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“ज्ञान का वृक्ष”-एक धार्मिक लघुकथा-जंक्शन फोरम

सद्गुरुजी
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एक धार्मिक कथा जो मैंने कई बार पढ़ी है, उसपर आज अपने कुछ विचार व्यक्त करना चाहता हूँ। इसपर प्रतिक्रिया स्वरुप आपके विचार भी सादर आमंत्रित हैं। पहले ये धार्मिक लघुकथा प्रस्तुत है-
ईश्वर ने पहले पुरुष आदम और पहली स्त्री हव्वा की सृष्टि की। प्राकृतिक सौंदर्य और असीम सुख शांति से भरा स्वर्ग का उद्यान उन्हें रहने को दिया, जिसका नाम ईडन था। वो दोनों निर्दोष, निष्कपट अबोध चरित्र के थे, इसीलिए आनंद से बच्चों की तरह खेलते कूदते और रहते थे। वो दोनों पूरी तरह से नग्न रहते थे, क्योंकि उन्हें यौन संबंधों का कोई ज्ञान नहीं था और उन्हें कोई शर्म नहीं अनुभव होती थी। स्वर्ग के उद्यान में एक वृक्ष था, जिसे “ज्ञान का वृक्ष” कहा जाता हैं। उसपर ज्ञान के फल लगते हैं। ईश्वर ने आदम को आज्ञा दिया था कि वो ज्ञान के वृक्ष का फल कभी न खाये। एक सर्प ने ज्ञान का फल खाने के लिए पहले हव्वा को उकसाया और फिर हव्वा ने आदम को ज्ञान का फल खाने के लिए उकसाया। आदम ने ईश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया और ज्ञान का फल खा लिया। इससे उसकी अबोधता, निर्दोषता, पवित्रतता और निष्कपटता ख़त्म हो गई और आदम और हव्वा को एक-दूसरे को देखकर शर्म महसूस करने लगे। उन्होंने कुछ अंजीर के पत्तों के छोटे वस्त्र बनाकर अपने अपने जननांग ढकने शुरू कर दिए। जब ईश्वर उनसे मिलने आये और उन्हें अंजीर के पत्तों से अपने जननांग ढके देखा तो देखा तो वह समझ गए की आदम ने ज्ञान का फल खा लिया है। ईश्वर आदम और हव्वा पर इतने क्रोधित हुए कि उन्होंने आदम और हव्वा हो ईडन से निकालकर इस धरती रूपी नरक में भेज दिया। तब से लेकर आजतक आदम और हव्वा की संताने यानि हमसब मनुष्य पापी होकर इस संसार में भटक रहे हैं। हमें स्वर्ग के ईडन गार्डन में वापस जाने के लिए धर्म की शरण में जाना जरुरी है। ईडन की इस धार्मिक लघुकथा में हव्वा ने आदम को ज्ञानफल खाने को कहा था, इसलिए कहा जाता है कि नारी पुरुष के पतन का कारण है।
प्रश्न१= सबसे पहले तो यह प्रश्न मन में उठता है कि ईश्वर जब नहीं चाहता था कि आदम और हव्वा को ज्ञान मिले, तब उसे स्वर्ग के बगीचे में “ज्ञान का वृक्ष” लगाने की जरुरत क्या थी ? इसका अर्थ तो ये हुआ कि ईश्वर इसी बहाने उन्हें स्वर्ग के बगीचे से निकालना चाहते थे।
प्रश्न२= यौन-सम्बन्ध स्थापित करने के कारण आदम और हव्वा को पापी मानते हुए स्वर्ग के बगीचे से निकालकर ईश्वर ने इस धरती पर भेज दिया। उनकी संताने होने के कारण हमसब मनुष्य भी पापी हैं। मैं इस बात से सहमत नहीं कि पति पत्नी के मर्यादित यौन-सम्बन्ध पाप है। यहाँपर एक प्रश्न पैदा होता है कि यदि यौन-सम्बन्ध ईश्वर की निगाह में बहुत बड़ा अपराध है तो उसने आदम और हव्वा के यौन अंग बनाये ही क्यों? आदम और हव्वा से बड़ा अपराधी तो ईश्वर स्वयं हो जा रहा है। वो स्वर्ग छोड़कर कहाँ जायेगा?
प्रश्न३= ईडन की इस धार्मिक लघुकथा में हव्वा ने आदम को ज्ञान का फल खाने को कहा था, इसलिए कहा जाता है कि नारी पुरुष के पतन का कारण है। यहाँ पर प्रश्न यह उतपन्न होता है कि क्या ज्ञान का फल खाना अपराध है? यदि आदम से पहले हव्वा ने ये फल खाया तो इसका अर्थ ये हुआ कि वो आदम से ज्यादा बुद्धिमान थी और काम विषयक जानकारी सबसे पहले उसे हुई थी। यदि हव्वा के कहने से आदम ने ज्ञान का फल खाया यानि यौन सम्बन्ध स्थापित किया और उससे इस संसार के मनुष्यों की सृष्टि हुई तो इसका श्रेय हव्वा को यानि स्त्री जाति को जाता है। तब तो हमें संसार की उस पहली स्त्री को पुरुष के पतन का कारण नहीं बल्कि सृष्टि के सृजन का कारण मानते हुए उसे सलाम करना चाहिए।
प्रश्न४= मेरे विचार से तो इस धार्मिक लघुकथा में वर्णित “ज्ञान का वृक्ष” ये मानव शरीर है। इस मानव शरीर पर लगनेवाला फल धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ये चारो ही है। इसी मानव शरीर में भोगियों के लिए भोग भरा है और योगियों के योग भरा है। क्या हमें स्वर्ग के ईडन गार्डन में वापस जाने के लिए किसी विशेष धर्म की शरण में जाना जरुरी है? मेरे विचार से धर्म का अर्थ परमात्मा है, न की कोई विशेष धर्म। सभी सांसारिक धर्म पंथ हैं, यानि ईश्वर की ओर ले जानेवाले रास्ते मात्र हैं।
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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

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