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छूप गया कोई रे-शादी की वो पहली रात-भाग-२२

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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छूप गया कोई रे-शादी की वो पहली रात-भाग-२२
अभी खाना लगने में पंद्रह बीस मिनट का समय लगेगा.मेरे जन्मदिन और शादी के मौके पर क्यों न हम तीनो एक एक गीत सुनाये-अर्पिता मेरे पास आकर बोली.
मैं और अर्चना कुछ बोले नहीं.वो अपने दाहिने हाथ से मेरा बायां हाथ पकड़ बोली-तुमने मेरे जन्मदिन पर एक गीत सुनाने का वादा किया था.
ठीक है,पर पूरा गीत मुझे याद नहीं है-मैं बोला.
वो मेरा हाथ पकड़कर सजे-धजे गुलाबी रंगवाले बिस्तर की तरफ ले जाते हुए बोली-तुम जितना भी गाओगे मुझे ख़ुशी होगी.आज तुम उस अर्पिता के लिए गाओगे जिसे तुम बहुत चाहते हो और जो सौभाग्य से अब तुम्हारी पत्नी बन चुकी है.
वो बिस्तर पर मुझे बैठा दी और खुद भी मेरे बिलकुल पास में मेरी बायीं ओर बिस्तर पर बैठ गई.वो अर्चना की ओर देखते हुए बोली-तू दरवाजे के पास क्यों खड़ी है..तुझे भी आज एक गीत सुनना है..पर्दा लगा दे..और दरवाजा अंदर से भिड़ाकर आजा..
अर्चना बिना कुछ बोले दरवाजे के बाहर का गुलाबी पर्दा खींचकर लगा दी.दरवाजा अंदर से भिड़ाकर वो हमारे पास आकर चुपचाप हमारे सामने कुर्सी पर बैठ गई.
अर्पिता मेरे तरफ देखते हुए बोली-पहले तुम एक गीत सुनाओ,फिर मैं एक गीत सुनाऊँगी और फिर अर्चना एक गीत सुनाएगी.
मैंने पहले अर्चना के गुमसुम चेहरे की और देखा.वो अपनी आँखों की पलकें झुका ली.मैंने अर्पिता के मुस्कुराते हुए और ख़ुशी से चमकते हुए गुलाबी मुखड़े की तरफ देखते हुए मैंने एक पुरानी फ़िल्म “ये रात फिर ना आयेगी” का ये गीत गाना शुरू किया-
मेरा प्यार वो हैं के मर कर भी तुम को
जुदा अपनी बाहों से होने ना देगा
मिली मुझ को जन्नत तो, जन्नत के बदले
खुदा से मेरी जान तुम्हें माँग लेगा
जमाना तो करवट बदलता रहेगा
नये जिंदगी के तराने बनेंगे
मिटेगी ना लेकिन मोहब्बत हमारी
मिटाने के सौ सौ बहाने बनेंगे
हक़ीकत हमेशा हक़ीकत रहेगी
कभी भी ना इस का फसाना बनेगा
मेरा प्यार वो हैं के मर कर भी तुम को
जुदा अपनी बाहों से होने ना देगा
मिली मुझ को जन्नत तो, जन्नत के बदले
खुदा से मेरी जान तुम्हें माँग लेगा
तुम्हें छीन ले मेरी बाहों से कोई
मेरा प्यार यूँ बेसहारा नहीं हैं
तुम्हारा बदन चाँदनी आ के छू ले
मेरे दिल को ये भी गँवारा नहीं है
कोई भी अगर तुम से आ के मिले तो
तुम्हारी कसम हैं मेरा दिल जलेगा
मेरा प्यार वो हैं के मर कर भी तुम को
जुदा अपनी बाहों से होने ना देगा
मिली मुझ को जन्नत तो, जन्नत के बदले
खुदा से मेरी जान तुम्हें माँग लेगा
मुझे इतना ही याद था,इसीलिए इतना ही गाकर चुप हो गया.वो मंत्रमुग्ध सी होकर सुन रही थी.मेरे चुप होते ही बोल पड़ी-कितना अच्छा गाते हो.वो अपने दोनों हाथों में मेरा बायां हाथ थाम ली.उसके हाथों की चूड़ियाँ खनखना उठीं.
अब तुम्हारी बारी है.तुम कोई गीत सुनाओ-मैं बोला.
अर्पिता मेरी ओर देखते हुए अपनी मधुर आवाज में फ़िल्म “दिल्लगी” का गीत गाने लगी-
मैं कौन सा गीत सुनाऊँ,क्या गाऊं,
जो पिया बस जाए,तेरे तन मन में
खिल जाए कोई कलियाँ,हाय कलियाँ
बहार ले आये सूनी बगियन में
ये कैसे अचानक बिना कोई आहट
चले आये हो तुम मेरी जिंदगी में
तुम्हे आज पाकर मैं सब कुछ भूलाकर
मगन हो के डूबी हुयी हूँ ख़ुशी में
कितने ही रंग सलोने हाय,
सलोने बन गए है मेरे खाली सावन में
मैं कौन सा गीत सुनाऊँ,क्या गाऊं,
जो पिया बस जाए,तेरे तन मन में
खिल जाए कोई कलियाँ,हाय कलियाँ
बहार ले आये सूनी बगियन में
कभी तुम सहारा बनोगे हमारा
मैं ये बात कल तक नहीं मानती थी
मगर आज कैसे ये लगता है जैसे
मैं हर एक जनम में तुम्हे जानती थी
लगता है सारी दुनिया,सारी दुनिया,
ढल गई है सज के,जैसे तन मन में
मैं कौन सा गीत सुनाऊँ,क्या गाऊं,
जो पिया बस जाए,तेरे तन मन में
खिल जाए कोई कलियाँ,हाय कलियाँ
बहार ले आये सूनी बगियन में
अर्पिता ने आज इतने मन से और खुशी से गाया था कि गीत के बोल मेरे तन मन में प्रेम का रस घोल दिए.उसके दोनों हाथ थाम मैं बोला-आज तुम्हारी आवाज में जादू सा असर है.तुम्हारी मधुर आवाज में मैं खो गया था.कितने मन से तुमने गाया है..
तुमने आज पूरे मन से मेरा गीत सुना है,इसलिए ऐसा कह रहे हो-अर्पिता हंसने लगी.
मुझे तो ऐसा लगा कि जैसे मेरे दिल में बैठ के गा रही हो-मैं उसे देखते हुए बोला.
मेरा सौभाग्य होगा कि मैं तुम्हारे दिल में हमेशा बैठ के गाउँ-वो मेरे कंधे पर अपना सिर रख बोली.वो बहुत भावुक हो गई थी.
अर्चना अपना गला साफ करते हुए अपनी उपस्थिति का एहसास करायी.मैं शर्म से झेंप गया.अपनी झेंप मिटने के लिए मैं अर्चना की तरफ देखते हुए बोला-अर्चना,अब तुम्हारी बारी है.अब तुम कुछ सुनाओ.
अर्चना फिर हल्के से अपना गला साफ की और फ़िल्म “रज़िया सुल्तान” का गीत गाकर सुनाने लगी-
ऐ दिल-ए-नादान, ऐ दिल-ए-नादान
आरज़ू क्या हैं, जुस्तजू क्या हैं
हम भटकते हैं, क्यों भटकते हैं, दश्त-ओ-सेहरा में
ऐसा लगता हैं, मौज प्यासी हैं अपने दरियाँ में
कैसी उलझन हैं, क्यों ये उलझन हैं
एक साया सा, रूबरू क्या हैं
ऐ दिल-ए-नादान, ऐ दिल-ए-नादान
आरज़ू क्या हैं, जुस्तजू क्या हैं
क्या कयामत हैं, क्या मुसीबत हैं
कह नहीं सकते, किस का अरमां हैं
जिंदगी जैसे खोई खोई हैं, हैरां हैरां हैं
ये ज़मीं चूप हैं, आसमां चूप हैं
फिर ये धड़कन सी चार सू क्या हैं
ऐ दिल-ए-नादान, ऐ दिल-ए-नादान
आरज़ू क्या हैं, जुस्तजू क्या हैं
ऐ दिल-ए-नादान, ऐसी राहों में कितने काँटे हैं
आरजूओं ने हर किसी दिल को दर्द बाँटे हैं
कितने घायल हैं, कितने बिस्मिल हैं
इस खुदाई में एक तू क्या हैं
ऐ दिल-ए-नादान, ऐ दिल-ए-नादान
आरज़ू क्या हैं, जुस्तजू क्या हैं
अर्चना ने इतनी इतनी मधुर ओर लयबद्ध स्वर में ये गीत सुनाया कि हमदोनों उसे गाते हुए एकटक निहारते रहे ओर जब वो गीत ख़त्म की तो हमदोनों वाह..वाह..कहते हुए एक दूसरे का हाथ छोड़ ताली बजाने लगे.अर्पिता के सोने और लाल कांच की चूड़ियों से भरे हाथ खनखना उठे.अर्चना कुछ न बोलकर बस मुस्कुराने लगी.वो अब कुछ खुश लग रही थी.
दीदी,चलिए खाना लगा दिया है-प्रिया दरवाजा खोलकर अंदर आते हुए बोली.
हम तीनों उठकर दरवाजे की तरफ चल दिए.कमरे से बाहर आकर हम डाइनिंग हाल की ओर चल दिए.मैं डाइनिंग टेबल के पास पहुंचकर बाथरूम जाने की जरुरत महसूस किया.मैं बाथरूम होकर और साबुन से हाथ धोकर आया.
अर्पिता अपने पासवाली कुर्सी पर मुझे बैठने का इशारा की.मैं कुर्सी खींचकर उसके पास बैठ गया.वो मेज से एक छोटा सा लाल तौलिया उठाकर मेरी जांघ पर फैला दी.दोपहर की तरह इस बार वो मेरी जांघ पर चिकोटी नहीं कटी.मैंने रहत कि साँस ली.मेरी जांघ पर वो मेरे लिए एक थाली में पूड़ी,चावल और दो तरह की सब्जी एक कटोरी में निकाल के रखी थी.अर्पिता और अर्चना एक थाली में अपने लिए खाना निकलकर ले चुकीं थीं.मेज पर कई तरह के व्यंजन बड़ी थालियों में रखे हुए थे.
अर्पिता पूड़ी का एक छोटा टुकड़ा सब्जी से लगा मेरे होंठों से सटा दी.मैं चुचाप खा लिया.वो दुबारा पूड़ी एक टुकड़ा सब्जी से लगा मेरे होंठों से सटा दी.मैं अपना मुंह खोल फिर चुपचाप खा लिया.मुझे बहुत शर्म लग रही थी,लेकिन उसके नाराज हो जाने का भय सता रहा था,इसीलिए चुपचाप उसके हाथ से दो कौर खा लिया.
मुझे बहुत तेज भूख लगी थी.मैं अपने हाथ से खाना खाने लगा.अर्चना भी खाना शुरू कर दी.मैं अर्पिता की तरफ देख पूछा-तुम खाना क्यों नहीं खा रही हो ?
वो मेरे कान के पास अपना मुंह सटा धीमे से बोली-तुम भी दो बार मुझे खिलाओ,तभी अपने हाथ से खाना खाऊँगी.
उसकी बात सुनकर मैं घबराने लगा.मैं जानता था कि वो मेरे खिलाये बिना नहीं खायेगी.मैंने इधर उधर देखा,कोई नहीं था और अर्चना खाने में व्यस्त थी.मैं झट से अपनी थाली से पूड़ी का एक छोटा सा टुकड़ा लेकर सब्जी से छुआया और उसके मुंह में डाल दिया.मैं जल्दी से फिर दुबारा पूड़ी के एक टुकड़ा ले सब्जी से छुआया और उसके मुंह में डाल दिया.मैं गहरी साँस लिया और सोचा कि चलो एक मुसीबत से छुटकारा मिला.
अर्पिता खिलखिला के हंस पड़ी.अर्चना भी उसके साथ हंसने लगी.प्रिया रसोई से आकर पूछने लगी-दीदी क्या हुआ ? कोई मजेदार चुटकुला आपने सुना क्या,जो इतना हंस रही हैं ?
तुम्हारे साहिब चोरी छुपे से अपनी बीबी को नहीं बल्कि अपनी पड़ोसन को डरते हुए खाना खिला रहे थे-अर्पिता हँसते हुए बोली.
प्रिया भी उन दोनों का साथ देते हुए हंसने लगी.मैं शर्म और संकोच से झेंपते हुए चुपचाप खाना खाता रहा.मुझे गुस्सा आ रहा था,लेकिन अपने ऊपर कंट्रोल किये रहा.
मेरे साहिब जैसे भी हों दीदी,लेकिन एक अनमोल हीरा हैं.छोटे से बच्चे की तरह मासूम हैं.उनकी इसी अदा पर तो आप फ़िदा रहती हैं-प्रिया मुस्कुराकर मेरी और देखते हुए बोली.
तू दूसरी तरफ देख.उसे नजर लगायेगी क्या ?-अर्पिता प्रिया को प्यार से झिड़कते हुए बोली.
दीदी,आज तो आपकी ही नजर इन्हे लगनी हैं.ईश्वर इनकी रक्षा करें-प्रिया हँसते हुए बोली.
चल यहाँ बैठ के खाना खा और खाना खाकर काफी बना देना-अर्पिता बोली.
प्रिया कुछ सकुचाते हुए कुर्सी पर बैठकर एक थाली में खाना निकाली और खाने लगी.
घर में सबने खाना खा लिया ?-अर्पिता प्रिया से पूछी.
हाँ दीदी,माँजी,बुआजी और मौसीजी सबको मैं खाना ले जा के दे चुकीं हूँ.वो लोग मंजी के कमरे में खाना खा रहे हैं-प्रिया खाना खाते हुए बोली.
मैं खाना खा चूका था.अर्पिता एक प्लेट में मुझे दो गुलाबजामुन खाने को दी.
नहीं,मैं अब कुछ नहीं खाऊंगा.मेरा पेट भर गया हैं-मैं बोला.
वो अपने लिए एक प्लेट में गाजर का हलवा निकाल ली.एक चम्मच हलवा वो अपने प्लेट से निकाल मेरे होंठो से सटा दी-लो आज थोडा सा मीठा जरुर खाना चाहिए.मैं मुंह खोल खा लिया.वो एक चम्मच हलवा मुझे फिर दुबारा खिलाई.मैं अपनी जांघ पर पड़ा लाल तौलिया उठाकर मेज पर रख दिया और डाइनिंग टेबल से उठकर वाशबेसिन पर गया और कुल्ला कर मुंह साफ किया.खाने में बहुत ज्यादा घी और तेल था जो हाथ से चिपक गया था,इसीलिए मैं वहाँ पर रखे साबुन से खूब अच्छी तरह से हाथ धोया.
मैं आकर फिर डाइनिंग टेबल पर बैठ गया.थोड़ी देर बाद अर्पिता,अर्चना और प्रिया तीनो मेज से उठकर वाशबेसिन पर हाथ धोने चली गईं.वाशबेसिन से चूड़ियों के खनकने की आवाज आती रही.अर्पिता कुछ देर बाद हाथ धोकर मेरे पास मेरे पास आ गई.मेज पर रखे छोटे से लाल तौलिये से वो हाथ पोंछी और फिर तौलिया मेज पर रख दी.
प्रिया मेज से आसमानी कलर का एक छोटा तौलिया उठा अपने हाथ पोंछी और फिर तौलिया कुर्सी के ऊपर सूखने के लिए डाल दी.प्रिया मेज पर से खाने का सब सामान उठा रसोई में ले जाने लगी.अर्पिता मेरे बायीं तरफ कुर्सी पर बैठ गई.
अर्चना मेज पर से पीले रंग का एक तौलिया उठा हाथ पोंछने लगी.हाथ पोंछकर प्रिया तौलिया मेज पर रख दी और फिर दीवाल घड़ी देखते हुए बोली-रात के साढ़े दस बज रहे हैं.तुमलोग अब आराम करो मैं चलती हूँ.तुमदोनों कल दोपहर को मेरे यहाँ खाना खाओगे.
अच्छा ठीक है.लेकिन अभी कुछ देर तू बैठ तो सही.कॉफी पी के जाना-अर्पिता बोली.
कुछ ही देर में मेजपर से खाने का सब सामान हट गया.सभी झूठे बर्तन प्रिया मेज पर से उठा रसोईघर में ले गई.वो लकड़ी की चमचमाती हुई डाइनिंग टेबले को कपडे से पोंछकर चमका दी.प्रिया पोंछा लेकर रसोई में चली गई.
अर्पिता और अर्चना अपनी मातृभाषा में कुछ बातें कर रहीं थीं,जो मेरी समझ से परे थीं.मैं अर्पिता के दायें कान का सोने का लर वाला हिलता डुलता सुंदर झुमका,बालों का सजा-धजा बड़ा सा जुड़ा और उसके सुंदर चेहरे की शोभा बढ़ाता माथे के बीचोबीच सजा सोने का मांगटीका.तभी मेरा ध्यान उसके बालों की छोटी-छोटी कई काली घुंघराली लटों पर गया जो उसकी गर्दन के पास,कान के पास और माथे के दोनों ओर थीं.ये उसकी सुंदरता को ओर बढ़ा रहीं थीं.मेरी नाक की तरह से उसकी भी नाक लम्बी और सुंदर थी.मेरे होंठों की तरह से उसके रसभरे होंठ भी प्राकृतिक रूप से गुलाबी थे.वो अपने होंठों पर लिपस्टिक नहीं लगाती थी.
अर्चना से बात करने में व्यस्त अर्पिता का ध्यान जब मेरी ओर गया और उसने देखा कि मैं उसे बड़े ध्यान से देख रहा हूँ तो वो मुस्कुराते हुए मेरी ओर देखने लगी.मैं शर्म से झेंपकर अपना सिर झुका लिया.अर्पिता हरिवंशराय बच्चन जी के मधुशाला की ये पांक्तिंयां बोली-
आज मिला अवसर, तब फिर क्यों मैं न छकूँ जी-भर हाला
आज मिला मौका, तब फिर क्यों ढाल न लूँ जी-भर प्याला,
छेड़छाड़ अपने साकी से आज न क्यों जी-भर कर लूँ,
एक बार ही तो मिलनी है जीवन की यह मधुशाला।।

मैं शर्म ओर संकोच से मुस्कुराते हुए अर्पिता की तरफ देखा.वो शरारत से मुस्कुराते हुए बोली-तुम मुझे देख के शरमा जाते हो.मुझे छूते हुए घबराते हो.तुम मुझे छेड़ोगे नहीं और मैं तुम्हे छोड़ूंगी नहीं..
दीदी आइये,दूध गर्म है,कॉफी अपने हाथ से डाल दीजिये-प्रिया रसोई के अंदर से आवाज दी.
मैं अभी तुमलोगों के लिए कॉफी बना के लाती हूँ-अर्पिता कुर्सी से उठते हुए बोली.वो रसोईघर की तरफ चली गई.रसोईघर के पास खड़ी हो वो अपनी डोगरी भाषा में अर्चना से कुछ बोली और फिर रसोईघर के अंदर चली गई.
डोगरी भाषा सुनकर मुझे याद आया कि छतपर पड़ोस का छोटा बच्चा उसी भाषा में कुछ बोला था.अपनी माँ की तरफ ईशारा किया था.अर्पिता ने गुस्से में आकर अपनी भाषा में उसे बहुत कुछ कहा था.मेरी समझ में कुछ नहीं आया था.मेरे मन में जिज्ञासा हुई कि अर्चना से इस विषय पर कुछ बात करूँ.
छत पर से शहनाई की मधुर और धीमी आवाज आ रही थी.हम आराम से एक दूसरे से बात कर सकते थे.मैं उठकर अपनी कुर्सी अर्चना के पास खिंच लिया और उसपर बैठते हुए बोला-मुझे अब तुमसे डोगरी भाषा सीखनी पड़ेगी.कौन क्या बोल रहा है,कुछ पता ही नहीं चल रहा है.कोई मुझे गाली भी देगा तो पता नहीं चलेगा.
अर्चना मेरी बात सुनकर मुस्कुराने लगी.वो मेरी तरफ देखते हुए बोली-आपको गाली देने की किसमे हिम्मत है..रही बात डोगरी भाषा सिखाने की तो वो मैं सिखा दूंगी..वो गहरी साँस खिंच के आगे बोली-मैं तो आपको बहुत कुछ सिखाना चाहती थी,लेकिन आपने मुझे मौका कहाँ दिया.मैं आज सुबह मंदिर जाने से पहले आपसे बात करने की बहुत कोशिश की..
छत पर वो पड़ोसवाला छोटा बच्चा डोगरी भाषा में क्या बोला था ? जिसे लेकर अर्पिता का उस बच्चे की माँ से झगड़ा हुआ था-मैं उसकी बात बीच में ही काटते हुए पूछा.मेरी उत्सुकता उसकी निजी बातें सुनने की बजाय बच्चे वाली घटना के बारे में जानने की ज्यादा थी.
अर्चना चुप रही.मैं दुबारा पूछा-उस बच्चे ने अर्पिता को क्या कहा था ?
वो रसोईघर की तरफ देखते हुए धीरे से बोली-अर्पिता को उस बच्चे ने पागल लड़की कहा था.जब अर्पिता ने उस बच्चे से पूछा कि तुमसे किसने कहा तो बच्चे ने अपनी माँ की तरफ ईशारा करते हुए कहा कि माँ तुम्हे पागल लड़की कहती है.
इसी बात को लेकर अर्पिता और उस औरत में झगड़ा हो रहा था ?-मैं पूछा.
हाँ,वो औरत अपनी सफाई दे रही थी कि तुम्हे बचपन से पागलपन के दौरे पड़ रहे हैं.तुम गुस्से में आकर एकदम पागल हो जाती हो.किसी के साथ भी मारपीट कर लेती हो.तुम मानसिक रोग की दवा खा रही हो और नींद की गोलियां खा के सोती हो.मैंने तुम्हे पागल कहा है तो क्या गलत कहा है ?-अर्चना बोली.
क्या उस औरत ने जो कुछ कहा वो सब सच है ?-मैं घबड़ाते हुए पूछा.
वो खामोश रही.मैं अर्चना की ओर देखते हुए बोला-तुम तो उसकी बचपन की सहेली हो.तुम्हे सच मालूम होगा.मुझसे झूठ मत बोलना.क्या उस औरत की कही हुई सब बातें सच हैं ? सच जानने के लिए मैं बेचैन हो उठा.मैं बहुत घबड़ा गया था.
वो मेरी ओर देखते हुए बोली-हाँ,वो सब सच है.मैं सुबह मंदिर जाने से पहले ही तुम्हे सबकुछ बता देना चाहती थी.मैं इसीलिए पांच मिनट के लिए तुम्हे अपने घर ले जाना चाहती थी.लेकिन अर्पिता के पिताजी ने तुम्हे मेरे घर जाने नहीं दिया,क्योंकि उन्हें मुझपे शक था कि मैं तुम्हे घर ले जाकर अर्पिता के पागल होने का राज कहीं न बता दूँ.अर्पिता और उसके पिताजी दोनों ने सच बात छुपाकर तुम्हे धोखा दिया है.अब अर्पिता के साथ रहने पर तुम्हे बहुत खतरा है.वो पागलपन का दौरा पड़ने पर गुस्से में आकर कुछ भी कर सकती है,यहाँ तक कि तुम्हारा गला दबाकर तुम्हारी जान भी ले सकती है.तुम उनके चंगुल में बुरी तरह से फंस गए हो.अब तुम कहीं भाग के नहीं जा सकते हो..अर्पिता और प्रिया को कॉफी लेकर रसोईघर से बाहर निकलते देख अर्चना आगे कुछ न बोल चुप हो गई.
मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था.अर्चना की बातें सुनकर और कुछ रात की गुलाबी ठण्ड लगने से मेरे हाथ पैर कपकपाने लगे.मेरा सिर दर्द कर रहा था और थकान सी लग रही थी.मैं बिस्तर पर जाकर सोना चाहता था.
हमारे पास आकर प्रिया ट्रे मेज पर रख दी,जिसमे तीन कप कॉफी थी.
लो,ये तुम्हारे लिए मैंने स्पेशल कॉफी बनाई है-अर्पिता मेरे पास आकर अपने हाथ में ली कॉफी मुझे पकड़ाते हुए बोली.
मैं दोनों हाथों के सहारे कॉफी का कप थाम लिया.अर्पिता के खुशी से मुस्कुराते हुए चेहरे की तरफ एक नजर मैं देखा और फिर कॉफी पीने लगा.कॉफी में कुछ अजीब सा स्वाद था और कुछ दवा जैसी महक आ रही थी.अर्पिता मेरे पास बैठ गई.प्रिया ट्रे से उठाकर एक कप कॉफी अर्पिता को दी और कॉफी का दूसरा कप उठाकर अर्चना को थमा दी.कुर्सी पर बैठकर वो ट्रे से कॉफी का कप उठाई और मेरी तरफ देख मुस्कुराते हुए पीने लगी.
कप में भरी आधे से ज्यादा कॉफी मैं पी चूका था.मैं अर्पिता से बोला-कॉफी में अजीब सा स्वाद है और दवा जैसी महक आ रही है.
कॉफी ठीक बनी है.मैंने खुद बनाई है-अर्पिता बोली.फिर मेरे सिर के बालों में अपने दायें हाथ की अंगुलियां फेरते हुए बोली-तुम काफी पी के ब्रश कर लो फिर हमदोनों अपने कमरे में सोने चलेंगे.वो कुछ देर तक मेरे सिर के बालों में बड़े प्यार से अपनी अंगुलियां फेरती रही.
मुझे अच्छा लगा,लेकिन मन में उससे बहुत भय भी लग रहा था.अर्चना की कही बातें याद आ रही थीं.मैं मन ही मन बहुत परेशान और भयभीत हो रहा था.
कॉफी पीकर मैं खाली कप मेज पर रख दिया.वो तीनों अपनी मातृभाषा में बातें करते हुए धीरे-धीरे कॉफी का स्वाद ले रही थीं.कॉफी पीकर मुझे बहुत बैचैनी महसूस हो रही थीं.मेरे पेट में हल्का-हल्का दर्द शुरू हो गया.हो.मेरा सिर और आँखें भारी होने लगीं.शरीर में कुछ गनगनाहट सी महसूस हो रही,जैसे असों में बहुत तेजी से खून दौड़ रहा हो.मेरे दिल कि धड़कने तेज हो रहीं थीं और मेरी उतेजना बढ़ती जा रही थीं.मेरे सामने बैठी कॉफी पीती हुई प्रिया मुझे घूमती हुई महसूस होने लगी.मुझे चक्कर आ रहा था.मैंने दीवाल घडी की ओर देखा ग्यारह बजने में दस मिनट कम थे.वो तीनों कॉफी पीकर खाली कप मेज पर रख चुकीं थीं.वो अभी भी किसी विषय पर डोगरी भाषा में बहस कर रहीं थीं.
ग्यारह बजते-बजते मेरी हालत एकदम ख़राब हो गई.उत्तेजना ओर घबराहट के मारे मेरा बुरा हाल था.उत्तेजना के मारे लगता था की कपडे फट जायेंगे ओर दिल इतना तेज धड़क रहा था कि उसका तेजी से धड़कना महसूस हो रहा था.अपनी ख़राब होती जा रही हालत देखकर मैं समझ गया था कि कॉफी में कुछ मिलाकर मुझे पिलाया गया था.
मुझे शरीर में बहुत गर्मी महसूस हो रही थीं.प्यास के मारे मेरे होंठ सुख रहे थे.चक्कर आने के कारण मुझे ठीक से देखने में भी परेशानी हो रही थीं.मैं अपना बाया हाथ ले जाकर पास बैठी अर्पिता के दाहिने हाथ पर रखा और उसका हाथ कस के पकड़ लिया और प्रिया की तरफ देख बोला-पानी..
मुझपर नजर पड़ते ही प्रिया चिल्लाते हुए उठ खड़ी हुई-दीदी,साहिब की आँखें..
अर्पिता हड़बड़ाकर मेरी ओर देखी और देखते ही बहुत घबड़ाते हुए बोली-हे भगवान,ये क्या हो गया..इसकी आँखें तो खून की तरह लाल हो गई है.
अर्चना अपनी कुर्सी से उठकर बहुत तेजी से मेरे पास आई और मुझे ध्यान से देखते हुए बोली-इसकी हालत तो बहुत ख़राब हो गई है.इसकी आँखों में खून उतर आया है.फिर वो अर्पिता की तरफ तरफ देखेते हुए गुस्से से बोली-इडियट..ये क्या किया तूने..वो बहुत सीरियस कंडीशन में है..वो प्रिया की तरफ देखते हुए चिल्लाई-तू तमाशा क्या देख रही है..जा,जल्दी से अंकलजी को बुला के ला..
प्रिया अर्पिता के पिताजी को छत पर से लाने के लिए सीढ़ियों की तरफ भागी.अर्पिता बहुत घबड़ा गई थीं.वो अपने दोनों हाथों में मेरा चेहरा थामकर मेरी लाल हो गईं आँखें देखते हुए बहुत मुश्किल से बोल पाई-ये क्या हो गया है तुम्हे..उसकी आँखों से आंसू टपककर मेरे चेहरे पर गिरने लगे.
मुझे चक्कर आ रहे हैं..और बहुत तेज प्यास लगी है,,-मैं उसके दोनों हाथों को कस के पकड़ इतना ही बोल सका.
अर्चना मेज पर देखीं,वहाँ पर पानी नहीं था.वो मेरे लिए पानी लाने के लिए रसोईघर की ओर तेजी से बढ़ गई.
शेष अगले ब्लॉग में..
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

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