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संतान कहलाने का हक़ लड़कियों को भी है (सत्यकथा)

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कल सुबह सात बजे से लेकर रात को आठ बजे तक आश्रम के कार्यों से और लोगों से मिलते जुलते मैं थक गया था.रात को दोनों मोबाइल बंद कर मैं जल्दी सो गया था.सुबह चार बजे मैं उठा और दोनों मोबाइल आन कर चार्ज होने के लिए लगा दिया.घर में सब लोग सो रहे थे.मैं रसोई में जाकर दो गिलास पानी गर्म कर पिया और अपनी सभी नित्य क्रियाओं से निपट लगभग तक एक घंटे तक मैं एकांत में बैठा रहा.संत मार्ग के अनुसार सबके कल्याण के लिए मैंने कुछ गोपनीय क्रियाएँ कीं.सुबह के पौने छह बज रहे थे.दोनों मोबाइल की घंटी बज रही थी.मैंने जाकर एक मोबाइल फोन उठाया.सुप्रिया का फोन था.वो फोन पर बात करते हुए रोने लगी.दो साल पहले उसकी शादी हुई थी.शादी में उसके पिता ने अपनी क्षमता से बढ़कर खर्चा किया था.उनके सिर पर काफी कर्जा हो गया था.शादी के बाद जब रिश्तेदार और कर्जदार उन्हें रुपया लौटाने के लिए परेशान करने लगे तो वो चिंता के मारे हाई वीपी और हार्ट के मरीज हो गए.शादी के दो साल बाद भी लड़केवालों की दहेज़ मांगने की आदत और लड़कीवालों से हमेशा किसी न बहाने से कुछ न कुछ पाने का लालच नहीं गया है,बल्कि दिन-प्रतिदिन और बढ़ ही रहा है.दहेज़ के लिए सुप्रिया को आज भी परेशान किया जा रहा है.सुप्रिया की साल भर की एक प्यारी सी बच्ची है.उस बच्ची के जन्मने की किसी को ख़ुशी नहीं है.उसके परिवार में सबको लड़का चाहिए.सुप्रिया ने मुझे बताया कि वो फिर गर्भवती है और परिवार में सभी लोग कह रहे है कि उन्हें इस बार हर हालत में संतान चाहिए यानि की लड़का चाहिए.उसके सास ससुर और पति सभी उसपर दबाब डाल रहे है कि चौथा महीना चल रहा है,चल के चेक कराओ की गर्भ में लड़का है या लड़की और यदि लड़की है तो गर्भपात कराओ.हमें लड़की नहीं चाहिए.मोबाइल फोन पर सुप्रिया रोते हुए बार बार एक ही बात कह रही है-मैं गर्भपात नहीं कराऊंगीं,चाहे मुझे ये लोग घर से निकाल ही क्यों न दें.
उसकी सारी बात सुनने के बाद मैंने कहा-सुप्रिया,अब तुम ध्यान से मेरी बात सुनो.सबसे पहले तो तुम जागो.तुम सो रही हो.तुम्हारी समस्या का समाधान जागने में है.तुम इतनी पढ़ी-लिखी हो कि तुम्हे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने के ऑफर मिल रहे हैं.तुम उसे स्वीकार करो और घर की चारदीवारी से बाहर निकलो.तुम्हारे घर वालों को भी तुम्हारे पढ़ाने पर कोई आपत्ति नहीं है.घर से बाहर निकलने पर तुम्हारा साहस बढ़ेगा,तुम्हारा हौसला बढ़ानेवाले लोग मिलेंगे और घर में तुम्हारी स्थिति भी मजबूत होगी.रही ईश्वर से प्रार्थना करने की बात तो मैं तुम्हारे लिए ईश्वर से जरुर प्रार्थना करूँगा.वो चुप हो गई और मुझसे विदा ली.मैं सोचने लगा कि स्त्री के लिए विवाह भी एक जुआ है.पूरा जीवन दाव पर लगा के और कर्ज के बोझ तले माता पिता को दबा के भी कोई गारंटी नहीं की कैसा घर और वर मिलेगा ?वैवाहिक जीवन सुखी रहेगा या दुखी रहेगा ?और फिर संतान को लेकर भी अकेले जूझो क्योंकि संतान का मतलब लड़की नहीं सिर्फ लड़का है.कौन लड़केवालों से ये पूछे कि लड़की माता-पिता की संतान नहीं तो क्या है ?क्या है उसका वजूद ? हर लड़की को पढ़लिखकर और जीवन में खूब उन्नति कर खुद ही इन सवालों का जबाब देना होगा.हर लड़की को जन्म से नहीं बलि अब कर्म से ये सिद्ध करना होगा की वो भी लड़को की तरह संतान है.संतान कहलाने का हक़ सिर्फ लड़कों को ही नहीं है,लड़कियों को भी है.
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)