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छूप गया कोई रे-मेरा प्रेम विवाह-भाग-१५

सद्गुरुजी
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छूप गया कोई रे-मेरा प्रेम विवाह-भाग-१५
आज मौसम बहुत अच्छा था,पूरी तरह से खिली हुई धूप निकली थी.आज हलकी गुलाबी ठण्ड पड़ रही थी जो सहनेलायक और अच्छी लग रही थी.मारुति वैन में पीछे की सिट पर हम एक दूसरे के बिलकुल करीब और आमने सामने बैठे थे.इत्र की भीनी भीनी की खुश्बू उन तीनो के बदन से आ रही थी.मई इत्र का प्रयोग नहीं करता था,क्योंकि इत्र की तेज महक से मेरा सिरदर्द होने लगता था.मेरे सामने की सिट पर बैठी अर्चना नए आसमानी कलर के कपड़ों में आज बहुत अच्छी लग रही थी,लेकिन वो कुछ उदास और अनमनी सी थी.मेरी नजर जब भी उससे मिलती थी वो सर झुका लेती थी.
प्रिया आज गुलाबी कलर की साड़ी में सुंदर लग रही थी.उसके गोरे सुंदर चेहरे पर मुस्कराहट हमेशा खिली रहती थी और यही उसके हंसमुख व्यक्तित्व की एक विशेष पहचान बन गई थी.हम तीनो दोस्तों से वो उम्र में दो तीन साल बड़ी थी,परन्तु वो हमतीनो को अपने हमउम्र का मानते हुए हंसी-मजाक कर लेती थी.वो आज सुंदर नए कपड़ों में सजी धजी घर की नौकरानी नहीं बल्कि अर्पिता की बड़ी बहन लग रही थी.वो जब से मारुति वैन में बैठी थी,तबसे बस मेरी और अर्पिता की तरफ देखते हुए मुस्कुराये जा रही थी.अर्पिता उसकी नज़रों से बचते हुए मेरी ओर देख मुस्करा देती थी.मै भी उस सुर्ख गुलाब के फूल को प्रिया ओर अर्चना की नज़र बचाकर चोरी छिपे देख लेता था.मुझे तो सब एक सुखद स्वप्न की तरह लग रहा था,जिसका अंजाम नहीं मालूम था कि क्या होगा.
हल्की सी ठण्ड महसूस हुई तो मै अर्पिता और प्रिया की तरफ देखा,दोनों न तो स्वेटर पहनीं थीं और न ही शॉल लीं थीं.अर्चना आसमानी कलर की सलवार कमीज और उसी रंग का स्वेटर पहने थी,ऊपर से उसी कलर से मैचिंग करता टुपट्टा ओढ़ी थी.
तुमने अपनी शॉल नहीं ली ?-मै अर्पिता से पूछा.
बैग में रख ली हूँ.जरुरत पड़ेगी तो ओढ़ लूंगी.वैसे आज ठण्ड नहीं है-अर्पिता बोली.
तुम्हारा बैग कहा है ?-मै पूछा.
वो सब सामान के साथ दूसरीवाली मारुति वैन में चला गया-अर्पिता बोली.
मै अर्पिता की तरफ देख रहा था,तभी मुझे याद आया की आज शनिवार २४ मार्च को उसका जन्मदिन है.मै उसके कान के पास मुंह कर धीरे से बोला-अर्पिता,तुम्हे जन्मदिन मुबारक हो.
तुम्हे शादी मुबारक हो-वो मेरी तरफ देखी और धीरे से अपना मेहँदी रचा दायां हाथ मेरे बाएं हाथ के ऊपर रख दी.मेरे पूरे शरीर में रोमांच और सिहरन होने लगी.सांसे गहरी होने लगीं और दिल की धड़कन बढ़ने लगी.प्रिया और अर्चना के सामने होने से शर्म आने लगी.
तुम्हे भी शादी मुबारक हो-मै बोला.
क्या साहब,अभी शादी हुई नहीं और दोनों एक दूसरे को बधाई दे रहे हो-प्रिया हंसने लगी.
तू चुपचाप बैठी रह..तुझे क्या जरुरत है हमदोनों के बीच में बोलने की-अर्पिता नाराज होते हुए प्रिया को देखी,वो दूसरी तरफ मुंह कर हंसने लगी.
मै अर्चना की तरफ देखते हुए पूछा-सुबह तुम मुझे कुछ जरुरी बात करने के लिए अपने घर ले जाना चाहती थी.अब बताओ क्या बात थी ?
कुछ नहीं,मै पढाई के बारे में कुछ बातें करना चाहती थी.उस विषय पर मै तुमसे बाद में बात कर लुंगी-वो बहुत उदास और गम्भीर स्वर में बोली.
मुझे लगा कि वो झूठ बोल रही है,बात कुछ और है.इसकी जरुर कोई समस्या है,जो आज सुबह मुझे बताना चाहती थी,लेकिन मौका नहीं मिल पाया.मारुति वैन में सबके साथ होने से मै चाहते हुए भी उससे इस विषय पर कोई बात नहीं कर पाया.मै सोचा कि बाद में कभी इस विषय पर इससे बात कर लूंगा.
फूल-माला और पूजन सामग्री की दुकाने दिखाई देने लगीं.हम माँ दुर्गाजी के मंदिर पर पहुँच चुके थे.पिछले सालभर में तीन बार हमतीनो दोस्त यहाँ आ चुके थे.मेरी और अर्पिता की इच्छा थी की माँ दुर्गाजी के मंदिर में हमदोनो की शादी हो.
मंदिर की सीढ़ियों के पास मारुति वैन रुक गई.ड्राइवर गाड़ी से नीचे उतरा और जाकर दूसरी गाड़ी के ड्राइवर से बातें करने लगा.गाड़ी की खिड़की से मै देखा की दूसरी मारुति वैन हमारी गाड़ी के आगे खड़ी थी और दोनों लड़के गाड़ी के पास खड़े थे.वो हमलोगों के आने का इंतजार कर रहे थे.
अर्पिता के पिताजी गेट खोलकर बाहर निकले.आशीष को उसका हाथ पकड़ गाड़ी से नीचे उतारे.आगे का गेट बंदकर वो पीछे का गेट खोल दिए.प्रिया और अर्चना गाड़ी से नीचे उतर गईं.वो दोनों गाड़ी के पास खड़ी हो बातें करने लगीं.
मै और अर्पिता गाड़ी से नीचे उतरना चाहे तो अर्पिता के पिताजी मना करते हुए बोले-तुमदोनो अभी गाड़ी में ही बैठो.मै मंदिर में सब सामान रखवा के और सारी व्यवस्था करके आता हूँ.इतना कहकर वो आशीष को और दूसरी गाड़ी के पास खड़े दोनों लड़कों को साथ लेकर मंदिर के सीढियाँ चढ़ने लगे.कुछ देर बाद दोनों लड़के मंदिर से बाहर आये और मारुति वैन का गेट खोल दिए.वो दोनों लड़के सामान लेकर मंदिर के भीतर पहुँचाना शरू कर दिए.थोड़ी देर में मारुति वैन से सब सामान उतारकर लड़के मंदिर के भीतर पहुंचा दिए.मेरे साथ साथ अर्पिता भी उन्हें सामान ले जाते हुए देख रही थी.मै अपनी कलाई घडी में देखा,सुबह के साढ़े दस बज रहे थे.मै अर्पिता की ओर देखा.वो मेरी ओर देख रही थी.
वो मुझे निहारते हुए बोली-आज कितने अच्छे लग रहे हो.मेरा तो दिल कर रहा कि..-आगे वो कुछ न बोल शरारत से मुस्कुराने लगी.
तू भी तो कितनी अच्छी लग रही हो.मेरा दिल तो कर रहा है कि तुम्हे बस देखता रहूँ-मै कुछ शरमाते हुए बोला.
तुम्हारा दिल इससे आगे क्यों नहीं बढता है..मेरा दिल तो बेचैन है कि कब शादी हो और कब मै तुम्हे..आगे कुछ न बोल वो हंसने लगी.
तुम हमेशा गन्दी बातें सोचती हो.मै बहुत चिंतित रहता हूँ कि शादी के बाद तुम ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कैसे करोगी ?-मै गम्भीर होकर बोला.
मेरी बात सुनकर वो खिलखिलाकर हंस पड़ी.उसके मतियों जैसे सफ़ेद दांत चमक रहे थे ओर उसके चेहरे की गुलाबी रंगत और बढ़ गई थी.उसकी हंसी सुनकर प्रिया और अर्चना उसके पास आ गईं.प्रिया मुस्कुराते हुए हमदोनो की तरफ देख धीरे से बोली-अभी शादी हुई नहीं और आप लोगों ने हनीमून मनाना पहले से ही शरू कर दिया.पहले शादी तो कर लो.
मेरा वश चलता तो..-आगे कुछ न बोल वो मेरी तरफ देख फिर हंसने लगी.
तुम इस तरह से मेरा मजाक उड़ाओगी तो मै अपने घर चले जाउंगा-मै चिढ़कर बोला.
तुम अपने घर जाके दिखाओ.मै तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ूंगी.शादी का सब सामान और शादी करानेवाले पंडित को लेकर तुम्हारे घर पहुँच जाउंगी और तुम्हारे घरवालों के सामने हमदोनो की शादी होगी-वो गम्भीर होकर बोली.
उसकी बात सुनकर मै चुप हो गया.घरवालो की चर्चा होने से उनकी याद आई तो अपने पिताजी की याद आने लगी,उनको याद कर भय लगने लगा की जिसदिन उन्हें हमारी शादी का पता चलेगा उसदिन क्या होगा ?.फिर मै गहरी साँस लेते हुए और अपने को धीरज बंधाते हुए सोचने लगा की अब जो होगा देखा जायेगा.मै ये सब सोच ही रहा था की तभी अर्पिता के पिताजी आते दिखे.मै घडी में देखा,दिन के ग्यारह बज रहे थे.
वो हमारी गाड़ी के पास आकर बोले-चलो बच्चों,विवाह की सब तैयारी हो गई.अब एक घंटे में विवाह का कार्य पूर्ण हो जायेगा.फिर वो प्रिया और अर्चना से बोले-बेटा तुमदोनो पहले वहाँ पहुँचो.मंदिर के बाहर बाईं ओर बरामदे में सब कार्यक्रम होगा.तुमलोग वहाँपर पहुँचो,मै इन दोनों को ले के आता हूँ.
प्रिया और अर्चना मंदिर के भीतर जाने वाली सीढियाँ की ओर बढ़ गईं.अर्चना के पिताजी अपनी जेब से कुछ खुले रूपये निकालकर मेरी ओर बढ़ा बोले-बेटा,ये कुछ खुले रुपए अपने पास रख लो.शादी के समय पूजा-पाठ में खुले रुपयों की जरुरत पड़ती है.
नहीं अंकलजी,इसे आप रखिये.मेरे पास कुछ रूपये हैं,उससे काम चल जायेगा.तभी मुझे बैग में रखे रुपयों की याद आयी.मै सोचा की रूपये जेब में रख लूँ,शादी होते समय पता नहीं कब इसकी जरुरत पड़ जाय.
मै अपना बैग पीछे से उठाकर सामने की सीट पर रख लिया.मै अपना बैग खोलने लगा तो अर्पिता मेरे करीब आते हुए बोली-कुछ निकालोगे क्या बैग से ?मै कुछ हेल्प करूँ ?
नहीं,कुछ रूपये मैंने बैग में रखा है,उसे निकालकर मै कोट की जेब में रख लेता हूँ,आज पता नहीं कब उसकी जरुरत पड़ जाये-ये कहकर कपड़ों के बीच रखे पांच सौ रूपये के नोट निकालकर मैंने अपनी कोट की जेब में रख लिए.
अपने हाथ में लिए रुपए अपनी जेब में रखते हुए बोले-अब जल्दी चलो बेटा,विवाह की वेदी पर बैठा वो पंडित तुमलोगों का इंतजार कर रहा है.तुमलोगो का विवाह संपन्न कराने की उस पंडित से ज्यादा जल्दी तो उस नजूमी को है.तुमदोनो से मिलने के लिए वो आज सुबह से बेचैन है.ऐसा लगता है जैसे तुमदोनो को वो जानता हो.
मै सोच में पड़ गया.की कौन है ये नजूमी ?मै तो किसी नजूमी को नहीं जानता.फिर वो मुझे कैसे जानता है ?
तभी अर्पिता के पिताजी ने फिर टोका-जल्दी करो बेटा,देर हो रही है.
अर्पिता गाड़ी से नीचे उतर गई.मै भी अपने दायें हाथ में अपना बैग थामे गाड़ी से नीचे उतर गया.अर्पिता के पिताजी मारुति वैन का गेट बंद कर दिए.वो मेरा बैग लेना चाहे तो मै मना कर दिया-नहीं अंकलजी,अपना बैग मै आपको नहीं दूंगा,मुझे बैग ले जाने दीजिये.
वो बैग लेने की जिद न कर मंदिर की ओर जानेवाली सीढियाँ चढ़ने लगे.उनके साथ-साथ मै और अर्पिता भी मंदिर की सीढियाँ चढ़ने लगे.
शेष अगले ब्लॉग में..
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

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