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सुचित्रा क्यों महान है ?-एक जीवंत प्रणय संस्मरण

सद्गुरुजी
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सुचित्रा क्यों महान है ?-एक जीवंत प्रणय संस्मरण
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रविवार को दिन में दो बजे मैं भोजन कर रहा था.दो सादी रोटियां खाने में मझे आधा घंटा लग जाता है.मेरी श्रीमतीजी आकर मुझे बताती हैं कि वो मैडम आई हैं आपसे मिलने के लिए,जो कालेज में पढ़ातीं हैं.कुछ और भी लोग आकर बैठे हुए हैं.मैं कुछ नहीं बोला.खाना खाते समय मैं मौन रहने की कोशिश करता हूँ.खाना खाकर मैं अपने श्वेत वस्त्र पहनकर तैयार हुआ.मैंने ऊपर से मोटा स्वेटर पहन लिया,क्योंकि बहुत ठण्ड लग रही थी.आलमारी से निकल अपना सफेद रुमाल और चार सौ रूपये अपनी जेब में रख लिया.मैं अपने कमरे से बाहर निकलकर आश्रम में आया और अपने निश्चित स्थान पर बैठकर लोगों से मिलने लगा.
सब लोगो को छोड़ने के बाद मैं कमरे से बाहर निकला तो देखा कि सुचित्रा (उसे पुकारने के लिए मेरे द्वारा रखा गया नाम) मनीप्लांट के गमलों की सफाई में जुटी हुई है.मैरून कलर की सलवार कमीज और दुपट्टे में लिपटी हुई सुचित्रा मेरी तरफ अपनी पीठ किये थी,इसीलिए उसे मेरे आने का पता नहीं चला.
सुचित्रा..आ जाओ..-मैं उसे पकरते हुए वापस जाकर अपने स्थान पर बैठ गया.
कुछ देर बाद सुचित्रा अपने हाथ में अपना काला बैग थामे हुए मेरे पास आई.हमेशा की तरह वो मेरे पैर छूना चाही और हमेशा की तरह मैंने उसे मना किया.वो नहीं मानी,मेरे पैरो को स्पर्श करके मेरे सामने बैठते हुए बोली-मैं आपको लेने आई हूँ.अपनी कार ले के आई हूँ.मैंने इसीलिए आज सुबह ही आपको फोन कर दया था.
तुमने बताया नहीं कि क्या काम है..अपने घर क्यों ले जाना चाहती हो..मैं पूछा.
सब बताउंगी भी और दिखाउंगी भी..पहले आप मेरे घर तो चलिए..सुचित्रा बोली.
चलो..लेकिन चार बजे तक मुझे छोड़ देना..-मैं उठते हुए बोला.
ठीक है..मैं आपको यहाँ लाकर छोड़ जाउंगी..-वो बोली.
प्रसाद,बिस्कुट या पानी तुम कुछ लोगी..-मैं पूछा.
अभी नहीं..आने के बाद..-वो चलते हुए बोली.
मैं उसके साथ चल पड़ा.पैरो में अपनी चप्पल डालकर घर के बाहर निकल आया.सुचित्रा भी अपनी सेंडिल पहनकर गेट के बाहर आ गई.कुछ दूर उसके साथ पैदल चलना पड़ा.सड़क पर उसकी नीले रंग की कार खड़ी थी.वो आगे का गेट खोल दी,मैं कार में बैठ गया.वो गेट बंद कर दूसरी तरफ से आकर गाड़ी में बैग रखते हुए बोली-बिटिया के लिए चाकलेट लाई हूँ,मैं देना भूल गई.मैं उसे दे के आती हूँ.
अभी चलो..उसे आकर दे देना..-मैं बोला.
वो कार में बैठकर गेट बंद की और कार स्टार्ट कर सड़क पर दौड़ाने लगी.मैं सड़क पर दौड़ती कार से शीशे से पीछे भागती हुई सड़क को देखते हुए पुरानी स्मृतियों में खो गया.
सन १९९१ में जब छब्बीस वर्ष की उम्र में मैंने अपने आश्रम की बागडोर सम्भाली थी,तब उससे मेरा परिचय हुआ था.वो लगभग मेरी ही उम्र की थी और उस समय वो फिलोसोफी में रिसर्च कार रही थी और अख़बार में छपा मेरा प्रवचन पढ़ के आई थी.वो मुझे देख के हंसती रही.वो सोच रही थी कि इतनी कम उम्र में इन्हे आध्यात्म का क्या ज्ञान होगा.मैंने उसे हर रविवार को आकर सत्संग सुनने की सलाह दी.
कुछ रविवार को सत्संग सुनने के बाद वो गम्भीर हो गई.वो दर्शनशास्त्र का वो बहुत अच्छा ज्ञान रखती थी.संतमार्ग के बारे में और संतों के बारे में और जानकारी हासिल करने के लिए वो मेरे पास आने लगी.धीरे धीरे उससे गहरी दोस्ती हो गई.
एक दिन बातों ही बातों में मैंने उससे कहा-तुम भगवान की बनाई हुई एक सुंदर कृति हो.तुम तन से,मन से और आत्मा से तीनो से सुंदर हो..तुम्हारा नाम तो सुचित्रा होना चाहिए..
मेरी बात सुनकर वो बहुत उदास होकर बोली-मुझे स्वीकार है..आप जो चाहे मेरा नाम रख लीजिये..लेकिन मेरा अतीत आप सुन लेँगे तो फिर शायद मुझसे आप बात भी नहीं करेंगे और अपना पैर भी कभी नहीं छूने देंगे..
यदि तुम मेरे बारे में ऐसी गलत धारणा रखती हो,तो मैं उसके बारे में क्या कहूं.आज जरुर अपने अतीत के बारे में तुम मुझे बताओ,फिर मेरी प्रतिक्रिया देखना.इस समय एकांत है और कोई अन्य व्यक्ति भी यहाँ पर नहीं है..-मैं बोला.
वो सिर झुकाकर बोली-मेरे साथ जीवन में दो बार रेप हुआ है..
दो बार रेप यानि बलात्कार..कब हुआ ये सब..किसने किया..-मैं हतप्रभ होकर पूछा.
अभी की नहीं..बहुत पहले की घटना है..तब मैं सात साल की थी.हमारे पड़ोस का एक लड़का मुझे चॉकलेट नमकीन और मिठाई देने के बहाने बहलाफुसलाकर अपने घर ले गया था.उसके घर पर उस समय कोई नहीं था.वो मेरे साथ जबर्दस्ती कुकर्म किया और मुझे खून में लथपथ छोड़कर भाग गया.मैं बेहोश हो गई और जब मुझे होश आया तो मैं हॉस्पिटल में थी..काफी दिनों के ईलाज के बाद मैं ठीक हुई..सुचित्रा अपने बैग से रुमाल निकाल अपनी आँखे पोंछने लगी थी.
मैं उसकी आपबीती सुनकर आवेश में आ पूछा-वो दुष्कर्मी लड़का पकड़ा गया..
नहीं..वो डर के मारे घर छोड़कर भाग गया..और फिर आजतक वापस नहीं लौटा..वो बोला.
और वो दूसरा दुष्कर्मी कौन था..-मैं गस्से से पूछा.
वो अपनी डबडबाई आँखों से मेरी और देखते हुए बोली-वो मेरे सगे चाचा थे.सात वर्ष की उम्र में मेरे साथ रेप होने के बाद मेरा पूरा परिवार मेरे साथ बहुत सहानुभूति दर्शाने लगा.सबसे ज्यादा सहानुभूति मेरे छोटे चाचा मेरे साथ दर्शाते थे.वो उस लड़के को मारने के लिए ढूंढ रहे थे,जो मेरे साथ रेप किया था.जब मैं चौदह वर्ष की थी,तब की बात है.मैं उस दिन बहुत बीमार थी और घर में अकेली थी.मेरे माता पिताजी पड़ोस में एक शादी गए थे.मेरे छोटे चाचा गांव से आये हुए थे.उन्ही के भरोसे मेरे माता पिताजी मुझे घर में अकेला छोड़ गए थे.उन्होंने मेरे माता पिताजी के भरोसे को चकनाचूर करते हुए मेरे साथ रेप किया और तुरंत गांव भाग गए.मेरे मैंने माता पिताजी जब शादी से लौट के घर आये तो मैंने फूट फूटकर रोते हुए उन्हें सारी बात बता दी.मेरे पिताजी गुस्से से आग बबूला होकर उसी समय गांव के लिए निकल गए.गांव जाकर उन्होंने मेरे छोटे चाचा की पिटाई की.वो अपना जुर्म कुबूल करने की बजाय मुझे ही चरित्रहीन साबित करने लगे.इस घटना के बाद हमलोगों का उनसे सब रिश्ता नाता टूट गया..
उसकी दर्दनाक कहानी सुनकर मेरी आँखों से आंसू बहने लगे थे.मेरे मन में उसके साथ रेप करनेवालों के प्रति के बहुत आक्रोश और घृणा उत्पन्न हो गई थी.मैं सुचित्रा के प्रति सहानुभूति दर्शाते हुए बोला-तुम अपने मन से ये भावना निकाल दो कि तुम अपवित्र हो गई हो.जो कुछ भी तुम्हारे साथ बुरा घटा,उसमे तुम्हारा क्या दोष है.तुम्हारे लिए मेरे आश्रम के द्वार हमेशा खुले रहेंगे.रही बात पैर छूने कि तो वो मुझे पसंद नहीं है.मैं सबको मना करता हूँ कि मेरे पैर मत छूवो.तुम यदि ये सोचती हो कि तुम अपवित्र हो गई हो इसीलिए मैं तुम्हे अपना पैर छूने नहीं दूंगा तो लो मेरे पैरो को जितना चाहो स्पर्श कर लो.
सुचित्रा अपनी आँखें पोंछकर चुपचाप मेरे पैरो का स्पर्श कर चली गई थी.उस दिन के बाद हमारी दोस्ती गहरी होती चली गई.
मेरे पहले प्यार और पहली जीवनसंगिनी अर्पिता को गुजरे हुए चार वर्ष बीत चुके थे.मैं भीतर से बहुत टूट सा गया था.आध्यात्म के सहारे मैं किसी तरह से उठकर खड़ा हुआ था.परन्तु उसकी याद हमेशा सताती थी.अर्पिता के कोई भी गुण सुचित्रा में नहीं थे.फिर भी मैं उसकी तरफ आकर्षित होने लगा.मैं अर्पिता के बारे सुचित्रा को सबकुछ बता दिया था.मैं कोई निश्चय नहीं कर पा रहा था कि सुचित्रा के प्रति मेरे मन में प्रेम है या सिर्फ सहानुभूति.एक दिन मैंने निश्चय किया कि आज मैं सुचित्रा से साफ साफ बात करूँगा.जरा देखूं तो सही कि उसके मन में मेरे प्रति क्या भाव है.
दोपहर के समय जब सुचित्रा आई तो मैंने उससे कहा-आज मुझे तुमसे कुछ जरुरी बात करनी है.मेरे मन में जो है सो कहूंगा.तुम्हारे मन में जो भी हो साफ साफ मुझे बता देना.
सुचित्रा उसदिन बहुत खुश थी.उसने कहा-मैं भी आज आपसे अपने दिल की बात कहूँगी और आपसे सलाह भी लूंगी.
ठीक है कहो..-मैं बोला.
नहीं पहले आप कहिये..वो बोली.
मैं उसके मन की थाह लेना चाह रहा था और वो मेरे मन की.अंत में वो बताने को तैयार हो गई थी.उसने कहा-मेरे साथ एक लड़का शोध कर रहा है.मुझे उसके साथ प्रेम हो गया है.वो भी मेरे साथ प्रेम करता है.मैंने उसे अपने अतीत के बारे में भी सब बता दिया है.वो मुझसे शादी करने को तैयार है.कल मैं उसे आपसे मिलाना चाहती हूँ.
ठीक है कल ले आओ उससे..-मैं बोला.
वो खुश हो गई थी.उसने कहा-आप कुछ कहने वाले थे.आप कहिये मत..आदेश दीजिये.आप मेरे गुरु भी हैं और दोस्त भी.आपकी ये सुचित्रा आपके लिए कुछ भी कर सकती है..
मैं अपने आसन से उठकर आलमारी से एक फाईल निकालकर ये कहते हुए उसे थमा दिया था-इसे एक कापी में फेयर करना है.मेरा एक आध्यात्मिक लेख है.मैं उसे एक खाली कॉपी भी दे दिया.
अगले दिन वो दोपहर के समय उस लड़के को साथ ले के आई,जिसे वो चाहती थी.मैंने थोड़ी बहुत पूछताछ उस लड़के से की और फिर मैं मौन हो गया.सुचित्रा ने बताया कि लड़का गरीब और दलित है,इसीलिए मेरे माता पिताजी इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं हैं.आपको उन्हें तैयार करना है..
ठीक है..पर तुम्हारे पिताजी यहांपर आयेंगे या फिर मुझे तुम्हारे घर चलना होगा..-मैंने पूछा.
मेरे घर पर चलना होगा..मैं कल दोपहर को आपको लेने आउंगी..-सुचित्रा बोली.ये कहकर वो उस लड़के के साथ चली गई.
अगले दिन मैं सुचित्रा के साथ उसके घर गया.वो माता पिताजी से से मुझे मिलाई.वो लोग बहुत सज्जन थे और मेरा बहुत आदर सम्मान किये.उसके पिताजी एक कालेज में लेक्चरर थे और अख़बार में छपा मेरा प्रवचन अक्सर पढ़ते थे.चाय पानी के दौरान बातों ही बातों में मैंने सुचित्रा की शादी का जिक्र छेड़ा.फिर मैंने उस लड़के की चर्चा की,जिससे सुचित्रा शादी करना चाहती थी.
उसके माता पिताजी कुछ देर मौन रहे,फिर उसकी माताजी बोली-स्वामीजी..ये सम्भव नहीं है..
उसके पिताजी बोले-हमदोनों जहर खा लेते हैं,फिर ये उस लड़के से शादी कर ले..
मैंने उन्हें बहुत समझाया पर वो लोग नहीं माने.उसके पिताजी मुझसे बोले-स्वामीजी यदि आपकी बहन कोई ऐसी बेमेल शादी करना चाहे तो क्या आप उसकी बात मान लेंगे.
जी..मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी..-मैं बोला.
बड़ी देर तक बहस चलती रही.अंत में गुस्से से चीखते हुए सुचित्रा बोली-आपलोग मेरी मर्जी से शादी करने के लिए तैयार नहीं हैं तो ठीक है मैं भी आज ये प्राण लेती हूँ कि मैं अब आजीवन शादी नहीं करुँगी.
मेरा मन इतना खिन्न हो गया था कि मैं उठकर वहाँ से चल दिया.कई दिनों बाद सुचित्रा आचनक एक दिन दोपहर के समय आश्रम में आई.उस समय एकांत था मैं अपनी डायरी खोलकर अर्पिता की फोटो देख रहा था.मेरा पैर स्पर्श करते हुए उसने फोटो देख लिया.
मैंने डायरी बंद कर दी और उसे समझना शुरू किया-तुम्हारे माता पिताजी तैयार नहीं हैं.उस लड़के को भूल जाओ और अपने माता पिताजी की मर्जी से शादी कर लो.
यही उस लड़की अर्पिता की फोटो थी,जिसे आप बहुत चाहते थे..-वो मेरी बात का जबाब न दे मुझसे पूछी.
हाँ,यही अर्पिता की फोटो है..-मैं बोला.
भूल जाइये उस धोखेबाज लड़की को..और किसी लड़की से शादी कर लीजिये..-वो बोली.
उसने अपना सर्वस्व मुझे समर्पित कर दिया था उसे धोखेबाज मत कहो..मैं उसे भूल नहीं सकता-मैं गुस्से से बोला.
मुझे क्षमा कीजियेगा..मैंने आपको सिर्फ इसीलिए ये दुःख पहुँचाया ताकि मेरे दर्द का एहसास आपको हो और मुझे आप व्यर्थ में न समझाएं.आप उस लड़की को नहीं भूल पा रहे हैं,जो अब इस दुनिया में नहीं है और मुझे उस लड़के को भूलने को कह रहे हैं जो इस दुनिया में जीवित है और जिससे रोज मुलाकात होती है-सुचित्रा बोली.
उसकी बात मेरे दिल को बहुत गहराई तक स्पर्श कर गई थी.मैंने उसे फिर कभी नहीं समझाया.हम मित्र की भांति मिलते रहे.
एक वर्ष बाद उस लड़के की शादी अन्यत्र कहीं हो गई.जिसे सुचित्रा चाहती थी.सुचित्रा ने शादी नहीं की.उसे एक कालेज में लेक्चरर की नौकरी मिल गई.समय बीतने के साथ हमारी दोस्ती गहरी होती चली गई.उसके पिताजी का हृदय गति रुकने से निधन हो गया.
उसने अपना पैतृक मकान बेचकर अच्छी कालोनी में तीन कमरे का एक फ़्लैट ले लिया.
सन २००० में मैंने शादी का निर्णय लिया तो मैंने इस विषय में सुचित्रा से बात की.उसने मुझे शादी नहीं करने की सलाह दी.मैं अपने निर्णय पर अडिग रहा.एक दिन वो आश्रम में आकर कई पेज में लिखी एक चिट्ठी मुझे दे गई.उस चिट्ठी में उसने बहुत से संतो और कई दार्शनिकों की वाणियों का सहारा लेकर मुझे समझाने की कोशिश की थी कि जिसे हम नहीं जानते हैं,उससे शादी नहीं करना चाहिए.मनुष्य को या तो शादी करना नहीं चाहिए या फिर यदि करना हो तो उससे करना चाहिए,जिसे वो भलीभांति जानता पहचानता हो.
मैंने सुचित्रा की सलाह नहीं मानी थी और शादी कर ली थी.
किसी ने मुझे झकझोर कर जगाया.मेरी तंद्रा टूटी तो देखा कि मैं उसकी कालोनी में हूँ.
आप कहाँ खोये हुए हैं..आपको कहीं खोये देख मैं चुप रही..रास्ते भर आपने कोई बात नहीं की..आपकी तबियत तो ठीक है न ..-सुचित्रा बोली.
वो कार से बाहर निकलकर गेट बंद की और दूसरी तरफ आ गेट खोलते हुए बोली-दीदी आप का ख्याल नहीं रखतीं हैं क्या..
मैं कार से बाहर निकलते हुए बोला-वही तो ख्याल रखती है..मेरा जीवंत प्रणय है वो..
सुचित्रा हंसने लगी.मुझे लेकर वो अपने ग्राउंडफलोर फ़्लैट के द्वार पर पहुंची.
वो कालबेल बजाई.थोड़ी देर में एक युवती दरवाजा खोली.हमलोग फ़्लैट के अंदर चले गए.अंदर घुसते ही हमदोनों अपनी चप्पल और सेंडिल दीवार से सटाकर उतार दिए. ड्राइंगरूम में पालने पर सो रही कुछ दिन की एक बच्ची पर मेरी निगाह पड़ी.मैंने बड़ी उत्सुक्ता से पूछा-ये बच्ची कौन है.
यही तो सरप्राइज है जो मैं आपको दिखाना चाहती थी.मैंने इस बच्ची को गोद ले लिया है.अब मैं इसे पालपोसकर बड़ा करुँगी और पढालिखाकर इसे योग्य बनाउंगी-सुचित्रा बहुत खुश होकर बता रही थी.
कैसे मिल गई ये बच्ची..-मैंने पूछा.
वो युवती की ओर ईशारा करते हुए बोली-इसकी बड़ी बहन की लड़की है..ये उनकी चौथी पुत्री थी..जिससे वो लोग छुटकारा पाना चाहते थे..मुझे इसने बताया तो मैंने विधिवत लिखापढ़ी करा के इसे गोद ले लिया है..-सुचित्रा बोली.फिर वो बच्ची को उठाकर मेरी गोद में देते हुए-आज आप इसका नामकरण कर दीजिये..
मैं अपनी जेब से सौ का एक नोट निकाल मेरी ओर एकटक देखती मासूम बच्ची के नन्हे हाथों में पकड़ाते हुए बोला-मुझे कुछ देर सोचने का मौका दो..
बच्ची मुंह बिचका रोने लगी.उसे मैं सुचित्रा को सौपते हुए बोला-बहुत अच्छा काम किया है तुमने..तुम्हे मेरी ओर से बहुत बहुत बधाई..
सुचित्रा बच्ची को चुप करा पालने में धीरे से लिटा दी.वो युवती से बोली-विभा..तुम चाय का पानी रख दो और मेरे कमरे में पानी और मिठाई ले आओ..
पहले माँ से मिल लीजिये..सालों से याद कर रही हैं आपको..-सुचित्रा ये कहते हुए मुझे अपनी माँ के कमरे में ले गई.गर्म हवा देने वाले ब्लोअर के चलने के कारन कमरे में काफी गर्मी थी.ठण्ड से मुझे बहुत राहत मिली.सुचित्रा की माताजी रजाई ओढ़ के लेती हुईं थीं.उनकी तबियत ठीक नहीं लग रही थी.
मम्मी..गुरूजी आये हैं..-सुचित्रा ने अपनी माँ को जगाते हुए आवाज दी.
वो रजाई एक टफ कर उठकर बैठ गईं और हाथ जोड़ बोलीं-स्वामीजी..हमलोगों से ऐसा क्या गुनाह हो गया कि आपने बिल्कुल मुंह ही फेर लिया..
आपकी तबियत अब कैसी हैं..-मैंने उनकी बात काटते हुए पूछा.
कमरे के एक कोने में मेज के पास पड़ी कुर्सी को सुचित्रा मेरे लिए उठा लाई.मैं उसपर बैठ गया.सुचित्रा कुर्सी के हेंडिल पर हाथ रख चुपचाप खड़ी हो गई.
तबियत का क्या कहूं..दसों रोग धरे हुए हैं..बिस्तर पर बस पड़ी रहती हूँ..-वो अपने घुटने अपने हाथों से सहलाते हुए बोलीं.उनके घटने दर्द कर रहे थे.फिर वो मेरी तरफ ध्यान से देखते हुए बोलीं-स्वामीजी..आप चाहते तो मेरी बेटी का घर बस गया होता..
मैं आश्चर्य से बोला-मैं तो चाहता ही था..आपलोगों ने ही उस लड़के को नापसंद कर गिया था..इसमें मेरा क्या दोष है..
वो बुरा सा मुंह बनाकर बोलीं-मैं उस लड़के की बात नहीं कर रही हूँ..मैं आपकी बात कर रही हूँ..मैं आपके लिए तो हमेशा तैयार थी..
मैं उनकी बात सुनकर हैरान रह गया.मैं उनकी बात का कोई जबाब न दे पीछे सिर घुमाकर सुचित्रा की तरफ देखा.वो झेंपते हुए बोली-आप मम्मी की बात पर ध्यान मत दीजिये..वो कुछ भी बोल जाती हैं..आप उठिए और मेरे साथ मेरे कमरे में चलिए..
मैं कुर्सी से उठ खड़ा हुआ.मैंने हाथ जोड़कर सुचित्रा के माताजी को प्रणाम किया.वो भी हाथ जोड़ते हुए बोली-स्वामीजी..वर्षों से जो बात मेरे मन में दबी पड़ी थी..और मुझे बहुत कष्ट दे रही थी..वो मैंने आज आपसे कह दी..बुरा लगा हो तो मुझे माफ़ कीजियेगा..
मैं सुचित्रा के साथ कमरे से बाहर निकल आया.सुचित्रा मुझे बगल वाले कमरे में ले गई जो उसका अपना कमरा था.कमरा बहुत सलीके से सजाया गया था.मेजपर लेपटॉप रखा हुआ था.उसपर ढेर सारी किताबों के साथ फ्रेम में जड़ी हुई मेरी एक तस्वीर भी थी.
मैं कुर्सी पर बैठने लगा तो सुचित्रा बोली-आप बेड पर बैठिये..आपको आराम मिलेगा..
मैं बेड पर बैठकर गुलाब के फूलोंवाली नई बेडशीट को देखने लगा.बाहर से मैं शांत था लेकिन मन के भीतर एक हलचल सी मची हुई थी.
कई दिन से आप अपने संस्मरण की नई क़िस्त नहीं लिख रहे है..मैं कई दिन से उसकी प्रतीक्षा कर रही हूँ..-सुचित्रा मुस्कुराते हुए पूछी.
लिखूंगा..अभी थोडा दूसरे कामों में व्यस्त हूँ..-मैं बोला.
मेरे पास मेज खिसकाते हुए सुचित्रा बोली-आप पैर ऊपर कर लीजिये..
मैं पैर ऊपर कर उसके अधेड़ लेकिन सुंदर चेहरे की चमक और बालों में आती सफेदी को देखते हुए बोला-तुम्हारी माताजी मुझे क्यों दोष दे रहीं थीं..मैं तो आज से बाईस साल पहले ही तुमसे अपने मन की बात कहनेवाला था..लेकिन जब मैं देखा कि तुम्हे किसी और से प्रेम है तो मैं खामोश हो गया था..जब मैंने शादी करने का फैसला किया था तब भी तुमने कुछ नहीं कहा था..
कहा तो था..और कैसे कहती..आपको शादी करने से मना किया था..आपको इतनी विस्तृत चिट्ठी लिखी थी..आपको समझ जाना चाहिए था कि मैं आपकी शादी का विरोध क्यों कर रही हूँ..-सुचित्रा मेज ठीक करने के बहाने सिर नीचे किये हुए बोली.
तुम्हे साफ साफ बताना चाहिए था..गलती तुम्हारी है..-मैं बोला.
सुचित्रा सीधी खड़ी होकर मेरी तरफ देखते हुए बोली-मैं गलत थी..चलो मान लेती हूँ..लेकिन आप किसको समझ पाये..मैंने अपने लेपटॉप पर आपके संस्मरण की हर क़िस्त आठ से दस बार पढ़ी है..और उसे पढ़कर मुझे लगा कि आप अपने जीवन में आई किसी भी लड़की को सही ढंग से नहीं समझ पाये..न आप अर्पिता को समझ पाये..न अर्चना को और न ही मुझे..मुझे तो लगता है कि आप दीदी को भी पूरी तरह से नहीं समझ पाये हैं जो पंद्रह साल से आपकी जीवनसंगिनी बनी हुई हैं..
उसकी कड़वी बात सुनकर मैं गुस्से से तिलमिला कर बोला-मुझे यही सब जली कटी बातें सुनाने के लिए यहाँ लाई हो..मैं अपने जीवन में सबके प्रति पूरी तरह से ईमानदार और समर्पित रहा तो भी ये सब सुनने को मिल रहा है..
सुचित्रा कुछ कहने जा रही थी,परन्तु विभा को कमरे में आते देख चुप हो गई.विभा एक ट्रे में मिठाई और पानी ले के आ गई.वो मेरे सामने रखी शीशेवाली सुंदर मेज पर ट्रे रखकर चली गई.
आप मिठाई लीजिये..मैं आपके लिए गुड़वाली चाय बना के लाती हूँ-सुचित्रा बोली.वो कमरे के बाहर चली गई.कुछ खाने पीने की इच्छा नहीं हो रही थी,फिर भी मैंने ट्रे में रखी प्लेट से बर्फी का एक छोटा टुकड़ा लेकर मैं मुंह में डाल लिया और स्टील का गिलास उठा पानी पी लिया.खाली गिलास मै मेज पर रख दिया.
थोड़ी देर मै दो कप चाय और नमकीन लेकर सुचित्रा आई.वो मेरे पास कुर्सी खिंच बैठ गई.एक कप चाय मुझे पकड़ाकर दूसरा कप अपने हाथ मै ले ली.
आपको मैंने नाराज कर दिया है..मुझे माफ़ कीजियेगा..-सुचित्रा धीरे से बोली.
तुमने मुझे आईना दिखाया है..उसके लिए शुक्रिया..लेकिन मैंने जो कुछ कहा वो भी सच है..तुम अपनी जगह पर सही हो और मैं अपनी जगह पर..-मैं गम्भीर होकर बोला.
आपने बच्ची का कोई नाम सोचा..-उसने बात बदलते हुए पूछा.
हाँ..इस बच्ची ने तुमहरे जीवन मै प्रवेश करके तुम्हे प्रसन्न किया है..तुम्हे जीने का एक नया उद्देश्य मिला है.उसका नाम प्रीति रख दो..ये कहकर मैं चाय पीने लगा.
अच्छा नाम है..अब आज से इसका नाम प्रीति धरा गया..-सुचित्रा प्रसन्नता से बोली.
चाय पीकर मैं खाली कप मेजपर रखते हुए बेड से उठकर खड़ा हो गया और बोला-अब मैं चलूँगा..लोग मेरा इतजार कर रहे होंगे..
सुचित्रा चाय का खाली कप मेजपर रखकर कुर्सी से उठ खड़ी हुई और मेरी तरफ देखते हुए बोली-आपकी पत्नी भी आपकी प्रतीक्षा कर रही होंगी..जो आपके वर्तमान समय की जीवंत प्रणय कथा हैं..जिनसे आपको दूर नहीं रहना चाहिए..
मुझे और मेरी मज़बूरी को समझने के लिए शुक्रिया दोस्त..मैंने उसके उदास और रुआंसे चेहरे को देखते हुए कहा.
हमदोनों ड्राइंगरूम में आये.मैं अपनी चप्पल और वो अपनी सेंडिल पहनी.सुचित्रा मेजपर से अपना बैग उठाते हुए विभा से बोली-बिटिया का ख्याल रखना.मैं गुरूजी को छोड़ के आती हूँ..
हमदोनों फ़्लैट से बाहर निकल आये और उसकी कार में बैठकर मेरे घर जाने के लिए निकल पड़े.सुचित्रा ने अपनी पसंद का एक कैसेट लगा दिया.कार में ये गीत गूंजने लगा-
दिल ढूंढता,है फिर वही फुर्सत के रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर-ऐ-जाना किये हुए
जाड़ों की नर्म धुप और आँगन में लेट कर
आँखों पे खींच कर तेरे दामन के साए को
औंधे पड़े रहें कभी करवट लिए हुए
दिल ढूंढता,है फिर वही फुर्सत के रात दिन
बैठे रहें तसव्वुर-ऐ-जाना किये हुए

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(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

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