Menu
blogid : 15204 postid : 700727

अवधू ऐसा ज्ञान न देखा-कबीर वाणी व्याख्या सहित

सद्गुरुजी
सद्गुरुजी
  • 534 Posts
  • 5673 Comments

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
38691
अवधू ऐसा ज्ञान न देखा
~~~~~~~~~~~~~~~~~

अवधू ऐसा ज्ञान न देखा।
पहले मोरी माई मरि गई,
पीछे जन्म हमारा।
बब्बा चले है व्याह करन को,
हमहूँ चले बरियाई।
अवधू ऐसा ज्ञान न देखा।

संत कबीर साहब के अनुसार पढ़ना और सुनना वास्तविक ज्ञान नहीं है। वास्तविक ज्ञान तो ये है कि ज्ञान को देख लिया जाये यानि महसूस कर लिया जाये। पहले त्रिगुणात्मक प्रकृति यानि सत,रज और तम रूपी मेरी माँ मरी, फिर मेरा जन्म हुआ। प्रकृति के गुणो से छुटकारा पाने के बाद ही व्यक्ति अपने वास्तविक स्वरुप का दर्शन करता है। मेरे बब्बा यानि गुरुदेव महाराज ध्यान में बैठकर व्याह करने यानि परमात्मा से मिलने गए हैं। मैं भी जबर्दस्ती और बेमन से ध्यान लगाने की कोशिश कर रहा हूँ।
पांच भाई हम इक संग जन्मे,
चार को मरते देखा।
पांच पच्चीस भौजाई मरि गईं,
हमहीं लगावत लेखा।
अवधू ऐसा ज्ञान न देखा।

जन्म के साथ ही मुझे पांच भाई-शब्द,रूप,रस,गंध और स्पर्श मिले। हर मनुष्य को जन्म से ही ये पांचो भाई यानि प्रकृति के पांचों तत्वो के ये सूक्ष्म रूप प्राप्त होते हैं। प्रकृति के यही पांचों गुण मनुष्य को सांसारिक मायाजाल में फंसाये रखते हैं। संतजन कहते हैं कि हिरन प्रकृति के एक गुण गंध के पीछे भागकर अपनी जान गँवा बैठता है, फिर मनुष्य तो प्रकृति के इन पांचों गुणो के प्रति आसक्त होकर रातदिन भाग रहा है, उसकी क्या गति होगी ?
गुरु महाराज कबीर साहिब फरमाते हैं कि साधू जब भगवान की साधना में लीन होता है तो लगाव ख़त्म होते जाने के कारन उसे धीरे धीरे चार भाईयों यानि रूप, रस, गंध और स्पर्श से छुटकारा मिल जाता है। यही चारों भाईयों का मरना है। साधना में और आगे बढ़ने पर पांचों तत्वों और उनकी पच्चीस भौजाइयों अर्थात पांच तत्व, पांच उनके सूक्ष्मरूप, पांच ज्ञानेन्द्रियाँ, पांच कर्मेन्द्रियाँ और प्राण, मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार आदि से छुटकारा मिल जाता है. इसका अनुभव भी किसी दूसरे को नहीं बल्कि साधू को स्वयं होता है। वास्तविक ज्ञान वही है जो हमारे अनुभव में उतर आये।
ईक चिउँटी के मृत्यु भये से,
नौ लाख गिद्ध अघाई।
कुछ खाईल, कुछ भुइंया गिरावल,
कुछ छकडन ले जाई।
अवधू ऐसा ज्ञान न देखा।

एक चिउँटी के मरने से नौ लाख गिद्धों का पेट भर जाये, ये बड़े आश्चर्य की बात लगती है। यहांपर गुरु महाराज कबीर साहिब अपनी सधुक्कड़ी भाषा में कह रहे हैं कि एक मन रूपी चिउँटी के मरने से नौ लाख इच्छा रूपी गिद्ध तृप्त हो जाते हैं अर्थात मन के मरने से इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं। साधना करने वाले व्यक्ति को कई जन्म-जन्मांतर के कुछ संस्कार भोगने पड़ते हैं, कुछ संस्कार गुरु की कृपा से समाप्त हो जाते है और कुछ संस्कार ईश्वर की दया से उसके द्वारा हर लिए जाते हैं। ये अनुभगम्य ज्ञान है, जिसे ईश्वर-पथ पर चलते वाला पथिक स्वयं अनुभव करता है।
संतोष तखत पर बन राजा,
विवेक की लगी है दरबानी।
जगमग ज्योति जरे घट भीतर,
मुक्ति भरे जहाँ पानी।
अवधू ऐसा ज्ञान न देखा।

साधना करने वाले व्यक्ति के मन में जब संतोष का भाव स्थायी रूप से आ जाता है तो वो अपने शरीर रूपी राज्य का राजा बन जाता है। उस व्यक्ति के मन के भीतर विवेक रूपी चौकीदार जागृत होकर हर पल उसकी काम, क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार और ईर्ष्या-द्वेष से रक्षा करता है। ऐसा व्यक्ति अपने ही शरीर के भीतर स्वयं को और परमात्मा को प्रकाश के रूप में देखता है। शरीर ही वो काशी है, जिसके भीतर जीते जी मोक्ष पाया जा सकता है। ये सब अनुभवगम्य ज्ञान है, जो हमारी नर-नारायणी देह के भीतर ही दिखाई देगा। ये ज्ञान संसार में कहीं बाहर नहीं दिखेगा।
शून्य आईल,शून्य गईल,
शून्य भईल प्रवेशी।
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
कमी रही न।
अवघू ऐसा ज्ञान न देखा।

गुरु महाराज कबीर साहिब कहते हैं कि मन जब शांत होकर शून्य की अवस्था में आ जाये और चित्तवृत्तियों का पूर्णत: निरोध हो जाये तब मनुष्य की चैतन्य आत्मा परमात्मा में प्रवेश कर जाती है। परमात्मा एक ऐसी अवस्था का नाम है, जहाँ पर न कोई कमी है और न कोई बेसी है अर्थात परमात्मा एक ऐसा अकाल पुरुष या स्थिर समय है, जहांपर न तो भूतकाल है और न ही भविष्यकाल है। परमात्मा निराकार और समय से परे है। परमात्मा रूपी ज्ञान को साधना करने वाले व्यक्ति अपने अनुभव के द्वारा देखते हैं। मानस में इसीलिए कहा गया है कि- जद्यपि ब्रह्म अखंड अनंता। अनुभव गम्य भजहिं जेहि संता। ।।हरि ॐ तत्सत हरि ।।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
(सद्गुरु श्री राजेंद्र ऋषि जी,प्रकृति पुरुष सिद्धपीठ आश्रम,ग्राम-घमहापुर,पोस्ट-कंदवा,जिला-वाराणसी.पिन-२२११०६)

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh