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छूप गया कोई रे-भाग-१४-मेरा प्रेम विवाह

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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1098518_498764973551564_1182125489_n-208x300छूप गया कोई रे-भाग-१४-मेरा प्रेम विवाह
रात के लगभग नौ बजे घर पहुंचा तो पता चला कि पिताजी आज पार्टी में गये हुए हैं.मैंने राहत की साँस ली.मैं हाथ में लिया पोलिथिन बैग अपने कमरे की मेज पर रख दिया और फिर हैंगर पर टंगा तौलिया उठाकर बाथरूम में नहाने चला गया.नहाके मैंने कपडे बदले,शीशा कंघी लेकर अपने सिर के बाल ठीक किये और अपने बिस्तर पर बैठकर अगले दिन सुबह नौ बजे घर से निकलने का बहाना ढूंढने लगा.मैं सोच रहा था कि शादी के बाद कम से कम दो दिन लगातार अर्पिता के साथ रहने का मौका मिले.उसस्के साथ रहने पर समय न जाने कब बीत जाता है और साथ रहने की इच्छा एक अतृप्त प्यास बन के रह जाता है.कल घर से निकलने का क्या बहाना बनाऊं और वो भी दो दिन के लिए,बहुत मुश्किल काम था,कोई अच्छा बहाना समझ में नहीं आ रहा था और पिताजी के सामने झूठ बोलना बहुत मुश्किल काम था.उनके सामने एक सच छुपाने का मतलब था सौ झूठ बोलना.मैं इसी सोच में डूबा था,तभी रसोई से माताजी ने खाना खाने के लिए आवाज़ दी.मुझे बहुत तेज भूख लगी थी,इसीलिए रसोईघर की तरफ खाना लेने के लिए चल दिया.खाना लाकर मैं अपने कमरे में मेज पर रख कर और कुर्सी पर बैठकर आराम से खाया.खाना खाने के बाद ब्रश कर दांत साफ किया और फिर अपने कमरे में आकर बिस्तर पर बैठ गया.मैंने फिर सोचना शुरू किया और सोचते सोचते अंत में मुझे घर से दो दिन के लिए निकलने का एक बहाना मिल ही गया.मैंने खूब सोच विचार करके अपना प्लान विधिवत तैयार कर लिया.
मैं अपना नीले रंगवाला कोट-पैंट,सफ़ेद शर्ट और सफेद रुमाल अच्छी तरह से प्रेस करके हैंगर पर टांग दिया.पिताजी पार्टी से अभी भी घर नहीं आये थे.अपने प्लान के मुताबिक मैं हिम्मत करके रसोईघर में गया और खाना खा रहीं अपने माताजी से कह दिया कि मुझे कल सुबह नौ बजे अपने एक मित्र की शादी में जाना है.वो मना करने लगीं,लेकिन मैंने उनसे कह दिया कि मैं अपने मित्र की शादी में जरुर जाउंगा.मैंने अपने माताजी से उनके बॉक्स में रखी गुलाबी रंगवाली एक खूबसूरत साड़ी भी मांगी,जो वो भविष्य में कभी आनेवाली अपनी बहु यानि मेरी पत्नी के लिए रखीं थीं,माताजी ने वो साड़ी देने से इंकार कर दिया.मैं चाहता था कि माताजी इस सम्बन्ध में पिताजी से ये बात करें और पिताजी मुझे बुलाकर पूछें.मैं जानता था कि पिताजी मुझसे इस सम्बन्ध में बहुत से सवाल करेंगे,परन्तु मैं ये भी जानता था कि वो पार्टी में जाना पसंद करते हैं,इसीलिए यदि वो मेरे जबाब से संतुष्ट हो गए तो मुझे दो दिन के लिए घर से बाहर जाने की इजाजत दे देंगे.मैं बाथरूम होकर आया और अपने कमरे की लाईट बुझाकर बिस्तर पर लेट गया.अर्पिता के बारे में और कल होनेवाले अपनी शादी के बारे में सोचते सोचते न जाने कब गहरी नींद आ गई.गहरी नींद में मुझे पता ही नहीं कि पिताजी रात को घर पार्टी से कब लौटे.
सुबह पांच बजे मैं उठा.उठते ही अर्पिता की याद आने लगी.आज उससे मेरी शादी होगी,हमदोनों अब बिना रोकटोक के मिल सकेंगे.मन ही मन आज मैं बहुत खुश था.लेकिन ये सोचकर दिल धड़क रहा था कि शादी के बाद आज की रात हमदोनों क्या करेंगे ?पति-पत्नी के बीच होनेवाले शारीरिक सम्बन्धों की मुझे पूरी जानकारी नहीं थी.कालेज के मित्रों से बस थोडा बहुत सुन रखा था.हमारे घर में एक छोटा टीवी,एक टेपरिकॉर्डर और एक रेडियो भर था,जो पिताजी के कमरे में था,जहाँ पर ज्यादा देर तक हमें बैठने की इजाजत नहीं थी.केवल चित्रहार और फ़िल्म हमें देखने की इजाजत थी.पिताजी के आफिस जाने पर हमलोग रेडियो से कुछ गाने सुन लेते थे.रेडियो अपने पास रख के गाना सुनने के लिए हम चारो भाई बहन आपस में खूब झगड़ते थे.अपनी पढ़ाई के कोर्स के अलावा हमें कोई भी अन्य दूसरी किताब पढ़ने की सख्त मनाही थी.हप्ते में दो दिन पिताजी हमारी किताब कापियां चेक करते थे,इसीलिए उनके डर के मारे कोई किताब या पत्रिका हमलोग घर पर नहीं लेट थे.यही वजह थी कि सेक्स के बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं थी.मैं ज्यादातर यही कल्पना करता था कि अर्पिता से शादी करके उससे जी भर के बातें करूँ,उसे निहारते रहूँ और सबसे बड़ा सपना था कि चांदनी रात में उसे शॉल ओढाऊं.उसे याद करके उत्तेजना महसूस होती थी,परन्तु भयभीत और संस्कारी मन कहता था कि सेक्स गन्दा काम है और इससे दूर रहना चाहिए.ये मेरे संयम का ही नतीजा था की मेरा स्वास्थ्य बहुत अच्छा था और बिलकुल स्लिम बॉडी थी.
रसोईघर में जाकर हीटर पर मैं पानी गर्म किया और दो गिलास गर्म पानी पी गया.पानी पीने के बाद मुश्किल से पांच मिनट बीते होंगे की तेज ठण्ड लगने के वावजूद भी सब कपडे उतारना पड़ा.मैं एक तौलिया लपेटा और शौच के लिए लैट्रिन में भागा.पेट साफ होने के बाद बहुत शांति मिली.लैट्रिन से बाहर निकल मैं बाथरूम में अपना ब्रश और पेस्ट ले दांत साफ करने लगा.माताजी और बहनें अपने कमरे में सो रहीं थीं.मै पिताजी के कमरे में झांककर देखा तो वो सो रहे थे.मै देखा कि सबलोग अभी सो रहे हैं तो सोचा क्यों न शेविंग कर लूँ,किसी को पता भी नहीं चलेगा कि मैंने शनिवार को दाढ़ी बनाई है.मै अपने कमरे में जाकर शेविंग बॉक्स और अपना छोटा आईना उठा लाया.मै इधर उधर देखा सब सो रहे थे.मै बाथरूम में जाकर दरवाज़ा भीतर से बंद कर लिया.लगभग एक घंटे बाद मै बाथरूम से नहाकर बाहर निकला तो बहुत खुश था.मै पूरी तरह से फ्रेश हो चूका था.मेरे बाएं हाथ में आईना और दायें हाथ में शेविंग बॉक्स था.अपने कमरे में जाकर शेविंग बॉक्स आलमारी में रखा और मेज से कंघी उठाकर अपने सर के बाल ठीक किया.शीशा कंघी मेज पर रख मै अपने घरवाले कपडे पहन लिया.मै पिताजी के बुलावे का इतजार करने लगा.
सुबह के सात बजे पिताजी ने अपने कमरे में मुझे बुलाया.वो कप में सुबह की चाय पी रहे थे.
मैंने सुना है तुम अपने दोस्त की शादी में जाना चाहते हो ?
मै सीधा खड़ा होते हुए बोला-जी,वो मेरा दोस्त प्रभु सिंह है,पढाई में बहुत तेज है.मेरे साथ सिविल सर्विसेज की परीक्षा की तैयारी भी कर रहा है.उसी की शादी है
एक महीने बाद तुमलोगों की बीए की परीक्षा शरू हो जायेगी.ये कौन सा समय है शादी करने का ?इस समय तो उसे अपनी पढाई पर ध्यान देना चाहिए-पिताजी बोले.
शादी बहुत जल्दबाजी में हो रही है,उसकी दादी बहुत बीमार हैं.उनकी इच्छा है की मरने से पहले अपने पोते की शादी देख लें-मै पूरी गम्भीरता से बोला.
इस महीने तो शादी का कोई लग्न भी नहीं है.मैंने पंचांग में देखा है,फिर ये शादी कैसे हो रही है.-पिताजी मुझे ध्यान से देखते हुए पूछे..
शादी मुहूर्त देखकर नहीं बल्कि माँ दुर्गा को साक्षी मानकर मंदिर में हो रही है-मै किसी तरह हिम्मत कर बोला.मेरी हिम्मत जबाब दे रही थी.
कुछ देर चुप रहने के बाद उन्होंने पूछा-बारात कहाँ जा रही है ?
जी,अनंतनाग जा रही है-मै बड़ी हिम्मतकर झूठ बोला.
अनंतनाग में कहाँ पर ?-उन्होंने फिर पूछा.
जी,मार्तण्ड सूर्य मंदिर के पास-मै धीमे स्वर में बोला.
कब जाना है और कैसे जा रहे हो ?-वो पूछे.
मै बोला-जी,आज सुबह नौ बजे जाना है.वो लो डिलक्स बस रिजर्व किये हुए हैं.
कब लौटोगे ?-उन्होंने मेरी ओर देखते हुए पूछा.
जी,परसों दोपहर तक-मैंने कुछ घबराते हुए कहा.
ठीक है,जाओ-वो कुछ देर सोचने के बाद बोले.
खुश के मारे मेरा मन झूम उठा.मै जाने के लिए मुड़ा तभी उनकी आवाज़ आई-तुम्हारे कपडे सब प्रेस हैं ?कोट पैंट पहनकर और टाई लगाकर कायदे से जाना.
जी,मैंने सब कपडे प्रेस कर लिए हैं-मै बोला.
ठीक है अपना सब जरुरी सामान लाल वाले अपने नए बैग में पैक करो और तैयार होकर साढ़े आठ बजे मेरे पास आओ.मै सब चेक करूँगा,तब जाना-पिताजी बोले.
जी,ठीक है-मै जाने लगा तभी माताजी कमरे में आईं.
इसे मत जाने दो.अकेले जा रहा है.मुझे चिंता हो रही है-माताजी बोली.
उसे जाने दो.शादी और पार्टियों में जाना चाहिए.लोगो से मिले जुलेगा तो इसका दब्बूपन दूर होगा.इसे पांच सौ रूपये दे दो और वो साड़ी भी दे दो,जो मांग रहा है-पिताजी बोले.
ख़ुशी के मारे मै उछलते हुए अपने कमरे में आ गया और आलमारी से लाल वाला बैग निकाल मै अपने सामान पैक करने लगा.नया सफ़ेद तौलिया,नया नीले रंग का अंडरवियर और नई बनियान आलमारी से निकाल बैग में रखा.सब धोकर आलमारी में रखा हुआ था.नीले और बैगनी कलर की दो पैंट और सफ़ेद और पीले रंग की दो शर्ट बैग में रख लिया.एक सेट पैजामा कुरता का भी रख लिया.क्रीम कलर की एक हाफ स्वेटर,एक फूल बाजू की स्वेटर और एक मफलर आलमारी से निकाल अपने बैग में रख लिया.एक हरे रंग का नया टूथब्रश और एक स्टील का नया टंगक्लीनर भी रख लिया.जरुरत नहीं होने पर भी दुसरे कमरे की आलमारी से एक एक हाथ धोनेवाला साबुन,एक नहनेवाला साबुन और एक टूथपेस्ट लाकर बैग में रख लिया.मै मेज पर पड़े सफ़ेद पोलिथिन को बैग में डाल दिया,जिसमे घड़ीवाला फ़ोटोफ्रेम था.मै सोचने लगा की और क्या सामान रखने को रह गया ?तभी मुझे अर्पिता के माताजी की दवा याद आई.हैंगर पर टंगे पैंट की जेब से चार पैकेट दवा निकाल बैग में रख लिया.
मै सोचने लगा की और कोई सामान छूटा तो नहीं,तभी माताजी कमरे में आईं और गुलाबी सड़ीवाला पोलिथिन और सौ सौ के पांच नोट मुझे पकड़ाते हुए बोली-ले,कल से इस साडी के पीछे पड़ा था.कितना सहेजकर इसे मै अपनी बहू के लिए रखी थी.मै कुछ बोला नहीं.
मै रूपये और साड़ी बैग में रख लिया.हैंगर पर टंगे पैंट की जेब में पैंतालीस रूपये रूपये थे उसे मै निकालकर हैंगर पर टंगे नीले कोट की जेब में रख लिया.
चल आ,अच्छी तरह से नाश्ता कर ले.दोपहर का खाना तुझे रास्ते में पता नहीं कब मिले ?-माताजी बोली.
मै रसोई के सामने स्थित डाइनिंग हाल में कुर्सी मेज पर बैठकर भरपेट गर्म पराठे सब्जी के साथ खा लिया.नाश्ता करने के बाद अच्छी तरह से दांत साफ किया और बाथरूम भी हो लिया ताकि दो घंटे तक फिर बाथरूम जाने की जरुरत न पड़े.मै अपने कमरे में आकर तैयार होने लगा.कपडे पहनकर मैं अपना सूटकेस खोला और उसमे से बैगनी कलर की एक टाई निकालकर सूटकेस बंद कर दिया.सफ़ेद रंग की चमचमाती हुई शर्ट के ऊपर बैगनी रंग की टाई लगा लिया.मै सिर के बाल ठीक किया और शीशा कंघी बैग में रख बैग की चैन बंद कर दिया.आलमारी से अपनी खूबसूरत गोल्डन कलर वाली घडी निकाल बाये हाथ में पहन लिया.अपना नीला कोट पहनकर आलमारी से काले रंग की नई जुराब और काले रंग के नये चमचमाते हुए जूते निकाल बिस्तर पर बैठकर पहन लिया.मैं पूरी तरह से तैयार हो गया था.
हाथ में मै बैग लेकर बहनो के कमरे में पहुंचा.उनके स्कूल और मेरे कालेज की दो दिनों की छुट्टी थी.दीदी के स्कूल की भी आज छुट्टी थी.मुझे देखेते ही तीनो हंसने लगी.
भैय्या तो आज एकदम हीरो लग रहे हैं-बीच वाली बहन बोली.
छोटी बहन बोली-भैय्या तो आज पहचान में ही नहीं आ रहे हैं.
अरे,ये तो एकदम दूल्हा की तरह सजा हुआ है-दीदी मेरा नीले रंगवाला कोट पैंट और उससे मैच करती बैगनी रंग की टाई बड़े ध्यान से देखने लगीं.मै जानता था की दीदी अनजाने में ही सही पर सच बोल रही हैं.मेरी आँखे आंसुओं से डबडबा गईं थीं.मैंने झुककर दीदी के चरण छू लिए.उन्होंने मेरे सिर पर रख दिया,और बोलीं-अरे,पैर क्यों छू रहा है.तू दो दिन के लिए तो जा रहा है.कोई महीने दो महीने के लिए थोड़े ही जा रहा है.
मैंने माँ के पैर छुए,वो बोली-खुश रहो.अपना ख्याल रखना.किसी औरत के हाथ का दिया कुछ मत खाना.शादी-विवाह में औरतें जादू-टोना करके खिलापिला देती हैं.वो मेरे शादी में जाने को लेकर बहुत चिंतित थीं.वो नहीं चाहती थीं की मैं घर से दूर कहीं जाऊं.
मै अपने दायें हाथ में लाल रंग का नया चमचमाता बैग लिए पिताजी के पास पहुंचा.उन्होंने नीचे से ऊपर तक बड़े ध्यान से मुझे देखा.मेरा बैग खोलकर चेक किया और फिर बैग बंदकर मुझे देते हुए बोले-ठीक है जाओ.साढ़े आठ बज रहे हैं.
मैंने पिताजी के चरण छुए,वो बोले-ठीक है,खुश रहो और अपना ख्याल रखना.मै बाएं हाथ में बैग लेकर बहनों को दाया हाथ हवा में उठाकर बॉय बॉय किया और नीले कलरवाले बंद दरवाजे की सिटकिनी खोल दरवाज़ा खोला और हट में बैग लिए हुए घर के बाहर निकल आया.दरवाज़ा बंद कर लेना-मै चलते हुए बोला.
ठीक है तुम जाओ.मै दरवाज़ा बंद कर देता हूँ-पिताजी की आवाज़ आई और दरवाज़ा बंद हो गया.मै एक गहरी साँस खिंचा.मुझे बहुत दुःख हो रहा था की घरवालों से झूठ बोलकर मै अपनी शादी करने जा रहा हूँ.लेकिन मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं था.अपने दायें हाथ में बैग ले मै बस स्टैंड की तरफ चल पड़ा.
बसस्टैंड पर पहुंचकर मै बस का इंतजार करने लगा.अर्पिता से आज होनेवाली अपनी शादी के बारे में सोचकर अच्छा तो लग रहा था परन्तु बहुत घबराहट भी हो रही थी.मैं बार बार अपने बाएं हाथ में बंधी घडी देख रहा था.सुबह के पौने नौ बज रहे थे.आज बस का एक एक मिनट इंतजार करना भारी लग रहा था.मेरा दिल अर्पिता के पास जल्दी से जल्दी पहुँच जाने को बेचैन था.आधा घंटा बाद बस आई.छुट्टी की वजह से आज बस खाली थी.खाली सिट पर बैठकर मै कंडक्टर को खुले पैसे दिया और एक टिकट ले लिया.वो रोज आने जाने से पहचान गया था,इसीलिए बोला-जनाब,आज छुट्टीवाले दिन कहाँ जा रहे हैं.आज तो कालेज बंद है.
हा,मुझे मालूम है.मै एक पार्टी में जा रहा हूँ.-मै बोला.
वो कुछ नहीं बोला.दरवाजे के पास जाकर चुपचाप खड़ा हो गया.आधा घंटे के बाद पौने दस बजे जब बस कालेज के पास पहुंची तो मै बस रुकवाकर अपना बैग दायें हाथ में पकड़ बस से उतर गया.रोड पारकर मै अर्पिता के घर जानेवाली कालोनी की तरफ चल पड़ा.पांच मिनट में मै अर्चना के घर के पास पहुँच गया.उसके घर के पास से गुजरते हुए मै अर्पिता के घर की तरफ बढ़ चला.मै अर्पिता के घर के आसमानी रंगवाले गेट के पास पहुंचा ही था की पीछे से अर्चना ने मुझे आवाज़ लगाई.मै पीछे मुड़ के देखा आसमानी रंग के नए सलवार कमीज और दुपट्टे में लिपटी वो आज बहुत सुंदर लग रही थी.अर्चना तेजी से चलते हुए मेरे पास आ रही थी.मेरे पास आकर वो कुछ देर तक मुझे देखती रही फिर अपनी नज़रे झुकाकर धीमे स्वर में बोली-मै कब से छत पर बैठकर तुम्हारे आने का इंतजार कर रही थी.मेरे घर चलो,बस मुझे पांच मिनट तुमसे अकेले में कुछ बहुत जरुरी बात करनी है.
ठीक है चलो,अभी तो दस बजने में दस मिनट बाकी है.तुम कल की तरह फिर मुझे उपदेश दे लो,लेकिन मै आज हर हालत में अर्पिता से माँ दुर्गाजी के मंदिर में शादी करूँगा-मैं पूरी दृढ़ता से बोला.मै उसके साथ चलनेवाला ही था की तभी अपने सामने देखा तो स्कूटर से अर्पिता के पिताजी आते दिखे.उन्हें देखकर हम रुक गए.वो मेरे पास आकर स्कूटर रोक दिए.वो स्कूटर से उतर उसे स्टैंड लगा खड़ा कर दिए.मैं बाये हाथ में अपना बैग थाम उनके पास जाकर झुककर अपने दायें हाथ से उनके पांव छू लिए.वो मुझे एकटक देखते हुए बोले-बेटा मै भाग्यशाली हूँ,जो तुम जैसा संस्कारी दामाद मुझे मिला है.अर्पिता ने तुम्हे ही लेने के लिए मुझे बसस्टैंड भेजा था.मै वहाँ ट्रेवल एजेन्सीवाले से गाड़ी की बात कर रहा था और इसी बीच बस आई,बस से उतरते मैंने देखा तुम्हे,आवज़ भी दी,लेकिन तुम सुन नहीं पाये और और इधर आ गए.
कोई बात नहीं अंकल जी,यहाँ से बसस्टैंड दूर ही कितना है.बस पांच मिनट का तो पैदल रास्ता है.आप घर चलिए,मै पांच मिनट में अर्चना के घर से हो के आता हूँ-मै बोला.
अर्पिता के पिताजी बोले-नहीं बेटा,अब तुम कहीं नहीं जाओगे.मारुती वैन आ रही है.हमें दस बजे तक मंदिर पहुँच जाना है.मेरे साथ सीधे घर चलो.खाली हाथ घर गया तो मेरी खैर नहीं.फिर वो अर्चना की तरफ देखते हुए बोले-बेटी,तुम भी जल्दी से तैयार हो के आओ.दस बजे से पहले ही गाड़ी आ जायेगी.उसी समय सफ़ेद रंग की दो मारुती वैन आते दिखी.
लो गाड़ी भी आ गई.आओ बेटा अब हमलोग चलने की तयारी करें-ये कहकर वो अपना स्कूटर खीचकर ले के चलते हुए अपने आसमानी रंग के गेट के पास पहुंचे.
कुछ निराश सी होकर अर्चना गहरी साँस खींचते हुए बोली-मैं तैयार हूँ अंकल जी,बस अपना बैग ले के आई.वो कुछ निराश सी होकर मेरी ओर देखी फिर अपने घर की ओर चली गई.
दोनों सफ़ेद रंग की मारुती वैन दरवाज़े के सामने आकर खड़ी हो गई थीं.छोटा गेट आज भीतर से बंद नहीं था.अर्पिता के पिताजी छोटे गेट से भीतर जाकर बड़े गेट की कुण्डी खोले और बड़ा वाला गेट पूरा खोल दिया.बगीचे के आगे बरामदे में कई थैले और बोरे सामान से भरे हुए थे.दो खूबसूरत कालीन भी फोल्ड करके रखी हुई थीं.सफ़ेद ड्रेस पहने दो लड़के बरामदे में खड़े थे,जो कल शाम को भी अर्पिता के पिताजी की मदद करने किसी हास्पिटल से आये थे.अपना आसमानी कलरवाला स्कूटर ले जाकर अर्पिता के पिताजी ने गेट के अंदर दायीं तरफ बगीचे में रख दिया.
बेटा,अंदर आ जाओ.बाहर क्यों खड़े हो.अभी चलने में दस मिनट का वक़्त लगेगा-अर्पिता के पिताजी मेरे पास आते हुए बोले.
वो मेरा बैग अपने हाथ में लेना चाहे तो मैंने मना करते हुए बोला-नहीं अंकलजी,इसे मुझे उठाने दीजिये.मेरे लायक कोई कार्य हो तो बताइये ताकि मैं आपकी कुछ मदद कर सकूँ.
मैं उनके साथ हाथ में लाल बैग लिए गेट के अंदर आ गया.रंग-बिरंगे फूलों वाले छोटे से बगीचे को पार कर घर के बरामदे में आ गया.
वो बोले-नहीं बेटा,हम कर लेंगे.मेरे साथ ये दो लड़के हैं न.तुम यहाँ बरामदे में कुर्सी पर बैठो अर्पिता तैयार होकर आती ही होगी.फिर वो लड़कों से बोले-चलो बेटा,तुमलोग सब सामान उठाकर मारुती वैन में रखो.ये दोनों कालीन भी ले के चलना है.
जी डॉक्टर साहब-दोनों लड़के इतना कहकर अपने कार्य में जुट गए.मैं कुर्सी पर बैठकर बाहर के तीनो दरवाजे पर लगे नीले के खूबसूरत पर्दों को देखने लगा,जो आज सुबह लगाये गए होंगे.कल रात को मेरे रहने तक तक वहाँ परदे नहीं लगे थे.
अर्पिता के पिताजी सब सामान गाड़ी में रखवाकर गैलेरी से होते हुए घर के अंदर चले गए.
कुछ देर बाद जब वो घर के बाहर निकले तो उनके साथ उनका दस साल का बेटा आशीष था और उनके पीछे पीछे दो औरतें अर्पिता की माँ को पकड़ के ला रहीं थीं.वो गठिया रोग की वजह से बहुत मुश्किल से धीरे धीरे चल रहीं थीं.उनके पीछे लाल रंग की रेशमी साड़ी में लिपटी अर्पिता प्रिया के साथ आ रही थी,जिसके दायें हाथ में थाली थी और दायें कंधे सुनहरे रंग का खूबसूरत बैग टंगा था.पर आज वो लाल साड़ी में बहुत अच्छी लग रही थी.मुझे ऐसा लग रहा था,जैसे कोई गुलाब का खिलती कली लाल कपड़ो में लिपटी चली आ रही हो.उसके दोनों हाथों में खूबसूरत मेहँदी सजी थी.पैरों में सुनहरे रंग की सेंडिल थी.मैं उसे ही एकटक निहार रहा था और मुझे देखकर मुस्कुरा रही थी.वो लोग मेरी तरफ ही आ रहे थे.मैं कुछ घबराहट महसूस कर रहा था.मैं कुर्सी से उठ खड़ा हुआ.मैं आगे बढ़ अर्पिता के माँ के पैर छुआ.वो सिर पर हाथ रख बोलीं-बेटा हमेशा सुखी रहो.
एक मारुती वैन गेट के अंदर बेक हो के आते हुए बरामदे के पास तक आ गई.दूसरी मारूति वैन जो गेट के बाहर खड़ी थी,वो सामान और दोनों लड़कों को लेकर मंदिर की तरफ चल पड़ी.अर्चना गेट के अंदर आते दिखी.वो अर्पिता के पास आकर उससे कुछ बात करने लगी.
अर्पिता की माताजी प्रिया से पूजा की थाली ले मेरे माथे पर टिका लगाईं और कपूर जलाकर आरती कीं.फिर आशीर्वाद देते हुए बोलीं-बेटा,शादी के लिए जाते समय आशीर्वाद देना तुम्हारे माताजी का फर्ज है,लेकिन तुम्हारी माताजी तो यहाँ नहीं हैं,मैं ही तुम्हारे माताजी का फर्ज निभा रही हूँ.
मैंने फिर झुककर उनके चरणस्पर्श किये और माँ की याद आने से बहुत भावुक हो गया.तभी अर्पित के पिताजी की आवाज़ आई-दस बज गए हैं,शादी का मुहूर्त शरू हो चूका है.माँ दुर्गा के मंदिर में पुजारी हमारा इंतजार कर रहा होगा.अब हमें देर नहीं करना चाहिए और यहाँ से फ़ौरन निकल पड़ना चाहिए.चलो बच्चों अब तुमलोग गाड़ी में बैठो.इतना कहकर वो आगे का गेट खोल आशीष को गाड़ी के आगे की सिट पर बैठा दिए जो बहुत देर से गाड़ी में आगे बैठने के लिए जिद कर रहा था.मारुती वैन के आगे का गेट उन्हेने धीरे से भिड़ा दिया और
पीछे का गेट उन्होंने खोल दिया.मेरा बायां हाथ पकड़कर वो बोले-बेटा सबसे पहले तुम बैठो.फिर मैं इन लोगों को भी बैठाता हूँ.
मैं अपने दायें हाथ से अपना लाल बैग उठा लिया और मारूति वैन में झुककर भीतर जा बैठा.बैग सिट के पीछे रख मैं दाईं तरफ सरक गया.
बेटी,अब तुम बैठो-वो अर्पिता का हाथ पकड़ मेरे बगल में बैठा दिए.वो बहुत खुश थी और मुझे जब भी देखती थी,ख़ुशी से मुस्कुरा देती थी.आज ख़ुशी के मारे उसका चेहरा और गुलाबी हो गया था.उसे पास में बैठे देखकर मेरे दिल की धड़कन बढ़ रही थी.
फिर वो अर्चना और प्रिया की तरफ देख उन्हें गाड़ी में बैठने का ईशारा किये.अर्चना आकर मेरे ठीक सामने बैठ गई और प्रिया उसके बगल में बैठ गई.
टेंटवाला सब सामान लेकर आनेवाला है.उससे बता देना की शामियाना छतपर लगाना है.वैसे मैं उसे समझा चूका हूँ-अर्पिता के पिताजी उसकी माताजी से बोले.फिर वो मारूति वैन का पीछे गेट बंद कर दिए और आगे का गेट खोलकर आगे की सिट पर आशीष के साथ बैठ गए.मारूति वैन चल पड़ी.गेट से बाहर निकल हम माँ दुर्गाजी के मंदिर की तरफ चल पड़े.
शेष अगले ब्लॉग में..
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

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