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फ़िल्म “गोदान” की गीतों भरी कहानी-जंक्शन फोरम

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
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फ़िल्म “गोदान” की गीतों भरी कहानी
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होली खेलत नन्दलाल
बिरज में होली खेलत नन्दलाल
ग्वाल बाल संग रास रचाये
ग्वाल बाल संग रास रचाये
नटखट नंदगोपाल
बाजत ढोलक झांझ मंजीरा
बाजत ढोलक झांझ मंजीरा
गावत सब मिल आज कबीरा
नाचत दे दे ताल,
होली खेलत नन्दलाल
बिरज में होली खेलत नन्दलाल

ज़ीक्लासिक पर मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास पर बनी एक पुरानी फ़िल्म “गोदान” दिखाई जा रही थी.अपनी व्यस्तता के कारण पिछले कई सालों से मैंने कोई फ़िल्म कोई नहीं देखी थी.मैं सब कम छोड़कर ये फ़िल्म देखने बैठ गया.ये फ़िल्म देखकर मैं बहुत भावुक हो गया.मैंने ये विचार बनाया कि इस फ़िल्म कि कहानी को इस फ़िल्म के सुरीले गीतों के साथ आप लोगों तक पहुंचाऊं.
फ़िल्म “गोदान” का नायक होरी (राजकुमार) बालबच्चों वाला एक गरीब किसान है,जो अपने घर में एक गाय पालने का सपना देखता है.गांव के ही एक व्यक्ति से उस उधार पर एक गाय मिल जाती है,जिसे वो उसकी पत्नी धनिया (कामिनी कौशल) बड़े प्रेम से पालना शुरू करते हैं.उधर होरी का बेटा गोबर गांव की उस लड़की से प्रेम करता है,जिसके पिता से होरी ने उधार पर गाय ली हुई है.
ओ बेदर्दी क्यूँ तड़पाये
जियरा मोरा रिझाय के
ओ निरदर्दी मैं पछताई
तुझसे नेहा लगाय के
ओ मधुबैनी काहे लुभाए
मीठी तान सुनाय के
ओ मृगनयनी काहे रिझाये
नैनन बाण चलाय के
ओ बेदर्दी क्यूँ तड़पाये
प्रीत तेरी पहचान न पाया
जिया मोरा अनजान रे
तुझसे मेरा नेह सजनिया
करूँ निछावर प्राण रे
प्रेम का नाता जोड़ ले
तू बीती बतियाँ बिसराय के
ओ बेदर्दी क्यूँ तड़पाये
जियरा मोरा रिझाय के
ओ निरदर्दी मैं पछताई
तुझसे नेहा लगाय के

कुछ ही दिन बाद ईर्ष्याद्वेष के कारण होरी का भाई उसकी गाय को जहर देकर मार देता है.होरी अपने भाई को गाय के पास खड़े देखा था और वो जानता था कि उसके भाई ने ही उसकी गाय को जहर देकर मारा है,लेकिन जब पुलिस उसके भाई को पकड़ने आती है तो वो अपने लड़के गोबर की झूठी कसम खाकर और गांव के पुजारी के जरिये पुलिस को रिश्वत देकर अपने भाई को बचा लेता है.होरी का लड़का गोबर (महमूद) इस घटना से नाराज होकर घर छोड़कर लखनऊ चले जाता है,जहांपर वो नौकरी करने लगता है.गाय के मरने का दुःख और अपने लड़के गोबर के घर छोड़कर जाने का दुःख होरी को बैचैन कर देता है.
हिया जरत रहत दिन रैन हो रामा
जरत रहत दिन रैन
हिया जरत रहत दिन रैन हो रामा
जरत रहत दिन रैन
अंबवा की डाली पे कोयल बोले
अंबवा की डाली पे कोयल बोले
तनिक ना आवत चैन ओ रामा
जरत रहत दिन रैन…..

गोबर के गांव छोड़कर जाने के कुछ दिन बाद गोबर की प्रेमिका झुनिया गोबर के घर आती है और वो गोबर की माँ को बताती है की वो गोबर के बच्चे की माँ बनने वाली है.धनिया जाकर अपने पति होरी से सलाह मशविरा करती है और वो दोनों झुनिया को अपनी बहु स्वीकार कर घर में रख लेते हैं,जिससे झुनिया का पिता और पूरा गांव नाराज हो जाता और होरी पर इस बात के लिए दबाब डाला जाता है कि वो या तो गर्भवति झुनिया को घर से बाहर निकाल दे या फिर बिरादरी द्वारा तय जुर्माना अदा करे.होरी झुनिया को छोड़ने को तैयार नहीं होता है.झुनिया का पिता होरी को दिए हुए कर्ज के बदले में उसके बैल खोल के ले जाता है.होरी अपनी फसल गिरवी रख के बिरादरी का जुर्माना अदा करता है.झुनिया एक बच्चे को जन्म देती है.
जनम लियो ललना के चाँद मोरे
अंगना उतर आयो हो
जनम लियो ललना के चाँद मोरे
अंगना उतर आयो हो उतर आयो हो
मिली मिली सखी सब मंगल गीत
आज गावहि हो , हो गावहि हो
जिए मोरा लाल हे लाख बारिस
आशीष सुनावे रही हो
जनम लियो ललना के चाँद मोरे
अंगना उतर आयो हो उतर आयो हो
आयो नया पाहुन सच भयो सपना
मैं राम गुण गावही हो
बाली बाली जाऊ मैं कजरा लगाऊं
मैं नज़र से बचावहु हो
जनम लियो ललना के चाँद मोरे
अंगना उतर आयो हो
जनम लियो ललना के चाँद मोरे
अंगना उतर आयो हो उतर आयो हो

गांव का जमींदार,गांव का साहूकार,गांव की पंचायत,गांव का पुजारी और होरी के बिरादरीवाले सब मिल के होरी को लुटते हैं और बड़ी निर्दयता से उसका और उसके पुरे परिवार का शारीरिक,मानसिक और आर्थिक शोषण करते हैं.वो लगान जमा करता है,परन्तु रसीद नहीं ले पाता है,जिसके कारण उसकी फसल को नीलाम करके जुर्माना सहित उससे फिर से लगान वसूला जाता है.होरी अपना खेत गिरवी रख के अपनी एक लड़की की शादी कर देता है और दूसरी लड़की की शादी एक बूढ़े व्यक्ति से करने को तैयार हो जाता है.एक साल बाद गोबर को अपने घर की याद आती है और वो अपने घरवालों से मिलने के लिए चल पड़ता है.
पिपरा के पतवा सरीखे डोले मनवा
की जियरा में उठत हिलोर
अरे पुरवा के झोंकवा से
आयो रे संदेसवा
की चल आज देसवा की ओर
सिमिट सिमिट बोले लम्बी ये डगरिया
सिमिट सिमिट बोले लम्बी ये डगरिया
जल्दी जल्दी चल राही अपनी नगरिया
रहिया तकत बिरहानिया दुल्हनिया रे
बांध के लगनवा की डोर,
पिपरा के पतवा सरीखे डोले मनवा
की जियरा में उठत हिलोर
अरे पुरवा के झोंकवा से
आयो रे संदेसवा
की चल आज देसवा की ओर

गोबर घर आकर अपने माता-पिता,पत्नी और बच्चे से बहुत ख़ुशी के साथ मिलता है.लेकिन जब उसे मालूम पड़ता है की उसके माता पिता भारी कर्ज के बोझ तले दबे हुए हैं तथा सब जमीन जायदाद और यहाँ तक की घर भी गिरवी रख हुआ है तो वो अपने माता पिता की कोई भी मदद करने से इंकार कर देता है.गोबर अपनी पत्नी और बच्चा को लेकर घर छोड़ देता है और वो वापस अपनी नौकरी पर चले जाता है.होरी के पास खेत खलिहान कुछ भी नहीं रह जाता है.वो मजदूरी कर के अपना गुजारा करने लगता है और एक दिन धुप में मजदूरी करते हुए उसे खून की उल्टी होती है और बेहोश हो के गिर जाता है.उसे उसकी पत्नी धनिया के पास लोग उठाकर ले जाते हैं,जहांपर वो अपनी पत्नी धनिया से इस बात के लिए माफ़ी मांगता हैं कि वो उसका साथ छोड़ के जा रहा हैं.गांव का पुजारी मरते हुए होरी से गौ दान का संकल्प कराता है.होरी की पत्नी धनिया के पास पुजारी को दक्षिणा में देने के लिए कुछ नहीं है.मरते मरते अंत में होरी अपनी पत्नी से बहुत दुखी स्वर में कहता हैं कि-गाय पालने की उसकी इच्छा अधूरी ही रह गई.
हमारे देश के बहुत से क्षेत्रों में आज भी होरी और धनिया जैसे बहुत से कर्ज में डूबे हुए और गरीबी से बदहाल किसान हैं.हे मेरे देश और प्रदेश के शासको,कम से कम उन्हें तो होरी की तरह मरने से बचा लो.भ्रष्टाचार और भोग विलास में आकंठ डूबे रहनेवाले हमारे नेतागण क्या किसानो की छोटी छोटी इच्छाएं भी पूरी नहीं कर सकते हैं.हे देश के कर्णधारों,आप ये बात कभी मत भूलियेगा कि भारत एक कृषिप्रधान देश है,यहाँ के किसान यदि होरी की तरह से भूखे प्यासे मरते रहेंगे तो एक दिन अनाज की इतनी किल्लत हो जायेगी कि पूरे देश को परेशानी झेलनी पड़ेगी.
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संकलन और प्रस्तुति:-सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६.

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