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छूप गया कोई रे-सात फेरे-भाग-१६

सद्गुरुजी
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छूप गया कोई रे-सात फेरे-भाग-१६
मंदिर की सीढियाँ चढ़ हम माँ दुर्गा जी के मंदिर के बड़े प्रांगण में पहुँच गए.हमारे ठीक सामने कुछ दूर पर टीनशेड के नीचे माँ दुर्गाजी की सजी-धजी भव्य प्रतिमा दिखाई दे रही थी,मैंने मन ही मन बहुत भक्ति भावना से से माँ को प्रणाम किया.अर्पिता ने भी श्रद्धा से सिर झुकाया.उसके पिताजी भी माँ को प्रणाम कर मंदिर परिसर के बायीं तरफ चलते हुए बोले-आओ बेटा,विवाह का सारा इंतजाम उस बरामदे में हुआ है.
मैंने बायीं और देखा,वहांपर मंदिर परिसर के टीनशेड वाले बरामदे में विवाह का सारा इंतजाम था.वहांपर काफी चहल पहल दिखी.अर्चना,प्रिया,आशीष और सामान के साथ आये दोनों लड़के सब के सब पंडित जी के बताये अनुसार कार्य करने में व्यस्त थे.वो सब यहाँ वहाँ दौड़ भागकर सामान ला रहे थे.हमदोनों साथ साथ चलते हुए कुछ ही पलों में उस बरामदे के नजदीक पहुँच गए.जहाँपर अर्पिता के पिताजी हमारा इंतजार कर रहे थे.
अंकलजी,ये बैग कहाँ रखूं अपने पास रखूं या वहाँ सामानों के पास रख दूँ ?-मै अर्पिता के पिताजी के पास आकर पूछा.
अर्पिता के पिताजी ने मेरा बैग मेरे हाथ से ले लिया और प्रिया को आवाज़ दिए-प्रिया,ये बैग ले जाकर अर्पिता के बैग के पास रख दो.
प्रिया आकर मेरा बैग ले ली और उसे ले जाकर अर्पिता के पीले रंगवाले बैग के पास रख दी.
सबलोग एक जगह पर अपने जूते और सेंडिल उतारे थे.अर्पिता के पिताजी अपने सफेद कपडे के जूते उतारते हुए बोले-बेटा,तुमलोग भी अपने जूते,मोज़े और चप्पल यहीं उतार दो और नलके पर हाथ धो लो.
मै अपने काले जूते उतार काले मोज़े भी उतारा और उसे जूतों में डाल दिया.अर्पिता अपनी गोल्डन कलर वाली सेंडिल उतार मेरे जूते के पास रख रख दी.वो मोज़े नहीं पहनी थी.हमदोनों नलके पर जाकर हाथ धोने लगे.दोनों एक दुसरे की तरफ देख मुस्कुराये पर कुछ बोले नहीं,क्योंकि उसके पिताजी हमारे पास खड़े थे,जो हाथ धोकर रुमाल से अपना गिला हाथ पोंछ रहे थे.हाथ धोकर मै अपनी कोट की जेब से सफेद रुमाल निकलकर अपना हाथ पोंछा और फिर अर्पिता को दे दिया.वो हाथ पोंछकर रुमाल मुझे मुस्कुराते हुए लौटा दी.वो आज बहुत खुश लग रही थी.
पापा वो फोटोग्राफर तो अभीतक आया नहीं,आपने उससे कहा था न ?कुछ रूपये उसको एडवांस दे दिए होते तो अबतक वो आ गया होता ?-अर्पिता अपने पिताजी से बोली.
हाँ बेटा,मैंने तो उसे दस बजे ही यहाँ पहुँच जाने को कहा था.पता नहीं क्यों नहीं आया ?मैं तो कल शाम को ही उसे दो सौ रूपये एडवांस दे दिया था-अर्पिता के पिताजी बोले.
मैंने बरामदे की तरफ देखा.बरामदे में विवाह वेदी पर बहुत सा पूजा का सामान रखा हुआ था.कई थैले और प्लास्टिक के बारे में सामान भर के रखा हुआ था.एक थैले के ऊपर पीला दुपट्टा और कुछ कपडे रखे हुए थे.स्टील की छोटी बड़ी कई थालियों में कई तरह के फल व् मिठाइया रखी हुई थीं.कई थाली और अन्य तरह के बरतनो में बहुत सा पूजा का सामान रखा हुआ था.कसोरा से ढका हुआ मिटटी का एक कलश,आम का पल्लो,एक ताम्बे का बना हुआ चौकोर हवनकुंड भी था,जिसके पास आम कि सुखी लकड़ियां रखी हुईं थीं.बनी हुई थी.
मंदिर के बूढ़े पुजारी हमारा इंतजार कर रहे थे.अर्चना के पिताजी उनकी तरफ ईशारा कर बोले-बेटा,तुमदोनो सबसे पहले पंडितजी का पांव छूकर आशीर्वाद लो.
हमदोनों दो कदम आगे बढ़कर उनका पांव छू लिए.वो बहुत खुश हुए और आशीर्वाद देते हुए बोले-बेटा तुमदोनो इन बाबाजी का भी आशीर्वाद लो.ये मेरे गुरुदेव हैं और बहुत पहुंचे हुए सिद्धपुरुष हैं.ये किसी भी व्यक्ति का भूत भविष्य और वर्तमान सब बता देते हैं.ये तुमदोनो की शादी देखने के लिए सुबह से ही बेचैन हैं.इतना कहकर वो अपने बगल में बैठे बूढ़े बाबाजी की तरफ ईशारा किये-बेटा,तुमदोनो बाबा जी का आशीर्वाद लो.
पुजारी जी के साथ सफ़ेद बालवाले एक बूढ़े व्यक्ति बैठे थे.मैंने झुककर उनके पांव छू लिए.थे.मुझे देखकर वो जोर से हँसते हुए बोले-फ़क़ीर बादशाह होने के लिए आ गया है सबलोग फूल बरसाओ उसपर..अपने पास पड़े कुछ गेंदे के फूल वो मेरे ऊपर फेंक दिए.उनकी बातें मेरी समझ में नहीं आईं.वो सब एक अबूझ पहेली की तरह थीं.
अर्पिता ने झुककर उनके पांव छुए.उसके ऊपर गेंदे के कुछ फूल फेंकते हुए बोले-बेटी,तेरी सब मुरादें पूरी होंगी.तू दोनों लोकों में सुहागिन रहेगी.वो पुजारी जी से बोले-चल पंडित,अब विवाह के मंत्र पढ़ना शुरू कर दे.
बेटा,इधर लगभग सब तैयारियां पूरी हो गई हैं.तुमदोनो माँ से आशीर्वाद लेकर जल्दी से आओ ताकि विवाह संस्कार करना शुरू किया जाये.
मैं और अर्पिता एक साथ चलते हुए मंदिर के पास पहुंचे और घंटा बजाते हुए मंदिर के अंदर चले गए.हमदोनों माँ दुर्गाजी की भव्य प्रतिमा के पास पहुँच हाथ जोड़कर खड़े गये.वहांपर अखंड दीपक जल रहा था और जल रहे सुगंधित धूप की खुश्बू पूरे मंदिर में फैली हुई थी.मै माँ दुर्गाजी की प्रतिमा के दिव्य सौंदर्य और शक्ति वाले रूप को अपलक निहारते हुए सोचने लगा की माँ की ये प्रतिमा सम्पूर्ण प्रकृति के अनुपम सौंदर्य और अदभुद शक्ति की प्रतिक है.माँ के इस प्रतीक की उपासना सम्पूर्ण प्रकृति की उपासना है,जैसे किसी भी देश का झंडा उस देश का प्रतीक होता है और झंडे को सम्मान देना पुरे देश को सम्मान देना माना जाता है.मै आँखें बंदकर माँ को प्रणाम किया और फिर आँखे खोलकर अपने बायीं तरफ खड़ी अर्पिता की तरफ देखा.अर्पिता अपनी आँखे बंद कर और हाथ जोड़कर प्रार्थना कर रही थी.वो आँखे खोली और मेरी और देखने लगी.हमदोनों ने मुस्कुराते हुए एक दूसरे की तरफ देखा.वो मुझसे पूछने लगी-तुमने माँ से क्या माँगा ?
मै बोला-मैंने तो माँ से प्रार्थना की थी.की अपना विवाह कार्य निर्विध्न रूप से पूरा हो जाये.तुमने माँ से क्या माँगा ?
मैंने तो माँ से सिर्फ तुम्हे माँगा है.मै जब भी इस संसार में आऊँ,मुझे हर जन्म में तुम मिलो-ये कहते कहते उसका चेहरा ख़ुशी से चमकने लगा.
तभी कुछ लोगों ने आकर मंदिर की घंटी बजाई.माँ के दर्शन हेतु कई लोग आ गए थे.
हमदोनो माँ को पुन: प्रणाम किये और पीछे मुड़कर मंदिर के बाहर आ गए.मंदिर का घंटा बजा हम वहाँ से चल पड़े.हमलोग साथ साथ चलते हुए बरामदे में आ गए.वहाँ पर विवाह वेदी पर हमारे प्रवेश करते ही पंडितजी ने मंगलाचरण मंत्र बोलना शुरू कर दिया.हमारे ऊपर पुष्प और अक्षत डाला गया.पिताजी.बिछी हुई कालीन पर मैं बैठ गया,मेरे दायीं तरफ अर्पिता बैठ गई.उसके बगल में उसके पिताजी और उसका भाई आशीष बैठ गए.पंडितजी ने मंत्र पढ़ना शुरू किया.वो कई तरह का पूजन करते रहे और हुमलोगो से कराते र्रहे.वो जैसा कहते रहे अर्पिता के पिताजी वैसा ही करते चले गए.
अर्पिता के पिताजी ने स्टील की छोटी सी गिलास में दूध,दही,मधु और तुलसीपत्र से बना मधुपर्क पेय दिया,जिसे मैं मुंह में डाल लिया और हाथ मुंह धो लिया.
पंडितजी बोले-आपदोनो खड़े होकर एक दूसरे को वरमाला पहनाइए.सब लोग अपने हाथ में फूल ले लें.जब ये लोग एकदूसरे को वरमाला पहना दें तो आपलोग इनपर फूलों कि वर्षा करें.
अर्पिता के पिताजी,अर्चना,प्रिया,आशीष और विवाह कार्य में हमारी मदद करा रहे दोनों लड़के सबलोग हाथ में खुले फूल लेकर खड़े हो गए.
हमदोनों के हाथ में एक एक सजी-धजी खूबसूरत वरमाला दे दी गई और पंडित जी ने मंत्र पढ़ते हुए एक दूसरे को वरमाला पहनाने का ईशारा किया.मैंने मुस्कुराती हुई अर्पिता के गले में कुछ शरमाते और घबराते हुए वरमाला डाल दी और सिर झुका लिया.अर्पिता हँसते हुए मेरे गले में वरमाला डाल दी.सबने अपने हाथ में लिए फूल हमारे ऊपर डाल दिए.
हमदोनो फिर से बैठ गए.पडितजी ने मुझे यज्ञोपवीत धारण कराया.कलश पूजन और और अन्य कई तरह के पूजन के बाद मेरे और अर्पिता के गोत्र तथा मेरे और उसके पिता और पितामह के नामों का उल्लेख कर हमदोनो के विवाह संबंध में बंधने की घोषणा की.
पडित जी मंत्रोचारण करते रहे.विवाह संस्कार का कार्यक्रम आगे बढ़ता रहा.
अर्पिता के मेहँदी लगे दोनों हाथ हल्दी लगाकर पीला किया गया.उसके पिता अपने हाथ में उसके हाथ,आटे की लोई में रखा गुप्तधन और पुष्प लेकर पंडितजी के बताये अनुसार संकल्प लिए और अर्पिता के हाथ मेरे हाथों में सौप दिए.अर्पिता के दोनों हाथों को अपने हाथो में थामते ही मेरे पूरे शरीर में सिहरन और रोमांच से भर उठा.कन्यादान करके अर्पिता के पिताजी की आँखों से आंसू बह रहे थे.वो हमदोनो को रोते हुए देखे जा रहे थे.
कुछ और रश्मे पूरी करने के बाद पंडितजी मंत्र पढ़ते रहे और उनके बाते अनुसार अर्पिता ने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाया,जिसे उसकी कलाई के पास से मैंने पकड़ लिया.इसके बाद एक पीले रंग के दुपट्टे के छोर से उसे और दूसरे छोर से मुझे बांधा गया.उस दुपट्टे के एक कोने में कुछ रूपये,फूल,दूब,हल्दी और अक्षत बांधा गया था.
मुझे और अर्पिता को हिंदी में लिखीं नौ नौ प्रतिज्ञाएं पढ़ने को दी गईं.ये प्रतिज्ञाएं पढ़ते पढ़ते मैं बहुत भावुक हो गया था और ये प्रतिज्ञाएं मुझे बहुत अच्छी लगीं थी.मुझे लगता है की हिन्दू धर्म के विवाह संस्कार की सबसे बड़ी विशेषता ये प्रतिज्ञाएं ही हैं.पहले मैंने नौ प्रतिज्ञाएं पढ़ीं,जो इस प्रकार से थीं-
१-आज से धमर्पतनी को अर्द्धांगिनी घोषित करते हुए, उसके साथ अपने व्यक्तित्व को मिलाकर एक नये जीवन की सृष्टि करता हूँ.अपने शरीर के अंगों की तरह धर्मपत्नी का ध्यान रखूँगा.
२-प्रसन्नतापूर्वक गृहलक्ष्मी का महान् अधिकार सौंपता हूँ और जीवन के निधार्रण में उनके परामर्श को महत्त्व दूँगा.
३-रूप, स्वास्थ्य, स्वभावगत गुण दोष एवं अज्ञानजनित विकारों को चित्त में नहीं रखूँगा, उनके कारण असन्तोष व्यक्त नहीं करूँगा.स्नेहपूर्वक सुधारने या सहन करते हुए आत्मीयता बनाये रखूँगा ।
४-पत्नी का मित्र बनकर रहूँगा और पूरा-पूरा स्नेह देता रहूँगा.इस वचन का पालन पूरी निष्ठा और सत्य के आधार पर करूँगा ।
५-पत्नी के लिए जिस प्रकार पतिव्रत की मर्यादा कही गयी है, उसी दृढ़ता से स्वयं पतनीव्रत धर्म का पालन करूँगा.चिन्तन और आचरण दोनों से ही पर नारी से वासनात्मक सम्बन्ध नहीं जोडूँगा ।
६-गृह व्यवस्था में धर्म-पत्नी को प्रधानता दूँगा.आमदनी और खर्च का क्रम उसकी सहमति से करने की गृहस्थोचित जीवनचयार् अपनाऊँगा.
७-धमर्पत्नी की सुख-शान्ति तथा प्रगति-सुरक्षा की व्यवस्था करने में अपनी शक्ति और साधन आदि को पूरी ईमानदारी से लगाता रहूँगा.
८-अपनी ओर से मधुर भाषण और श्रेष्ठ व्यवहार बनाये रखने का पूरा-पूरा प्रयतन करूँगा.मतभेदों और भूलों का सुधार शान्ति के साथ करूँगा.किसी के सामने पत्नी को लाञ्छित-तिरस्कृत नहीं करूँगा.
९-पत्नी के असमर्थ या अपने कर्त्तव्य से विमुख हो जाने पर भी अपने सहयोग और कर्त्तव्य पालन में रत्ती भर भी कमी न रखूँगा.
शुरू में अर्पिता शरारत से मुस्कुराते हुए मुझे देखती रही.मैं पूरी गम्भीरता से ज्यों ज्यों प्रतिज्ञाएं पढता गया,त्यों त्यों वो गम्भीर होती चली गई.मेरे बाद अर्पिता ने भी नौ प्रतिज्ञाएं पढ़ीं,जो इस प्रकार से थीं-
१-अपने जीवन को पति के साथ संयुक्त करके नये जीवन की सृष्टि करूँगी.इस प्रकार घर में हमेशा सच्चे अर्थों में अर्द्धांगिनी बनकर रहूँगी.
२-पति के परिवार के परिजनों को एक ही शरीर के अंग मानकर सभी के साथ शिष्टता बरतूँगी,उदारतापूवर्क सेवा करूँगी,मधुर व्यवहार करूँगी.
३-आलस्य को छोड़कर परिश्रमपूवर्क गृह कार्य करूँगी.इस प्रकार पति की प्रगति और जीवन विकास में समुचित योगदान करूँगी.
४-पतिव्रत धर्म का पालन करूँगी, पति के प्रति श्रद्धा-भाव बनाये रखकर सदैव उनके अनूकूल रहूँगी.कपट-दुराव न करूँगी, निदेर्शों के अविलम्ब पालन का अभ्यास करूँगी.
५-सेवा, स्वच्छता तथा प्रियभाषण का अभ्यास बनाये रखूँगी.ईर्ष्या, कुढ़न आदि दोषों से बचूँगी और सदा प्रसन्नता देने वाली बनकर रहूँगी.
६-मितव्ययी बनकर फिजूलखर्ची से बचूँगी.पति के असमर्थ हो जाने पर भी गृहस्थ के अनुशासन का पालन करूँगी.
७-नारी के लिए पति, देव स्वरूप होता है- यह मानकर मतभेद भुलाकर, सेवा करते हुए जीवन भर सक्रिय रहूँगी, कभी भी पति का अपमान न करूँगी.
८-जो पति के पूज्य और श्रद्धा पात्र हैं, उन्हें सेवा द्वारा और विनय द्वारा सदैव सन्तुष्ट रखूँगी.
९-परिवार के सदस्यों में सुसंस्कारों के विकास तथा उन्हें सद्भावना के सूत्रों में बाँधे रहने का कौशल अपने अन्दर विकसित करूँगी.
ये नौ प्रतिज्ञाएं पढ़ते पढ़ते अर्पिता एकदम गम्भीर हो गई.मुझे बहुत गम्भीरता से देखने लगी.उसका बचपना,शरारत और शोखी न जाने कहाँ चली गई थी.एक निर्भीक और चंचल लड़की की जगह एक गम्भीर और आदर्शमयी पत्नी नज़र आरही थी.मुझे न जाने क्यों उसका ये बदला हुआ रूप अजीब सा लग रहा था,क्योंकि ये उसके स्वभाव के विरुद्ध था.
कुछ और रश्मे पूरी करने के बाद पडितजी ने हवनकुंड की धधकती हुई अग्नि में लाजाहोम कराना शुरू किया.अर्पिता का भाई आशीष एक थाली में खील यानि भुना हुआ धान लेकर अर्पिता के पीछे खड़ा हो गया.पडितजी मंत्र पढ़ते रहे और उनके बताये अनुसार तीन बार आशीष ने एक मुट्ठी खील अर्पिता को दिया,अर्पिता ने मुझे दिया और पंडितजी के आहुति मंत्र पढ़ने पर मैंने उसे जलते हुए हवनकुंड में डाल दिया.लाजाहोम के पश्चात् हवनकुंड की परिक्रमा शुरू कराई गई.बाएं से दायें चलते हुए पहली चार परिक्रमा में हमने ली,जिसमे अर्पिता आगे रही फिर मैं आगे हो गया और तीन परिक्रमा हमने ली.पंडितजी मंत्रोचारण करते रहे.
इसके बाद पंडितजी ने सप्तपदी कराई.सात जगह गुलाल से गोला बना हुआ था और उसमे चावल की ढ़ेरी रखी हुई थी.दायें पैर के अंगूठे से हर चावल की ढ़ेरी को स्पर्श करते हुए हम रुक रुक कर आगे बढ़ते रहे और पंडितजी मंत्र पढ़ते रहे.
सप्तपदी में अन्न,बल.धन,सुख,परिवार,ऋतुचर्या,और मित्रता को आजीवन सम्मान देने के लिए कदम उठाया जाता है.सप्तपदी के पश्चात आसान परिवर्तन हुआ.मेरे दाहिनी और बैठी अर्पिता अब मेरे बाएं और आकर बैठ गई.पत्नी को बायीं और बैठाना एक सम्मान है.बायीं और को प्रथम स्थान माना गया है.बायीं और से लिखना शुरू किया जाता है.पत्नी को प्रथम स्थान देने के लिए पति के नाम से पूर्व बाईं ओर उसका नाम लिखा जाता है,जैसे-सीताराम,राधेश्याम लक्ष्मीनारायण और उमामहेश आदि.
एक थाली में जल लेकर प्रिया ने तीन बार मेरे पैर धोये.मुझे बहुत तेज गुदगुदी हो रही थी.वो हंस रही थी.फिर उसने तीन बार अर्पिता के पैर धोये.पडितजी मंत्र पढ़ते रहे.
इसके बाद एक दूसरे के सिर पर हाथ रख हमने आजीवन एक दूसरे का साथ निभाने की कसम खाई.पंडितजी के मंत्रोचारण के साथ अर्पिता ने मेरे माथे पर तिलक लगाया.अंत में एक दुपट्टा ओढ़ाकर सिंदूरदान कराया गया.चुटकी भर सिंदूर जब मैं उसके मांग में भरने लगा तो वो इतनी भावुक हो गई कि उसकी आँखे भर आईं.दुपट्टे की आड़ में वो मुझे एकटक डबडबाई नज़रों से निहारती रही.मैं भी बहुत भावुक हो गया था.मुझे ऐसा लगता था कि मैं अभी रो पडूंगा.मेरी आँखे भर आईं थीं.
अर्पिता ने नाक और कान में ही गहने पहने थे.नाक में सोने की लौंग थी और कानों में सोने के छोटे टाप्स थे.मैं तो कोई गहने नहीं लाया था,मुझे इस बात की बड़ी शर्म मनसूस हो रही थी.यहाँ तक की मंगलसूत्र भी नहीं लाया था.
सोने की पतली खूबसूरत चैन में लगा हुआ छोटा सा खूबसूरत लोकेट मुझे दिया गया,जिसे मैंने उसके गले में पहना दिया.मंगलसूत्र पहनाते हुए मुझे बहुत गर्व महसूस हो रहा था कि इतनी सुंदर और निर्भीक लड़की अब मेरी जीवनसंगिनी बन गई है.उसने झुककर मेरा पैर छू आशीर्वाद लेना चाहा मगर मैंने उसके हाथ पकड़ लिए.वो आंसूभरी आँखों से मेरी और देखते हुए जिद करने लगी-नहीं,मुझे मत रोको.आज मुझे अपने पैर छूने दो.
हमदोनो को ध्यान से देख रहे पंडितजी बोले-बेटा,उसे पैर छू लेने दो.अब वो तुम्हारी पत्नी है.पत्नी की जगह पति के चरणों में होती है.
आप गलत कह रहे है पंडितजी,मैं आपकी बात से सहमत नहीं हूँ.मेरे विचार से पत्नी की जगह पति के चरणों में नहीं बल्कि पति के ह्रदय में होना चाहिए.ये मेरे ह्रदय में रहती हैं और सदैव रहेगीं-इतना कहकर मैं अर्पिता के दोनों हाथ पकड़ अपने ह्रदय पर रख दिया.
अर्पिता आश्चर्य से मेरी और देख मुस्कुराने लगी.उसके चेहरा ख़ुशी और गर्व से चमक रहा था.वो मुझे एकटक देखे जा रही थी.
पंडितजी कुछ बोले नहीं.बूढ़े नजूमी बाबा जोर से हँसते हुए बोले-पंडित,तूने फकीरों वाली बात की और इस लड़के ने बादशाहों वाला उत्तर दिया.मैंने तुझसे कहा था न कि फ़क़ीर बादशाह बनेगा.अब इसकी फकीरी दूर हो जायेगी और कुछ समय बाद ये बादशाह बनेगा.
अर्पिता के पिताजी हमारे पास आते हुए बोले-मुझे अपने दामाद पर गर्व है.वो हीरा है हीरा..
हमदोनो ने झुककर उनके चरण छू लिए.वो हमदोनो को गले लगाकर आशीर्वाद देने लगे-हमेशा खुश रहो मेरे बच्चों..जीवन में खूब उन्नति करो..सफलता हमेशा तुम्हारे कदम चूमे..खुश रहो,हमेशा खुश रहो.उनकी आवाज़ भर्राने लगी.आँखों से आंसू बहने लगे.कुछ देर बाद अपने पर नियंत्रण कर बोले-जाओ बेटा पुजारीजी और नजूमी बाबा का आशीर्वाद लो.अर्पिता के पिताजी अपनी जेब से चार सौ रूपये एक नए कपडे का पैकेट पुजारी जी को दे उनका पैर छू लिए.वो खुश होकर आशीर्वाद देने लगे.कुछ रूपये और नये कपडे का एक पैकेट वो नजूमी बाबा को दे उनका पैर छू लिए.वो भी खुश होकर आशीर्वाद देने लगे.
मैंने जेब से बीस रूपये का नोट और एक सिक्का निकाला जो दो रूपये का था.उसे अर्पिता के हाथ में रख अपने हाथ में दो केला थाली से उठाकर ले लिया.मैंने अर्पिता को इशारा किया और हमने बूढ़े नजूमी बाबा के चरणीं में रूपये और फल अर्पित कर दिया.बूढ़े नजूमी बाबा खुश होकर अपना हाथ उठाकर बोले-बेटी,तेरी सारी मुरादें पूरी हों और बेटा तू एक दिन बादशाह बने.तेरे अंदर बादशाह बनने के लक्षण हैं.
बाबा,मुझे बादशाह नहीं बनना है.हमदोनो झोपडी में भी रहें तो खुश रहें,बस यही आशीर्वाद दीजिये-मैं अर्पिता की तरफ देख के बोला.
बेटा,तू बादशाही लिखा के आया है.तेरे माथे पर लिखा हुआ है.तू इसे मिटा नहीं सकता है,तू एकदिन बादशाह बनेगा और जरुर बनेगा-नजूमी बाबा हँसते हुए बोले.
उनकी पहेलीनुमा बात का कोई अर्थ न समझते हुए मैं चुप हो गया.अपनी जेब से एक सौ इक्कीस रूपये निकाल अर्पिता के हाथ में रखा और और दो पीस बर्फी एक दोना में ले अर्पिता की और देखा,वो समझ गई.हमने बूढ़े पुजारीजी के चरणों के पास रूपये और मिठाई रख उनके चरण छू लिए.वो खुश होकर आशीर्वाद देने लगे-बेटा तुमदोनो हमेशा सुखी रहो.तुमदोनो की जोड़ी हमेशा बनी रहे.
शेष अगले ब्लॉग में..
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

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