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छूप गया कोई रे-वो नींद में जाने वाली रात-भाग-२४

सद्गुरुजी
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छूप गया कोई रे-वो नींद में जाने वाली रात-भाग-२४
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थोड़ी देर बाद एक छोटी सी टेबलेट लाकर मेरे दायें हाथ पर रख दिए-लो बेटा,इसे खा लो.
मैं टेबलेट मुह में डाल प्रिया के हाथ से पानी का गिलास लेकर गोली गले के नीचे उतार दिया और पूरे गिलास का गर्म पानी पी गया.खाली गिलास मेरे हाथ से प्रिया ले ली.
बेटा,अगर तुम्हे बाथरूम जाना हो तो जा के हो आओ,क्योंकि अब तुम्हारी नींद सुबह ही खुलेगी.दस-बीस मिनट में तुम गहरी नींद में सो जाओगे-अर्पिता के पिताजी बोले.
अर्पिता मुझे नींद की गोली दिए जाने से खुश नजर नहीं आ रही थी,लेकिन वो गुमसुम सी चुपचाप खड़ी रही.
जी,मैं बाथरूम जाना चाहता हूँ.मुझे एक तौलिया चाहिए.मेरे थैले में होगा-मैं बोला.
साहिबजी,आपके लिए नया तौलिया धोके रखा हुआ है.मैं अभी लती हूँ-प्रिया बोली.वो तौलिया लेने के लिए कमरे के बाहर चली गई.
अर्पिता के पिताजी अपनी जेब से एक आईड्रॉप निकाल उसका ढक्कन खोलते हुए बोले-सिर ऊपर की ओर करो..
मैं सिर ऊपर की ओर किया.वो दो-दो बूंद दवा दोनों आँखों में डाल दिए.दवा पड़ते ही आँखे ठंडी होने लगीं.वो ढक्कन बंद कर आईड्रॉप अपनी जेब में रख लिए.
प्रिया पिंक कलर का एक बहुत खूबसूरत ओर मुलायम सा तौलिया ले के आ गई.मैं पैंट के ऊपर से तौलिया लपेटना लगा.
ये क्या कर रहे हो..पैंट के ऊपर तौलिया लपेट रहे हो..चलो पैंट उतारो और तौलिया लपेट के सोना..अपने पैर के मोज़े भी उतार दो.इससे तुम्हे बहुत आराम मिलेगा-अर्पिता के पिताजी बोले.
मैं अपनी कमर में तौलिया लपेटकर दीवार की तरफ मुंह कर लिया और अपनी नीले रंग की पैंट खोलकर जल्दी से तौलिया लपेट लिया.अत्यधिक उतेजना के कारण अपने बादामी रंग के अंडरवियर की हो रही दुर्दशा देख मैं स्वयं ही शर्मा गया.मैं अपनी पैंट टांगों से बाहर कर मैं कुर्सी पर रख दिया.दोनों पैर के काले मोज़े उतार मई कुर्सी पर रख दिया.
अर्पिता के पिताजी प्रिया से बोले-ये सब कपडे ले जाओ और हैंगर में कायदे से टांग देना.प्रिया कुर्सी से सब कपडे उठाई और कमरे से बाहर ले के चली गई.
मैं बाथरूम जाने के लिए दरवाजे की तरफ बढ़ा.अर्पिता तेजी से चलकर मेरे पास आ बोली -रुको,मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ.कहीं तुम चक्कर खा के गिर गए तो..
अर्पिता मेरे साथ कमरे के बाहर आ गई.मेरे साथ साथ वो भी बाथरूम की तरफ चल पड़ी.
मैं तुमसे कुछ बात करना चाहती हूँ-अर्पिता अपने दाहिने हाथ से मेरा बायां हाथ पकड़ने की कोशिश करते हुए बोली.
वो लोग हमें देख रहे होंगे.अभी हाथ मत पकड़ों-मैं अपने दायें हाथ से अपना बायां हाथ उसकी पकड़ से छुड़ाते हुए बोला.
बाथरूम के पास पहुंचे तो अपने दायें हाथ से मेरा बायां हाथ पकड़ बोली-ठहरो पहले मुझे हो आने दो.तुम बाद में जाना.
वो मेरा हाथ छोड़ बाथरूम के बाहर रखी हरे रंगवाली हवाईचप्पल अपने पैरों में डाल बाथरूम के भीतर घुस गई.वो बाथरूम के अंदर जा दरवाजा बंद कर ली.कुछ देर बाद वो दरवाजा खोली.वो दरवाजा खोलकर बाथरूम के अंदर ही खड़ी रही और धीमे स्वर में बोली-तुम कैसे पति हो..अपने मुंह से बोल नहीं सकते हो कि मेरी पत्नी को मेरे कमरे में रहने दो..
मैं धीमे से बोला-मैं क्या कहूं..सारे फैसले तो तुम्हारे माताजी और पिताजी ले रहे हैं..मैं इस समय ससुराल में हूँ.इसीलिए मुझे तुम्हारे माताजी और पिताजी की सभी बाते माननी ही पड़ेंगी..मैं उनकी बातों का विरोध कर पाने की स्थिति में नहीं हूँ.
मैं दूसरे कमरे में नहीं जाउंगी,चाहे कोई कितनी भी कोशिश क्यों न कर ले ले..कितनी मुश्किल से तो मैंने तुम्हे पाया है..अपने वैवाहिक जीवन की पहली रात मैं व्यर्थ नहीं जाने दूंगी..मैं आज की रात का हरपल तुम्हारे साथ बिताउंगी-अर्पिता बहुत दृढ स्वर में बोली.
क्या वो लोग तुम्हारी बात मानेंगे ?-मैं उधर उधर देखते हुए पूछा.प्रिया इसी तरफ आते दिखी.
अर्पिता गम्भीर होकर बोली-अर्पिता अपने पर उतर आये तो किसी की नहीं सुनती..तुम्हारी खराब हालत देख के मैं परेशान थी,इसलिए चुप थी और सबकी सुन रही थी..
फिर वो मुस्कुराते हुए बोली-अब तुम ठीक हो..स्वस्थ हो..और इतने अच्छे लग रहे हो कि..
आगे कुछ न बोल वो अपने दोनों हाथों से से मेरा दायां हाथ पकड़ी और एक झटके से बाथरूम के भीतर खिंच ली.मैं लड़खड़ाते हुए उससे जा टकराया.वो मुझे पूरे जोश से अपनी बाँहों में भर ली और अपने बाएं पैर से दरवाजा जोर से ढकेलकर अंदर से भिड़ा दी.
तुम इतनी जोर से मुझे मत भींचो..मेरी छाती में कुछ चुभ सा रहा है..और मुझे अपने को सँभालने में बहुत दिक्कत हो रही है..तुम ये क्या कर रही हो..प्लीज ये सब मत करो..प्रिया इसी तरफ आ रही है-मैं उसके अचनाक हमला करने से परेशान हो गया था.मेरे दिल कि धड़कने और घबराहट दोनों बेकाबू होने लगी.
आती है तो आने दो..तुम प्रिया की चिंता मत करो..इस समय मुझे छोड़कर सब भूल जाओ-अर्पिता प्यार में मदहोश सी होते हुए बोली.
मुझे बहुत दिक्कत हो रही है..तुम मेरी दिक्क्त बढाती जा रही हो-मैं उतेजना से परेशान होकर बोला.
वो मुस्कुराते हुए हुए बोली-तुम्हारी दिक्कत मेरे तन मन में चुभ रही है.मुझे तो बहुत अच्छी लग रही है.वो मुझे और भी जोर से अपनी बाँहों में भींच ली.
अर्पिता अपना चेहरा मेरे चेहरे के करीब लाई और वो जलती हुई आग में घी डालना शुरू कर दी.उसने अपने नरम मुलायम गुलाबी होंठों से मेरे होंठों को छुआ..मेरे गालों को छुआ..इतनी बार छुआ कि मैं अपनेआप को भी भूल गया,केवल बस वो थी.
उधर प्रिया बाथरूम के बाहर धीमे से दरवाजा खटखटाते हुए बोली-दीदी,दरवाजा खोलिए आपको एक बहुत जरुरी बात बतानी है.
प्लीज..अब मुझे छोड़ दो..और प्रिया की बात सुनते हुए उसके साथ जाओ..मैं बाथरूम करके आता हूँ-मैं बहुत घबराते हुए बोला.मुझे भय था कि कहीं उसके माता पिता न आ जाएँ.
एकदम अनाड़ी हो..और डरपोक भी,,-वो हँसते हुए बोली.मेरे होंठों को अपने होंठों से दो बार पूरे जोश से छूने के बाद वो मुझे छोड़ दी और पैरो में पहनी हवाईचप्पल मुझे दे बाथरूम के बाहर निकल गई.
मैं राहत की गहरी साँस लिया और पैरों में हवाईचप्पल डाल बाथरूम का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.कुछ देर बाद मैं बाथरूम से बाहर निकला.बाथरूम के बाहर कोई नहीं था.मैं हवाईचप्पल बाथरूम के बाहर छोड़ अर्पिता के कमरे की तरफ चल पड़ा.
मैं अर्पिता के कमरे प्रेवेश किया.उसके पिताजी दो टेबलेट अर्पिता के दायें हाथ में रखते हुए बोले-ठीक है,तुम्हारी जिद है तो तुम इसी कमरे में सोवो,लेकिन तुम्हे ये टेबलेट खानी पड़ेगी.
ठीक है,मैं ये नींद की गोलिया खा लेती हूँ..मैं होश में न सही,नींद में बेहोश ही सही,लेकिन मैं उसके पास तो रहूंगी..-ये कहकर अर्पिता अपनी बायीं और घूम गई,जहाँ पर प्रिया पानी का गिलास लिए खड़ी थी.वो गुस्से से भरी हुई थी.गोली अपने मुंह में रख वो प्रिया के हाथ से पानी का गिलास ली और आधा गिलास पानी पीकर शीशे का गिलास प्रिया को पकड़ा दी.
अब तुम इस कमरे में सो सकती हो और चाहो तो भीतर से दरवाजा भी बंद कर सकती हो- पिताजी बोले.उनके चेहरे पर विजय से भरी मुस्कान थी.
मैं जाकर बिस्तर पर बैठ गया.मुझे नींद आ रही थी.मेरी पलकें बार बार बंद हो जा रहीं थीं. अर्पिता के पिताजी मेरे पास आ बोले-बेटे,तुम्हे नींद आ रही है.चलो अब बिस्तर पर लेट जाओ.
मैं जोर से नींद आ रही थी.मैं दोनों पांव बिस्तर पर उठा लेटने को हुआ,परन्तु तभी मुझे अर्पिता का ख्याल आ गया.उसके ही सिंगल बेड पर मैं लेटने जा रहा था.
अर्पिता कहाँ लेटेगी..मैं नीचे सो जाता हूँ..-मैं बिस्तर पर बैठते हुए बोला.
तुम उसकी चिंता मत करो..वो सो जायेगी.. पहले तुम सोवो..तुम्हे आराम की बहुत जरुरत है-ये कहकर अर्पिता के पिताजी मुझे बिस्तर पर लिटा दिए.वो पैर की तरफ रखा हुआ गुलाबी कम्बल मुझे ओढ़ाते हुए बोले-रात को अब ठंडक बढ़ गई है,पर तुम्हे दवा के रिएक्शन के कारण पता नहीं चल रहा है.ये कम्बल ओढ़ लो.रात को कोई भी दिक्कत महसूस हो मुझे बुला लेना.कोई संकोच मत करना..ये कहकर वो मेरे माथे और सिर पर प्यार से हाथ फेरे और फिर अर्पिता के माँ के पास जा बोले-चलो,रात काफी हो गई है.अब तुम इन बच्चो को आराम करने दो.
प्रिया शीशे का दो गिलास और स्टील के एक ढक्कन लगे जग में पानी लाके मेज पर रख दी.
मेज पर प्रिया गिलास और जग रखी तो हल्की से आवाज हुई.मैं उसकी तरफ देखा वो बहुत भयभीत और उदास लग रही थी.मैं अर्पिता की ओर देखने लगा.अर्पिता अपने मुंह पर हाथ रख उबासी ले रही थी.उसकी बार बार झपकती हुई पलकों से लग रहा था की उसे भी बहुत तेज नींद आ रही थी.
अर्पिता की माँ अर्पिता की ओर देखते हुए बोलीं-अब तो सोने का समय हो गया है.रात के साढ़े ग्यारह बज रहे हैं.कल सुबह तुम और प्रिया मेरे पास आ जाना.मुझे तुम दोनों से कुछ जरुरी बात करनी है.और एक बात मेरी ध्यान से सुन ले.रात को तू अगर इस बच्चे को परेशान की और अगर इस बार उसकी तबियत ख़राब हुई तो मैं तुझे इस बार नहीं छोड़ूंगी.
चलो..बच्चे हैं..जाने दो..-ये कहते हुए अर्पिता के पिताजी अर्पिता की माँ ,मौसी और बुआ को लेकर कमरे से बाहर निकल गए.
भैया,तुम्ही इसे इतना लाड़ दुलार देके बिगाड़े हो.लड़कियों को इतना भी छूट देना ठीक नहीं..
अर्पिता के बुआ जी की आवाज मुझे सुनाई दी.
ये सब इन्ही की छूट का नतीजा है कि आज वो मेरे कंट्रोल के बाहर हो गई है,नहीं तो मेरा घूरना ही उसके लिए काफी था-अर्पिता कि माँ की आवाज सुनाई दी.मैं आँखे बंद किये जबर्दस्ती जागने की कोशिश कर रहा था,केवल इसलिए की अर्पिता को शुभरात्रि बोल सकूँ.
अर्पिता के पिताजी डोगरी भाषा में कुछ बोले,जो मुझे समझ में नहीं आया.वो लोग अपनी भाषा में बातें करते हुए कमरे से बाहर निकल गए.
दीदी,.कैसे जल्लाद लोग हैं,दो प्रेमियों को शादी के बाद भी मिलने भी नहीं दे रहे हैं..-प्रिया की आवाज कानो में पड़ी.
अपनी नींद से बोझिल आँखे खोल के देखा तो प्रिया अपनी आँखे पोंछ रही थी.वो रो रही थी.
तू जा..मेरी सुहागरात तो ख़राब हो ही गई..क्या क्या अरमान संजोये थे मन में..सब मेरे मन में ही धरे रह गए..फिर कुछ रूककर बोली-अब इतनी रात को अपने घर मत जाना..जा के सो जा..मुझे भी नींद आ रही है..
प्रिया कमरे के बाहर निकल गई.अर्पिता दरवाजा अंदर से बंद कर नाइट बल्ब जला दी और टुबलाइट बुझा दी.कमरे में लाल रंग की मद्धिम रौशनी फैली हुई थी.सबकुछ लाल नजर आ रहा था.मेरा दिल धड़कने लगा.मैंने अपनी आँखे बंद कर लीं.
ऐ..सो गए क्या..-अर्पिता का हाथ मैं अपने सिर पर महसूस किया.
तुम्हे गुडनाईट कहने को जबर्दस्ती जाग रहा हूँ-मैं नींद से मींचमींचती हुई आँखे खोल बोला.
मुझे भी बहुत तेज नींद आ रही है.वो बिस्तर पर बैठकर पहले सिर से अपनी मांगटीका उतार बिस्तर पर रखी और फिर अपने कान और गले के गहने उतार कर बिस्तर पर रखने लगी.उसके हाथों की चूड़ियाँ बहुत तेज खनक थीं.वो दोनों हाथों की सारी चूड़ियाँ भी उतार बिस्तर पर रख दी.वो बिस्तर से उठकर खड़ी हो गई और अपने सभी गहने और चूड़ियाँ उठाकर मेज पर रखने लगी.
बहुत तेज नींद आने के वावजूद भी मैं धड़कते और घबड़ाते हुए दिल से उसे देखे जा रहा था कि अब ये क्या करेगी.वो अपने सब गहने और चूड़ियाँ मेज पर रख बिस्तर के पास आई और बोली-तुम जरा उठ के बैठो..
मगर क्यों..-मैं घबड़ाते हुए बोला.
तुम उठो तो सही..-वो बोली.
मैं डरते हुए कम्बल हटा बिस्तर पर उठकर बैठ गया.वो मेरे पैरो के तरफ आकर अपने गुलाबी साड़ी का आँचल अपने सिर पर रख अपने दोनों हाथों से दो बार मेरे दोनों पांव छूकर अपने माथे लगाई और बोली-मुझे आशीर्वाद दो कि आजीवन तुम्हारी सेवा करती रहूँ..दुनियां से लड झगड़कर बहुत मुश्किल से तुम्हे पाईं हूँ..हमेशा मैं तुम्हारी प्रिय बनी रहूँ..
मैं कुछ बोला नहीं.बस आश्चर्य से आँखे मींचमींचाते हुए उसे देख रहा था.मुझे समझ में ही नहीं आया कि क्या आशीर्वाद दूँ.
अब तुम सो जाओ..मैं भी सोउंगी..बहुत तेज नींद आ रही है-अर्पिता बोली.
मुझे पानी पीना है..प्यास लगी है..-मैं बोला.
पानी तो मैं भी पिउँगीं..मुझे भी प्यास लगी है..-अर्पिता ये कहकर अपने दायें हाथ से मेज से जग उठाई और दोनों गिलास में पानी भर दी.जग को मेज पर रख वो एक गिलास पानी मेज पर से उठाकर मुझे दी और दूसरा गिलास मेज से उठाकर अपने मुंह से लगा ली.पानी पीकर वो अपना गिलास मेज पर रख दी.मैंने पानी पीकर उसे खाली गिलास थमा दिया.गिलास मेज पर रख वो मेरे पास आकर बिस्तर पर मेरे दायीं तरफ बैठ गई और अपने दोनों पांव उठाकर बिस्तर पर रख ली.वो कम्बल उठकर अपने और मेरे परों पर डालते हुए बोली-तुम ये तौलिया उतार दो..तुम्हे सोने में आराम मिलेगा..
नहीं,मैं तौलिया नहीं उतारूंगा..और तुम क्या मेरे साथ सोवोगी..नहीं तुम और कही सोवो..या फिर मैं फर्श पर बिछी कालीन पर लेट जाता हूँ.-मैं परेशान होकर बोला.
मैं और कहाँ जाऊं..तुम्हारी पत्नी हूँ,इसीलिए अब आजीवन तुम्हारे साथ सोउंगी..और तुम भी कहीं नहीं जाओगे..चलो लेट जाओ अब..-अर्पिता ये कहकर मुझे लिटा दी और खुद भी मेरे बगल में लेट गई.दोनों पीठ के बल चुपचाप लेटे थे और अपनी नींद से बंद होती आँखें जबर्दस्ती खोलने की कोशिश कर राहे थे..तभी वो मेरी तरफ करवट बदली और थोडा सा उठकर मेरे चेहरे पर झुक गई.मैं घबड़ाकर अपनी आँखें बंद कर लिया.उसने अपने होंठों से मेरे होंठों को छुआ और अपना दाहिना हाथ मेरे सिर पर रख मेरे सिर के बालों में अपने हाथ की अंगुलियां फेरते हुए बोली-सो जाओ.गुडनाईट.इतना कहकर वो फिर पीठ के बल लेट गई.
मैं मुंह से बस इतना ही बोल सका-गुडनाईट..
मेरी हिम्मत नहीं हुई की मैं और कुछ करूँ.या उसे छुऊँ भी,क्योंकि वो बहुत खिन्न लग रही थी और नींद की गोली खाने के कारण उसे बहुत तेज नींद भी आ रही थी.अर्पिता अपनी आँखें बंद किये हुए थी.कुछ ही देर में उसकी नाक से गहरी साँस लेने की हल्की आवाज आने लगी.मैं समझ गया कि ये सो गई है.मैंने भी अपनी आँखें बंद कर लीं.बहुत देर से उत्तेजित होने के कारण अब मुझे वहाँ की नसों में दर्द महसूस हो रहा था.तभी मुझे अर्चना की याद आई.जो उसी समय अपने घर चली गई थी,जब मुझे अर्पिता के कमरे में लाया जा रहा था.मुझे उसपर गुस्सा आ रहा था,लेकिन बहुत पछतावा हो रहा था कि मैंने उसको दो थप्पड़ मारा.उसके बारे में और अर्पिता के बारे में सोचते सोचते मुझे पता ही नहीं चला कि मैं कब सो गया.
शेष अगले ब्लॉग में..
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

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