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छूप गया कोई रे-भाग-१२-मिलने का मौसम

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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छूप गया कोई रे,दूर से पुकार के भाग-१२
कोई गीत गुनगुनाते हुए अर्पिता अपने कमरे के दरवाजे की बाहर से बंद कुण्डी खोल दी.हमदोनों कमरे के भीतर आ गए.मै दो कदम आगे बढ़ लकड़ी की बनी खूबसूरत कुर्सी के पास खड़ा होते हुए पूछ-ये कौन सा गीत गुनगुना रही हो ?बहुत अच्छा लग रहा है.
वो मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देख बोली-बहुत रोमांटिक गीत है.कल मैंने फ़िल्म “दूसरा आदमी” का कैसेट खरीदी था.कल से कई बार सुन चुकी हूँ,पर दिल नहीं भरा है.जितनी बार इस गीत को सुनती हूँ,उतनी बार तुम्हारी बहुत याद आती है.आज मैं ये गीत तुम्हे भी सुनाऊँगी.
वो दरवाजा अंदर से भिड़ा दी.उसे दरवाजे को भिड़ाते देख मुझे घबराहट होने लगी.आज एकांत में पता नहीं क्या करेगी,ये सोचकर मेरे दिल की धड़कने बढ़ने लगी.
मै अपने दिल की तेज होती धड़कनो पर काबू करने की कोशिश करते हुए बोला-तुम अंदर से दरवाजा क्यों भिड़ा दी,उसे खुला रहने देती.इस घर के लोग क्या सोचेंगे हमारे बारे में ?
मैं तो सिटकिनी लगाने की सोच रही थी,पर तुम्हारे ऊपर दया आ गई कि अकेले में मुझसे घबरा के कहीं तुम्हारा हार्ट फेल न हो जाये.तुम बहुत डरपोक आदमी हो.तुम हमेशा दूसरों से डरते रहते हो.इस घर के लोग हमारे बारे में क्या नहीं जानते हैं ?उन्हें सब मालूम है.-अपने दोनों हाथों से पकड़ मेरे पास पड़ी कुर्सी पर मुझे बैठाते हुए बोली.
वो मेरे ठीक सामने आकर बिस्तर पर बैठ गई.मेज कुर्सी दोनों बेड के एकदम करीब थे.वो फिर वही गीत गुनगुनाने लगी.उसका गोरा सुंदर चेहरा ख़ुशी के मारे चमक रहा था.मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था,काफी घबराहट भी हो रही थी,परन्तु उसका सानिध्य बहुत अच्छा भी लग रहा था.मन ही मन मै भी खुश था कि कल अर्पिता से मेरी शादी हो जायेगी,परन्तु मन ही मन बहुत चिंतित भी था कि पिताजी को मालूम पड़ने पर वो मेरा क्या हाल करेंगे और ये सब बातें जानने के बाद मेरी माता जी और बहने भी दुनिया भर का सवाल मुझसे पूछेंगी.
वो मेरा दोनों हाथ अपने दोनों हाथों में ले बोली-तुम मेरे फैसले से खुश हो न ?
हाँ,लेकिन मुझे बहुत डर लग रहा है.आगे की सोचकर मेरे तो हाथ पैर अभी से कांप रहे हैं.हमारे शादी की बात कितने दिन छिपी रह पायेगी,एक न एक दिन तो मेरे घरवालों को सब पता लग ही जायेगा,फिर वो पता नही मेरे साथ कैसा व्यवहार करेंगे ?मेरे पिताजी तो मुझे मार ही डालेंगे-मैं डरते हुए बोला.
वो मेरा हाथ कस के पकड़ बोली-तुम्हारे घर में या बाहर कहीं भी कोई तुम्हे छू के तो देखे.मैं अकेले ही सबसे निपटने के लिए बहुत हूँ.शादी के बाद मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे घर चलूंगी और देख लूंगी तुम्हारे पिता जी को.इससे पहले कि वो तुम्हे गोली मारें,उससे पहले उन्हें मुझे गोली मारनी होगी.
उसकी झील सी गहरी आँखों में इतनी दृढ़ता और सच्चाई झलक रही थी कि मुझे कुछ हौसला मिला.मै उसकी ओर देखते हुए बोला-ठीक है,जो तुम्हे अच्छा लगे वो करो,लेकिन तुम्हे मेरी भी एक बात माननी होगी.
कौन सी बात ?-वो बहुत जिज्ञासा के भाव से पूछी.
मै बोला-शादी के बाद जबतक मुझे कोई अच्छी नौकरी नहीं लग जाती तबतक हमदोनो ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करेंगे.मेरी ये बात तुम्हे मंजूर है ?
मेरी बात सुनकर वो हंसने लगी.कुछ देर हंसती रही फिर बोली-मै वादा तो नहीं करती पर कोशिश करुँगी.शादी के बाद तुम्हारी आज्ञा का पालन करना मेरा फर्ज है.
मै खुश होकर बोला-मैंने कई साल पहले एक संस्थ भी बनाई थी.उसका नाम है-अखिल भारतीय ब्रह्मचारी संघ,मै इसका अध्यक्ष हूँ और बारह लड़के इसके सदस्य बन चुके हैं.हम अपनी सस्था को संक्षेप में एबीबीएस कहते हैं.
मेरी पूरी बात सुनते सुनते वो जोर से खिलखिाकर हंस पड़ी.काफी देर तक हंसती रही.
मै नाराज होकर बोला-तुम मेरा मजाक उड़ा रही हो ?
वो अपनी हंसी रोकर बोली–नहीं..फिर कुछ रूककर पूछी-अच्छा तुम एक बात बताओ तुम्हारी संस्था के सदस्य शादी करेंगे या नहीं ?
शादी कर सकते हैं,लेकिन उन्हें शादी के बाद कम से कम सेक्स में रूचि लेना है और अधिक से अधिक वीर्य की रक्षा करनी है-मै बोला.
वो किसी तरह से अपनी हंसी पर कंट्रोल कर बोली-मुझे भी अपनी संस्था का मेंबर बना लो.मै तुम्हारी पर्शनल सेक्रेटरी बनकर सेवा करुँगी.
ठीक है,पर तुम्हे शादी के बाद कुछ समय तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करके दिखाना होगा.जब मै नौकरी पकड़ लूंगा तब हम सेक्स के बारे में सोचेंगे-मै बोला.
तुम्हारी सब बातें मंजूर हैं.परन्तु मेरी एक बात तुम्हे भी माननी होगी.वो ये की मुझे छूने से, किस करने से और बाँहों में लेने से कभी नहीं रोकोगे,बोलो मंजूर है ?-ये कहकर वो अपना दायां हाथ आगे बढ़ाई.
ठीक है लेकिन तुम पहले वादा करो कि इससे आगे नहीं बढ़ोगी-मै बोला.
मंजूर है,अब मिलाओ हाथ ?-ये कहकर अर्पिता अपना दायां हाथ मेरे दायें हाथ से सटा दी.
मै उससे हाथ मिला लिया.
एक बात सच सच बताना,झूठ मत बोलना.तुम्हे मेरी कसम है..मेरा तुम्हे देखना..मेरा तुम्हे छूना..और मेरा तुम्हे किस करना कैसा लगता है ?-वो मेरी आँखों में झांकते हुए पूछी.
मै कुछ शरमाते हुए बोला-अच्छा लगता है,पर बहुत शर्म आती है..बहुत घबराहट होती है..और बहुत उतेजना महसूस होती है.
ये उतेजना क्या होती है-वो शरारत से मुस्कुराते हुए पूछी.
तुम हमेशा गन्दी बातें करती हो.मै अब तुम्हारे किसी सवाल का जबाब नहीं दूंगा-ये कहकर मै कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया.मैं उसके हाथों से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगा.
वो मुझे खींचकर कुर्सी पर बैठा दी और गम्भीर होकर बोली-पहले तो तुम अपने दिमाग से ये बात निकाल दो कि ये गन्दी बातें हैं.कल से हम अपना वैवाहिक जीवन शुरू करेंगे तो ये सवाल तुम्हारा भी पीछा करेंगे और इस सवाल का जबाब भी तुम्हारे ही पास है.
मुझे तुम्हारे सवाल का जबाब नहीं मालूम.मुझे सिर्फ यही मालूम है कि उतेजना मुझे महसूस होती है-मैं बोला.
वो मुस्कुराने लगी-यही तो सही जबाब है.उतेजना आनंद है और वही वास्तविक जीवन भी है,बाकि जीवन तो सिर्फ अपने संस्कारों का बोझा ढ़ोना भर है.
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई और बाहर से आवाज़ आई–दीदी चाय ले लो.
अर्पिता मेरा हाथ छोड़ बिस्तर से उठी और जाकर भिड़ा हुआ दरवाजा खोल दी.दरवाजा खुलते ही प्रिया चाय ले के अंदर आ गई.सफ़ेद रंग कि बड़ी सी ट्रे में बिस्कुट.नमकीन,चीनी,दूध,चाय की छोटी केतली,दो शीशे के गिलास में भरा पानी और दो खाली कप सब सजाकर बड़े सलीके से रखा हुआ था.
सिंगारदानी के पास पड़ा प्लास्टिक वाला सफ़ेद स्टूल लाकर अर्पिता बिस्तर के पास रखते हुए बोली-तू चाय यहाँ रख दे.और जा.
दीदी,मेरी मदद की कोई जरुरत हो तो बताना..अब इन सब चीजों की अनुभवी हो चुकी हूँ..हो सकता है मेरा अनुभव आप के कम आ जाये-प्रिया शरारत से मुस्कुराते हुए बोली.
तू जाती है या बताऊँ तुझे आकर..तू जा..और दरवाजा बाहर से लगाकर जाना-अर्पिता उसे प्यार से फटकार लगाते हुए बोली.
प्रिया हँसते हुए कमरे से बाहर निकाल दरवाजा बाहर से बंद कर दी.बाहर से कुण्डी बंद करने की आवाज़ आई तो मैं कुछ परेशान होकर बोला-ये तो बाहर से कुण्डी लगा दी है.
तुम परेशान मत होवो,रसोई में बेल लगी हुई है,जब जरुरत होगी तो मैं कालबेल स्विच दबाकर उसे बुला लूंगी.तुम बिस्कुट और नमकीन लो.चाय मैं बना देती हूँ-अर्पिता दो कप चाय बनाते हुए बोली.
सुबह का मैं खाना खाया था,इसीलिए मुझे भूख महसूस होरही थी.मैं चम्मच नमकीन लेकर दो बिस्कुट खा लिया और एक गिलास पानी पिया.भूख से कुछ राहत मिली.
मेरे पेट पर सफ़ेद स्वेटर के ऊपर दायां हाथ फिरा बोली-तुम्हारे लिए कुछ बना दूँ,तुम्हे भूख लगी होगी.
तुम्हे कैसे मालूम हुआ कि मुझे भूख लगी है-मैं हैरानी से पूछा.
मुझे महसूस हुआ कि तुम्हे भूख लगी है.तुम मेरे इतने करीब आ चुके हो कि बहुत कुछ महसूस कर लेती हूँ-चाय का कप मुझे देते हुए वो एकटक मुझे देखने लगी.मैं अपनी नजरें झुका लिया और दायां हाथ बढ़ाकर चाय का कप पकड़ लिया.
मैं कुछ तुम्हारे लिए बना के लाती हूँ.मैं बस दस मिनट में कुछ बना के लाती हूँ-वो जाने के लिए उठी.मैं अपना चाय का कप मेज पर रख हड़बड़ाकर खड़ा हो गया और उसका हाथ पकड़ लिया.कुछ घबराते हुए बोला-नहीं,तुम मत जाओ.तुम मेरे साथ रहो.मुझे अकेले यहाँ बैठने पर बहुत शर्म आती है और बहुत घबराहट होती है.
अर्पिता हँसते हुए मेरे करीब आ बोली-तुम्हारी यही अदा मुझे पागल बना देती है.ये भोलापन तुम्हारा,ये शरारत और ये शोखी,ज़रूरत क्या तुम्हे तलवार की, तीरों की,खंजर की.नज़र भर के जिसे तुम देख लो,वो खुद ही मर जाये.
मुझे कुर्सी पर बैठा वो पास में बैठते हुए बोली-ठीक है नहीं जाउंगी,पर मेरी दो बातें तुम्हे माननी पड़ेंगी. मेरे हाथ से बिस्कुट खाना पड़ेगा और मुझे न्यू पिंच करना होगा वो भी बडोवाला.
ठीक है मैं कोशिश करूँगा-किसी तरह से हिम्मत कर मैं बोल पाया.
अपना प्रोमिस मत भूलना-इतना कहकर वो मुस्कुराते हुए मुझे बिस्कुट खिलाने लगी.
अपना ये टेपरिकार्डर ऑन करो,मैंने अपनी पसंद का एक कैसेट उसमे लगा रखा है.उसने टेपरिकार्डर आन कर प्ले बटन दबा दिया.पुरानी फ़िल्म के गीत बजने लगे.मैंने कहा-जरा फॉरवर्ड करो.फॉरवर्ड कर उसने प्ले किया तो हेमंत कुमार की आवाज़ में मेरी पसंद का एक गीत बजने लगा-
ज़िन्दगी प्यार की दो चार घडी होती है
चाहे थोड़ी भी हो ये उम्र बड़ी होती है
हम एकदूसरे को निहारते हुए चाय पीते रहे.पलटे में केवल दो बिस्कुट बचे थे.उसने लगभग सरे बिस्कुट मुझे खिला दिए थे.मैंने चाय का कप मेज पर रख दायें हाथ से एक बिस्कुट उठाया और उसके होठोंसे लगा दिया.उसका चेहरा ख़ुशी चमक उठा.वो मुझे देखते हुए बिस्कुट खाने लगी.टेपरिकार्डर पर गीत के ये बोल गूंज उठे-
ताज या तख़्त या दौलत हो ज़माने भर की
कौन सी चीज़ मुहब्बत से बड़ी होती है
मैंने प्लेट से दूसरा बिस्कुट था उसे भी उसके होंठों से लगा दिया.वो धीरे धीरे बिस्कुट खाती रही और मुझे देखती रही.उधर टेपरिकार्डर पर गीत के ये बोल कमरे में गूंज रहे थे-
दो मुहब्बत भरे दिल साथ धड़कते हों जहां
सबसे अच्छी वो मुहब्बत की घडी होती है
हमदोनों बहुत रोमांटिक मूड में थे.अर्पिता बिस्तर से उठकर मेज के पास गई और कई कैसटों के बीच से छांटकर एक कैसेट अपने हाथ में उठा ली.उसका ऊपरी कवर खोलकर कैसेट बाहर निकाली और टेपरिकार्डर में लगाते हुए बोली-अब मैं तुम्हे अपनी पसंद का एक गीत सुनाती हूँ और तुम अपना दूसरा प्रॉमिस पूरा करो.थोड़ी देर में कमरे में किशोर लता की आवाज़ में कई साल पुरानी फ़िल्म “दूसरा आदमी” का गीत बजने लगा-
नज़रों से कह दो प्यार में मिलने का मौसम आ गया
बाहों में बाहें डाल के खिलने का मौसम आ गया
अर्पिता मेरे बिलकुल करीब आ गई.उसके चेहरे और शरीर से अजीब तरह की मदहोश कर देने वाली खुशबु आ रही थी.उसने मेरे कंधे पर अपने दोनों हाथ रख दिए.मेरे कान में उसने कहा-अपना प्रॉमिस पूरा करो.चलो न्यू पिंच करो.मेरी हालत ख़राब होने लगी.उधर टेपरिकार्डर पर लता की मधुर आवाज़ गूंज रही थी-
इस प्यार से तेरा हाथ लगा लहरा गए केशू मेरे
कुछ भी नज़र आता नहीं मस्ती में मुझे तेरे परे
काँधे पे मेरे ज़ुल्फ़ के ढलने का मौसम आ गया
अर्पिता बार बार अपनी तर्जनी अंगुली अपने गुलाबी होंठों से लगा किस करने का इशारा करती रही,न्यू पिंच करने के लिए,लेकिन मेरी हिम्म्मत नहीं हो पा रही थी.दिल तेजी से धड़क रहा था.गहरी सांसे चल रही थी और मेरी हाथ पैर कांप रहे थे.उधर कमरे में किशोर कुमार की सुरीली आवाज़ गूंज रही थी-
तुम मिल भी गए फिर भी दिल को क्या जाने कैसी आस है
तुम पास हो फिर भी होंठों में जाने कैसी प्यास है
होंठों की ठंडी आग में जलने का मौसम आ गया
तभी दवाजे पर किसी ने दस्तक दी.अर्पिता मुझपर नाराज थी.वो मेरी कमर पर अपना बायां हाथ रखी और अपने दायें हाथ से मेरा सिर पकड़ मेरे एकदम करीब आ अपने गुलाबी होठों से मेरे गुलाबी होठों को छू ली.मुझे लगा जैसे एक गुलाब के फूल ने दूसरे गुलाब के फूल को छुआ हो.किस करते समय उसका सीना पहली बार मेरे सीने से जरा सा छुआ और मेरी हालत ख़राब हो गई.ऐसा लगा जैसी बिजली का करंट लगा हो.मुझे बहुत घबराहट और उतेजना महसूस हो रही थी.अर्पिता ने मेरी तरफ नाराज़गी से देखा और फिर मुझे छोड़ दी.मेरा दिल अब भी तेजी से धड़क रहा था.मुझे बहुत घबराहट हो रही थी.मै गहरी सांसे लेते हुए दीवाल घडी की तरफ देखा,उसमे शाम के छह बज रहे थे.
शेष अगले ब्लॉग में..
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

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