूप ढल जाये.उसके बताये रास्ते सदियो पुराने ओर कायरों वाले हैं,जिसे न तो मैं अपना सकती हूँ ओर न ही उसपर चल सकती हूँ,इसीलिए उसे मेरे बताये रास्ते को अपनाना चाहिए ओर उसपर चुपचाप मेरे साथ चलना चाहिए.तुम शांत रहकर और मेरी मदद कर मुझे अपना कार्य करने दो.इस विषय पर तुम मुझसे और बहस मत करो.
आखिर तुम चाहती क्या हो ?-मैंने पूछा.उसकी बातें सुनकर मुझे गुस्सा आ गया था.
बस यही कि जैसा मैं कहूं तुम चुपचाप बिना कोई विरोध किये उसे मानते जाओ.तुम बार बार मेरी बात मानने का प्रॉमिस करते हो,लेकिन उसे निभाते नहीं हो.-वो मुझे गुस्से से देखती हुई बोली.
मैं खामोश हो गया.हमलोग अर्चना के घर के पास पहुँच गए थे.
मैं इन्हे लेकर अपने घर जा रही हूँ.तुम तीन घंटे बाद मेरे घर पर आ जाना,हमतीनो बैठकर कल का सब कार्यक्रम तय कर लेंगे-अर्पिता बोली.
ठीक है मैं शाम को छह बजे तुम्हारे घर पर पहुँच जाउंगी,लेकिन प्लीज तुमदोनों तीन घंटे लड़ना झगड़ना नहीं-अर्चना मुस्कुराकर बोली और फिर अपने काले रंग के बैग से चाबी निकाल नीले गेट का ताला खोलने लगी.वो गेट खोल अंदर चली गई और गेट अंदर से बंदकर ली.
आओ हम अपने घर चलें- मेरी तरफ देख अर्पिता मुस्कुराते हुए अपना दायाँ हाथ मेरी ओर बढ़ाई.कालेज की सफ़ेद ड्रेस में वो बहुत अच्छी लग रही थी.
नहीं,मेरा हाथ मत पकड़ो.तुम्हारे मोहल्लेवाले देखेंगे क्या सोचोगे ?-मैं शरमाते हुए बोला.
वो मेरी तरफ बढ़ाये दायें हाथ से मेरा बायां हाथ पकड़ बोली-तुम अगर मेरा हाथ पकड़ के नहीं चलोगे तब तो वो और गलत सोचेंगे कि अर्पिता के साथ ये लड़का कौन है ?हाथ पकड़के चलने से वो ये समझ जायेंगे कि ये दोनों बहुत गहरे दोस्त हैं और शीघ्र ही शादी करनेवाले हैं.
शेष अगले ब्लॉग में…
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)
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