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छूप गया कोई रे,दूर से पुकार के भाग-११

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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छूप गया कोई रे,दूर से पुकार के भाग-११
मैं चुपचाप उसके साथ चल पड़ा.दो मिनट में हमदोनों उसके घर के पास पहुँच गए.आसमानी रंग का गेट था.गेट के बगल में कालबेल थी और उसके ऊपर उसके पिताजी की नेमप्लेट लगी थी.गेट के दोनों तरफ पिलर के ऊपर लाइटें लगी थीं.सफ़ेद चमचमाती हुई सात फुट ऊँची बाउंड्री थी.अर्पिता मेरा हाथ छोड़ कालबेल बजा दी.बड़े गेट के अंदर लगभग साढ़े पांच फिट ऊँचे छोटे गेट के खुलने का हम इंतजार कर रहे थे.अर्पिता कुछ देर बाद फिर कालबेल बजाई.छोटा गेट खुल गया.उनके घर की नौकरानी थी.पीले रंग का साल ओढ़े सामने खड़ी थी.
मुझे देखी तो बोली-अरे साहब जी आप,कितने दिनों के बाद आये हैं.माँ जी कितने दिनों से दीदी से रोज कह रही हैं,उस लड़के को ले के आओ.दीदी पर उनकी सुनती कहाँ हैं..
अच्छा तू पहले सामने से हट..अर्पिता गेट के भीतर प्रवेश करते हुए बोली.मैं गेट के अंदर प्रवेश करने लगा तो मेरे सिर पर हाथ रख बोली-सिर झुका के आना,चोट न लगे.
तुम्हारे पास कोई सिर उठा के आ सकता है ?तुहारे पास सिर झुकाकर आने पर भी चोट लगती है-मैं मुस्कुराते हुए अर्चना की तरफ देखा.
वो मुस्कुराते हुए भीतर से गेट बंद कर मेरे करीब आ खड़ी हुई.उसके चेहरे की गुलाबी रंगत और बढ़ गई थी.मेरी बात सुनकर वो कुछ बोली नहीं पर बहुत खुश नज़र आ रही थी.अर्पिता के घर के आगे छोटा सा गार्डन था,जिसमे कई तरह के सुन्दर फूल खिले हुए थे.दोनों तरफ बगीचा और बीच में दूब की घासवाला सुंदर रास्ता.अर्पिता मुझे लेकर घर के अंदर की तरफ चल पड़ी.छोटे से बगीचे के बाद बायीं तरफ कोने में एक कमरा था,जिसे उसके पिताजी ने अपना क्लिनिक बना रखा था.घर के बरामदे में मैं कदम रखते हुए क्लिनिक में सन्नाटा देख पूछा-तुम्हारे पिताजी अब घर में प्रक्टिस नहीं करते है क्या ?
अब उन्हें बड़े बड़े हास्पिटलों से ही फुर्सत नहीं मिलती है.कभी कभार कालोनी के किसी मरीज को घर पर देख लेते हैं-अर्पिता बोली.
सामने ड्राइंगरूम का लकड़ी का सुंदर दरवाजा खुला हुआ था,जबकि उसके बगलवाला दरवाजा बंद था.बरामदे में दो बेंच और कई कुर्सियां पड़ी थी.कुर्सी पर बैठ मैं अपने कपडे के सफ़ेद जूते उतारने लगा.अर्पिता अपनी सफ़ेद सेंडिल उतारी और हाथ में उसे उठाते बोली-जूते पहने हुए ही अंदर चलते और भीतर चलकर आँगन में उतार देते.
व्यक्ति को जूते घर के बाहर ही उतार देना चाहिए.वो चाहे अपना घर हो या अपने फादर इन लॉ का..मै अर्पिता की तरफ देख मुस्कुराते हुए बोला.
नौकरानी हँसते हुए बोली-साहब,ससुराल में आप का स्वागत है.आप दोनों की जोड़ी बनी रहे.
मै हैरानी से उसे देखने लगा.मै समझ गया कि ये थोडा बहुत अंग्रेजी समझती है.अर्पिता कुछ शर्मा गई.उसके चेहरे पर अपने बाएं कंधे से काला बैग उतार नौकरानी को देते हुए बोली-तू क्या यहाँ खड़ी हो के हंस रही है.ले मेरा बैग पकड़,इसे मेरे कमरे की मेज पर रख देना.और माँ से बता दे की वो आप से मिलने के लिए आये हुए हैं.
साहब के जूते भी लेते जाऊँ,आँगन में रख दूंगी-वो अर्पिता की और देख मुस्कुराने लगी.
तू क्यों ले जायेगी साहब के जूते.मै किसलिए यहाँ खड़ी हूँ.तू जा यहाँ से..-अर्पिता प्यार से झिड़कते हुए बोली.नौकरानी भीतर चली गई.
तुम नार्मल रहो,ज्यादा बनो मत यहाँ आकर,अपने पर उतर आई तो भागते फिरोगे-अर्पिता मेरी तरफ देखते हुए बोली.वो एक हाथ में अपनी सेंडिल और दूसरे हाथ में मेरे जूते उठा बोली-आओ.पहले मेरे कमरे में चलते हैं.मैंने अपनी पीले कवरवाली कॉपी हाथ में ले ली और उसके साथ घर के ड्राइंगरूम में प्रवेश किया.
सफ़ेद रंग की चमचमाती दीवारवाले सजे धजे ड्राइंगरूम को पारकर को हम उसके बड़े से घर के भीतर आगे बढे,जिसमे बाईं तरफ खाना खाने के लिए डाइनिंग हाल था.और वहीँ पर एक बाथरूम बना था.उसके बगल में अर्पिता का कमरा था.मेरे सामने रसाई घर था,जिसके दाहिनी तरफ एक कमरा था,जो गठिया से परेशान उसकी माता जी और दस साल के उसके छोटे भाई का कमरा था.दायीं तरफ सूर्य की रोशनी देता छोटा सा आँगन था.वही पर एक बाथरूम और उसके बगल में छत पर जाने के लिए सीढियाँ थीं,जिसके पास ही घर में प्रवेश करने का मुख्यद्वार था.सागौन की महंगी लकड़ी के बने हलके पीले रंग के खिड़की और दरवाजे चमचमाते हुए देखने में बहुत सुंदर लग रहे थे.
मुख्यद्वार के दरवाजे के पास सीढ़ियों के नीचे अर्पिता मेरे जूते और अपनी सेंडिल रख दी.वॉशवेसिन पर हाथ धोकर वो मेरे करीब आते हुए बोली-आओ,मेरे कमरे में चल के बैठो,जब मम्मी बुलाएंगी तो उनसे मिलने चला जायेगा.
हमदोनो रसोई के बायीं तरफ वाले कमरे के पास पहुंचे.बाहर से बंद कुण्डी खोल अर्पिता अपने कमरे का दरवाजा खोल दी.दरवाजा खुलते ही गुलाब खशबू का एक झोंका नाक में समा गया.कमरे में घुसते ही भीतर बायीं तरफ मेज पर दो बड़ी शीशी में पत्ते और डंडी समेत देशी गुलाब के लाल रंग के चार-चार फूल गुलदस्ते की तरह सजा के रखे गए थे.फूल ताजे थे और आज सुबह के रखे हुए लगते थे.उसका कमरा सजा धजा था.चाओ ओर की दीवारें सफेदी से चमचमा रहीं थी.दीवारों पर सुंदर प्राकृतिक दृश्य फ्रेम कराके तांगे गए थे.बड़े कमरे में एक कोने में कपडे रखनेवाली गोदरेज की लाल रंग की बड़ी आलमारी थी तो दूसरी तरफ सुंदर सिंगारदानी थी.लकड़ी की एक सुंदर कुर्सी और एक छोटी सी चाय रखनेवाली पास्टिक की सफेद रंग की स्टूल थी.मेज पर सफ़ेद रंग की मेजपोश बिछी थी,जिसपर ढेर सारी ढेर सारी किताबे कापियां और एक बड़ी स्केल व् कई तरह की पेन रखी हुई थी.मेज पर एक नीले रंग की टेबल लैंप,एक टेपरिकार्डर,कुछ कैसेट और एक रेडियो रखा हुआ था.मेज के ऊपर खिड़ी थी,जो ठण्ड की वजह से बंद थी.उसपर क्रीम कलर का पर्दा लगा हुआ था.कमरे में एकदम बायीं तरफ दिवार से सटकर लकड़ी की एक खूबसूरत पलंग बिछी थी,जिसपर सफ़ेद रंग की नई और कीमती चादर बिछी हुई थी.उसीपर सफ़ेद रंग के कपडे की कवर चढ़ी एक रजाई बहुत करीने से चपत कर रखी हुई थी.लगभग छह महीने पहले जब मैं दूसरी बार अर्पिता के घर आया था,उस समय उसका घर इस तरह से सजा धजा नहीं था,एकदम साधारण घर लगता था.
घर का तो पूरा नक्शा ही बदल गया.पहचान में ही नहीं आ रहा है की तुम्हारा वही पुराना घर है-मैं आश्चर्य से चारो और देखते हुए बोला.
चार महीने से घर में काम लगा हुआ था,तभी तो मैं तुम्हे घर ले के नहीं आ रही थी.अभी दो रोज पहले सब काम फिनिश हुआ है.मैं तुम्हे सरप्राइज देना चाहती थी-अर्पिता बोली.उसका गुलाबी चेहरा ख़ुशी से चमक उठा. .
मुझे अभी कपडे बदलने हैं.आज तुम अपनी पसंद का कलर बताओ,मैं उसी कलर का कपडा पहनुंगी.बताओ मैं कौन से कलर का कपडा पहनूं ?-ये कहकर वो मेरे दायें हाथ से कॉपी छीन मेज पर रख दी और और अपने दायें हाथ से मेरा बायां हाथ पकड़ गोदरेज की कपडे रखनेवाली बड़ी आलमारी के पास ले गई.आलमारी खोली तो मैं देखा की उसमे बहुत करीने से सजाकर कड़े रखे हुए हैं और पूरी आलमारी कपड़ों से भरी पड़ी है.आलमारी में तीन खाने कपडे रखने को बने थे और दो खाने कपडे टांगने को बने थे.एक छोटी सी तिजोरी भी बनी थी.
ऊपर के खाने में हेंगर पर टंगी गुलाबी,लाल,हरी और नीली रंग की चार खूबसूरत और कीमती साड़ियों को देख मैं आश्चर्य से पूछा-तुम साड़ी पहनती हो ?मैं तुम्हे इस खूबसूरत लाल रंग की साड़ी में देखना चाहता हूँ की कैसी लगती हो ?चलो अब पहनकर दिखाओ.
अर्पिता बोली-आज नहीं कल मैं अपने जन्मदिन पर तुम्हारी ये इच्छा जरुर पूरी करुँगी.कालेज की फेयरवेल पार्टीवाले दिन भी यदि तुम कहोगे तो तुम्हारी पसंद की साड़ी जरुर पहनुंगी.अभी सलवार कमीज पहनुंगी,तुम अपना फेवरिट कलर बताओ…
नीला कलर मुझे बहुत अच्छा लगता है.तुम नीले कलर की सलवार कमीज पहनो,पर नई सलवार कमीज मत पहनना,नही तो तुम न्यू पिंच करने के लिए फिर परेशान करोगी-मैं कुछ परेशान होते हुए बोला.
अर्पिता जोर से हंस पड़ी.कुछ देर हंसने के बाद बोली-तब तो तुम्हे न्यू पिंच करना पड़ेगा.आज भी,कल भी और फेयरवेल पार्टीवाले दिन भी क्योंकि ये सब कपडे नए हैं.वो नीले रंगवाला प्रेस किया हुआ सलवार कमीज और टुपट्टे का सेट निकाल आलमारी बंद कर दी.वो कमरे के बाहर की और जाते हुए बोली-तुम बैठो में कपडे चेज करके आती हूँ.
मैं कुर्सी पर बैठकर मेज पर रखे टेपरिकार्डर के पास पड़े कैसटों को देखने लगा.शमा,अनारकली,एक महल हो सपनो का,जूली..और भी बहुत सी फिल्मों के कैसेट थे.अनारकली फ़िल्म का कैसेट हाथ में लिया और दोनों हाथों के सहारे उसका कवर खोलकर कैसेट बाहर निकाल लिया.मैंने कैसेट टेपरिकार्डर में लगा दिया.प्ले का बटन दबाने वाला था तभी नौकरानी कमरे में आई और बोली-चलिए साहब आप को माताजी बुला रही हैं.
तुम चलो,मैं उन्हें लेके आती हूँ.और हा,दो कप चाय बनने को रख दो.चीनी दूध मत डालना,मैं अपने हाथ से उनके लिए चाय बनाउंगी.-नीले रंग के कपड़ों में लिपटी अर्पिता कमरे में प्रवेश करते हुए नौकरानी को समझाने लगी.
कैसी लग रही हूँ ?-वो सिंगारदानी के सामने अपने बाल ठीक करते हुए पूछी.
बहुत अच्छी लग रही हो.तुम्हारे बदन पर आके इस कपडे की शोभा बढ़ गई है.-मैं बोला.
वाह..फिर तो आज तुम्हे न्यू पिंच करना ही पड़ेगा.वो भी बडोवाला,क्योंकि तुम अब बड़े हो गए हो-मेरे पास आते हुए वो बोली.वो मुझे देखते हुए शरारत से मुस्कुरा रही थी.
मेरा दिल धड़कने लगा.न्यू पिंच के नाम से घबराहट होने लगी.वो कुर्सी के पास आ गई-चलो उठो और अपना न्यू पिंचवाला किया हुआ वादा निभाओ.
माता जी ने बुलाया है,मुझे याद आ गया.न्यू पिंच से पीछा छुड़ाने के लिए बोला-माताजी ने बुलाया है,पहले हमें वहाँ चलना चाहिए.
हाँ,चलो,लेकिन याद रखना,न्यू पिंच लिए बिना आज तुम्हे घर नहीं जाने दूंगी.-वो मेरी ओर देख बोली.
मैं कुछ बोला नहीं,चुपचाप उसके साथ चल पड़ा.हमलोग कमरे से बाहर निकले.अर्पिता दरवाजा बाहर से बंदकर कुण्डी लगा दी.अर्पिता मेरे साथ चलते हुए अपना दुपट्टा ठीक की.हमदोनो सीधे चलते हुए रसोईघर के आगे वाले बहुत शांतिपूर्ण ओर सुसज्जित कमरे में प्रवेश किये.कमरे में टीवी से लेकर मेज कुर्सी तक सभी जरुरी चीजें उपलब्ध थीं.मेज पर रखीं ढेर सारी तरह तरह दवाइयों से बहुत तेज महक आ रही थी.कमरे में दायीं तरफ उसकी माताजी बिस्तर पर सफ़ेद कवर वाला रजाई ओढ़कर लेटीं थीं.मैं ओर अर्पिता उनके पास पहुंचे.वो आँखे बंद किये लेटीं थी.
मम्मी देखो,कौन आया है ?राज आया है..मम्मी राज..-अर्पिता ने उन्हें आवाज देकर जगाया और मेरा संक्षिप्त नाम लिया,जो उसने मुझे पुकारने के लिए रखा था.
वो आँखे खोल मेरी तरफ देखीं और मेरा पूरा नाम लेकर उन्होंने हाथ के ईशारे से पास बुलाया.मैंने दोनों हाथों से उनके पैर की तरफ स्पर्श किया और बोला-मम्मी मेरा प्रणाम स्वीकार कीजिये.उन्होंने आशीर्वाद दिया-हमेशा खुश रहो बेटा..और इसे भी खुश रखो.
मैं उनके सिर के पास जाकर जाकर खड़ा हो गया.उन्होंने नौकरानी की ओर देखा और बोली-
प्रिया,तू थोड़ी देर के लिए रसोई में जा बेटी,मुझे जब जरुरत होगी तुझे बुला लुंगी.मुझे इन दोनों से अकेले में कुछ बात करनी है.
जी..माँ जी.-नौकरानी प्रिया कमरे के बाहर निकाल गईं.
मम्मी,अब आप की तबियत कैसी है ?-मैं पूछा.
तबियत तो अब दिन प्रतिदिन और बिगड़ती जा रही है.गठिया का रोग शारीर के हर जोड़ में फ़ैल गया है..या तो खड़ी रहती हूँ या फिर लेटी रहती हूँ..अब तो नित्य क्रिया करना भी मुश्किल हो गया है.स्कूल जाना भी छूट गया..मेरी नौकरी भी चली गई..अब तो जितना जल्दी ये शरीर छूट जाये उतना ही अच्छा है..शरीर को बहुत कष्ट हो रहा है..-इतना बोलते बोलते वो रोने लगीं.उनकी आँखों से आंसू बहने लगे.मैंने अपनी जेब में रखा सफ़ेद रुमाल निकाला और उनकी आँखों से बहते आंसू पोंछने लगा.मैं बहुत भावुक हो गया.
मम्मी,आप घबराएं नहीं आप जल्दी ठीक हो जाएँगी.-कहते कहते मेरा गला भर्राने लगा.मेरी आँखों में आंसू छलक आये.
बेटा,तू जो दवा लाया था उससे दर्द में आराम मिल गया था.मुझे तो लगता है की दवा नहीं बल्कि तेरे हाथों में जादू है..-उसकी मम्मी बोली.
मैं कल आपके लिए चार पैकेट दवा ला दूंगा.-मैं बोला.
वो मेरा दायाँ हाथ अपने दोनों हाथों से पकड़ बोलीं-अब मैं वो बात तुझसे करुँगी,जिसके लिए मैंने तुझे बुलाया है.
वो हमदोनो की तरफ देखते हुए बोलीं-ये लड़की तुम्हारे प्यार में एकदम पागल हो गई है.ये..
कौन पागल हो गया है भाई ?-अर्पिता के पिताजी कमरे में प्रवेश करते हुए पूछे.
मैं अर्पिता की मम्मी के हाथों से अपने हाथ छुड़ा जाकर अर्पिता के पिताजी को प्रणाम किया.वो खुश होकर आशर्वाद देते चले गए-बेटा हमेशा खुश रहो..सुखी रहो ..स्वस्थ रहो..और जीवन में खूब कामयाब होवो.
तुम हमेशा गलत समय पर आ टपकते हो..कितनी जरुरी बात मैं कर रही थी..-अर्पिता की माँ अपने पति की और देखते हुए बोलीं.
मैं भी तो सुनूं क्या जरुरी बात है.-अर्पिता के पिता जी हमदोनो के पास आकर खड़े हो गये.
अर्पिता की मम्मी बोलीं-बच्चे हैं,हो सकता है की तुम्हारे सामने शरमायें और अपने दिल की बात न कह पाय़ें.
अर्पिता बोली-मम्मी हम आज के युग के बच्चे हैं,हमें कोई दिक्कत नहीं है.तुम पापा के सामने बेझिझक अपनी बात कहो.पापा भी तो सुने,उनसे छिपाना क्या ?
अर्पिता की माँ मेरी ओर एकटक देखते हुए पूछीं-बेटा तुम अर्पिता को चाहते हो ?
जी,मैं भी उसे उतना ही चाहता हूँ,जितना वो मुझे चाहती है.-मैं बोला.
शादी करोगे उससे ?-उन्होंने पूछा.
जी,जरुर करूँगा एकदिन.-मैं बोला.
एकदिन..पर आखिर कब वो एकदिन आएगा.?-उसकी माताजी फिर पूछीं.
जब मैं अपने पैरों पर खड़ा हो जाउंगा.इसमें साल दो साल लग सकतें हैं.-मैं बोला.
अर्पिता की माता जी कुछ बोलीं नहीं,बस गहरी साँस खींचने लगीं,परन्तु अर्पिता तुरंत बोल पड़ी-नहीं..मैं इतने दिनों तक प्रतीक्षा नहीं कर सकती हूँ.कल मेरा जन्मदिन है और हमारी शादी भी कल ही होगी..
शादी कल होगी..?-अर्पिता की बात सुनकर उसकी माँ.उसके पिताजी और मैं तीनो चौक गए.मुझे तो बहुत घबराहट होने लगी.
मगर ये शादी कल कैसे सम्भव है ?इतनी जल्दी..शादी कोई खेल तमाशा है क्या ?-उसके पिताजी बोले.
हमदोनो कल सुबह दुर्गाजी के मंदिर में शादी करेंगे और कल शाम को यहीं घर पर जन्मदिन और शादी की पार्टी एक साथ देंगे.-अर्पिता दृढ़स्वर में बोली.
मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था.मैं बहुत घबराते हुए बोला-मगर कल कैसे सम्भव है ?मैं अभी अपने पिताजी से शादी की बात करूँगा तो वो मुझे मारने पीटने लगेंगे.मेरी माँ भी तैयार नहीं होगी.मेरे घर से कोई इस शादी में शामिल नहीं हो पायेगा..हाँ,साल दो साल का समय मिले तो मैं अपने घर वालो को मना लूंगा.
तुम्हारे घरवाले कल हमारी शादी में चाहे आयें न आये,लेकिन हमारी शादी कल हो के रहेगी,मेरा ये अंतिम फैसला है.तुम अपने घरवालों को जिंदगी भर हमारी शादी के लिए नहीं मना पाओगे,कल हमारी शादी हो जाने दो,मैं सबको ठीक कर दूंगी-अर्पिता बोली.
मैं चुप हो गया,उसकी बातों का मेरे पास कोई जबाब नहीं था.मैं बहुत बुरी तरह से घबरा रहा था.उसके माता-पिताजी भी खामोश थे.
अर्पिता दीवाल घडी में देखते हुए बोली-पापा,अभी तो शाम के चार बजे हैं.आप जाइये और अपने कुछ खास परिचितों को निमंत्रण दे दीजिये.रात को आठ बजे तक आप घर जरुर आ जाइयेगा और राज को उसके घर तक छोड़ दीजियेगा.
मैं बस से चले जाउंगा.तुम पापा को क्यों परेशान करती हो ?-मैं बोला.
नहीं बेटा,इसमें परेशानी वाली कोई बात नहीं.आज मैं तुम्हे तुम्हारे घर छोड़ने के लिए जरूर चलूँगा.-अर्पिता के पिताजी बोले.
तभी कालबेल बजी.प्रिया गेट खोलने के लिए रसोईघर से निकल घर से बाहर की ओर भागी.थोड़ी देर बाद अपने हाथ में बैट बाल लिए अर्पिता का दस साल का छोटा भाई आशीष घर के अंदर आते दिखा.अर्पिता के पिताजी उसे देखते ही डांटने लगे-तुम अपनी पढाई क्यों नहीं करते हो ?जब देखो तब क्रिकेट खेलने के लिए भाग जाते हो.चलो,अब चुपचाप घर में बैठकर अपनी पढाई करो.वो चुचाप बैट बॉल लिए अपनी माँ के कमरे में चला आया.
आशीष ने आकर मुझे नमस्ते किया.बैट बॉल ले जाकर आलमारी में रख दिया और अपना स्कूल बैग लेकर ड्राइंगरूम में बैठकर पढ़ने चला गया.
बेटा जाओ,राज को कुछ चाय नाश्ता करा दो.-अर्पित की मम्मी बोलीं.
ठीक है मम्मी,मैं इन्हे ले के अपने कमरे में जा रही हूँ.वहीँ लाकर चाय नाश्ता करा देती हूँ.-अर्पिता बोली.
अर्पिता मुझे चलने का ईशारा की.मैंने उसकी माताजी को प्रणाम किया और अर्पिता के साथ उसकी माताजी के कमरे से बाहर आ गया.अर्पिता मुझे लेकर अपने कमरे की तरफ चल पड़ी.रसोईघर के सामने से गुजरते हुए हमदोनों कुछ ही क्षण में उसके कमरे के सामने पहुँच गए.
शेष अगले ब्लॉग में-
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

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