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छूप गया कोई रे-नशीली गोलियों का असर-भाग-२३

सद्गुरुजी
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छूप गया कोई रे-नशीली गोलियों का असर-भाग-२३
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प्रिया अर्पिता के पिताजी को बुलाने के लिए छत पर चली गई थी और अर्चना मेरे लिए पानी लेने के लिए रसोईघर में गई थी.अर्पिता मेरा चेहरा अपने दोनों हाथों में ले रो रही थी.उसकी आँखों से निकले आंसू मेरे चेहरे पर टपक रहे थे.वो रोते हुए बोली-मुझे माफ़ कर दो.मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है.मुझे नहीं मालूम था कि वो गोलियां तुम्हे इतना नुकसान पहुंचाएगी.
अर्पिता के पिताजी तेजी से सीढ़ियाँ उतर कर मेरे पास आते दिखे.वो हांफते हुए मेरे पास पहुंचे.उधर अर्चना शीशे के गिलास में मेरे लिए एक गिलास पानी लेकर आ गई.
क्या हुआ दामाद जी को ?-वो कुछ दूर से अर्पिता से पूछे.अर्पिता कुछ बोली नहीं.
उसके पिताजी मेरे पास आ गए.जब उनकी नज़र मेरी लाल हो गईं आँखों पर पड़ी तो वो चौक गए-अरे,इसकी आँखों को क्या हो गया है..आँखों में कुछ पड़ तो नहीं गया है.वो मेरी आँखे अंगुली के सहारे फैलाकर चेक करने लगे.
बेटा,और कोई दिक्कत हो रही है-अर्पिता के पिताजी कुछ घबराते हुए मुझसे पूछे.
पापाजी,मुझे चक्कर आ रहे हैं..मेरा पेटदर्द कर रहा है..और बहुत उतेजना महसूस होरही है-मैं उनका हाथ पकड़कर बोला.मेरी आँखों से आंसू छलकने लगे.
ये किसी मेडिसिन का साइड इफेक्ट लगता है..इतना कहकर वो अर्चना की तरफ देख गुस्से में आकर पूछे-क्या खिलाया है इसे..? सच सच बताओ..
अर्पिता रोते हुए बोली-प्रिया ने आपके क्लिनिक से लाकर दो गोलिया दीं थीं.मैंने वही गोलियां कॉफी में मिलाकर इसे पिला दी थी.मुझे नहीं मालूम था कि वो इतना नुकसान करेंगीं.इतना बोलते-बोलते वो जोर से सुबकने लगी.
वो कौन सी गोलियां थीं ?-अर्पिता के पिताजी प्रिया से पूछे.
प्रिया बुरी तरह से घबराते हुए बोली-वही जो आप मेरे मर्द को दिए थे.
किसलिए दिया था ?-अर्पिता के पिताजी चिल्लाकर पूछे.प्रिया कुछ बोली नहीं बस सिर झुका ली.वो डर के मारे थर-थर कांप रही थी.
दवा का खाली रैपर कहाँ हैं ?-वो फिर चिल्लाकर पूछे.
प्रिया भागकर रसोई में गई और दवा का खाली रैपर लाकर अर्पिता के पिताजी को दे दी.
दवा का खाली रैपर देखते ही वो गुस्से के मारे भड़क उठे-सेक्स पॉवर बढ़ाने वाली इतने हाईडोज की दो गोलियां तुमलोगों ने इस बच्चे को दे दी.दिल कर रहा है कि तुमदोनों को मैं दो दो थप्पड़ लगाऊं.
वो गुस्से के मारे दवा का रैपर जमीन पर फेंक दिए और मेरे कंधे पर हाथ रख बोले-बेटा,तुम घबराओ मत.मैं अभी पूरी तरह से चेक करके दवा देता हूँ.तुम पहले उठो और अपने कमरे में चलो.
ये अब कहीं नहीं जायेगा.ये मेरे साथ मेरे घर जायेगा.मैं अच्छे से अच्छा डॉक्टर बुलाऊंगी और इसका विधिवत इलाज कराउंगी-अर्चना पानी का गिलास मेरे होंठों से लगाते हुए बोली.
अर्चना के पिताजी पानी का गिलास उसके हाथ से छीन लिए-तू भी इन दोनों की तरह पागल हो गई है.मुझे इसका इलाज करने दे.इसे अभी पानी नहीं देना है.दवा के साथ पानी पिलाया जायेगा.पहले मैं इसका विधिवत चेकअप करूँगा.
अर्चना मेरे एकदम पास आ बोली-नहीं,मैं इसे ले जाऊंगीं.इस पागल लड़की के पास मैं इसे नहीं छोड़ सकती.ये इसकी जान ले लेगी.
ये तू क्या कह रही है..तू होश में तो है-अर्पिता के पिताजी ऊँची आवाज में बोले.
अर्चना गुस्से से विफरते हुए बोली-होश में आ गई हूँ,तभी तो मैं सच कह पा रही हूँ.सारा मुहल्ला जानता है कि ये बचपन से ही पागल है.इसे पागलपन के दौरे पड़ते हैं.बाप बेटी दोनों ने मिलकर एक सीधे-साधे लड़के को मूर्ख बनाया है.वो अर्पिता कि तरफ देखते हुए बोली-मैं पहले से ही इसे चाहती थी..तुझे सबकुछ मालूम था..फिर भी तूने मुझे धोखा दिया..इसे अपने रूपजाल में फंसा लिया और इसे धोखे में रखकर आज मंदिर में शादी कर ली.
तू ऐसा क्यों बोल रही है.मैंने इससे विधिवत मंदिर में शादी की है-अर्पिता रोते हुए बोली.
अर्चना मेरा बायां हाथ कस के पकड़ मुझे कुर्सी से उठाने की कोशिश करते हुए बोली-ये शादी गैरकानूनी है,क्योंकि तूने इससे एक बहुत बड़ा सच छिपाकर शादी की है और वो सच ये है कि तू पागल है..तू पागल है..
अर्पिता की माताजी अपनी बहन और ननद का सहारा लेकर आते दिखीं.वो हमारे पास आते हुए पूछीं-ये कैसा शोर हो रहा है..क्या बात है..
फिर वो अर्चना की ओर देखते हुए गुस्से में आ बोलीं-बहुत देर से मैं तेरी बकवास सुन रही हूँ..तेरी इतनी हिम्मत हो गई है कि तू मेरे घर में आकर मेरी बेटी को पागल कह रही है..मैं तेरी जबान खिंच लूंगी..
अर्चना जोर से चिल्लाते हुए बोली-किस किस की जबान खिंचोगी..पूरा मुहल्ला इस बात को जानता है कि तुम्हारी बेटी पागल है और मैं भी चीख-चीखकर सबसे कहूंगीं कि वो पागल है..पागल है..
चक्कर आने के वावजूद भी मैं किसी से हिम्मतकर कुर्सी से उठा और अपने दायें हाथ से अर्चना के गाल पर कसकर दो चांटे लगा दिया.शरीर की हालत ख़राब होने के वावजूद भी मैं पूरे जोर से चिल्लाकर बोला-तू अगर मेरी पत्नी को फिर से पागल बोली तो मैं तेरा गला दबा दूंगा.वो जैसी भी है अब मेरी पत्नी है.मैंने उससे विधिवत शादी की है.
मैं तो तुम्हारे भले के लिए कह रही थी-अर्चना अपना बायां गाल सहलाते हुए रोने लगी.
मैं अपना भला बुरा खुद सोचूंगा.तुम कौन होती हो मेरे बारे में कोई फैसला करनेवाली..-मैं गुस्से में आकर चीखा.
सबलोग आश्चर्य से मुझे बस देखे जा रहे थे.अर्पिता न जाने किस भय से कांप रही थी.मैं उसके नजदीक जा किसी तरह से अपने को सँभालते हुए अपने दायें हाथ से उसकी आँखों से बहते आंसू पोंछते हुए बोला-तू इतनी कायर क्यों हो गई है..मैंने तो उस अर्पिता से प्यार किया है और उस अर्पिता से शादी की है जो बहुत बहादुर है..जो किसी से नहीं डरती..जिसका गुस्सा,जिसका पागलपन मेरे जैसे डरपोंक आदमी में भी साहस भर देता है..दुनिया भले ही उसे पागल समझे पर मैं उस अर्पिता से प्यार करता हूँ..
अर्पिता मेरा बायां हाथ अपने दोनों हाथों से कस के पकड़ ली.उसके भय से कांपते शरीर में साहस आने लगा.उसका झुका सिर ऊपर उठने लगा.
मैं अपने दायें हाथ की तर्जनी अंगुली से अर्चना की तरफ ईशारा कर पूरे जोर से चिल्लाया-मुझे नफ़रत है ऐसे मतलबी और धोखेबाज़ दोस्तों से..ये तुम्हारी दोस्त नहीं दुश्मन है..इसे इसी वक़्त घर से बाहर निकाल दो..
तभी तेजी से पूरा डाइनिंग हॉल मेरे आँखों के सामने गोल-गोल घूमने लगा और मैं असंतुलित होकर फर्श पर लुढक गया.मेरा बायां हाथ अर्पिता के हाथों से छूट गया.मेरा सिर अर्पिता के माँ के पैरो में चरणों में जा गिरा.मैं दोनों हाथों से कस के उनके पांव पकड़ लिया.कमरा मेरी आँखों के सामने घूमता रहा.सब के सब दौड़ के मेरे पास चले आये.अर्पिता और उसके पिताजी सहारा देकर मुझे खड़ा किये.
क्या हुआ बेटा..तू ठीक तो है न..-अर्पिता की माँ मुझे इस तरह से गिरते देख घबड़ा गईं थीं.
माँ,मुझे चक्कर आ रहा है..मुझे बहुत घबराहट हो रही है..-मैंने उनकी तरफ देखा.
क्या हुआ है इसे..इसकी आँखें क्यों लाल हैं..ये इतना घबड़ाया हुआ क्यों है..-अर्पिता की माँ मेरी ख़राब हालत देखकर बहुत घबड़ा गईं.
अर्पिता के पिताजी बोले-मैं बाद में तुम्हे सब बातें बताऊंगा.पहले इसका विधिवत चेकउप और इलाज जरुरी है.अर्पिता इसे अपने कमरे में ले चलो.
अर्पिता अपने पिताजी की मदद से मुझे पकड़कर अपने कमरे की ओर ले जाने लगी.कमरे का दरवाजा खुला हुआ था.प्रिया भागकर दरवाजे के पास पहुंची और गुलाबी पर्दा पूरा दायीं ओर सरका दी.कमरे के अंदर घुसते ही गुलाब की गंध सांसों में सामने लगी.
अर्पिता मेरी दायीं बाजू अपने दोनों हाथो से पकडे हुए थी ओर उसके पिताजी अपने दोनों हाथों से मेरी बायीं बाजू पकडे हुए थे.मुझे कमरे के अंदर बिस्तर के पास ले जाकर अर्पिता के पिताजी बोले-सबसे पहले इसके कपडे उतारने होंगे.इतना कहकर वो मेरा बायां हाथ छोड़ दिए और अपने दोनों हाथों के सहारे मेरी बैगनी रंग की टाई खोलने लगे.टाई उतारकर वो कुर्सी पर रख दिए.मेरे नीले रंग के कोट का बटन खोलकर उसे बाँहों से बाहर कर दिए और कुर्सी के ऊपर रख दिए.
मेरे बाएं हाथ में पहनी हुई गोल्डन कलरवाली घडी उतार वो मेज पर रख दिए.अर्पिता के पिताजी मेरी कमीज के बटन खोलने लगे तो मुझे बहुत शर्म महसूस होने लगी.दवा के असर के कारण नीचे के वस्त्रों के भीतर बुरी तरह से उत्तेजित था.वो मेरी सफ़ेद शर्ट के सभी बटन खोल उसे मेरी बाँहों से बाहर कर कुर्सी पर रख दिए.
मेरी पूरी बनियान पसीने से भींगी हुई थी.वो मेरी बनियान ऊपर करते हुए बोले-पूरी बनियान पसीने से भींग गई है,इसे उतारो.
अपने दोनों हाथों से पकड़ मैं गीली बनियान अपनी गर्दन से बाहर निकाल कर कुर्सी पर डाल दिया.दिया.उत्तेजना कारण आगे से अपनी तनी हुई नीली पैंट देख मैं बहुत शर्मा गया और बिस्तर की ओर मुंह कर लिया.
तुम इसे पकडे रहो.मैं अपना बैग ले के आता हूँ.प्रिया तुम रसोई से एक गिलास गर्म पानी पानी ले के आओ-अर्चना के पिताजी बोले.
अर्पिता खनखनाती चूड़ियों से भरे हाथों से मेरा बायां बाजू पकड़ ली.उसके हाथों के स्पर्श से मुझे मुझे अजीब सी गुदगुदी होने लगी.उअके हाथों का स्पर्श अच्छा लग रहा था,परन्तु मैं बहुत बैचैन सा था.मुझे अभी भी चक्कर आ रहा था.
चलो मेरी ओर मुंह करो और बिस्तर पर बैठ जाओं-पीछे से अर्पिता के पिताजी की आवाज आई.
अर्पिता मेरा बाजू छोड़ दी.मैं पीछे की ओर घूमकर बिस्तर पर बैठ गया.जांघों के बीच उठी उत्तेजना से मुझे शर्म आ रही थी,इसीलिए मैं कुर्सी पर से अपनी शर्ट उठा अपनी जांघ पर रख लिया.अपनी दयनीय स्थिति पर मुझे रोना आ रहा था.
अपना काला बैग बिस्तर पर अर्पिता के पिताजी ने उसे खोला और उसमे से बीपी नापनेवाला यन्त्र निकाले.मेरी बायीं बांह में बीपी नापनेवाला यन्त्र का पैड बांधकर आला का एक सिर वहाँ लगा दिए और दूसरा सिरा अपने कानों में लगा लिए.कुछदेर तक वो यन्त्र के पम्प के जरिये हवा भरते रहे.यन्त्र का पारा ऊपर की तरफ चढ़ने लगा और मेरी बांह कसने लगी.वो यन्त्र को हवा को धीरे धीरे छोड़ते हुए अपना ध्यान अपने कानो की तरफ लगा दिए.मेरी कसी बांह ढीली होने लगी.इसी तरीके से वो एक बार फिर बीपी चेक किये.फिर अपने कानों से और मेरी बांह पर से आला हटा दिए.मेरी बांह में बंधा हुआ बीपी पैड खोल के निकाल लिए.
बीपी बहुत बढ़ गया है,इसीलिए चक्कर आ रहा है.ये ओवरडोज दवा देने का रिएक्शन है.अभी बच्चा है,इसीलिए इसका शरीर दवा के ओवरडोज को झेल नहीं पा रहा है.मैं अभी इसे दवा खिला देता हूँ,चक्कर आना बंद हो जायेगा-अर्पिता के पिताजी बोले.
इसने कैसी दवा खाई है और क्यों खाई है ?-अर्पिता की माताजी अपनी बहन और ननद का सहारा लेकर मेरे करीब आते हुए पूछीं.
बैग में कोई दवा ढूंढते हुए अर्पिता के पिताजी बोले-इसे दवा तुम्हारी बेटी ने खिलाई है और क्यों खिलाई है..ये तो उसीसे पूछो.
अर्पिता की माँ अर्पिता को गुस्से से घूर कर देखने लगी.अर्पिता शर्म से अपना सिर झुका ली.
दवा के दो रैपर से एक एक सफ़ेद रंग की छोटी बड़ी टिकिया निकाल मेरे दायें हाथ में रखते हुए बोले-लो बेटा,इसे खा लो.अभी दस पंद्रह मिनट में चक्कर आना बंद हो जायेगा,लेकिन तुम्हारी उत्तेजना दो दिन तक जानेवाली नहीं है.आज और कल दो दिन तुम्हे बहुत हल्के पावर की नींद की दवा खानी पड़ेगी.मैं तुम्हे थोड़ी देर बाद आकर नींद की एक डोली दे दूंगा.
मैं दवा की दोनों टिकिया मुह में डाल लिया और प्रिया के हाथ से शीशे के गिलास में भरा पानी ले पूरा पानी पी गया.पानी हल्का सा गर्म था.मुझे बहुत तेज प्यास लगी थी,इसीलिए पानी पीने में बहुत अच्छा लग रहा था.मैं खाली गिलास प्रिया को पकड़ा दिया.
हे भगवान..इस बच्चे को इसने ऐसी दवा खिला दी..ये तो किसीदिन उसकी जान ही ले लेगी..इसके अंदर तो जरा भी शर्मोहया नहीं है-अर्पिता की बुआजी बिगड़ते हुए बोलीं.
तुझे ये दवा कौन लाकर दिया..दोष तो दवा लानेवाले का भी कम नहीं है-अर्पिता की मौसी पूछीं.
अर्पिता कुछ बोली नहीं.वो अपना सिर झुकाये रही.प्रिया डर के मारे थर-थर कांप रही थी.
इसे मेरे क्लिनिक से दवा लाकर प्रिया ने दी थी.अब ये डॉक्टर हो गई है-अर्पिता के पिताजी अपना बीपी,दवाएं और आला आदि सब सामान अपने काले रंग के बैग में रखते हुए बोले.
अर्पिता और प्रिया दोनों की हालत खराब थी.दोनों चुपचाप सिर झुकाये खड़ीं थीं.
अर्पिता की माँ गुस्से से भरकर बोलीं-तुमदोनों मेरे कमरे में चलो.मैं इस बच्चे के सामने वो सब नहीं कह पाऊँगी,जो कहना चाहती हूँ.
अर्पिता,तुम अपनी दवा खाओ और जाकर अपनी मम्मी के कमरे में सो जाओ-अर्पिता के पिताजी बोले.
मैं अपने पति को छोड़कर कहीं नहीं जाउंगी.मैं आज अपनी दवा भी नहीं खाऊंगी.मैं रातभर जागकर इनकी सेवा करुँगी और अपनी गलती का प्रायश्चित करुँगी-अर्पिता रुआंसे स्वर में बोली.
नहीं,हरगिज नहीं..इसकी हालत ठीक नहीं है..इसे दो दिन तुम डिस्टर्व नहीं करोगी..ये दो दिन आराम करेगा तभी अपने घर जानेलायक हो पायेगा..-अर्पिता के पिताजी बोले.
नहीं..मैं इसे अकेला नहीं छोड़ूंगी.मैंने आज विवाह के समय कसम खाई है कि मैं सुख-दुःख में आजीवन इसका साथ दूंगी-अर्पिता बोली.
ये अकेला क्यों रहेगा.दरवाजा खुला रहेगा.मैं हर घंटे-दो घंटे पर आके चेक करता रहूँगा कि इसकी हालत कैसी है-अर्पिता के पिताजी बोले.
मैं इसके साथ इसी कमरे में रहूंगी.ये मेरा अंतिम निर्णय है.अब इस बारे में कोई भी कुछ नहीं कहेगा-अर्पिता आवेश में आकर बोली.
हे भगवान..क्या समय आ गया है..आज के बच्चे कितने निर्लज्ज हैं..माँ-बाप के सामने ऐसी बातें करते हैं-अर्पिता की बुआजी बोलीं.
जाने दो..जब दोनों बच्चों की यही मर्जी है तो इन्हे इसी कमरे में साथ रहने दो..वो दोनों शादी शुदा हैं..कोई चोरी-छुपे तो मिल नहीं रहे हैं-अर्पिता की मौसी बोलीं.
अर्पिता के पिताजी बोले-नहीं..इस हालत में नहीं..दो दिन इन्हे संयम से काम लेना होगा.फिर वो प्रिया की तरफ देख बोले-जाकर एक गिलास और गर्म पानी ले आ.
मुझे चक्कर आना बंद हो गया था,लेकिन उत्तेजना पहले की भांति बरक़रार थी.
बेटा-चक्कर आना बंद हुआ-अर्पिता के पिताजी पूछे.
जी,अब चक्कर नहीं आ रहा है-मैं बोला.
वो अपने हाथ से मेरी आँखे चेक करते हुए बोले-आँखे भी अब नार्मल हो रही हैं.मैं एक आई ड्रॉप लाकर दो-दो बूंद आँखों में डाल देता हूँ.आँखे ठंडी रहेंगी.
प्रिया शीशे के गिलास में एक गिलास पानी ले के आ गई.
मैं अभी एक दवा ले के आता हूँ-अर्पिता के पिताजी बैग लेकर कमरे से बाहर निकल गए.
शेष अगले ब्लॉग में..
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

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