Menu

छूप गया कोई रे-बाल अनाथालय-भाग-१८

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
4382143966_dda7887cb6_z
छूप गया कोई रे-बाल अनाथालय -भाग-१८
अनाथालय का गेट मैंने बंद कर दिया,ताकि कोई कुत्ता या पशु अंदर न जा सके.मैं अनाथालय के दीनहीन अनाथ होते भवन को देख रहा था.बाल अनाथालय का भवन बहुत जर्जर स्थिति में पहुँच गया था.जगह जगह पर दीवारों का सीमेंट उतर गया था और वहांपर ईंट दिखने लगी थी.बरामदे में पहुंचकर हम दीदी से मिलने के लिए उनके उनके आफिस में गये तो देखा कि दरवाज़ा तो खुला है,लेकिन वहाँ पर कोई भी नहीं है.खाली कुर्सी मेज और चौकी पड़ी हुई है.
हमदोनों अपने जूते और सेंडिल बरामदे में उतर दिए.हम कुछ कदम आगे बढ़कर हाल में गए तो देखा कि सफ़ेद साड़ी में लिपटीं दीदी एक कोने में दीवाल की टेक लगाकर बैठी हुई हैं.फटे पुराने कपडे पहने कुछ छोटे बच्चे दीदी के सामने चुचाप बैठे थे.सफ़ेद कपडे पहने और हाथ में तानपुरा लिए कबीरपंथी साधुबाबा वही बच्चो के पास बैठे थे.
हमदोनों ने दीदी के पास जाकर उनके चरण छुए.वो हैरत से हमारी तरफ देख रहीं थीं.हमदोनों बूढ़े साधुबाबा को भी प्रणाम कर उनका आशीर्वाद लिए और दीदी के पास बैठ गए.दीदी अर्पिता के शरीर पर लिपटे लाल कपडे,भरी मांग और गले में मंगलसूत्र में देखकर समझ गईं.वो बोलीं-तुमदोनों ने शादी कब की ?
आज ही,अभी माँ दुर्गाजी के मंदिर से शादी करके आ रहे हैं,सोचा आपका आशीर्वाद लेते चलें और बच्चों को चॉकलेट बाँट दूँ.बाकी सब बच्चे कहाँ हैं ?-अर्पिता चॉकलेट का पैकेट खोलने की कोशिश करते हुए बोलीं.
इसकी जगह तू आटा ले आई होती तो अच्छा था.कल से इन बच्चों ने खाना नहीं खाया है.रात को ये छोटी भूख के मारे छटपटाने लागी तो बाहर जाकर कूड़ाघर में फेंका खाना खा ली और रात भर में चार बार उल्टी की.आज सभी बड़े बच्चों को मैंने कूड़े में कबाड़ बीनकर लाने के लिए भेज दिया है.जिस काम को करने के लिए मैंने उन्हें एकदिन मना किया था,आज उसी काम को करने के लिए मैंने उन्हें भेजा है.दीदी की आँखों से आंसू छलकने लगे.
कुछ रूककर वो फिर आगे बोलीं-मकान मालिक मकान खाली कराने के लिए हम पर मुकदमा कर दिया है.मैं इन बच्चों को लेकर कहाँ जाऊँ ?मैं अब पूरी तरह से हार गई हूँ अर्पिता ?वो फूट फूट कर रोने लगीं.
वहाँ की ख़राब हालत देख सुनकर मेरी आँखें भर आईं.मैं बहुत भावुक हो गया और मेरा गला सूखने लगा.
अर्पिता उनके आंसू पोछते हुए बोलीं-दीदी,इतनी परेशानी झेल रही हो और मुझे खबर भी नहीं की.दीदी,बहुत नहीं तो थोड़ी सी तुम्हारी मदद मैं कर ही सकती हूँ.
तेरा घर हममें से किसी ने देखा कहाँ है ?-दीदी अपनी सफ़ेद साड़ी के आँचल से अपनी आँखे पोछते हुए बोलीं.
दीदी,आज शाम को बच्चों को लेकर हमारी शादी की पार्टी में आईये न,इसी बहाने आप अर्पिता का घर भी देख लेंगीं-मैं बोला.
नहीं दीदी,आज नहीं.मैं कल आपको और इन बच्चों को अपने घर पर दावत दूंगी.कल सुबह आपलोगों को लेने के लिए मैं किसी को भेज दूंगी,आपलोग तैयार रहिएगा-अर्पिता बोलीं.
वो सौ रूपये दीदी के हाथ में पकड़ा दी-लो चंदा से आटा चावल मंगा लो और इन बच्चो को जल्दी से बनाकर खाना खिलाओ.
मैं अपनी कोट की जेब से सौ रूपये निकाल दीदी के दायें हाथ में रखकर बोला-दीदी मेरी तरफ से भी ये सौ रुपए रख लो.
अर्पिता नाराज होकर मेरी और देखी पर कुछ बोलीं नहीं.मेरे रूपये देने से वो नाराज़ लग रही थी.उसका ये व्यवहार मेरी समझ से बाहर था.
दीदी आँगन की और मुंह कर आवाज़ दीं-चंदा..ओ चंदा.
भीतर से सफ़ेद साड़ी पहनी चंदा बाहर निकली.दीदी दोसौ रूपये उसे देते हुए बोलीं-जा..आटा चावल और कुछ सब्जी ले आ और थोडा सा मीठा ले लेना.इन दोनों का मैं मुंह तो मीठा कर दूँ.हमदोनों मना करते रहे,पर दीदी मानी नहीं,उसे जल्दी आने की हिदायत दे भेंज दीं.
दीदी,आज बाहर चौकीदार नहीं दिखा.छुट्टी ले रखा है क्या ?-मैं पूछा.
मैंने उसे हमेशा के लिए छुट्टी दे दी है.वो कबतक फ्री में ड्यूटी देता-दीदी बोलीं.
दीदी,हमलोग इस अनाथालय की हालत सुधारने के लिए क्यों न यहांपर कोई कार्यक्रम आयोजित करें.अमीर लोग आकर इस अनाथालय की मदद करेंगे-अर्पिता बोलीं.
कई अमीर लोग यहाँ पर मदद करने के लिए आते हैं,लेकिन उनके मदद की कीमत चुकाने के लिए उनके साथ हममें से किसी एक को जाना होगा चाहे चंदा जाये,चाहे मैं जाऊँ या फिर इन मासूम बच्चों में से कोई एक जाये.मुझे ये मंजूर नहीं-दीदी अपनी मुट्ठी भींच जोर से चींखी.
अपनी हवस मिटने के लिए मासूम और गरीब लोगों की खरीदारी.इतने गिरे हुए लोग भी हैं इस दुनिया में.दीदी की बात सुनकर मैं दंग रह गया.
ऐसे लोगों को तो गोली मार देना चाहिए-अर्पिता गुस्से में बोलीं.
तू ऐसा कर सकती है,क्योंकि तू अमीर घर की बेटी है.हम फटेहाल गरीब लोग तो लुटने के लिए और सबकी गाली खाने के लिए पैदा हुए हैं.मुझे तो गरीबों की हालत देख के संदेह होता है की इस दुनिया में कोई भगवान है भी या नहीं ?गरीब के शब्द क्या किसी को लगते हैं और क्या किसी को चुभते हैं ?ये सच होता तो पूरी दुनिया बदल गई होती-दीदी बोलीं.हमदोनों निरुत्तर हो गए.
मैं साधुबाबा से बोला-बाबा,एक भजन सुना दो.आज मैं उसे नोट भी करूँगा.पिछली बार मैं नोट नहीं कर पाया था.
सुबह से भजन सुनकर ही ये बच्चे भूख को भूले हुए हैं.मैं इनके शरीर को भोजन न दे सकी तो सोचा भजन सुनवाकर इनकी आत्मा को ही भोजन दे दूँ-दीदी अपने आंसू पोछते हुए बोलीं.
बेटा,गुरु महाराज कबीर साहिब का कौन सा भजन सुनोगे ?-साधुबाबा तानपुरा हाथों में ले पूछे.
कई महीने पहले जो आप गाकर सुनाये थे.-शब्द की लागी होय तो जान लो मेरे भाई..वही वाला सुना दीजिये.मैं उसे आज नोट भी करूंगा-मैं बोला.
साधुबाबा तानपुरा बजाने लगे मैं दीदी से बोला-दीदी मुझे एक कॉपी पेन दो.
दीदी उठकर आलमारी के पास गईं और एक कॉपी पेन लाकर मुझे दे दीं.मैं कॉपी पेन खोलकर भजन नोट करने को तैयार हो गया.साधुबाबा तानपुरा बजा गाने लगे-
शब्द का मारा गिर पड़ा,शब्द ने छोड़ा राज,
जिन जिन शब्द विवेक किया,उनका सरि गया काज.
लागी लागी सब कहें,लागी बुरी बलाय,
लागी सोई ज्ञान दे,जो आर पार हो जाय.
तू क्या जाने पीर पराई शब्द की,
तू नहीं जाने पीर पराई भजन की,
शब्द की लागी होय तो जान लो मेरे भाई.
भजन की लागी होय तो जान लो मेरे भाई.
मेला में यों घायल घूमे,घाव नज़र नहीं आई,
काम ज्ञान का बैरी बैठा,भजनों की भी भीड़ लगाई.
शब्द की लागी होय तो जान लो मेरे भाई.
भजन की लागी होय तो जान लो मेरे भाई.
अंका को लागी बंका को लागी,लागी सदन कसाई,
बलक बुखारा को ऐसी लागी,छोड़ दिया बादशाही.
शब्द की लागी होय तो जान लो मेरे भाई.
भजन की लागी होय तो जान लो मेरे भाई.
ध्रुव को लागी,प्रह्लाद को लागी,लागी मीराबाई,
गोपीचंद भर्तृहरि को ऐसी लागी,अंग में भस्मी रमाई.
शब्द की लागी होय तो जान लो मेरे भाई.
भजन की लागी होय तो जान लो मेरे भाई.
पांच को मारे,पच्चीस वश कर ले वो,अनगढ़ ले वो जगाई,
कहें कबीर सुनो भाई साधो,चेत लो शून्य में ध्वजा फहराई.
शब्द की लागी होय तो जान लो मेरे भाई.
भजन की लागी होय तो जान लो मेरे भाई.
तानपुरा की मधुर आवाज़ और भजन में मैं ऐसा खो गया की पता ही नहीं चला की कब अर्पिता के पिताजी,अर्चना,प्रिया और आशीष हमारे पास आ पहुंचे थे.मैं और भजन सुनना चाहता था,परन्तु अर्पिता के पिताजी बोले-नहीं बेटा,देर हो रही है,चलो.फिर कभी सुन लेना.
मैं भजन नोट किया पेज कॉपी से फाड़कर अलग कर लिया और उसे चपतकर अपनी जेब में रख लिया.कॉपी पेन बंद कर मैं दीदी को दे दिया.
किसी दिन साधुबाबा को अपने घर बुलाओ,मैं उनसे बहुत से भजन सुनूंगा-मैं अर्पिता से बोला.वो मेरी बात सुनकर खुश नहीं हुई,बल्कि कुछ चिंतित थी,परन्तु मेरा मान रखने के लिए हाँ कह दी.वो बच्चो को चॉकलेट बाँटने लागी.अभी कभी चॉकलेट बची थी,जिसे अर्पिता ने दीदी को दे दिया-लो दीदी,इसे हमारी और से बाकी बच्चों में बाँट देना.
चंदा सामान ले के आ चुकी थी.दीदी अपने हाथ से मुझे और अर्पिता को बर्फी खिलाई.हमदोनों उनका पैर छूकर आशीर्वाद लिए.हमदोनों ने साधुबाबा के पैर छुए.वो भी हमें खुश रहने का आशीर्वाद दिए.
हमलोग हाल के बाहर आ गये और अपने जूते व् सेंडिल पहनने लगे.दीदी बच्चे और साधुबाबा भी हमें छोड़ने हाल बाहर आ गये.हमलोग अपने जूते सेंडिल पहनकर सबसे विदा लिए और गेट के बाहर आ गये.दीदी गेट बंद कर अपना डायन हाथ हवा में हिलाते हुए बॉय बॉय करने लगीं.लगीं.
अर्पिता के पिताजी गेट खोल दिए-चलो बेटा,अब जल्दी से बैठो गाड़ी में.मैं झुककर मारुती वैन में में भीतर बैठ गया.अर्पिता मेरी बगल में बैठ गई.अर्चना आकर मेरे ठीक सामने बैठ गई और प्रिया उसके बगल में बैठ गई.
अर्पिता के पिताजी पीछे का गेट बंदकर आगे का गेट खोले और आशीष के संग आगे की सीट पर बैठ गये.जैसे ही वो आगे का गेट बंद किये,ड्राइवर गाड़ी स्टार्ट कर दिया और मारुती वैन मेन सड़क पर आकर पूरी स्पीड से दौड़ने लागी.
तुम्हे दीदी को और अनाथालय के बच्चों को आज शाम की पार्टी में बुलाना चाहिए था-मैं अर्चना की तरफ देखते हुए बोला.बोला.
मैं भी चाहती थी कि सब बच्चे आज हमारी पार्टी में शामिल होकर भरपेट खाना खाएं,लेकिन उनके पास पहनने को साधारण कपडे भी नहीं हैं.वो पार्टी में अपने को बहुत असहज महसूस करते,इसीलिए मैंने उन्हें कल सुबह बुलाया है.-अर्पिता बोली.
उसकी बातों में सच्चाई देख मैं चुप हो गया.
कल क्यों बीटा,हम आज ही उन्हें पार्टी देंगे.हम शाम को सबसे पहले अनाथालय में बीस पच्चीस लोगों का खाना भिजवाएंगे,वो बिना परेशानी के वहाँ पर खा लेंगे-अर्पिता के पिताजी हमारी तरफ गर्दन घुमा बोले.
ये तो बहुत अच्छा विचार है-मैं खुश होकर बोला.
हाँ पापा,ये ठीक रहेगा.ये बात तो मेरे दिमाग में आई ही नहीं-अर्पिता बोली.वो भी खुश थी.
मैं सोचा रहा था कि इन अनाथ बच्चों कि मदद करने के लिए हमें कुछ करना चाहिए.इस बाल अनाथालय को बचाने के लिए हमें कुछ करना चाहिए.मैं मन ही मन संकल्प लिया कि इन अनाथ बच्चों कि बेहतरी के लिए और इस बाल अनाथालय को बचाने के लिए मुझसे जो कुछ भी बन पड़ेगा जरुर करूँगा और अपनी पत्नी अर्पिता को भी प्रेरित करूँगा कि वो इन अनाथ बच्चों के उत्थान के लिए और इस बाल अनाथालय को बचाने के लिए जो भी मदद सम्भव हो सके,वो जरुर करे.
दस मिनट में हमलोग घर पहुँच गए.घर का गेट खुला हुआ था.एक मारुती वैन गेट के बाहर एक साइड में खड़ी थी.हमलोगों कि गाड़ी गेट के अंदर प्रवेश कर गई और बरामदे पास जाकर रुक गई.अर्पिता के पिताजी आगे का गेट खोल निचे उतरे और आशीष को नीचे उतार आगे का गेट बंद कर दिए.
अर्पिता के पिताजी पीछे का गेट खोल के बोले-प्रिया तुम और अर्चना पहले उतरो और भीतर जा के आरती की तैयारी करो और अर्पिता की माँ को भी बता दो कि हमलोग आ गए हैं.
प्रिया गाड़ी से नीचे उतरी और उसके बाद अर्चना भी गाड़ी से नीचे उतर गई.दोनों गैलरी से होते हुए घर के अंदर चली गईं.ड्राइवर गाड़ी से नीचे उतर गेट बंद कर गेट से बाहर की ओर चला गया.
अर्पिता और मैं एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुराये.दोनों आज बहुत खुश थे.ख़ुशी के मारे उसके चहरे की गुलाबी रंगत आज और भी ज्यादा बढ़ गई थी.वो अपने दायें हाथ से मेरा बायां हाथ पकड़ धीरे से बोली-तुम खुश हो न ?
हाँ,लेकिन डर भी लग रहा है-मैं कुछ घबराते हुए बोला.
अब किस बात का डर ? अब मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगी,कोई तुम्हे डरा के तो देखे ?-अर्पिता बोली.
पिताजी से डर लगता है और तुमसे भी डर लगता है-मैं बोला.
वो जोर से हंस पड़ी.उसके मोतियो से दांत चमक उठे. तभी प्रिया हमें बुलाने आ गई-आप दोनों चलें,आरती की सब तैयारी पूरी हो गई है.माँ जी आपलोगों का इंतजार कर रही है.
अर्पिता मेरा हाथ छोड़ गाड़ी से नीचे उतरी.मैं भी मारुती वैन से नीचे उतर गया.मैंने गाड़ी का पिछला गेट बाहर से बंद कर दिया.
हम तीनों बरामदे से होते हुए गैलरी में आ गए.कुछ कदम आगे बढ़ने पर घर के मुख्यद्वार के पास पहुँच गए.अर्पिता के माताजी को दो औरते पकड़कर मुख्यद्वार से बाहर गैलरी में लाईं.अर्चना पूजा की थाली लेकर बाहर आई.थाली में दिया जल रहा था.टीका लगे का सामान था ओर एक दिया में कपूर था.अर्चना थाली अर्पिता की माँ को पकड़ा दी ओर थाली से माचिस लेकर कपूर जला दी.अर्पिता के माताजी हुमदोनो को टीका लगाई ओर बहुत ख़ुशी के साथ आरती पूरी कीं.हमदोनों ने उनके चरण छूकर आशीर्वाद लिया.वो हमें बहुत ख़ुशी के साथ आशीर्वाद दीं-तुमदोनों हमेशा खुश रहो और खूब फलो फूलो.थाली वो अर्चना को दें बोलीं-चलो बेटा,अब तुमलोग घर के अंदर प्रवेश करो.हमदोनों घर के अंदर सीधी के पास आ गए.अर्पिता अपनी सेंडिल उतार सीढ़ी के नीचे रख दी.मैं अपना जूता उतारने को झुका तभी प्रिया डाइनिंग हाल से लकड़ी की एक चेयर उठा लाई और मुझसे बोली-साहब,आराम से कुर्सी पर बैठ के जूते उतारो.
मैं चेयर पर बैठकर अपने काले जूते उतारा और फिर मोजा उतारकर उसी में रख दिया.मैं अपने जूते उठाने लगा तो अर्पिता मेरा हाथ पकड़ बोली-तुम छोडो,मुझे रखने दो.वो मेरे हाथ से जूते ले सीढ़ी के नीचे अपनी गोल्डन कलर की सेंडिल के पास रख दी.
दो औरतों के सहारे अर्पिता की माताजी घर के भीतर आ गईं.धीरे धीरे चलते हुए हमलोग अर्पिता के कमरे के पास पहुंचे.उसके कमरे के दरवाजे पर गुलाबी रंग का रेशमी पर्दा टंगा हुआ था.बाकी सभी दरवाजों पर नीले रंग के खूबसूरत परदे टंगे थे.
प्रिया अर्पिता के कमरे की कुण्डी खोल दरवाजा खोल दी और पर्दा दायीं तरफ सरकाते हुए बोली-आप दोनों को शादी की मुबारकवाद.आपदोनो की जोड़ी हमेशा बनी रहे.पहले अर्पिता कमरे में प्रवेश की और फिर मैं कमरे में प्रवेश किया.प्रिया बाहर से गुलाबी पर्दा खींचकर द्वार पर लगाते हुए बोली-सबसे पहले मैं आपलोगों के लिए चाय बना के लाती हूँ.
शेष अगले ब्लॉग में..
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)