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छूप गया कोई रे-भाग-१३-विवाह की तैयारी

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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images777uouछूप गया कोई रे-भाग-१३-विवाह की तैयारी
दरवाजे के पास जाकर वो बोली-दरवाज़ा बाहर से बंद है.दरवाज़े की कुण्डी खोलो.दरवाज़ा खुला तो पीले सलवार कमीज़ में लिपटी अर्चना कमरे में आती दिखी.मुझे देख वो अपने गले
में लिपटा पीला दुपट्टा ठीक करने लगी.अर्पिता दरवाजा अंदर से फिर भिड़ा दी.
मुझे हांफते देख वो बोली-तू क्यों इसे इतना परेशान करती है.एक दिन में तो तेरी सब बातें सीख नहीं जायेगा.तू हमेशा अपनी ही बात क्यों मनवाने की जिद करती है.
वो कुछ नहीं सीख पायेगा.मैं मर्द हूँ और वो औरत.मुझे अब उसका पति बनना पड़ेगा और वो मेरी पत्नी बनेगा-अर्पिता गुस्से से मेरी तरफ देखते हुए बोली.
मैं अब अपनी और बेईज्जती बर्दाश्त नहीं कर सकता.मैं अब अपने घर जा रहा हूँ और कल मैं नहीं आउंगा-मैं गुस्से के मारे दरवाज़े की ओर बढ़ते हुए बोला.मुझे अपने ऊपर गुस्सा आने लगा कि मैं क्यों बार बार इस लड़की से इतना अपमान झेलता हूँ ?मुझे इससे दूर हो जाना चाहिए.अपनी जिंदगी से इसे निकाल फेंकना चाहिए.
उसके पास से गुजरने लगा तो वो अपना दायां हाथ बढाकर झट से मेरा बायां हाथ पकड़ ली और गुस्से से बोली-देखती हूँ मैं भी तुम कैसे जाते हो ?और कल न आने की धमकी मुझे मत दो.कल तुम सुबह दस बजे तक अगर तुम यहाँ नहीं पहुंचे तो मैं तुम्हारे घर पहुँच जाऊंगीं और तुम्हारे घर से तुम्हे खिंचकर ले आउंगी.चलो,अब चुपचाप चलकर कुर्सी पर बैठो.वो मुझे कुर्सी पर लाकर बैठा दी.
तू क्यों उसका इतना इन्सल्ट करती है ?-अर्चना बिस्तर पर बैठते हुए बोली.
इन्सल्ट उसका नहीं मेरे सौंदर्य का होता है.किस काम की मेरी ये सुंदरता है,जो अपने प्रेमी को रिझा भी न सके-अर्पिता खिन्न होकर मेरी ओर देखते हुए बोली.
तुम गलत बात कह रही हो.मैं तुम्हे उतना ही चाहता हूँ,जितना तुम मुझे चाहती हो.तुम प्रेम ओर सेक्स दोनों को ले के चलती हो,इसीलिए तुम परेशान रहती हो और मुझे भी परेशान करती हो-मैं बोला.
तुम मूर्खता वाली बातें क्यों करते हो ?पति और पत्नी के रिश्ते की कल्पना क्या सेक्स के बगैर की जा सकती है ?सेक्स पति-पत्नी के बीच प्रेम उत्पन्न करनेवाला और उन्हें आपस में जोड़े रखनेवाला पुल है.सेक्स के बिना वैवाहिक जीवन नीरस और निरर्थक ढ़ोया जानेवाला एक बोझ मात्र है.-मेरे पास बिस्तर पर वो बैठते हुए बोली.
तुम हमेशा अश्लील बातें करती हो-मैं बोला.
अश्लील शब्द का क्या अर्थ है ?-वो मुझसे पूछी.
प्रकृति प्रदत्त चीजों को गलत ढंग से प्रस्तुत करना ही अश्लीलता है.इससे किसी का नैतिक पतन भी हो सकता है-मैं बोला.
अर्पिता मेरी बात सुनकर हंसने लगी.उसका गुलाबी चेहरा खिल उठा और मोतियों जैसे सुंदर सफ़ेद दांत चमक उठे.कुछ देर हंसने के बाद बोली-बड़ी जल्दी तुम्हारा नैतिक पतन हो जाता है.तुम्हारी नैतिकता बहुत कमजोर है,क्योंकि वो बनावटी है.तुम चाहते कुछ हो और कहते कुछ हो.तुम्हे सुधरने में मुझे समय लगेगा,लेकिन मेरे साथ रहते रहते जरुर सुधर जाओगे.कुछ रूककर वो आगे बोली-मैं तुम्हे अश्लील शब्द का सही अर्थ बता दूँ.ये सम्पूर्ण प्रकृति ही अश्लील है.जिसे तुम अश्लील समझते हो वो एक प्राकृतिक कला है.अश्लीलता प्राकृतिक नंगापन है.अश्लीलता मनुष्य का जन्मजात स्वाभाव है.आदमी अश्लील पैदा होता है,जवानी में अश्लीलता का भरपूर आनंद लेता है और जाते हुए अश्लील हो के जाता है.
तो फिर ये अश्लील साहित्य क्या है और उसके ऊपर पाबन्दी क्यों लगाई जाती है ?-मैं पूछा.
साहित्य सिर्फ साहित्य होता है.पढ़नेवाला पचा न पाये या उसका दुरूपयोग करे तो इसमें साहित्य का दोष नहीं है.तुम्हारे जैसे डरपोंक लोगों के नैतिक पतन की रक्षा के लिए ऐसे साहित्य पर पाबन्दी लगाई जाता है.इतना कहकर वो अपना दायाँ हाथ उठा मेरे फूले हुए बाये गाल को अंगूठे और तर्जनी से पकड़ खिंच दी और बोली-समझे बुद्धू..वो मेरा मजाक उड़ाते हुए हंसने लगी.
मैं अपना बायां हाथ अपने बाएं गाल पर ले जा सहलाने लगा,जहाँ पर हल्का सा दर्द हो रहा था.उसका अचानक यों मेरा गाल खींचना अच्छा तो लगा था लेकिन मैं गुस्सा होते हुए बोला-ये क्या मजाक है ?तुम्हे सोचना चाहिए कि अर्चना भी यहाँ बैठी हुई है.
अर्चना से कैसी शर्म ?ये हमारी मित्र है और हमारे बारे में सबकुछ जानती है-अर्पिता बोली.
अबतक चुप बैठकर हमदोनो की बातें सुन रही अर्चना बोली-आपस में झगड़ा करना और कुछ देर बाद फिर आपस में घुलमिल जाना तुमदोनो की आदत बन चुकी है.अब छोडो,इन सब बातों को.चलो,कल तुम्हारे हैप्पी बर्थडे का मजेदार कार्यक्रम बनाते हैं.फ़िल्म देखने चलें तो कैसा रहेगा ?हमारे घर के सबसे नजदीक वाले सिनेमाहाल में बहुत अच्छी फ़िल्म “तोहफा” लगी है,चलो,हमलोग कल उसे देखने चलते हैं.
नहीं,मैं तुमलोगों के साथ सिनेमाहाल में फ़िल्म देखने नहीं जाउंगा.सिनेमाहाल जाकर हमलोगों ने चार फ़िल्में साथ साथ बैठ के देखीं हैं और चारो बार मैंने अपने घर जाकर बहुत डांट सुनी है.वैसे भी मुझे सिनेमाहॉल का गन्दा माहौल पसंद नहीं है.बहुत ज्यादा शोर शराबा और सिगरेट का बदबू देता धुंआ मेरा तो दिमाग ख़राब कर देता है.मैं तो नहीं जाउंगा-मैं बोला.
अर्पिता अर्चना की ओर देखते हुए बोली-सिनेमाहाल जाने की तो सोंचे भी तब,जब हमारे पास तीन चार घंटे की फुर्सत हो.कल तीन चार घंटे तो मंदिर में हमारी शादी होने में ही लग जायेंगे.रात को शादी और जन्मदिन दोनों की पार्टी है.
कल तुमदोनों मंदिर में शादी कर रहे हो ?क्या बोल रही है तू ?तेरी तबियत तो ठीक है न ?-अर्चना आश्चर्य से अर्पिता को देखते हुए पूछने लगी.उसे विश्वास नहीं होरहा था.
तू इतनी हैरान मत हो.हमलोग कल सचमुच में माँ दुर्गा जी के मंदिर में शादी करने जा रहे हैं.कल सुबह दस बजे तू भी तैयार रहना.शाम को यहीं घर पर शादी और जन्मदिन की एक छोटी सी पार्टी है-अर्पिता ख़ुशी से चहकते हुए बोली.
कुछ देर चुप रहने के बाद अर्चना बोली-तुम दोनों पागल हो गए हो क्या ?एक महीने के बाद बीए फाईनल की परीक्षा शुरू हो जाएँगी.सिविल सर्विसेज की परीक्षा की तैयारी भी करनी है.अर्चना हैरानी से हमदोनों को देखे जा रही थी.वो हमारे निर्णय से खुश नहीं थी.
मैंने जो फैसला लिया है,ठीक लिया है.बीए फ़ाइनल की परीक्षा हम देंगे और अच्छे नंबरों से पास भी होंगे.रही बात सिविल सर्विसेज परीक्षा की तो इस साल हमतीनो में से कोई भी सिविल सर्विसेज की प्रारम्भिक परीक्षा नहीं दे पायेगा,क्योंकि हमतीनो की उम्र अभी कम है.हम अगले साल ही सिविल सर्विसेज की परीक्षा दे पाएंगे और उसकी तैयारी करने के लिए हमारे पास अभी बहुत समय है.
अर्चना बोली-मैं तेरी बात मानती हूँ.शादी के बाद तुमलोग सिविल सर्विसेज की परीक्षा की तैयारी नहीं कर पाओगे.अभी तो तुम्हे बीए फ़ाइनल कम्प्लीट करना हैं.इतना कहकर वो मेरी तरफ देखने लगी.मैं कुछ न बोलकर अर्पिता की तरफ देखने लगा.
तू एक ही बात क्यों बार बार रट रही हैं ?जब शादी का निर्णय हमदोनों ने ले लिया है तो तू क्यों बीच में अपनी टांग अड़ा रही है ?हमदोनों शादी कर रहे हैं,इसीलिए तुझे जलन हो रही है-अर्पिता गुस्से में आकर बोली.
अर्चना उसकी ओर देखते हुए बोली-मुझे क्यों जलन होगी ?तेरी बचपन की सहेली हूँ,इसीलिए तेरी शादी होने की ख़ुशी मुझसे ज्यादा किसे होगी ?फिर वो मेरी ओर देखते हुए बोली-वो अभी बहुत कम उम्र का है और ये उसका करियर बनाने का समय है.तू अभी से उससे शादी करके उसकी पूरी जिंदगी बर्बाद करने जा रही है.वो तो इनोसेंट है पर तू तो समझदार है.
वो बच्चा नहीं है.मुझसे उम्र में छोटा भी नहीं है.उम्र में वो मुझसे दो महीने बड़ा है.रही बात उसका करियर बनाने की तो ये चिंता तू मुझपे छोड़ दे.मैं इसकी जिंदगी आबाद करूँ या बर्बाद,तुझे उससे क्या मतलब ?-अर्पिता अपने दोनों हाथों में मेरा दायाँ हाथ पकड़ ली.वो बहुत गुस्से में थी.
हमदोनों एक दूसरे को बहुत चाहते हैं.अब एकदूसरे के बिना जीना मुश्किल हो गया है.तुम ये शादी होने दो ओर इसमें हमारा सहयोग करो.भविष्य में जो होगा देखा जायेगा.करियर बनाने के लिए मैं अपने प्यार की बली नहीं दे सकता हूँ.-मैं अर्चना की तरफ देखते हुए बोला.मैंने अपना बायां हाथ अर्पिता के हाथ पर रख दिया.मेरी बात सुनकर अर्पिता की आँखों में ओर चेहरे पर चमक आ गई.
वो एकटक मुझे निहारते हुए बोली-मैं तुम्हारे प्यार में हर घडी बेचैन रहती हूँ.एक एक दिन बिताना मेरे लिए मुश्किल हो गया है.तुम मुझसे शादी कर लो,मुझे अपना लो,फिर तुम अपना जो भी करियर बनाना चाहोगे,मैं पूरा सहयोग करुँगी.तुमसे ये वादा है मेरा.वो मेरे हाथ कस के पकड़ ली और उसकी आँखों से आंसू छलकने लगे.
अपने नीले पैंट की दायीं जेब से सफ़ेद रुमाल निकाल उसकी दोनों आँखों से बहते आंसू पोंछ मैं बोला-अर्पिता,तुम निश्चिन्त रहो,कल हमारी शादी होके रहेगी.अब हमारी शादी होने से कोई नहीं रोक सकता है.मैं कल सुबह दस बजे तुम्हारे घर आ जाउंगा.
मेरी पूरी बांहवाले सफ़ेद स्वेटर की सलवटें ठीक करते हुए वो बोली-अपने घर पर क्या कहोगे ?
कह दूंगा कि मेरे एक दोस्त ने अपने जन्मदिन की पार्टी दी है.मैं रात को देर से घर लौटूंगा-नीले कपड़ों में लिपटी उसकी अतुलनीय सुंदरता को निहारते हुए मैं बोला.
कल रात को मैं तुम्हे नहीं जाने दूंगी.कल मेरी जिंदगी की सबसे हसीन रात होगी.तुम कल पूरी रात मेरे साथ रहोगे-वो मुझे निहारते हुए बोली.
लेकिन मैं अपने घर में क्या कहूंगा-मैं चिंतित स्वर में पूछा.
तुम घर में कोई भी बहाना बना देना-वो मेरी तरफ देख शरमाते हुए बोली और फिर नजरें झुका मुस्कुराने लगी.
तभी अर्पिता के पिताजी की आवाज़ आई-अरे बच्चों कहाँ हो तुमलोग ?
अर्पिता अपना नीला दुपट्टा ठीक करते हुए बोली-पापा,दरवाज़ा खोल के आ जाईये.
दरवाज़ा अंदर से सिर्फ भिड़ा हुआ था.उसके पिताजी दरवाज़ा खोल के अंदर आ गए.अर्पिता और अर्चना बिस्तर से उठकर खड़ी हो गईं.मैं कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और कुर्सी उठा उनके पास रख दिया-अंकल जी,आप बैठिये.
तुम भी बैठो बेटा.-वो कुर्सी पर बैठते हुए बोले.
मैं बिस्तर पर बैठ गया.अर्पिता और अर्चना भी बिस्तर पर बैठ गई.
अर्पिता के पिताजी बोले-बेटा,मैंने अपने कुछ खास दोस्तों को कल की पार्टी में शामिल होने का निमंत्रण दे दिया है.कल सुबह अपनी कालोनी में भी सबको निमंत्रण दे दूंगा.मैंने टेंटवाले को बोल दिया है.वो छत पर एक अच्छा सा शामियाना लगा देगा और दो सौ लोगों के लिए बढ़िया भोजन की व्यवस्था करेगा.मै माँ दुर्गाजी के मंदिर गया था.वहांपर आजकल एक बूढ़ा साधू कहीं से आया हुआ है.वो इतना जानकर और सिद्ध व्यक्ति है कि मंदिर का पुजारी भी उसका चेला बन गया है.मंदिर में पूजा करने के बाद वो दिनभर उसी साधू के पास बैठा रहता है.मैंने उस बूढ़े साधू के सामने पुजारी से तुमदोनों की शादी कराने की बात चलाई तो वो इंकार करने लगा.कहने लगा कि इस महीने शादी का मुहूर्त नहीं है,तब उस बूढ़े साधू ने पंडित को डांटा कि एक फ़क़ीर बादशाह होने चला है और तू उसके रास्ते की बाधा बन रहा है.कल तुझे ये शादी करानी होगी.तब पुजारी पचांग देख के बोला कि कल सुबह दस बजे सब सामान लेकर आ जाओ.सुबह दस से बारह के बीच शुभ मुहूर्त है.मै इसी शुष मुहूर्त में शादी कराउंगा.उसने चार सौ रूपये शादी करने की दक्षिणा मांगी है और समानो की एक लिस्ट बनाकर मुझे दे दी है.मै अपने हास्पिटल से दो लड़कों को साथ लाया हूँ.उनके पास भी स्कूटर है.हमलोग एक दो घंटे में सारी खरीदारी कर लेंगे.सुबह दुकाने देर से खुलती हैं,इसीलिए इसी समय खरीदारी करनी जरुरी है.सुबह दस बजे तक हमें सब सामान लेकर मंदिर पहुंचना होगा.इतना कहकर वो अपनी कलाईघड़ी में समय देखने लगे.
मेरी तरफ देखते हुए अर्चना के पिताजी बोले-बेटा,चलो मै तुम्हे तुम्हारे घर छोड़ आऊँ.इसी बहाने मै तुम्हारे पिताजी,माताजी और तुम्हारी बहनो से मिल लूंगा.उन्हें भी तुम्हारी शादी में और पार्टी में शामिल होने का निमंत्रण दे दूंगा.
मै उनकी बात सुनकर घबड़ा गया और बोला-नहीं अंकलजी,ऐसी गलती मत कीजियेगा,नहीं तो हमारी शादी भी नहीं हो पायेगी.मै एक साल के अंदर कोई न कोई नौकरी ढूंढकर घरवालों को अपनी शादी की बात बताऊंगा और पूरे सम्मान और अधिकार के साथ अर्पिता को ले जाउंगा,तबतक वो मेरी अमानत बनकर आप के पास रहेगी.मै दीवालघडी की तरफ देखते हुए बोला-अभी आप मुझे सिर्फ बसस्टैंड तक छोड़ दीजिये.मै बस से चला जाउंगा और
अपने घर के पास वाले मार्केट से कुछ जरुरी सामान भी खरीद लूंगा.
ये ठीक कहते हैं पिताजी.हमें इनकी बात मान लेनी चाहिए-अर्पिता बोली.
उसके पिताजी एक गहरी साँस खीच बोले-ठीक है,जैसी तुलोगो की मर्जी.
वो कुर्सी से उठते हुए बोले-चलो बेटा,मै तुम्हे बसस्टैंड तक छोड़ देता हूँ.पौने आठ बजे वाली बस मिल जायेगी.मै लड़को के साथ मार्केट निकल जाउंगा.दो घंटे में हम सारी खरीदारी कर लेंगे.
मै भी जाने के लिए बिस्तर से उठकर खड़ा हो गया.अर्पिता और अर्चना भी बिस्तर से उठकर खड़ी हो गईं.
पापा,आपलोग चाय पीकर जाईये.मै पाँच मिनट में बनाकर लती हूँ-अर्पिता बोली.
नहीं बेटा,चाय मत बना,देर हो जायेगी.इस समय सबसे जरुरी काम समानो की खरीदारी करना है-अर्चना के पिताजी बोले.कमरे से बाहर जाने के लिए वो दरवाज़े की तरफ चल पड़े.
मैं और अर्पिता कमरे से बाहर जाने के लिए दरवाज़े की ओर बढे तो मुझे अपनी कॉपी की याद आ गई.मैं मेज पर से अपनी कॉपी उठा दायें हाथ में ले लिया.तभी मेरी नज़र बिस्तर के पास खड़ी अर्चना पर पड़ी,जो अपनी आँखें पोंछ रही थी.
अरे,तुम्हे क्या हुआ ?-मैं आश्चर्य से पूछा.
कुछ नहीं,बस यूँ ही,.वो बस इतना ही बोली ओर दरवाज़े की ओर चल पड़ी.
दरवाज़े के पास खड़ी अर्पिता उसकी ओर देखते हुए बोली-तू आंसू क्यों बहा रही है ?मैं शादी करके अभी कहीं नहीं जा रही हूँ.अभी तो कई साल तेरे साथ रहूंगी-अर्पिता अपना दाहिना हाथ बढ़ा उसका बायां हाथ थाम ली.दोनों कमरे से बाहर निकल आईं,
मैं भी अर्पिता के कमरे से बाहर निकल आया.अर्पिता के पिताजी तभी पीछे मुड़कर उससे बोले-बेटा तुझे भी कुछ जरुरी सामान खरीदना हो तो मेरे कमरे की आलमारी से रुपये ले लेना और अर्चना को ले के मार्केट चली जाओ.
अर्पित बोली-ठीक है पापा.मैं इसके साथ जा के कुछ जरुरी चीजें ले लेती हूँ.अभी तो सारी दुकाने खुली होंगी..
अर्पिता के पिता रसोई के नजदीक जा प्रिया से बोले-तूने बड़ा थैला और प्लास्टिक वाला बोरा ढूंढा ?कहाँ है वो?
प्रिया रसोई से निकल दो बड़ा थैला ओर दो प्लास्टिक का बोरा अर्पिता के पिताजी को पकड़ा दी.
वो बोरे को थैले में डाल मेरी तरफ देखते हुए बोले-चलो बेटा,तुम्हारी बस के आने का टाइम भी हो गया है.
पापा आप गेट पर चलें,मैं इन्हे ले के आ रही हूँ-अर्पिता अर्चना का हाथ छोड़ते हुए बोली.
उसके पिताजी बोले-ठीक है,लेकिन देर मत लगाना,नहीं तो उसकी बस छूट जायेगी.वो घर से बाहर निकलने के लिए ड्राइंगरूम की तरफ की तरफ चल पड़े.
अर्चना,तुम बस दो मिनट यहीं रुको.मैं जरा रूपये ले लूँ ,फिर हम भी शॉपिंग करने निकलते हैं-अर्पिता बोली.
अपने कमरे में जाकर वो अपना काला बैग ले आई.बाएं हाथ से बैग पकड़ मेरे पास आ बोली-तुम मेरे साथ चलो जरा..
मगर क्यों ?-मैं पूछा.
मैं घबराने लगा की वो कहीं अकेले में ले जाकर मुझे परेशान न करने लगे,इसीलिए उसके साथ जाना नहीं चाहता था.
पहले चलो तो.-वो अपने दायें हाथ से मेरा बायां हाथ पकड़ मुझे खींचते हुए डाइनिंग हाल पारकर अपने पिताजी के कमरे के पास ले गई.
सीधे से कहो तो कोई बात सुनते नहीं हो-वो बाहर से बंद दरवाज़े की कुण्डी खोलते हुए बोली.
दरवाज़ा खोलकर वो मुझे अंदर ले गई.उसके पिताजी का कमरा बहुत सजा धजा था.मेज पर बैग रख अर्पिता मुझे अपने पिताजी की लाइब्रेरी के पास ले गई.हिंदी ओर अंग्रेजी की सैकड़ों पुस्तकें शीशे लगे रैक में भरी हुईं थीं.रैक का शीशा एक तरफ कर वो दो किताबें निकाली जो स्त्री पुरुष के वैवाहिक सम्बन्धों पर आधारित थीं.एक अंगेजी में और दूसरी हिंदी में छपी हुई थीं.किताबें मुझे देते हुए बोली-लो,ये पुस्तकें घर लेते जाओ और रात को इसे पढ़ लेना.ये पति पत्नी के शारीरिक सम्बन्धो के बारे में पूरी जानकारी देनेवाली अच्छी पुस्तकें हैं.
मुझे घर में मार खिलाओगी क्या ?मैं ऐसी पुस्तकें लेकर घर नहीं जाउंगा-मैं पीछे हटते हुए बोला.
वो खिसियाकर पुस्तकें रैक में रखी और रैक का शीशा लगा दी.मेरी तरफ देख बोली-तुम तो कुछ सीखने और करने से रहे अब मुझे ही सबकुछ सीखना और करना पड़ेगा.
वो अपने पिताजी की नीले रंग की बड़ी सी गोदरेज की आलमारी खोली.तिजोरी बॉक्स खोल वो कुछ रुपए निकाली और बॉक्स बंद कर दी.आलमारी बंद करते हुए वो बोली-तू भी तो कुछ सामान खरीदोगे.कुछ रूपये तुम भी ले लो.
नहीं,मेरे पास जरुरत भर के रूपये हैं-मैं बोला.
वो अपना बैग मेज से उठाई और बैग खोलकर रुपये उसमे रख ली.बैग बंद कर अपने दायें कंधे पर लटका ली.
चलो अब चलें.पापा बाहर गेट पर तुम्हारा इंतजार कर रहे होंगे-वो मेरे करीब आते हुए बोली.
हम दरवाज़े की बढ़ने लगे तो मुझे कुछ याद आया.मैंने कहा-बस एक मिनट..जरा रुको.
वो रूककर मेरी और देखी.मैं अपने दायें हाथ में पकड़ी कॉपी अपने बाएं हाथ में ले लिया और दायें हाथ से उसके पेट के पास उसकी नीली कमीज हल्के से छूकर बोला-न्यू पिंच..
वो हँसते हुए बोली-तू कभी नहीं सुधरोगे और न मुझसे कुछ सीख पाओगे.
हमदोनो उसके पिताजी के कमरे से बाहर निकले.वो बाहर से कुण्डी बंद कर दी.सीढ़ियों के पास जा मैं अपने जूते पहनने लगा.वो अपनी सेंडिल पहनी.अर्चना भी हमारे पास आकर अपनी सेंडिल पहन ली.सीढ़ीवाला मुख्यद्वार खोल हम घर की गैलरी में आ गए.
प्रिया,चलकर मेनगेट बंद कर लो.हमलोग भी बाज़ार जा रहे हैं.हमलोग टहलते हुए मेनगेट तक पहुंचे.मेनगेट के बाहर आकर देखा तो उसके पिताजी दो लड़कों के साथ इंतजार कर रहे थे.मुझे देख अपना स्कूटर स्टार्ट कर बैठ गए.मैं भी उनके स्कूटर पर बैठ गया.हमलोग स्कूटर से चल दिए.मैं पीछे मुड़कर देख तो अर्पिता और अर्चना हाथ हिलाकर बॉय बॉय कर रही थीं.मैं भी जबतक वो नज़र आतीं रहीं तबतक अपना हाथ हिला बॉय बॉय करता रहा.कुछ ही देर में मैं बसस्टैंड पहुँच गया.
ज्यो ही मैं बसस्टैंड पहुंचा बस आ गई.अर्पिता के पिताजी के पैर छूकर मैं बस में चढ़ गय.बस खाली थीं.मैं आराम से सिट पर बैठ गया.बस की खिड़की से देखा तो अर्पिता के पिताजी और वो दो लड़के स्कूटर पर बैठकर मार्केट की तरफ जा रहे थे.कंडक्टर पास आया तो मैंने मिल्ट्री छावनी तक का टिकट ले लिया.आधा घंटा बाद मैं अपने बसस्टॉप पर पहुँच गया.बस से उतरकर मैं एक मेडिकल स्टोर पर गया और अर्पिता के माताजी की चार पैकेट दवा लिया.दुकानदार को सौ रूपये देकर मैं एक गिफ्ट की दुकान पर गया और एक घडी लगी फोटोफ्रेम खरीदकर से गुलाबी रंग की पन्नी में पैक करा दिया.दुकानदार को एक सौ बीस रूपये मैं दिया.अपनी कॉपी मैं गिफ्ट वाले पोलिथिन में ही डाल दिया.तभी मुझे याद आया की कल शनिवार है.माताजी कल शनिवार को दाढी नहीं बनाने देंगी,इसीलिए मुझे बाल और दाढी दोनों अभी बनवा लेना चाहिए.अपने बाल और दाढी बनवाने के लिए मैं एक नाई की दुकान पर चला गया,जो संयोग से उस समय खाली था.वहाँ पर बाल और दाढी बनवाने में लगभग आधा घंटा लग गया.दुकानदार को पंद्रह रुपये देकर मैं अपना सफ़ेद पोलिथिन बैग उठाया और घर की तरफ चल पड़ा.
शेष अगले ब्लॉग में..
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

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