Menu
blogid : 15204 postid : 679439

छूप गया कोई रे-माँ दुर्गाजी की पूजा-भाग-१७

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
  • 534 Posts
  • 5673 Comments

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
1376336_346813345465509_112421952_n
छूप गया कोई रे-माँ दुर्गाजी की पूजा-भाग-१७
मैंने हाथ जोड़कर कहा-आप से एक विनती है की आप चलकर हमारे लिए माँ दुर्गा जी की आरती कर दें और माँ को हमदोनों की तरफ से नारियल,फूलमाला,और चुनरी अर्पित कर दें.माँ को हम धन्यवाद देना चाहते हैं.
ठीक है बेटा,तुम सामान मंगाओ,मैं पूजा और आरती कर देता हूँ-पुजारीजी बोले.
मैं अपने कोट की जेब से सौ का नोट निकाल उन्हें देते हुए बोला-जो सामान चाहिए आप मंगा लीजिये.यदि सामान में कुछ और खर्च हो तो मुझे बता दीजिये.
अर्पिता के पिताजी कुछ नाराज होअर बोले-अरे बेटा,ये तुम क्या कर रहे हो ?तुम अपने रूपये अपने पास रखो.सामान मैं मंगा देता हूँ.फिर पंडितजी से बोला-पंडितजी,आप इनके रूपये इन्हे वापस कर दीजिये.मैं रूपये देता हूँ.वो पंडितजी को रुए देने लगे.
मैं उनका हाथ पकड़ बोला-अंकलजी,प्लीज मुझे अपने रूपये से ये पूजा कराने दीजिये.मैं अर्पिता और अपने परिवार की ओर से माँ दुर्गाजी को धन्यवाद देना चाहता हूँ.
पापा इनकी बात माँ लीजिये.इन्हे अपने रुपयों से पूजा करा लेने दीजिये-अर्पिता बोली.
अर्पिता के पिताजी मान गए-ठीक है,जैसी तुमदोनो की मर्जी.तुमदोनो की ख़ुशी में ही अब मेरी ख़ुशी है.अपने हाथ में लिया नोट वो अपनी जेब में रख लिए.
पुजारीजी सामान लेने चले गए.हमारा विवाह कार्यक्रम संपन्न हो गया था.सबलोग बधाई देने लगे.मैंने सबको धन्यवाद दिया.अर्चना गुलाब के दो फूल ले के आई.एक फूल उसने अर्पिता को दिया और उसे अपने गले लगाकर बधाई दी.दूसरा फूल उसने मुझे दिया और अपना दायां हाथ आगे बढ़ाया.वो कुछ बोलना चाहती थी,पर बोल नहीं पा रही थी.उसकी आँखे भींगी हुई थी.मैंने अपना दाहिना हाथ बढ़ाकर उसके दाहिने हाथ को कस के पकड़ लिया और बहुत मुश्किल से बोल पाया-शुक्रिया दोस्त..
प्रिया पास आकर हमें छेड़ते हुए बधाई दी-साहब,आपदोनो का पैर आज मैंने आपके घर का एक सदस्य बनकर धोया है.अब तो मैं आज से आपलोगों की रिश्तेदार भी बन गई हूँ.मेरी ओर से आपदोनो को बधाई.
तू हमारे घर की सदस्य कब नहीं थी ?मैंने तुझे बचपन से अपनी बड़ी बहन माना है.तू मेरी बड़ी बहन भी है और सहेली भी है.-अर्पिता बोली.
तभी आशीष आकर हमदोनो के पैर छू लिया.वो हमें शादी की बधाई दिया.हमदोनो ने उसके सिर पर हाथ रख उसकी बधाई स्वीकार करते हुए उसे आशीर्वाद दिया.
दोनों लड़के जो हमारे साथ सामान लेकर आये थे.वो शरमाते सकुचाते हुए हमारे पास आकर हमें बधाई देने लगे.हमने उन्हें धन्यवाद दिया.
प्रिया,सबका मुंह मीठा कराओ बेटा.आज बहुत ख़ुशी का मौका है-अर्पिता के पिताजी बोले.
प्रिया बर्फी का डिब्बा हाथ में ले सबको मिठाई खिलाने लगी.कोई एक पीस तो कोई दो पीस बर्फी का ले लिया.मैंने और अर्पिता ने मिठाई नहीं खाई.हमें माँ दुर्गाजी को धन्यवाद देने के लिए उनकी पूजा-आरती करनी थी.हमदोनों पूजन सामग्री लेकर पुजारीजी के आने का इंतजार कर रहे थे.
अर्पिता के पिताजी पुजारीजी के सामान लेकर लौटने में देर होने पर बोले-बेटा,तुमलोग इधर उधर फैला सामान इकट्ठा करो मैं जरा पुजारी जी को ढूँढ के लाता हूँ.दिन का साढ़े बारह बज रहा है,हमें अब घर जल्दी चलना है.शामवाली पार्टी की भी तैयारी करनी है.ये कहकर वो पुजारीजी को खोजने के लिए मंदिर की सीढ़ियों की तरफ बढ़ गए.अर्चना,प्रिया,आशीष और हमारे सामान के साथ आये दोनों लड़के इधर उधर फैला सामान इकट्ठा कर एक जगह रखने लगे.मैं और अर्पिता अपने अपने दायें हाथ में अर्चना का दिया हुआ गुलाब का फूल लिए बरामदे के पास खड़े थे और पुजारी जी के सामान लेकर आने का इंतजर कर रहे थे.
बूढ़े नजूमी बाबा बरामदे में बिछी हमारी कालीन पर बैठे हमें देख थे.जब हमने उनकी और देखा तो उन्होंने अपने दायें हाथ के ईशारे से हमें पास बुलाया.हम उमके पास गये तो वो हमें बरामदे में बिछी हमारी दूसरी कालीन पर हमें बैठने का ईशारा किये.हुमदोनो फूलवाली लाल कालीन पर बैठ गए.
बेटी अपना बायां हाथ दिखाओ ?-वो अर्पिता से बोले.
अर्पिता अपना मेहँदी और हल्दी लगा बायां हाथ आगे कर दी.उसके दायें हाथ में अर्चना का दिया हुआ गुलाब का फूल था.
बिना छुए दूर से ही अर्पिता का हाथ देखते हुए बोले-तेरा जीवन उस गुलाब के फूल की तरह है जो तेरे दायें हाथ में है.तेरी सब मुरादें पूरी होंगी.तूने फूलों के बगीचे से सारे फूल चुन लिए हैं और कांटे किसी और के लिए छोड़ दिए हैं-वो जोर से हंसने लगे.अर्चना हमें देखने लगी.
अर्पिता उनके आगे से अपना हाथ हटा ली.वो उनकी की बात सुनकर नाराज़ लग रही थी.
मैं अर्चना का दिया फूल अपने बाये हाथ में पकड़ अपना दायाँ हाथ नजूमी बाबा के सामने किया और बोला-बाबा,कुछ मेरे बारे में बताईये.
वो मेरा दायाँ हाथ देखते हुए बोले-मैं तेरे बारे में कह चूका हूँ की तू एक दिन बादशाह बनेगा और जरुर बनेगा.अभी तू फ़क़ीर है.कोई औरत तेरी तक़दीर पलटेगी और जीवनभर तेरा पीछा नहीं छोड़ेगी.वैसे तेरी जिंदगी में दो औरतों का आना लिखा है.
अर्पिता अपने दायें हाथ में थामी गुलाब का फूल अपने बाएं हाथ में ले ली और अपने दायें हाथ से मेरा दायाँ हाथ कस के पकड़ गुस्से से बोली-मेरे जीते जी इनकी जिंदगी में कोई दूसरी औरत नहीं आ सकती है.आज से ये मेरे हैं और आजीवन सिर्फ मेरे ही बन के रहेंगे.वो कालीन से उठकर खड़ी हो गई और मेरा पकड़ा हाथ खींचते हुए मुझे भी वहाँ से उठा दी.
अर्चना तभी नजूमी बाबा के पास आकर अपना बायां हाथ नजूमी बाबा के सामने करते हुए बोली-बाबा,जरा मेरा हाथ देखिये और कुछ मेरे बारे में भी बताईये.
नजूमी बाबा उसका हाथ देखते हुए बोले-सब सुख तेरे हाथ में है.तू सरकारी नौकरी करेगी.घर,गाड़ी धन दौलत सबकुछ तेरे पास होगा,लेकिन तेरा दिल टूटा हुआ होगा.
बाबा जरा मेरे संतान की रेखा देखो न-प्रिया अपना बायां हाथ अर्चना के बाएं हाथ के ऊपर रख बोली.अर्चना गुस्से से उसे घूरते हुए अपना हाथ हटा ली.
नजूमी बाबा प्रिया के हाथ पर एक नज़र डाल बोले-कुछ देर से बच्चें होंगे.दो लड़कियां तेरे घर आएँगी.यही लड़कियां तेरा नसीब चमकाएंगी.
प्रिया की नज़र तभी मंदिर की सीढ़ियों पर पड़ी.वो झट से अपना हाथ नजूमी बाबा के सामने से हटा इधर उधर फैला सामान इकट्ठा करने में जुट गई.पुजारीजी अर्पिता के पिताजी के साथ दो पोलिथिन बैग में पूजा और आरती का सब सामान लेकर आते दिखे.वो हमारे पास आकर बोले-बेटा,अब तुमलोग जल्दी से माँ के पास चलो.मैं पूजा और आरती करा के खाना खाने घर जाउंगा.
हाँ बेटा,तुमदोनों माँ की पूजा आरती करके आओ,तबतक हमलोग सामान समेटकर उसे पैक करते हैं-अर्पिता के पिताजी बोले.
अर्पिता मेरे हाथ से गुलाब का फूल लेकर मेरा अपना फूल प्रिया को पकड़ाते हुए बोली–ले इसे ले जाकर मेरे बैग में रख दे.प्रिया फूल लेकर अर्पिता के बैग में रख दी.
हमदोनों पुजारीजी के साथ मंदिर की तरफ चल पड़े.मंदिर के पास पहुँच हमदोनों ने घंटा बजाया.पुरे मंदिर परिसर में टन..टन..की दिव्य ध्वनि गूंज गई.मंदिर की दायीं दीवार पर धन बरसाती लक्ष्मीजी की फ़ोटो बनी थी और मंदिर की बायीं दीवार पर कालीजी की जीभ निकाले,हाथों में शस्त्र लिए और धरती पर लेटे भगवान शिव की छाती पर अपना बायां पैर रखे हुए डरावनी फ़ोटो थी.अर्पिता काली जी की उस डरावनी फ़ोटो की ओर ईशारा कर शरारत से मुस्कुराने लगी और अपने दायें हाथ से मेरा बायां हाथ पकड़ हल्के से दबा दी.
उधर पुजारी जी ने हमलोगों का नाम पूछा.हमदोनों ने अपना नाम बताया,उन्होंने हमारे नाम से माँ दुर्गाजी की प्रतिमा के आगे मंत्र पढ़ते हुए गुलाब और गेंदे की माला चढ़ाई,तीन . पैकेट लाचीदाना चढ़ाया,तीन नारियल तोड़े,माँ को नई चुनरी चढाई और फिर आरती की थाली सजाने लगे.वो थाली में मिटटी के तीन दीपक रख उसमे देशी घी डाले और फिर रुई की गोल बत्ती उसमे लगा तीनो दिया जला दिए.आरती की उस थाली में मिटटी का एक खाली दिया रख कपूर के कई टुकड़े डाल दिए.वो कपूर जला माँ दुर्गाजी की आरती करते हुए मंत्र पढ़ने लगे-ॐ सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके,शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते.
माँ दुर्गाजी की आरती करके जलते हुए कपूर में और कपूर डाल दिए और फिर थाली हमें पकड़ाते हुए बोले-दोनों एकसाथ थाली पकड़ के आरती कीजिये.हमदोनों ने एक साथ अपने दोनों हाथो से थाली पकड़ माँ दुर्गाजी की आरती करते हुए ये भजन गाने लगे-
अम्बे तू है जगदम्बे काली जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गाये भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती.
तेरे भक्त जनो पर माता, भीर पडी है भारी माँ,
दानव दल पर टूट पडो माँ करके सिंह सवारी.
सौ-सौ सिंहो से बलशाली, है अष्ट भुजाओ वाली,
दुष्टो को पलमे संहारती
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती.
माँ बेटे का है इस जग मे बडा ही निर्मल नाता,
पूत – कपूत सुने है पर न, माता सुनी कुमाता.
सब पे करूणा दरसाने वाली, अमृत बरसाने वाली,
दुखियो के दुखडे निवारती,
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती.
नही मांगते धन और दौलत, न चांदी न सोना माँ,
हम तो मांगे माँ तेरे मन मे, इक छोटा सा कोना.
सबकी बिगडी बनाने वाली, लाज बचाने वाली,
सतियो के सत को सवांरती,
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती.
चरण शरण मे खडे तुम्हारी, ले पूजा की थाली,
वरद हस्त सर पर रख दो,मॉ सकंट हरने वाली.
मॉ भर दो भक्ति रस प्याली,
अष्ट भुजाओ वाली, भक्तो के कारज तू ही सारती,
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती.
अम्बे तू है जगदम्बे काली जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेरे ही गुण गाये भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती.
आरती के बाद जलते हुए दिए और जलते हुए कपूरवाली थाली माँ दुर्गाजी की प्रतिमा के आगे हमने रख दी.आँखे बंदकर हमलोग कुछ देर प्रार्थना किये.पंडितजी ने एक पोलिथिन में टूटे नारियल के चार टुकड़े और लाचीदाना के दो पैकेट और गेंदे व् गुलाब के कुछ खुले फूल उसमे डाल हमें दे दिए.हमदोनों माँ दुर्गाजी को सिर झुककर प्रणाम किये और फिर पंडितजी को प्रणामकर हमदोनों प्रसाद लिए हुए मंदिर के बाहर आ गए.हमदोनों ने ऊपर सिर उठाया और हाथ ऊंचाकर घंटा बजाया.घंटा बजाते हुए हमदोनों के हाथ एक दूसरे से टकराए तो एक दूसरे की तरफ देख मुस्कुरा दिए.टन..टन..की दिब्य ध्वनि चारो और फ़ैल गई.
हमदोनों पीछे मुड़कर बरामदे की ओर देखे.सब सामान पैक हो चूका था.अर्पिता के पिताजी दो लड़कों से कुछ बातचीत कर रहे थे.वो गुस्से में उन्हें डांट रहे थे.पास जाने पर पता चला की ये दोनों फोटोग्राफर हैं और अब आ रहे हैं.
अर्पिता उनपर गुस्से से विफर पड़ी-कहाँ है तेरा कैमरा,मैं अभी उसे तोड़ के फेंक दूंगी.
दीदी,हमलोग सुबह नौ बजे ही आ गये थे.आधा घंटा यहाँ रुके भी पर यहाँ कोई था नहीं,इसीलिए चले गए-फोटोग्राफर अर्पिता को गुस्से में देख गिड़गिड़ाने लगा.वो हाथ जोड़ के माफ़ी मांगने लगा.अर्पिता लोकल भाषा में उन्हें डांटने लगी.
कुछ देर बाद जब शांति हुई तो उन्होंने कुछ फ़ोटो मेरे अर्पिता के एक साथ वाले खींचे और कुछ फ़ोटो हमारे साथ दूसरों को खड़ा कर खींचे.शाम को समय से पार्टी में आने का वादा कर वो लोग चले गए.मैंने बरामदे में देखा बूढ़े नजूमी बाबा गहरी नींद में सो रहे थे.मैंने दूर से ही उन्हें प्रणाम कर लिया.हमसब ने अपने अपने मोज़े जूते और सेंडिल पहन लिए.
चलो बेटा,सामान गाड़ी में रखना शुरू करो-अर्चना के पिताजी दोनों लड़कों से बोले.उन्होंने सामान ले जाना शुरू कर दिया.मैं और अर्पिता वहीँ समानो के पास रुके रहे,बाकी लोग एक एक थैला उठा लिए और मंदिर के बाहर जानेवाली सीढ़ियों की तरफ बढ़ गये.कुछ देर में सब सामान मारुति वैन में रखा गया.हमदोनों भी सीढ़ियों की तरफ चल पड़े.सीढ़ियों के पास रूककर हमने माँ दुर्गाजी को को दूर से ही प्रणाम किया और पीछे घूमकर सीढियाँ उतरने लगे.मारुति वैन के पास आकर सामान रखी मारुति में दोनों लड़के बैठ गए.मेरा लाल बैग और अर्पिता का पीला बैग भी उसी में था.वो मारुति वैन चल दी.
चलो बेटा,पहले तुम बैठो-अर्पिता के पिताजी मुझसे बोले.
मैं झुककर मारुति वैन में घुसा और भीतर जाकर बैठ गया.मेरे बगल में बायीं तरफ अर्पिता बैठ गई.अर्चना आकर मेरे सामने बैठी और प्रिया उसके बगल में बैठ गई.प्रिया के दायें कंधे पर अर्पिता का सुनहरा बैग टंगा था.
अर्पिता के पिताजी पीछे का गेट बंद कर दिए.आगे का गेट खोल अर्पिता के पिताजी पहले आशीष को बैठाये और फिर उसके बगल में बैठ गेट बंद कर लिए.ड्राइवर गाड़ी स्टार्ट कर मेनरोड पर ले लिया.गाड़ी तेज गति से भागने लगी.
पिताजी,बाल अनाथालय के पास गाड़ी रुकवा दीजियेगा.हमदोनों दस मिनट के लिए अनाथालय में जायेंगे.दीदी का आशीर्वाद लेंगे और बच्चो को चाकलेट बाटेंगे-अर्पिता बोली.
ठीक है बेटा,जैसी तुम्हारी इच्छा हो करो-अर्पिता के पिताजी बोले.
बैग खोलकर चॉकलेट का पैकेट और सौ रूपये निकाल के दे-अर्पिता प्रिया से बोली.
प्रिया बैग खोलकर चॉकलेट का पैकेट और सौ रूपये अर्पिता को दे दी.
दस मिनट में ही गाड़ी बाल अनाथालय पहुँचकर रुक गई.अर्पिता के पिताजी आगे का गेट खोलकर गाडी से नीचे उतरे और पीछे का गेट खोल दिए.
अर्पिता मारुति वैन से नीचे उतरी.मैं भी मारुति वैन से नीचे उतर गया.हम दोनों साथ साथ चलते हुए बाल अनाथालय का लोहे का गेट खोलकर भीतर प्रवेश कर गए.
शेष अगले ब्लॉग में..
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh